ऑर्गज़म राहुल श्रीवास्तव |
47 डेज़
47?
यस
देन आई विल हैव टू थिंक नाओ
दो बजे?
चलो ढाई
2:30? एनी स्पेसिफिक रीज़न?
विल टेल यू लेटर. प्लान क्या है?
बार हॉपिंग?
डन!
नंबर?
78xxx32xx1
और विधि लॉगआउट कर गई, मैंने सोचा तुरंत ह्वाट्सऐप कर दूँ पर रुक गया क्योंकि डेटिंग साईट नहीं थी, ये शादी डॉट कॉम है और परिवारों में ऐसा समझा दिया जाता है कि शादी में ग्रूम साइड को अपना एक अपर हैंड बनाकर रखना चाहिए वरना बाद में लड़की वाले दबाना शुरू कर देते हैं. मुझे पापा की बातें हमेशा ध्यान में रहतीं. जब टेन प्लस टू पास किया तो मम्मी पास्ड अवे. उसके बाद पापा हर बात में मम्मी और पापा दोनों बनकर मुझे समझाते. यहाँ तक कि उन्हीं की ज़िद पर मैट्रीमोनियल साईट पर अकाउंट भी बनाया, अगर ख़ुद नहीं बनाता तो शायद पापा ही अकाउंट बना देते और फिर न जाने क्या-क्या लिख डालते. पापा को आजकल की शादियों से काफ़ी तकलीफ़ थी.
आजकल की शादी कोई शादी है?
अब तो सब साले आधा-आधा करने आ जाते हैं
हमारी लड़की भी एम.बी.ए. है! हमने कहा एम.बी.ए. कराओ? अब करा लिया तो सुना क्यों रहे हो?
अब तक दो कोशिश बेकार जा चुकी थी, शादी के वेबसाइट पर मिली लड़कियों से मिलने में. आई होप आप लोगों को परेशानी नहीं होगी, यूँ मेरी डायरी पढ़ने में क्योंकि पूरी हिन्दी लिख पाना इज़ टू डैम डिफिकल्ट फॉर माय जनरेशन. फिर भी मैं ट्राय करूँगा जितना पॉसिबल हो हिन्दी में लिखने की। सबसे पहले एक लड़की से मिला था तो उसे चाहिए था कि सिर्फ़ वो और हम साथ रहेंगे शादी के बाद और फ़ैमिली का कोई साथ नहीं रहेगा.
“व्हाट द फ़क!”
पापा को अकेले नहीं छोड़ सकता तो उसको वहीं रेस्टोरेंट में साफ़ बोल दिया-“ लेट्स स्प्लिट द बिल एंड टाटा बाय बाय”
दूसरी से मिला तो उसे इंडिया में रहना ही नहीं है, भाई मुझे इंडिया पसंद है बाहर घूम लो पर रहना तो यहीं है. और अब ये विधि, 5-6 हफ़्तों से चैट चल रही थी और जाने क्यों लग रहा था कि विधि शादी लायक़ लड़की है. हमारे शौक़ मिलते थे और सबसे बेस्ट बात थी कि उसकी फ़ूड चॉइसेज़ में नॉन वेज था और ट्रैवल करने का शौक़ उसे भी है, उसे पहाड़ पसंद थे और मुझे ओशन, स्पोर्ट्स में उसे क्रिकेट पसंद था पर मुझे टेबल टेनिस बट क्या फ़र्क़ पड़ता है.
सबसे कमाल बात थी कि मुंबई में ही रहती है और नौकरी भी करती है. नंबर तो सेव कर लिया पर मेसेज नहीं भेजा, विधि ने चैट पर इस तरह से बातें की थीं कि मैं उसकी चैट देखकर खुश हो जाता, मुझसे ज़्यादा उसे पता था हाउ टू फ़्लर्ट और इसीलिए उससे एक सीक्रेट सा इश्क़ हो गया था. इस अजीब से इश्क़ का रोमांटिसिज्म मैं पूरी तरह से जीना चाहता था.
मैंने टिंडर पर काफ़ी लड़कियों के साथ डेटिंग की, एक के साथ वन नाईट स्टैंड भी हुआ पर उसके बाद मन नहीं किया उस से मिलने का. विधि के साथ जैसे शादी का ख़्याल मैच हो रहा था. ऐसा नहीं है शादी का ख़्याल पहले कभी नहीं आया पर कुछ चेहरे होते हैं जिनमें दुनिया को शायद कुछ ख़ास न दिखे पर अचानक से इतने क़रीब लगने लगते हैं कि लगता है, यही है वो जो मेरे लिये बनी है. एक और बात स्पेशल थी कि विधि महाराष्ट्रीयन थी, पुणे की थी, और मुंबई में रह रही थी. उसका चेहरा नार्थ इण्डियन लड़कियों से बहुत अलग था और इसीलिए मुझे वो बहुत अपील कर रही थी. मैंने उसका प्रोफाइल इतनी बार पढ़ा था कि एवरीथिंग वाज़ ऑन माय फ़िंगरटिप्स.
मैंने सोच लिया था कि अगर सब सही रहा तो शादी विधि से ही करूँगा और इसलिए मैंने पहली वेडिंग डेट पर क्या-क्या करें या क्या करने से बचें समझने के लिए यूट्यूब ट्राइ किया. मुझे डेटिंग टिप्स चाहिए थीं और एक बात तो हर वीडियो में कॉमन थी; रिस्पेक्ट वीमेन. किस करते समय जीभ घुसेड़ मत दो, थोड़ा टेंडर रहो. एक वीडियो में तो बताया कि डेट पर कंडोम ज़रूर रखकर जायें क्योंकि शादी के पहले कुछ लड़कियाँ ‘बेड कम्पेटिबिलिटी’ भी देखना चाहती हैं. एक ब्लॉगर ने समाधान भी बताया कि ऐसी मुलाक़ातों के पहले मैस्टरबेट कर लेना चाहिए जिस से कि चेहरे पर डेस्परेशन न दिखे. मुझे चांस नहीं लेना था इसलिए सलाह मान ली, एंड थैंक्स टू ‘एक्स-हैम्स्टर’ कि ढंग के वीडियो भी मिल गये.
ये भी बताया गया कि अगर आप किसी सीरियस ऑब्जेक्टिव के साथ मिलने जा रहे हैं तो फ़ोन पर कोई भी डेटिंग ऐप नहीं होना चाहिए. मैंने तुरंत मोबाइल से टिंडर का सफ़ाया कर दिया. मैं पहली बार नहीं मिल रहा था किसी लड़की से पर शादी के ख़्याल के चलते थोड़ा नर्वस ज़रूर था. वैसे भी मुंबई जैसे शहर में कुछ ही दिन तक होम डिलीवरी ऑफ़ फ़ूड अच्छा लगता है उस के बाद सबको घर का खाना चाहिए होता है.
मेरा दिमाग अब ये सोच रहा था कि मुंबई में कौन सी लोकेशन सही रहेगी शादी के बाद घर लेने के लिए. ढंग की लाइफ चाहिए तो बढ़िया सोसाइटी, स्विमिंग पूल तो मस्ट है, जिम के साथ. विधि का प्रोफाइल बढ़िया है, बैंकिंग में बिज़नेस डेवलपमेंट हेड. मैं कहने को तो वाईस प्रेसिडेंट हूँ पर इंश्योरेंस सेक्टर में क्या वाईस प्रेसिडेंट और क्या सेल्समेन सब बराबर हैं पर एमबीए की डिग्री दोनों के पास थी, हम दोनों बढ़िया लाइफ प्लान कर सकते हैं ये सोचकर बड़ा बढ़िया लगा.
आज शनिवार था और आज तो देर रात तक बाहर रह सकते हैं क्योंकि कल तो दिन भर सोना ही है और यही सोचकर आज की प्लानिंग कर ली थी. मैंने फिर भी एक बार मैट्रीमोनी साईट पर जाकर विधि के प्रोफाइल फोटो देखे और तब पता चला कि मैंने कितनी बड़ी बेवक़ूफ़ी की है. अपने पापा के कहने पर स्टूडियो में जाकर गर्दन टेढ़ी करके कैमरे की तरफ़ स्माइल करते हुए फोटो खिंचवाई थी और विधि ने ऑफिस के किसी ट्रिप की फोटो डाल रखी थी. मेरे लिये ऐसी फोटो खिंचवाने से पापा को मना करना आसान नहीं था अगर मैं कोशिश करता तो पापा, मम्मी का नाम लेकर बोलने लगते कि अगर आज मम्मी होतीं तो तुम तुरंत मान जाते और पापा ये मम्मी के नाम का ट्रम्प कार्ड हमेशा तैयार रखते, कोई बात फँसे बस; मम्मी. मम्मी के जाने के बाद आई फेल्ट वेरी लोनली, पापा ऑफिस चले जाते तो घर पर अकेला ही रहता, ऐसा लगता मम्मी को अगर ठीक से ढूँढा तो वो मिल भी सकती है.
