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समालोचन

Home » अल्बेयर कामू: मौन लोग: अनुवाद: सुशांत सुप्रिय » Page 4

अल्बेयर कामू: मौन लोग: अनुवाद: सुशांत सुप्रिय

अल्बेयर कामू (7 नवम्बर,1913 - 4 जनवरी,1960) की कहानी ‘The Silent Men’ (French: Les muets) उनके कहानी-संग्रह- ‘Exile and the Kingdom’ (French: L'exil et le royaume) जिसका प्रकाशन 1957 में हुआ था, में संकलित है. उन्हें 1957 में ही साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. सुशांत सुप्रिय का यह अनुवाद इसके अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित है. कामू दार्शनिक रचनाकार हैं. अस्तित्ववाद (Existentialism) और असंगतता (Absurdism) के सिद्धांतों के पुरोधा के रूप में जाने जाते हैं. यह कहानी कामगारों के असफल हड़ताल के बाद, उनके अंदर अवसाद और विरक्ति और फिर घटित बदलावों को दिखाती है. सुशांत सुप्रिय चूंकि ख़ुद कहानीकार हैं इसलिए अनुवाद में भी रवानी बचाए रखते हैं. कहानी प्रस्तुत है.

by arun dev
August 11, 2021
in अनुवाद
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ढलती दुपहरी में बाक़ी बचा समय भी घिसटता रहा. यवेर्स अब केवल थकान और अपनी छाती पर एक भारीपन को महसूस कर रहा था. वह बातचीत करना चाहता था. लेकिन उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं था. दूसरे कारीगरों का भी यही हाल था. उनके असंचारी चेहरों पर केवल वेदना और हठ जैसा भाव मौजूद था. कभी-कभी ‘ आपदा ‘ शब्द यवेर्स में आकार लेता प्रतीत होता था. लेकिन यह भाव क्षणिक ही था क्योंकि यह तत्काल ग़ायब हो जाता था. यह ऐसा था जैसे कोई बुलबुला आकार लेते ही फूट जाता है. वह घर जाना चाहता था. फिर से फ़रनांदे के पास रहना चाहता था. वह अपनी पत्नी के साथ खुली छत पर समय बिताना चाहता था.

जैसा कि होना ही था, बैलेस्टर ने दुकान बंद करने का समय हो जाने की घोषणा कर दी. सारी मशीनों का चलना रोक दिया गया. बिना किसी जल्दबाज़ी के सारे कारीगर जगह-जगह जल रही आग को बुझाने लगे, और अपने काम करने की जगह पर चीज़ों को व्यवस्थित करने लगे. फिर सभी कारीगर एक-एक करके सामान रखने वाले बंद कमरे में गए, जिसके दूसरे कोने में खुला स्नान-कक्ष था. सैय्यद सबसे पीछे रह गया. दुकान को साफ़ करने और धूल-मिट्टी वाली ज़मीन पर पानी छिड़कने की ज़िम्मेदारी उसकी थी.

जब यवेर्स सामान रखने वाले बंद कमरे में पहुँचा तो उसने पाया कि बालों से भरी देह वाला विशालकाय एस्पोज़ीतो स्नान-कक्ष में नहा रहा था. उसके तौलिये से अपनी देह को रगड़ने की आवाज़ दूर तक आ रही थी. आम तौर पर बाक़ी कारीगर उसे उसके शर्माने की वजह से छेड़ते थे. भालू जैसा विशालकाय और ज़िद्दी एस्पोज़ीतो वाक़ई अपने गुप्तांगों को नहाते समय भी छिपाए रखता था. लेकिन आज इस अवसर पर किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया. स्नान करने के बाद अपनी कमर में तौलिया लपेटे एस्पोज़ीतो सबके बीच बाहर आ गया. फिर एक-एक करके सभी कारीगर नहाने लगे. मार्को नहाते समय शोर मचा रहा था. तभी सभी कारीगरों ने पहिये वाले मुख्य द्वार के घर्षण के साथ धीरे-धीरे खुलने की आवाज़ सुनी. श्री लस्साले भीतर आ गए.

उन्होंने वही कपड़े पहने हुए थे जो उन्होंने यहाँ पिछली बार आते समय पहन रखे थे. लेकिन उनके बाल बेहद छितराए हुए थे. वे चौखट पर रुके और उन्होंने उस बड़ी ख़ाली दुकान की ओर देखा. उन्होंने कुछ क़दम बढ़ाए. फिर वे रुके और उन्होंने सामान रखने वाले कमरे और स्नान-कक्ष की ओर देखा. कमर में तौलिया लपेटे एस्पोज़ीतो उनकी ओर मुड़ा. अर्द्ध-नग्न अवस्था में और उलझन में वह कभी एक पैर पर, कभी दूसरे पैर पर अपनी देह का भार डाल रहा था. यवेर्स ने सोचा कि मार्को को कुछ कहना चाहिए. लेकिन मार्को तो नहाने में व्यस्त था. जब एस्पोज़ीतो ने एक क़मीज़ उठाई और उसे फ़ुर्ती से पहनने लगा तभी श्री लस्साले ने सपाट आवाज़ में सबसे ‘शुभ-रात्रि’ कहा और फिर वे छोटे दरवाज़े की ओर चल दिए. जब तक यवेर्स यह सोच पाता कि किसी को उन्हें वापस बुलाना चाहिए, तब तक दरवाज़ा बंद हो चुका था.

