प्रत्येक भाषा अपने आप में एक संसार है, उसमें उसके नागरिकों की संस्कृति, ज्ञान, व्यवहार जैसी तमाम जरूरी चीजें रहती हैं. किसी भी भाषा का लुप्त हो जाना उस सभ्यता का लुप्त हो जाना है. ऐसे में जरूरी है कि हम अपनी भाषा से प्रेम करें, उसे आदर दें और उसका प्रयोग भी करें. अभी […]
प्रत्येक भाषा अपने आप में एक संसार है, उसमें उसके नागरिकों की संस्कृति, ज्ञान, व्यवहार जैसी तमाम जरूरी चीजें रहती हैं. किसी भी भाषा का लुप्त हो जाना उस सभ्यता का लुप्त हो जाना है. ऐसे में जरूरी है कि हम अपनी भाषा से प्रेम करें, उसे आदर दें और उसका प्रयोग भी करें.
अभी अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) मनाया गया है. इस अवसर पर बिसरा दिये गए देशज शब्दों पर राहुल राजेश का यह आलेख.
देशज शब्दों की मनभावन मिठास
राहुल राजेश
हाल में एक हिंदीसाप्ताहिकपत्रिकामेंजबअष्टभुजाशुक्लकीएककवितापढ़ीतोअरसोंबाद\’रसे–रसे\’शब्दसेदुबारामुलाकातहुई.उनकीकविता\’रसकीलाठी\’इन्हींशब्दोंसेशुरूहोतीहै– \’रसे–रसेपककर आँवलों में पक्की हो गई है खटास/ गन्नों में पककर पक्की हो गईहैमिठास\’.\’रसे–रसे\’शब्दमेरीदादीअक्सरबोलाकरतीथी.\’थी\’इसलिएकिदादीकोरोजसुनपानेकासुखअबसमाप्त–प्रायहोचुकाहै.दादीसेहजारोंकिलोमीटरदूरनौकरीकरनेकीबाध्यताकेकारणदादीकेखजानेसेनिकलनेवालेबेहदमीठे–अनूठेदेशजऔरठेठशब्दोंसेहमलगभगवंचितहीहोगएहैंऔरकेवलस्मृतियोंमेंसंचितशब्दहीकभी–कभारदीप्ति–साकौंधजातेहैं.जैसेकियहशब्द-\’रसे–रसे\’!
मेरेनानाजीचोटलगनेयाठोकरलगनेको\’घावलगना\’कहाकरतेथे.जैसे– \’अरे, संभलकेचलो, घावलगजाएगा!\’मुझेयहप्रयोगभीबहुतआत्मीयलगताथा.बिहार–झारखंडमेंएकशब्दकाखूबप्रयोगहोताहै, वहहै– \’थेथर\’.यहशब्दभीमुझेबड़ाप्याराऔरमजेदारलगताहै.वहाँइसकाप्रयोगठीठ, जिद्दी, हठी, मोटीचमड़ीवालेकेअर्थमेंहोताहै.जैसे– \’वहबड़ाथेथरआदमीहै, उससेकुछकहोहीमत.\’इसीतरहऔरएकगँवईढबकाशब्दहै– \’भोथर\’.इसकाप्रयोगकुंद, भोंथरे, बिनाधारवालेकेअर्थमेंकियाजाताहै.जैसे– भोथरदिमाग, भोथरहसियाआदि.विशेषतौरपरझारखंडमेंएकशब्दअबभीखूबप्रचलनमेंहै– \’दिक्कू\’.वहाँगैर–आदिवासीआबादीको \’दिक्कू\’ कहाजाताहै.मानाजाताहैकिआदिवासीलोगइसकाप्रयोगगैर–आदिवासीआबादीकेलिएकरतेहैं.दिक्कूसेउनकाआशयहै– दिक्कतकरने/देनेवाला, दिक–दिककरनेवालायानीपरेशानकरनेवाला. झारखंड में स्मरण, स्मृति, याद अथवा ख्याल के लिए भी एक सुंदर शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है– \’दिशा\’. यथा– \’हमरा ओकर नाम दिशा नाय आवे छे.\’ (मुझे उसका नाम याद नहीं आ रहा.), \’हमरा ई बात के दिशा नाय छे.\’ (मुझे इस बात का स्मरण नहीं है.)आदि.
जबमैंअहमदाबादआयातोमुझेगुजरातीकाएकशब्दबहुतप्यारालगा! वहशब्दहै– \’सरस\’! हिंदीमेंसरसकासामान्यअर्थ\’रसपूर्ण\’है.लेकिनगुजरातीमेंसरसकाअर्थ\’सुंदर\’है! गुजरातीमेंइसकाप्रयोगकुछइसतरहहोताहै– \’सरसछे!\’ (सुंदरहै! बढ़ियाहै!).गुजरातीकाहीऔरएकशब्दमुझेभागया, वहहै– \’कदाच्\’.यहशब्दसंस्कृतके\’कदाचित्\’काहीज्यादाप्रचलितरूपहै.गुजरातीमेंकदाच्काप्रयोग\’शायद\’या\’संभवत:\’ केअर्थमेंहोताहै.कदाच्काप्रयोगगुजरातीमेंकुछइसतरहकियाजाताहै– \’कदाचभूलीगयो!\’ (शायदभूलगया), \’कदाच्आजेरमेशआवतीनथी!\’ (शायदआजरमेशनहींआयाहै)आदि–आदि. गुजराती का और एक शब्द कर्णप्रिय लगता है, वह है– \’पूनम\’. यहाँ पूर्णिमा को पूनम कहा जाता है. जैसे– \’आज पूनम की रात है!\’