मुझे हमेशा लगता था कि मम्मी कभी मर नहीं सकती, पापा मरते हैं पर मम्मी हमेशा ज़िंदा रहती है. मैं चिढ़ जाता था अगर कोई बोल देता कि पड़ोस की आंटी भी मम्मी की तरह ही तुमको प्यार करती हैं, यहाँ तक कि मौसी और चाची ने भी कोशिश की पर मैंने कभी किसी को मम्मी बनने का मौक़ा नहीं दिया. मैं अकेला था तो हमेशा मम्मी से क्लोज़ रहा, मम्मी सीने से लगा लेती और सिर सहला देती तो मैं दो मिनट में सो जाता, अब ऐसा कोई चाहिए था लाइफ में।
मैंने अपनी बहुत सी फोटो निकालीं और सोचा कि साईट पर चेंज कर दूँ फिर सोचा कि आज ही मिलने को तैयार हुई है और आज ही फोटो चेंज करना कुछ वियर्ड लग सकता है. कभी कुछ न सोचने की कोशिश करो तो दिमाग़ कुछ ज़्यादा ही सोचने लग जाता है और वही हुआ सोच-सोचकर इतना थक गया कि आँख लग गई. आँख खुली तो डेढ़ बज गये थे और मैंने आज लंच भी नहीं किया था. अचानक ध्यान में आया कि गूगल मैप चेक कर लेना चाहिए, इस समय ज़्यादा ट्रैफिक तो नहीं दिखा रहा. ये बेहतर होगा कि अभी निकल लिया जाये वरना मुंबई के ट्रैफिक का कोई भरोसा नहीं है.
शिट!
विधि को लोकेशन तो भेजी ही नहीं कि कहाँ मिलना है, एक दो रेस्टोरेंट सोचकर रखे थे, जहाँ डेट पर जा चुका था पर वहाँ जाना नहीं चाहता था और ऐसे पब में भी नहीं जहाँ म्यूज़िक इतना तेज़ हो कि बात न हो पाये. बहुत ढूँढने पर जुहू चर्च रोड पर ही एक ढंग का बार मिल गया सही रेटिंग के साथ. पर विधि कहाँ से आ रही है ये भी पता नहीं और पूछना सही नहीं लगा कहीं स्टॉकर न समझ ले. लोकेशन भेजकर तैयार हो गया और आज के लिए ऊबर बुला ली. मुंबई में ऑटो से चलो तो कपड़ों और चेहरे की ऐसी तैसी हो जाती है.
मैं पहुँच गया था, सोचा जब तक विधि नहीं आती बाहर ही बैठकर एक बियर पी ली जाये, जब वो आएगी तो अंदर कहीं बैठ जाएँगे. मुझे बडवाइज़र मैग्नम ही पसंद थी और एक पाइंट में टाइम आराम से कट सकता था. बाहर की टेबल्स पर लोग धीरे-धीरे जमा होने लगे थे, बाहर रखे प्लांट्स की ग्रीनरी अच्छी लग रही थी. मेनू देख ही रहा था वो कि विधि बग़ल में आ खड़ी हुई. पीच कलर की हॉल्टर नेक ड्रेस में वो कमाल लग रही थी क्योंकि इतनी सुंदर फोटो तो उसने प्रोफाइल पर भी नहीं लगाई थी. इतनी सुंदर लड़की मैंने डेट नहीं की थी ऐसा लग रहा था कि अच्छा हुआ विधि पहले नहीं मिली वरना फ्लिंग ही रह जाता. विधि सामने बैठी थी और समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात करूँ? करियर, बच्चे, हनीमून….सारी प्रेफ़रेंसेज तो मैच कर चुकी थीं.
“कैन आई ऑर्डर सांग्रिया?”
उसने मुझे खोया हुआ देखकर पूछा. आई फेल्ट वेरी मिडल क्लास, हाथ में बियर पाइंट देखकर. मैंने फिर भी कोशिश की, “इवेन आई लव ऐपल्स इन रेड वाइन”
विधि ने सीधे ही वेटर को बोला, “आई वुड प्रेफर सांग्रिया ब्लांका इफ यू हैव एंड वाइट वाइन नॉट रेड”
इंटरनेट कितना भी मेल करा दे पर कुछ चीज़ें किसी भी अलगोरिदम में फिट नहीं हो सकतीं.
“तुम कहाँ रहते हो ?” विधि ने वेटर के जाने का इंतज़ार भी नहीं किया.
“जे.वी.पी.डी. और तुम?”
“बाँगुर नगर, क्लोज टू सिग्नल”, विधि आसपास कुछ ढूँढ रही थी शायद
मैं जानता था कि बाँगुर नगर, गोरेगाँव वेस्ट में है पर सांग्रिया पर मिली हार को कंपनसेट करने के लिए मैंने ऐसा मुँह बनाया कि मुझे याद नहीं आ रहा कि कहाँ पर है वो एरिया. विधि ने फिर से कोशिश की, “बसंत गैलेक्सी, लिंक रोड पर इनॉरबिट के पहले वाले सिग्नल पर ही तो है…”
मेरा घर जुहू में था, मेरे पास हक़ था सबर्ब के लिये थोड़ा तो डिस्गस्ट दिखाऊँ. मुंबई में रहने वाला इंसान साउथ की तरफ़ ही इज़्ज़त से देखता है और सपने पालता है कि वो वेस्ट से और जितना हो सके साउथ की तरफ़ ही जाये.
“हाँ-हाँ एक बार गुज़रा था काफ़ी रिडेवलप्मेंट चल रहा है”, ये सुनकर शायद विधि को अच्छा नहीं लगा पर तब तक सांग्रिया आ गई थी.
“दैट इस राइट, बट आई कैनॉट अफ़ोर्ड जुहू, बहुत कॉस्टली है”, उसने कंधे उचकाते हुए कहा
मैं कुछ और बात करके ध्यान हटाना चाहता था, “आज तो छुट्टी थी फिर शाम नहीं दोपहर में क्यों बुलाया ?”
विधि ने एक सिप लिया, “आई वर्क इन फॉरेन बैंक तो नाइट शिफ्ट ही होती है.“
मैं उसे देखे जा रहा था पर विधि मेरी रैगिंग करना चाह रही थी, “चलो एक गेम खेलते हैं, तुम अपनी मदर टंग में बात करो और मैं अपनी लैंग्वेज में. रेडी?”
“क्यों? आई मीन वी हैव बेटर थिंग्स टू डू”, मैं थोड़ा कंफ्यूज सा हो गया.
विधि ने टिश्यू पेपर से अपने होंठ पोंछते हुए कहा – “लाइक?”
और सच में मेरे पास और कुछ नहीं था समय काटने के लिए, मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि मेरी नज़र उसकी आँखों और माथे से नीचे न फिसले पर हॉल्टर नेक के चलते वो दो माउंड्स मेरी जान ले रहे थे. मुझे याद था कि ऐसा कुछ नहीं करना है कि वो मुझे ग़लत समझ ले.
मैंने लीड ले ली, “महोदया कृपया अपने पूरे नाम से हमें अवगत कराइए.”
वो हँसी, “माझं नाव विधी आहे आणि आडनाव शिरसाट, तुझं घर कुठे आहे?”
मैंने अब तक दावी कड़े, उजवी कड़े, आई झावड्या, अजी, अजोबा जैसे वर्ड ही सीखे थे पर मराठी इतनी भी मुश्किल नहीं थी. मैं हंसा, “मेरा मूल निवास तो लखनऊ है जहाँ मेरे पिता जी रहते हैं और मेरी माता जी का देहावसान हो चुका है.”
उसने सांग्रिया का घूँट पूरा नहीं लिया– “मतलब मम्मी ऑफ हो गई हैं!”