यवेर्स ने नहाए बिना अपने कपड़े बदले और सबसे हृदय से ‘शुभ-रात्रि’ कहा. सब ने उसी गर्मजोशी से जवाब दिया. वह तेज़ी से बाहर निकला और उसने अपनी साइकिल उठाई. जब उसने साइकिल चलानी शुरू की तो उसे अपनी पीठ में फिर से खिंचाव महसूस हुआ. ढलती दुपहरी में अब वह सड़क की व्यस्त सड़क पर साइकिल चला रहा था. वह तेज़ी से साइकिल चला रहा था क्योंकि वह जल्दी से अपनी खुली छत वाले घर पर पहुँचना चाहता था. वहाँ वह स्नान करके खुली छत से समुद्र का दृश्य देखना चाहता था , हालाँकि इस यात्रा में समुद्र उसके बग़ल में ही मौजूद था. सायादार चौड़े मार्ग की मुँडेर के उस पार समुद्र अब सुबह जैसा रोशन नहीं था बल्कि काला लग रहा था. लेकिन वह बीमार हो गई उस छोटी बच्ची का ख़्याल अपने ज़हन से नहीं निकाल सका, और रास्ते में वह उसी के बारे में सोचता रहा.

घर पहुँचने पर उसने पाया कि उसका लड़का स्कूल से लौट आया था और वह कोई किताब पढ़ रहा था. उसकी पत्नी फ़रनांदे ने उससे पूछा कि क्या सब कुछ ठीक-ठाक रहा. उसने कोई जवाब नहीं दिया और स्नान करने चला गया. फिर वह खुली छत की छोटी-सी दीवार के किनारे कुर्सी डाल कर बैठ गया. उसके सिर के ऊपर अलगनी पर धुले हुए कपड़े सूख रहे थे और आकाश इस समय पारदर्शी हुआ जा रहा था. दीवार के उस पार कोमल समुद्र पसरा हुआ था. फ़रनांदे पीने का सामान, दो गिलास और जग में ठंडा पानी ले आई. वह अपने पति के बग़ल में बैठ गई. यवेर्स ने उसे पूरी बात बताई. उसने अपनी पत्नी का हाथ अपने हाथों में इस तरह ले रखा था जैसे वे अपनी शादी के शुरुआती दिनों में किया करते थे. अपनी बात ख़त्म करने के बाद भी वह अपनी जगह से नहीं हिला बल्कि वह समुद्र की ओर देखता रहा, जहाँ एक ओर से दूसरी ओर तक गहरी होती शाम का धुँधलका फैलता जा रहा था. रात वहाँ दस्तक दे रही थी. “ओह, यह उसकी अपनी ग़लती है,” उसने कहा. काश, वह फिर से युवा होता और फ़रनांदे भी युवा होती तो वे समुद्र के उस पार दूर कहीं चले जाते.

__________

सुशांत सुप्रिय
(जन्म : 28 मार्च, 1968)सात कथा-संग्रह, तीन काव्य-संग्रह तथा सात अनूदित कथा-संग्रह प्रकाशित.
अंग्रेज़ी में काव्य-संग्रह ‘इन गाँधीज़ कंट्री’ प्रकाशित, अंग्रेज़ी कथा-संग्रह ‘ द फ़िफ़्थ डायरेक्शन ‘ प्रकाशनाधीन

संप्रति : लोक सभा सचिवालय , नई दिल्ली में अधिकारी.

पता: A-5001,

गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड, इंदिरापुरम
ग़ाज़ियाबाद – 201014 (उ. प्र.)
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

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Comments 1

  1. Daya Shanker Sharan says:
    1 year ago

    अल्बेयर कामू के साहित्य का मूल सरोकार मनुष्य की मुक्ति और उसके अस्तित्व की गरिमा है। मौत पर सार्त्र ने कहा था – ‘वह आदमी था।आदमी का दर्द पहचानता था । आदमी की भाषा में सोचता था। वह खामोश चला गया क्योंकि उसे अपने आसपास आदमी का मुखौटा पहने शैतान नजर आ गये थे।’ इस कहानी को पढ़ते हुए उसी त्रासद अनुभव से गजरना पड़ता है। सुशांत जी का अनुवाद उम्दा है।

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