आख्यान-प्रतिआख्यान (१):अग्निलीक(हृषीकेश सुलभ):राकेश बिहारी
यूरोप में राष्ट्र राज्य-और उपन्यासों का उदय साथ-साथ हुआ, लोकतंत्रात्मक समाज की ही तरह उपन्यासों में भी तरह-तरह के पात्र आपस में भिन्न विचारों के साथ संवादरत रहते हैं. भारत...
यूरोप में राष्ट्र राज्य-और उपन्यासों का उदय साथ-साथ हुआ, लोकतंत्रात्मक समाज की ही तरह उपन्यासों में भी तरह-तरह के पात्र आपस में भिन्न विचारों के साथ संवादरत रहते हैं. भारत...
नवारुण प्रकाशनसी- 303 जनसत्ता अपार्टमेंट्स सेक्टर -9गाज़ियाबाद बजरंग बिहारी तिवारी आलोचना में शोध के महत्व को समझने वाले आलोचकों में हैं. स्रोतों की तलाश और विवेकपूर्ण ढंग से उनका उपयोग उनकी...
कबीर हिंदी साहित्य के अध्यात्म हैं. उनको पढ़ना, सुनना, गुनना मनुष्यता को औदात्य प्रदान करता है. वे किसी के नहीं हैं और इसीलिए सबके हैं. गांधी की तरह. मनुष्य जब...
कवि, रंग-समीक्षक, अनुवादक और संपादक नेमिचन्द्र जैन (१६ अगस्त-१९१९ : २४ मार्च २००५) का यह शती वर्ष है जिसके अंतर्गत उपन्यास, कविता, रंगमंच, संस्कृति, स्मृति-व्याख्यान आदि अनेक समारोह हो रहे...
(sculpture by great ketelaars)पुत्र एक समय के बाद पिता बन जाता है. क्या वह पिता को अपदस्त करके पिता बनता है ? सत्ता के लिए पुत्र द्वारा पिता का वध...
महान सुधारक सावित्रीबाई फुले कवयित्री भी थीं. उनके मराठी में दो संग्रह प्रकाशित हुए- ‘काव्यफुले’ (१८५४) तथा ‘बावन्नकशी सुबोधरत्नाकर’ (१८९१).‘क्रांतिज्योति’ सावित्रीबाई फुले की कविताएँ औपनिवेशिक भारत में समाजिक-धार्मिक क्रान्ति की...
(Amrita Shergil : Self-portrait)‘उपन्यास के भारत की स्त्री’ के अंतर्गत अब प्रस्तुत है समापन क़िस्त ‘स्त्री का एकांत: अपूर्णता का विधान’. इससे पहले आपने पढ़ा है -(एक) ‘आरंभिका : हसरतें और...
(by DianeFeissel voilee)मुहम्मद हादी रुसवा ने ‘उमराव जान अदा’ उपन्यास में तवायफ उमराव की कथा कह दी, कम लोग जानते हैं रुसवा के दूसरे उपन्यास ‘जुनून-ए-इंतजार’ (१८९९) में इसी उमराव...
(by Annem Zaidi)उपन्यासों के उदय को राष्ट्र-राज्यों की निर्मिति से जोड़ कर देखा जाता है. ‘वंदे मातरम्’ उपन्यास की ही देन है. आशुतोष भारद्वाज भारत के प्रारम्भिक उपन्यासों में स्त्री...
( by Rabindranath Tagor)उपन्यासों को आधुनिक युग का महाकाव्य कहा जाता है. आधुनिकता, जनतंत्र और राष्ट्र-राज्यों के उदय से उनका गहरा नाता है, स्त्रियों की सामजिक गतिशीलता के बगैर उपन्यास संभव...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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