जिस बात से मुंबई में चिढ़ होती थी वो किसी मरे के लिये बोलना कि फ़लाँ ऑफ़ हो गया है जैसे कोई मशीन या स्विच हो पर मैं उसके खेल से बाहर नहीं होना चाहता था, “आप अपनी बात अपनी भाषा में करें नहीं तो दंड पाने के लिये तैयार रहें.”
विधि तुरंत बोल पड़ी, “जो सज़ा दोगे मंज़ूर है, रनवीर अदावल.”
और फिर हम दोनों हंस पड़े. मैं कुछ देर साथ हंसा फिर उसे हँसता देखता रहा. ऐसा लग रहा था कि मैं उसके पीछे से जाकर उसके गले को चूम लूँ. वो अभी तक हंस रही थी और मैं उसके गले को अब तक
तीन-चार बार चूम चुका था- “सो व्हाट इज़ माय पनिशमेंट?”
मुझे लगा यही मौक़ा है कुछ ऐसा बोल देने का कि वो संभल न पाये पर मैं उस से लड़ाई नहीं मोल सकता था क्योंकि अब तक मेरा दिमाग़ उसके साथ शादी करके हनीमून पर जाकर, दोनों हाथों से उसके ब्रेस्ट सहला चुका था. आई नो! वी मेल्स आर ऑब्सेस्ड विथ बूब्स पर ये नेचुरल है. वो सॉफ्ट ब्रेस्ट मेरे हाथों से अलग ही नहीं हो रहे थे मैंने बड़ी मुश्किल से हाथ झटका, “तुम्हें मेरे साथ मैरिएट में लंच करना पड़ेगा.“
उसका चेहरा अब जाकर शांत हुआ, “यू मीन जे.डबल्यू.मैरियट? बहुत कॉस्टली नहीं है? आई वोंट स्प्लिट.”
उसने जैसे अपना जीवन मेरे हाथ सौंप दिया, “तुम्हारे साथ कोई स्प्लिट नहीं, न आज है और न कल होगा.” ये बात मैंने एक स्वैग के साथ बोली थी जिस से मैं और कूल लग सकूँ. विधि फिर से हंस रही दो- “मैंने अभी शादी के लिए हाँ नहीं बोला है, महँगा पड़ेगा अगर मैंने न बोल दिया तो”
मैं सिर्फ़ उसके साथ रहना चाहता था, “शहर ही महँगा है, जीने की क़ीमत चुकानी पड़ती है.” विधि इतनी तेज़ हंसी कि मुझे अपने ही डायलॉग पर मज़ा आ गया.
जैसे ही सांग्रिया का जार ख़त्म हुआ हम दोनों वहाँ से निकल पड़े. मैंने अपनी बियर आधी ही छोड़ दी, बियर आधी छोड़ने की बात अब याद आ रही है, जब डायरी लिखने बैठा हूँ. उस समय तो बस बिल पे किया और सीधे ऑटो में बैठ गये थे. मेरे दिमाग़ में हर तरह के सवाल आ रहे थे पर अपने को कंट्रोल करना ही सही था. ‘ट्यूलिप स्टार’ क्रॉस करते ही मैं दायें देखने लगा कि कब मुड़ना है पर मेरा ध्यान वहाँ रह नहीं पाया क्योंकि विधि ऑटो की स्पीड के साथ हिलते-डुलते मेरे बहुत क़रीब आ गई थी. ऑटो में बैठे हुए मैंने उसकी तरफ़ देखा तो मुझे उसके क्लीवेज़ की गहराई साफ़ दिख रही थी. अगर वैसी किसी डेट पर होता तो पहले मैरियट में कमरा बुक होता फिर लंच पर ये टिंडर डेट नहीं थी और ऐसा मौक़ा मुझे छोड़ना भी नहीं था. कुछ ही देर में ऑटो को दायीं ओर मुड़वा लिया, मैरियट में ऑटो से अंदर जाना ऑकवर्ड लगता है इसलिए हम दोनों मेन रोड पर ही उतर गये. मुझे इण्डियन खाने का मन था इसलिए विधि से बिना पूछे ही ‘सैफ़्र्न रेस्टोरेंट’ की तरफ़ चल दिया. हम दोनों को देखते ही वेट्रेस हमें कोने में लगी टेबल पर ले गई.
“बोलो क्या खाओगी?”- मैंने बड़े अधिकार के साथ पूछा.
“जो तुम बोलो, पर हल्का ही लूँगी…रोटी-ग्रेवी नहीं कुछ कबाब टाइप”, विधि ने चारों तरफ़ नज़र घुमाते हुए कहा. मुझे बड़ी रेस्टलेस सी लगी जब देखो आसपास स्कैन करती रहती है, होटल में घुसने से लेकर अब तक न जाने कितनी बार चारों तरफ़ देख चुकी थी.
“आर यू लुकिंग फॉर समवन?”, मैंने थोड़ा चिढ़कर पूछा.
“नहीं-नहीं, यहाँ कभी खाना नहीं खाया, लोटस कैफ़े में आयीं हूँ पर सैफ़्र्न में नहीं.“, विधि ने कोशिश की जबरन मुसकुराने की. मैंने उसकी तरफ़ ध्यान से देखा और मुझे उसी समय विधि के ड्रेस के ऊपर से हार्ड निपल्स दिख गए, लड़कियाँ जानबूझकर टीज़िंग कपड़े पहनती हैं, मेरे लिये कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था. मन कर रहा था कि उस से बोलूँ कि चलो अभी शादी कर लेते हैं. अच्छा हुआ वेटर बग़ल में आकर खड़ा हो गया और मैंने तुरंत वेटर को बोला–
“नो ड्रिंक्स, प्लीज़ सर्व मटन कोरमा विद गार्लिक नान…तुम यहाँ के गलौटी कबाब ट्राय करो”
ऑर्डर देकर मैंने जब विधि की तरफ़ देखा तो उसका ध्यान कहीं और था वो जैसे सबको देखकर किसी को पहचानने की कोशिश कर रही थी, मैं गुनगुनाने लगा – “मैं यहाँ हूँ…यहाँ हूँ…यहाँ हूँ…यहाँ?”
“बहुत ख़राब गया तुमने”, और विधि खिलखिलाने लगी.
“खाने के बाद बीच पर चलें?”, मैं उसका साथ नहीं छोड़ना चाहता था.
“इस समय?”, मुझे लगा वो मना करने के बहाने ढूँढ रही है.
“चलो एक नई चीज़ दिखाता हूँ, ग्रंथ बुक स्टोर है न लिंक रोड पर वहाँ से बीच के लिये रास्ता जाता है और वहीं पर ग्रीस कौंस्युलेट है”, मैं कुछ ऐसा बता रहा था जो बहुत कम लोगों को पता है इस शहर में. मैं चाह रहा था कि थोड़ा और समय मिले जिस से कुछ और बातें भी हो सकें, मैं जानबूझकर विधि को टेस्ट भी कर रहा था जिस से कि पता चल सके कि उसके अंदर क्या चल रहा था. वहाँ से पैदल का रास्ता था तो हम दोनों टहलते हुए बीच तक आ गए. बीच पर टहलते वक़्त मेरे हाथों की उँगलियाँ उसके हाथ से टकराईं पर मैंने हाथ थामने की कोशिश नहीं की, फर्स्ट डेट में इतना एग्रेसिव नहीं होना चाहिए पर मैं सोच रहा था कि शायद वो ख़ुद मेरा हाथ पकड़ ले. हम लोग बिना कुछ बोले बीच पर टहलते रहे, शायद तीन चक्कर लगाये होंगे. उसने अचानक पर्स से मोबाइल निकालकर देखा और बोली, “इफ यू डोंट माइंड कैन आई लीव नाओ”
मुझे लगा मैं जो लगातार उसके क्लीवेज़ पर नज़र गड़ाये था उसे पता तो नहीं चल गया? मैं इनसिक्योर महसूस करने लगा, “कुछ हुआ क्या? आई मीन आँट यू कंफ़रटेबल?”
वो ऐसे हंसी जैसे मेरे मन का चोर पकड़ लिया हो, बिना कुछ कहे मेरे गालों पर हल्का-सा किस किया और मुझे लगभग ड्रैग करते हुए मेन रोड की तरफ़ चल दी. मैं उसके पीछे आप ही चल पड़ा, मुझे उसका हाथ पकड़ना इतना अच्छा लगा था कि मैं उतनी देर के लिए ही सही पर उसके टच को फील कर लेना चाहता था. वो ऑटो लेकर चली गई पर वो तो गोरेगाँव में रहती थी फिर बांद्रा की तरफ़ क्यों गई? क्यों सोच रहा हूँ ये सब, मैंने एक सिगरेट जलाई और टहलता हुआ अपने घर की तरफ़ चल दिया, मेरे दिमाग़, मेरे दिल और मेरे हाथ में सिर्फ़ विधि थी और कब मैं अपने घर में सोफ़े तक पहुँच गया, पता ही नहीं चला, आई वाज़ मेस्मराइज्ड.
मैं चाहकर भी उसके ब्रेस्ट नहीं भूल पा रहा था हो सकता है मुझे पहले बोलना था कि मेरे साथ घर चलो, उसने बीच के दो चक्कर लगाते हुए सोचा होगा कि मैं थोड़ी देर में बोलूँगा पर आई आम ए मोरॉन. उसे लगा होगा कि मैं वही देहाती मिडल क्लास लखनऊ का हूँ, कहने को जेन ज़ी पर बुद्धि वही सिक्सटीज़ की, कि शादी के पहले सेक्स नहीं करना चाहिए. मन कर रहा था कि सिर फोड़ लूँ और मैं लगातार ह्वाट्सऐप देख रहा था. मुझे पूरा भरोसा था कि थोड़ी देर में वो मुझे ब्लॉक कर देगी. मैंने चेक करने के लिए सिर्फ़ एक डॉट भेजा, वो सिंगल टिक ही रहा.
दो)
पूरे सवा घंटे के बाद उसका मेसेज आया-
“थैंक्स फॉर द वंडरफुल टाइम एंड यू आर ए थरो जेंटलमैन”
मेरा मन बहुत कुछ पूछने का था पर मैंने एक स्माइली के साथ बात ख़त्म कर दी. मेरा मन था कि वो एक बार फिर मिले और हम दोनों वापस समय बिताएँ. एक ज़िद-सी चढ़ गई थी दिमाग़ में कि मैं शादी विधि से ही करूँगा. मैंने सोचा कि पापा को भी उसकी फोटो भेज दूँ पर एक बार उस के मुँह से हाँ सुन लूँ तब और ऐसी बातें फेस टू फेस ही होनी चाहिए. मेरे तीन दिन सिर्फ़ विधि के बारे में सोचते हुए ही बीत गये. मैं दिन भर ह्वाट्सऐप पर उसकी डी पी देखता रहता, इन लड़कियों में ग़ज़ब का कंट्रोल होता है, उसने सामने से कोई मेसेज नहीं किया. तीसरे दिन नहीं रहा गया तो मैंने मेसेज कर दिया.
“कैन आई हैव द प्रिविलेज ऑफ़ होस्टिंग यू ऐट माय मॉडेस्ट अबोड ?”
मुझे होप नहीं थी कि वो इतनी जल्दी जवाब देगी पर,
“ओनली इफ यू कुक मटन करी विथ राइस योरसेल्फ!”
अब अगले दो दिन मैंने बहुत कुछ किया घर साफ़ करने से लेकर घर सजाने तक यहाँ तक कि किचन भी चमका दी. घर के हर कोने में परफ्यूम डाला. अपनी बॉडी पर हर ज़रूरी जगह पर शेव कर लिया. हर फ्लेवर के कॉण्डम लाकर रख दिये. आर्गेनिक कच्ची घानी का सरसों तेल लेकर आया. एक दिन पहले ही मैंने सामने कटा ताज़ा मटन लाकर मैरिनेट कर दिया. प्लान था कि अगली सुबह उठते ही मटन बना दूँगा और जब विधि बोलेगी तो राइस कुकर में चावल चढ़ा दूँगा.
सुबह मटन चढ़ाने से पहले विधि को ऐड्रेस और गूगल मैप ह्वाट्सऐप कर दिया. ठीक सवा एक बजे घंटी बजी. उस समय मेरा दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि शायद मैं उसके सामने रो ही देता या डोर ओपन करते ही आई लव यू बोल देता. मैंने दरवाज़ा खोला तो मेरे सामने जो विधि थी उसे मैंने उस तरह से इमैजिन भी नहीं किया था, गुलाबी साड़ी, स्लीवलेस ब्लाउज़ और हाथ में आर्किड का गुलदस्ता, वीणा-वायलिन-सितार-गिटार सब एक साथ बज गये थे. मुझे ऐसा लगा कि मैंने आगे बढ़कर उसे किस कर लिया है पर वो तब तक अंदर आ चुकी थी और मैं अभी भी दरवाज़े के पास ही खड़ा था. उसने पीछे से आवाज़ दी, “और किसी को भी तो नहीं बुला लिया है?”
मैं कुछ ज़्यादा ही तेज़ी से मुड़ा और दरवाज़ा हवा से बहुत तेज़ आवाज़ के साथ बंद हुआ.
“तुम्हारे मटन के आगे मेरे फूलों की ख़ुशबू बेकार हो गई”, उसने फूलों को सोफ़े पर रखते हुए बोला.
मैंने उसका बुक़े उठाकर टीवी के पास रख दिया.
“लुक्स लाइक ए सेटल्ड होम, तुम्हारी शादी तो नहीं हो चुकी या कोई गर्लफ़्रेंड”, विधि अब तक पूरे घर का सर्वे कर चुकी थी.
“आई विल टेक दिस ऐज़ ए कॉम्प्लिमेंट”, अब समय था मैं फ़्लैम्बायंट बन जाऊँ वरना ये मुंबई की लड़की मुझे हराकर मानेगी, थोड़ा बिच टाइप होने की कोशिश कर रही थी.
“बाय द वे, आई हैव वाइट एंड रेड वाइन बोथ”, मैंने सब्जेक्ट चेंज करने की कोशिश की. विधि ने उसके बाद से जैसे मेरे घर को अपना मान लिया, ख़ुद ही जाकर ग्लास निकाले वाइन सर्व की और हम दोनों देखते-देखते एक बोतल वाइन ख़त्म कर गये. 3 बज रहे थे मैंने उस से पूछा खाना लगाऊँ उसने मुझे बहुत देर तक घूर कर देखा और फिर सीधे मेरे होंठों को चूम लिया. मैंने उसकी आँखों में देखा पर बिना डेस्पेरेट हुए उस से पूछा, “मे आई?”
उसने गर्दन हिलाकर कंसेंट दी. मैं उसकी गर्दन पर हाथ फिराता रहा, उसके बाद मैंने उस से पूछकर ही उसके उभारों को हाथों से सहलाया था, अपने फेस को उन उभारों के बीच रखकर थोड़ी देर के लिए फ्रीज़ हो गया, ऐसा कम्फर्ट, ऐसी शांति बहुत दिनों बाद फील की थी. मैं चाहता था कि वो आँखों में आँखें डालकर मुझे देखे पर उसने मेरी पीठ पर अपनी चिन गड़ा दी. मैं लेटे-लेटे उसकी उँगलियों से अपनी पीठ पर बन रहे शेप्स को गेस करने की कोशिश कर रहा था, उसे बहुत कुछ लिखना था और जब जगह नहीं बचती तो वो अपने लिप्स के गीलेपन से पहले का लिखा इरेज कर देती.
जिस घर में पहले मटन की महक भरी थी उसे अब विधि के पसीने की स्मेल ने टेक ओवर कर लिया था. मैंने रिमोट से एसी की कूलिंग बढ़ा दी. मैं जैसे ही पलटा विधि मेरे सीने पर चिपक कर लेट गई. उसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था और उसकी बॉडी इतनी कोल्ड थी कि मुझे लग रहा था कि मुझे फीवर है. मैंने कोई कोशिश नहीं की उसे डिस्टर्ब करने की पर थोड़ी देर में मुझे पता चल गया था कि उसके गर्म आंसू मेरे सीने पर गिर रहे थे. मैंने बोलने की कोशिश की,
“विधि, इफ यू आर नॉट कंफ़रटेबल…”
विधि ने मेरा मुँह बंद कर दिया, बहुत देर तक वो ऐसे ही पड़ी रही फिर उसने मुझे उठने नहीं दिया, वो जैसे मुझे कंट्रोल करना चाह रही थी. वो मेरे ऊपर थी और मैं उसके नीचे, जैसे उसे फ़र्क़ ही नहीं पड़ रहा था कि मैं क्या सोच रहा या कर रहा हूँ. मेरे ऊपर कोई नशा-सा चढ़ गया और मेरी आँख लग गई जब तक नींद खुली, आई वाज़ आलरेडी इनसाइड हर. हम दोनों बिल्कुल चुप थे और एसी की आवाज़ सबसे तेज़ सुनाई पड़ रही थी. विधि ने इस तरह से अपने दोनों पैर मेरे ऊपर फँसाये थे कि मैं चाहकर भी हिल नहीं सकता था और अब मैं उसके थर्स्ट महसूस कर रहा था. मैंने उसे सहारा देने के ख़्याल से उसके सीने पर अपने हाथ टिका दिये पर उसने वो भी हटा दिया. उसके अंदर जाने क्या भरा था जिसे मैं नाप नहीं पा रहा था. मुझे पता चल गया था कि मैं उसे वो नहीं दे पाऊँगा जिसकी शायद उसे उम्मीद होगी, मैं उस समय अपने दिमाग़ में अपने पापा के बारे में, ऑफिस के काम के बारे में, सेल्स टारगेट के बारे में और यहाँ तक कि मटन के बढ़ते दाम के बारे में भी सोच चुका था जिस से कि मेरा ध्यान कहीं और चला जाये और मैं विधि को वो ख़ुशी दे सकूँ व्हिच शी डिज़र्व्स पर विधि के अंदर ऐसा कुछ था कि मैं चाहकर भी अपने आप को रोक नहीं पाया एंड आई इजैकुलेटेड.
विधि अभी भी नहीं रुकी थी, उसे लग रहा था कि वो और कुछ भी पाना चाहती है पर जब उसे फील हुआ कि मैं अब हिलने की कोशिश भी नहीं कर रहा हूँ तो वो मेरे गले लग कर फिर से रोने लगी. मुझे अपने फूहड़पन पर बहुत ग़ुस्सा आया बस थोड़ी देर और कंट्रोल कर लेता.….मैं उसको सैटिस्फाइ नहीं कर पाया था. वो मेरे बग़ल में अचानक से थक कर गिर पड़ी, मैं धीरे-धीरे सरकता हुआ नीचे जा पहुँचा जहाँ थोड़ी देर पहले मैंने अपने आपको खो दिया था. मैं इतना ऐम्बर्रेस्सेड था कि मैंने वापस उस से पूछा, “अगर तुम कहो आई कैन यूज़ माय टंग?”
विधि ने उठकर मुझे गले लगा लिया और मेरे कान में बोली, “यू डोंट नीड टू”
मैं उसका चेहरा हाथों में लेकर थोड़ी देर तक उसे देखता रहा. मुझे समझ ही नहीं आया कि मुझे क्या बोलना चाहिए.
“डोंट वरी आई ऐम हैपी” ये बोलकर वो तेज़ी से उठकर वाशरूम में चली गई.
थोड़ी देर बाद हम दोनों बिना कुछ बोले सिर्फ़ अपनी प्लेट में देखते हुए मटन राइस खा रहे थे.
“बस एक पीस? मैंने पूरा एक किलो बनाया है मैडम”, मैंने उसे चिढ़ाते हुए कहा
“कल भी तो आना है इतना बढ़िया मटन खाने, आऊँ?”, उसने मीट के रेशे को दांतों से काटते हुए बोला.
मैं उसके आगे कुछ नहीं बोला पर हम लोग खाना खाकर यूँ ही सोफ़े पर बिना बात किए पड़े रहे. मेरे अंदर सिर्फ़ सो जाने की हिम्मत बची थी पर विधि अचानक से चिल्लाई, “चलो उठो तैयार हो बाहर चलना है”
“अब कहाँ?”, मैं थोड़ा खिसिया सा गया था क्योंकि वाइन और मटन के बाद कहीं बाहर जाने का क्या मतलब था .
“आर यू सीरियस? आज मैच है कोलकाता में, इंडिया पाकिस्तान का…चलो किसी पब में बड़ी स्क्रीन पर मैच देखेंगे” विधि तैयार होने लगी. मैंने मेसेज चेक करने के बहाने से मोबाइल में गूगल करके सब पता किया.
“एक्चुअली मुंबई में लाइफ इतनी बिजी हो गई कि शौक़ ही मर गया बाय द वे आई फॉलो टेनिस” मैं और क्या बोलता.
“फिर तो सोचना पड़ेगा कि तुमसे शादी करनी भी चाहिए कि नहीं, इतने बिजी हो जाओ और एक दिन भूल ही जाओ” मैं इस तरह के अटैक के लिए तैयार नहीं था.
“शौक़ बने रहें इसीलिए तो शादी का सोचा वरना यहाँ की रश में तो कुछ याद नहीं रहता.“
मैं बोलने के बाद सोचता क्या ज़रूरत थी उसकी हर बात का जवाब देने की. विधि तैयार थी और उसने मेरे फेस पर अपनी साड़ी फेर दी.
विधि ने पूछा भी कि कैब बुक कर देते हैं पर मैं आज अपनी कार में विधि को ड्राइव पर ले जाना चाहता था. मैंने कार स्टार्ट करते ही बोल दिया- “आज भी, जहां ले चलूँगा वहाँ जाना होगा”. मैंने जिस कॉन्फिडेंस से बोला था विधि ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप आकर मेरे बग़ल में बैठ गई.
“मुंबई में ही रहना है कि कहीं और सेटल होने का प्लान है?” विधि ने बेल्ट लगाते हुए पूछा.
“वेरी ओनेस्टली एक दिन वापस लखनऊ चला जाऊँगा पापा भी अकेले हैं.“ जो मज़ा लखनऊ में रहने का है वो मुंबई में इम्पॉसिबल है.
“मे आई ऐड माय फ़ोन?” विधि अपना ब्लू टूथ कार में ऐड करते हुए बोली.
“तुम्हारी फ़ैमिली में और कौन है?” मुझे लगा ये सही समय है बात को कहीं और ले जाने का.
“हमारी आइडियल फ़ैमिली है, मम्मी-पापा और एक बड़ा भाई, उसकी शादी हो चुकी है, सिंगापोर में हैं और अब सब के सब मेरे पीछे पड़े हैं”, कार में लेटेस्ट बॉलीवुड रोमैंटिक सॉंग प्ले हो रहे थे और विधि की आवाज़ के साथ गाने भी सुनाई पड़ रहे थे.
“जस्ट टु बी श्योर, तुम किसी बाउंस बैक रिलेशन वाले तो नहीं हो” विधि जैसे कोई चेकलिस्ट टिक करती जा रही थी. मैंने फिर से जवाब दे दिया, “मैं भी यही सवाल पूछ सकता था”
“देन आई एम गेम”, विधि ने मिरर में एक बार अपने आप को चेक करते हुए देखा.
घर में हम दोनों की बीच जो हुआ था उसके बाद मेरे पास कुछ बात करने को बचा नहीं था और ऐसा लग रहा था कि अब हम दोनों को शादी की डेट ही तय करनी है. कहीं पहुँचने में जितना वक्त लगता है हमेशा उस से ज़्यादा का एहसास होता है और मुझे समय का खिंचते जाना इरिटेटिंग लग रहा था. ट्रैफिक वैसे कभी भी कम नहीं होता पर आज लग रहा था कि सब उसी पब में जा रहे हैं जहाँ हम दोनों जा रहे थे. मैंने कार वैले को दे दी और एक सिगरेट जला ली.
“सो! यू स्मोक”, विधि ने इतनी देर बाद कुछ कहा था
“बहुत कम, पैकेट नहीं रखता पर मन किया तो पी लिया…मतलब आई ऐम नॉट एडिक्टेड…कोई आदत नहीं पाली है” मेरे पास अपने बचाव में कहने को और कुछ नहीं था.
3)
पब में पहले ही लोग जमा थे और हम दोनों ने भी स्क्रीन को विज़न में रखते हुए सीट चुन ली. विधि स्क्रीन की तरफ़ देख रही क्योंकि मैच शुरू होने वाला था और मैं अब मैं विधि के चेहरे को देख पा रहा था, अब मेरा ध्यान उसके ब्रेस्ट पर बिलकुल नहीं था उसके सॉफ्ट ब्रेस्ट का एहसास अभी भी मेरे हाथों को हो रहा था. विधि ने कब बियर ऑर्डर की और कब हम दोनों चीयर्स करके एक दूसरे से बातें करने लगे, टाइम का एहसास ही नहीं हुआ और वो एहसास तब टूटा जब दिखा कि उस पब में मौजूद लगभग सभी लोग खड़े थे और बड़ी-सी स्क्रीन पर अमिताभ बच्चन ईडन गार्डन के मैदान से ‘जन गण मन’ गा रहे थे. हम दोनों हिल ही नहीं पाये और जैसे बैठे थे बैठे ही रह गये दोनों को अपनी बातचीत के बीच एहसास ही नहीं हुआ कि आसपास क्या हो रहा था, आसपास के खड़े हुए कई लोग हम दोनों को घूरकर देख रहे थे. हम दोनों के हाथों में बियर बॉटल जम सी गई थी. कुछ ही पलों में ‘जन गण मन’ ख़त्म हुआ और स्क्रीन पर सारे खिलाड़ी मैच शुरू करने में लग गये. पास की मेज़ पर बैठे चार लड़कों को मौक़ा सा मिल गया.
“मैडम, खड़े नहीं हो सकते थे?”
उसने सवाल विधि से किया पर जवाब मैंने दिया, “डूड, अपना काम करो”
“नेशनल एंथम बज रहा था और तुमको सुनाई नहीं दिया?” एक ने जानबूझकर तेज बोला था
चारों शायद विधि की ब्यूटी देखकर परेशान करने के मूड में थे. मैंने चुप रहकर टालने की कोशिश की
“खड़े हो जाता तो पैर दर्द करने लगता, ब्लडी पाकीज़” अब उन चारों में होड़ सी लग गई थी, हम दोनों को परेशान करने की पर पाकिस्तानी की बात पर विधि तिलमिला गई
“नहीं खड़े हो पाये तो पाकिस्तानी हो गये?”, विधि बहुत तेज़ चिल्लाई थी
“इसीलिए सिखा रहे हैं मैडम बिकॉज़ यू गायज़ हैव नो रिस्पेक्ट फॉर द कंट्री”, लड़कों को मौक़ा मिल गया और मुझे लग रहा था कि विधि जितना बोलेगी बात उतनी बढ़ेगी तो मैंने विधि को इशारे से चुप रहने को कहा.
“चिल ब्रो, टीवी पर आ रहा था और यहाँ सब बियर हाथ में लेकर क्या मतलब है ये सब करने का? इंजॉय योरसेल्फ”, मुझे अभी भी उम्मीद थी कि सब कुछ नार्मल हो जाएगा. लखनऊ होता तो अब तक फ़ोन कर देता दस को पर ये मुंबई है और मैं बाहरी. करने को यहाँ भी ऑफिस के लोगों को फ़ोन कर सकता था पर ये सारी बातें ऑफिस तक न ही पहुँचे तो बेहतर है .
“फ़क ऑफ ब्लडी ट्रेटर्स”, पब में कहीं से आवाज़ आयी, चूँकि अंधेरा सा था और सभी की नज़र स्क्रीन की तरफ़ थी मैंने एक बार तो खड़े होकर ढूँढने की कोशिश की फिर बैठ गया.
“चलो रनवीर कहीं और चलते है, आई थिंक आई फक्ड दिस अप. वी कुड वॉच द मैच ऐट होम आलसो” विधि के चेहरे पर बहुत लाचारी आ गई थी. पर मेरे लिये ये बड़ी हार होती इसलिए मैंने मैनेजर को आवाज़ दी. वेटर और मैनेजर आ तो गये पर उनके चेहरे यही बता रहे थे कि उन्हें कुछ अंदाज़ा नहीं था कि अब तक क्या-क्या हो चुका था .
मैंने साफ़ बोल दिया मैनेजर से की ये चारों माफ़ी माँगेंगे और यहाँ से चले जाएँगे, तब तक पता नहीं कहाँ से एक अधेड़ उम्र का आदमी जो अकेले बैठे बियर पी रहा था बीच में कूद पड़ा.
“तुम दोनों हिंदू हो कि मुसलमान?”, उसने बहुत ही संजीदगी से पूछा था.
मैनेजर को प्रॉब्लम बढ़ती दिखी- “सर, आप लोग कहीं और चले जाइए एंड योर बियर इज़ ऑन द हाउस.“
विधि अपना पर्स उठा चुकी थी, “लेट्स गो.“ पर अब मेरे लिये बात बहुत आगे जा चुकी थी मैंने उस अधेड़ आदमी के पास जाकर ग़ुस्से में पूछा, “तुम्हें हम मुस्लिम दिख रहे हैं? सॉरी बोल”
अकेले बैठे बियर पी रहे उस अधेड़ आदमी के पास जैसे और कुछ एक्साइटिंग नहीं था और उसने तेज़ आवाज़ में मराठी में चिल्लाना शुरू कर दिया, मैं बहुत ध्यान से सुन रहा था पर विधि के चेहरे के भाव तेज़ी से बदल रहे थे,
“ए क्या चल रहा है तुम दोनों का, तुम्हाला उभे राहता येत नाही आणि मैं सॉरी बोलेगा…तुम्ही इथे येडझवेपणा-चुत्यागिरी करणार, जन गण मन पर खड़े होने को तुमको नहीं बनता और कहीं भी चुम्मा चाटी चालू.”
इस से पहले कोई कुछ समझ पाता चारों लड़के, विधि के पास आ खड़े हुए, मुझे डर था कहीं वो विधि के साथ कुछ बदतमीजी न कर बैठें या कुछ ऐसा न कर दें कि मारपीट शुरू हो जाये. विधि के चेहरे पर साफ़ दिख रहा था कि वो इन सबसे बचना चाहती थी पर तब तक मैंने सौ नंबर डायल कर दिया. अब आसपास मौजूद लोग भी खाना छोड़कर खड़े हो चुके थे, रैना की गेंद पर शरजील ख़ान का विकट गिर चुका था, फिर भी खुश होने के बजाय आसपास के लोग, हम दोनों की तरफ़ बहुत चिढ़ से देख रहे थे. मैनेजर मेरे बग़ल से गुज़रते हुए बोल गया- “सर, बात पुलिस तक नहीं ले जानी थी, पुलिस का चक्कर कभी राइट नहीं होता.“
कुछ ही देर में एक लेडी कांस्टेबल और एक मेल कांस्टेबल पहुँच गये.
महिला कांस्टेबल का पहला सवाल, “कोणी फ़ोन केलेला ?”
विधि ने बहुत ही पोलाइटली बोला, “जी मैम, मेरे दोस्त ने कॉल किया था.”
मैं मुंबई पुलिस की अलर्टनेस से इम्प्रेस्ड हो गया, “ये चारों और ये अंकल हम लोगों को हैरेस कर रहे हैं.“
महिला कांस्टेबल ने फर्राटेदार मराठी में मौजूद लोगों से पूरा हालचाल ले लिया. कुछ शब्द कान पर पड़ते ही फिसल गये और जो कुछ अंदर गये उस से पता चला कि वो जानना चाहती थी कि सच में हुआ क्या?
कब हिन्दी से वो मराठी बोलने लगे पता ही नहीं चला कि कुछ देर तक क्या बात हुई और अचानक से वो पलटकर विधि से बोली, “मैडम आप बोलो क्या करना है, पुलिस स्टेशन में कंप्लेंट करने का है तो चलो.“
विधि को अभी भी उम्मीद थी कि बात संभल सकती है, “आप लोग आ गये हो, अब कुछ नहीं करना हम लोग निकल रहे हैं” ये बोलकर उसने मेरा हाथ दबा दिया जिस से मैं आगे न बोलूँ.
पर मैं विधि को ऐसे ही अकेला नहीं पड़ने देना चाहता था, “देखिए मैम, इन से मेरी शादी होने वाली है और हम लोग शाम को यहाँ मैच देखने आये थे और इन चारों ने हम लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया.”
महिला कांस्टेबल ने भी सब कुछ रफ़ा दफ़ा करने के लिहाज़ से चारों लड़कों की तरफ़ देखा, “ए तुम लोग क्या राड़ा कर रहे हो, इंडिया जीतेगा मज़े करो.”
पर तब तक पब में माहौल बदल चुका था और उन चारों के साथ कई औरों का भी पेट्रियोटिज्म जाग चुका था. क्रिकेट पर अब किसी का ध्यान नहीं था और पब में सारी लाइट्स ऑन हो गई थी.
“अब पुलिस को बुलाया है तो चलो स्टेशन, केस करना है ये दोनों नेशनल एंथम का इंसल्ट किया है.“,
बोला उन चारों में से किसी एक ने था पर लगभग सभी यही चाहते थे. विधि डर के मारे काँप रही थी. मैंने विधि को कंधे से अपने पास सटा लिया और उसको भरोसा दिलाने की कोशिश की, “चलते हैं पुलिस स्टेशन तक फिर वहाँ से निकल लेंगे चुपचाप, इवन आई डोंट वांट टू क्रिएट अ सीन हियर.“
पहले लगा था कि शायद पुलिस वाले आकर उन सबको भगा देंगे पर अब अगर हम लोग पुलिस स्टेशन नहीं जाते पुलिस वाले भी यही सोचेंगे कि गलती हमारी ही रही होगी. विधि और मैं कार में पुलिस स्टेशन की तरफ़ चल दिये. रास्ते में मैं कुछ नहीं बोल पाया इवेन शी वाज़ लॉस्ट इन हर ओन थॉट्स. कुछ देर बाद मैंने मूड ठीक करने के लिए बोला, “ऐसहोल्स, टीवी पर चल रहा है उसके लिये भी खड़े हो, मन कर रहा है एक-एक को पटककर मारूँ“
जब तक पुलिस स्टेशन पहुँचे हम लोग तब तक न जाने कैसे वो चारों लड़के और बूढ़े अंकल पहले से अंदर बैठे पुलिस वाले से हंस-हंसकर बातें कर रहे थे. हम दोनों भी अंदर पहुँचकर खड़े हो गये. इंस्पेक्टर जैसे दिखने वाले ने पूछा –
“कंप्लेन कोणी केली आहे?”
मैंने हाथ ऊपर किया, इतनी मराठी समझ आने लगी थी.
“क़ाय साब, आपको पता नहीं जन गण मन पर खड़े होना होता है.“
विधि ने पहले मेरी तरफ़ अविश्वास से देखा अब मुझे बोलना ही पड़ा, “पर सर, टीवी में आ रहा था मैच वो भी कोलकता से, हम लोग यहाँ मुंबई में बैठे हैं.”
एक लड़का जो अब तक चुप-सा दिख रहा था उसे लगा कि जब यहाँ तक आ गए हैं तो उसे भी कुछ आगे बढ़कर इन सबमें हिस्सा लेना चाहिए, “क्यों आई बाबा को फ़ोन पर देखकर तुम उनका मान नहीं करते? तुम अपना गाँव से दूर आये तो क्या कैमरा पर देखकर अजी अजोबा को सम्मान नहीं करते?”
मैं और विधि सन्न थे और समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या बोलना है, पुलिस वाले को भी लगा कि बात में दम है और वो चुप हमारी तरफ़ देख रहा था. मेरा दिमाग़ चलने लगा कि कैसे यहाँ पर कुछ सपोर्ट निकाला जाये, ऑफिस वालों को या कुछ दोस्तों को फ़ोन करना पड़ेगा पर उसके पहले बात सम्हालनी थी,
“पर आप लोग पाकिस्तानी कैसे बोल सकते हैं? सिर्फ़ इसलिए कि हम ये सोचकर खड़े नहीं हुए कि हाथ में लिकर है और टीवी पर कुछ चल रहा है.”
विधि आँखें नीची ही किए बैठी थी. बूढ़े आदमी को पुलिस स्टेशन तक आना खल गया था और उसने भी शाम ख़राब होने की क़ीमत लेनी थी,
“तुम अब बिहार का भइया लोग इधर आकर हमको बताते हो, साहेब तुम्ही बघितलं पाहिजे होते, कैसा काम सब खुलेआम चल रहा है, ये जुहू है कमाठीपुरा नहीं….सभ्य माणूस कुठे जाणार.”
इस से पहले कि विधि मुझे चुप रहने का इशारा करती मैं चिल्ला पड़ा
“लखनऊ का हूँ, यहाँ कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट हूँ, ऑटो नहीं चलाता…लखनऊ यूपी में हैं और ये लड़की मेरी फ़ियांसे है”
मुझे पता था कि अभी तक शादी की बात तय नहीं है पर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था. जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि उन चारों लड़कों और उस बूढ़े आदमी को अब मज़ा आने लगा था कि बात रिज़ॉल्व न होने पाए और वो कुछ बोलकर एक बार मेरी तरफ़ ऐसे देखते जैसे पूछ रहे हों- “व्हाट इज़ योर नेक्स्ट मूव?”
पुलिस वाले ने उन चारों को समझाने की कोशिश की,
“जाऊदे त्या लोकांना, मैं बात कर रहा हूँ न…जा आणि कुठे तरी दारू प्या.”
विधि मेरी तरफ़ देख रही थी और मुझे बोलना ही पड़ा, “इंस्पेक्टर सर, कैन यू स्पीक इन इंगलिश ऑर हिन्दी?”
इंस्पेक्टर जैसे तैयार नहीं था ऐसी बात सुनने को,
“तुमको इधर रहना है, यहीं कमाना है, इधर मुंबई का ट्रैफिक बढ़ाना है पर तुमको मराठी बोलने में प्रॉब्लम है, करेक्ट? “
इंस्पेक्टर चारों की तरफ़ मुड़ा और धीमे से बोला, “जरा कॉल लगाना मनसे सेना को, थोड़ी देर में मराठी सीख जाएगा।”
विधि उठकर वहाँ से निकलने लगी क्योंकि उसको बात सबसे पहले समझ में आ जाती थी पर इंस्पेक्टर में हमें देख लिया, “थांब, ए तुम दोनों अपना आई.डी. निकालो”
इंस्पेक्टर, विधि को घूरे जा रहा था और मैंने ये नोटिस कर लिया था पुलिस स्टेशन के हिसाब से सिर्फ़ विधि की साड़ी ठीक थी पर फिर भी मैं उसे बोल नहीं पाया कि साड़ी से अपने आप को पूरा ढक ले. इंस्पेक्टर ने और तेज़ आवाज़ में महिला कांस्टेबल को आदेश दिया, “इन दोनों का आई.डी. लो चेक करो, और बैठाओ उधर.“
विधि के चेहरे पर घबराहट बढ़ती जा रही थी और उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे, मुझे अब अपनी गलती का एहसास हुआ कि पुलिस को फ़ोन नहीं करना था. शादी के पहले ही अगर पुलिस का चक्कर हो गया तो पक्का था कि उसकी फ़ैमिली वाले बिदक जाएँगे. मैं विधि से अकेले में बात करना चाहता था कि उसे क्या सही लग रहा है और उसी हिसाब से काम किया जाये. उधर इंस्पेक्टर अचानक से बाहर निकल गया और अपने कांस्टेबल को बोलकर गया, “चाय पियूँन येतो, चेक करा आई.डी. और बुलाओ लड़की के घर वालों को”
चारों लड़के और वो बूढ़ा आदमी भी इंस्पेक्टर के पीछे-पीछे बाहर निकल गये. महिला कांस्टेबल के सामने बहुत प्लीड करते हुए मैंने बोला, “सुनिए मैं अपना आई.डी. छोड़कर जा रहा हूँ. मेरी दोस्त की तबीयत ठीक नहीं है, उनको जाने दीजिए.“
महिला कांस्टेबल ने रटे-रटाये अन्दाज़ में बोला,
“साब का ऑर्डर है आई.डी. दिखाओ पहले.”
मुझे लगा था महिला पुलिस शायद कुछ सुनेगी, “वो ठीक है पर ये सेना, मनसे के लोगों को मत बुलाइए.”
मुझे लगा मैं अपने आप से ही बातें कर रहा हूँ क्योंकि न तो विधि ने कुछ कहा और न ही महिला कांस्टेबल ने कोई प्रतिक्रिया दी. मैंने अपना ड्राइविंग लाइसेंस निकालकर सामने रख दिया पर विधि जैसे सदमे में आ गई थी, मैंने उसका हाथ पकड़कर समझाया, “मैं हूँ न! आधार कार्ड या डी.एल. है? तुम परेशान मत हो विधि, मैं हूँ.“ महिला कांस्टेबल स्टेचू की तरह खड़ी थी जैसे उसने ये सब सैकड़ों बार देखा हो और उसे पता है आगे क्या होने वाला है. विधि ने अपना आई डी कार्ड सीधे कांस्टेबल के हाथ में दे दिया.
महिला कांस्टेबल ने हम दोनों के कार्ड से पहले हमारा चेहरा मिलाया, “रणवीर आडावल”
मेरे नाम के साथ ये पहली बार नहीं हुआ था, “जी, रनवीर अदावल”
कांस्टेबल ने मुँह उठाकर भी नहीं देखा, “और तुम मुक्ता मोरे!’
मैंने ये नाम पहली बार सुना था और मुझे पता था कि कांस्टेबल ने फिर कुछ फ़क अप किया होगा. विधि अब मेरी तरफ़ नज़र गड़ाये देख रही थी जैसे वो नज़र हटेगी और में कहीं चला जाऊँगा. महिला कांस्टेबल बाहर, इंस्पेक्टर के पास हमारे आई.डी. लेकर चली गई. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब हो क्या रहा है मैंने फिर भी विधि का हाथ पकड़ने की कोशिश की पर इस बार विधि ने हाथ नहीं पकड़ा मेरा. इस से पहले मैं विधि से कुछ बोल पाता इंस्पेक्टर वापस अंदर घुसा,
“क्या रणवीर जी, क्या शादी-वादी करने वाले हो इस से?”
ये बोलकर इंस्पेक्टर दांत चबा चबाकर हंस रहा था.
“जी, ये और मैं शादी करने वाले हैं”, मैंने कुछ ज़्यादा ही डिटरमिनेशन से बोला
“मोरे मैडम, क्या है नाटक, इतना येड़ा कस्टमर कहाँ से पकड़ा”, इंस्पेक्टर ने विधि का कार्ड उसके पास फेंक दिया. विधि अपना कार्ड लेकर अचानक से वहाँ से दौड़ती हुई निकल गई.
इंस्पेक्टर ने पास आकर बड़े स्लीज़ी तरीक़े से पूछा, “पैसे वसूले कि नहीं?”
मेरा चेहरा देखकर इंस्पेक्टर को समझ आ गया था कि मेरी समझ में कुछ नहीं आया था इसलिए उसने चाय ऑर्डर करते हुए समझाया, “ये मुक्ता है, धंधे वाली है…”
मैं कुछ बोलता उस से पहले चाय आ गई, इंस्पेक्टर ने चाय मेरे हाथ में थमा दी, उस समय चाय नहीं पी सकता था पर मैं उस कप को भी जकड़कर पकड़े हुआ था कि कुछ तो हाथ लगे.
“हम को मालूम रहता है सब, आपका सामान सब चेक किया न, कुछ और तो नहीं ले गई…हाई सर्किल में एस्कॉर्ट है…बड़े बड़े क्लाइंट हैं इसके.“
मेरा चेहरा देखकर इंस्पेक्टर क्या कोई भी होता तो तरस खा जाता.
“तुम निकलो कोई केस वेस नहीं है, पर आगे से ऐसा लफड़ा करना नहीं माँगता है…पेलम पेलाई घर पर, समझा?“, वो वहाँ से हटा और जैसे पूरे पुलिस स्टेशन का माहौल ही बदल गया ऐसा लगा जैसे मुझे किसी ने देखा ही नहीं है और सब अपने काम में बिज़ी हो गये थे. चारों लड़के और वो बूढ़ा आदमी मेरी तरफ़ इस तरह से देख रहे थे जैसे मुझ पर दया खाकर मुझे माफ़ कर दिया हो.
मैंने पुलिस स्टेशन से बाहर आते ही विधि को फ़ोन लगाया पर उसका फ़ोन स्विच ऑफ हो गया था. मेरे सामने सब कुछ बहुत स्लो चल रहा था ट्रैफिक और स्लो हो चुकी थी, इंडिया टी 20 का मैच जीत चुकी थी पर सड़क पर एक्साइटमेंट था, मेरी कार के अंदर जैसे सब कुछ जम गया था. मैंने एसी ऑफ कर दिया और घर पहुँचकर सीधे बेड पर लेट गया. मुझे टाइम रिवाइंड करना था और वहाँ जाकर रुकना था जब हम लोग घर से निकले थे. वहाँ पहुँचकर मुझे विधि को मना करना था कि बाहर नहीं जाएँगे पर सब कुछ तेज़ी से फॉरवर्ड होता जा रहा था. मुझे पता ही नहीं चला कि मैं उस हालत में 2-3 घंटे तक पड़ा रहा अचानक ह्वाट्सऐप पर कोई मेसेज आया. विधि का वॉइस नोट था मैंने तुरंत उसको फ़ोन लगाया, नहीं लगा फिर ह्वाट्सऐप पर कॉल किया पर तब तक विधि मुझे ब्लॉक कर चुकी थी. मैंने मोबाइल एक तरफ़ रख दिया और सीलिंग को ताकते हुए उसका वॉइस नोट प्ले कर दिया –
“रणवीर, आई एम सॉरी. बहुत कुछ झूठ था जो मैंने बोला पर तुम्हारे साथ जो कुछ आज हुआ वो सच्चा था. आई नो इट वोंट बी ईज़ी फॉर यू तो बिलीव मी. मेरा असली नाम मुक्ता ही है और वो इंस्पेक्टर चाहे कुछ बोल ले पर मैंने तुम्हारा कुछ भी नहीं चुराया है. जो चुराया है दैट आई काँट रिटर्न. मैं एस्कॉर्ट बनने की सॉब स्टोरी नहीं सुनाऊँगी, मैट्रीमनी साईट पर प्रोफाइल कुछ दिन पहले ही बनाया था, तुम्हारे साथ प्रोफाइल मैच हो गया और बात होने लगी. आई थॉट देयर वाज़ नो हार्म इन मीटिंग यू. तुमसे मिलकर आई फेल फॉर यू. आज जो तुमने किया है आई विल रिमेन ओब्लाइज्ड फॉरएवर. पैसे लेती हूँ तो जैसा कस्टमर बोले सर्विस देनी होती है पर तुमने मेरे सामने सरेंडर कर दिया, बिना डिमांडिंग हुए जो रिस्पेक्ट दी है वो मैं कभी नहीं भूलूँगी.”
मुझे लगा उसने बात ख़त्म कर दी, मैं उठकर उसे वापस फ़ोन लगाता पर पर उसका वॉइस नोट अभी बाक़ी था…
“मैंने पहली बार अपने तरीक़े से जो एक्सपीरियंस किया है वो मैं रोज़ किसी और को ख़ुश करने के लिए करती हूँ. एनीवे जो होता है वो अच्छे के लिये ही होता है अगर आज ये सब न होता तो शायद मैं बहुत देर कर देती तुम्हें सच बताने में. ऐसा ही प्यार अपनी वाइफ को देना, और हाँ! आज मैंने पहली बार ऑर्गज़म महसूस किया वो भी तुम्हारे साथ. आई विल ट्रेजर दिस मोमेंट फॉरएवर. लव यू…बाय”
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राहुल श्रीवास्तव![]() कहानी संग्रह ‘पुई’ वर्ष 2024 में प्रकाशित. फीचर फ़िल्म ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर’ के लिये सर्वश्रेष्ठ संपादक के लिए नामांकन. लघु फ़िल्म ‘इतवार’ का लेखन एवं निर्देशन, फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार. लगभग दो सौ विज्ञापन फ़िल्मों का निर्देशन. पता – 23, रोज़ सी.एच.एस. लिमिटेड, जनकल्याण नगर, मालाड वेस्ट, मुंबई-400095 Email- rahuldadda@gmail.com |
कहानी तो मैं पढूंगा ही I क्या ही सुंदर कवर है I सुंदर प्रतीकात्मक कवर. समालोचन के कवर पेज भी अपने आप में एक कृति ही होते हैं. I कौन बनाता है इन्हें? उनके नाम भी दें.
राहुल श्रीवास्तव की इस कहानी को पढ़कर इतना ही कह सकता हूं, ‘थैंक यू वेरी मच राहुल।’
Bahut hi shaandaar lekhan, maza aa gya kahani padh ke
जीवंत ओ अनोखी कहानी। इंसानी संवेदनाओं और वर्तमान समाज की एक अनूठी तस्वीर है यह कहानी।
कहानी संवेदना और वर्तमान समय की तस्वीर है। अनूठी और मर्म स्पर्शी।
कहानी फिल्मी है। नाटकीयता से भरपूर। कहानी में फीलिंग्स की कमी अखरती है।हो सकता है इसे चित्रपट पर उतारते हुए उस फिलिंग्स की कमी को किरदारों द्वारा पूरी की जाए।
मन में अटक गई कहानी, सालों रहेगी
कहानी एक ही बार में पढ़ता चला गया। कहने का अंदाज़ और जिस भाषिक आवरण का इस्तेमाल किया गया है, वह मुझे बेहद पसंद आया। पहली डेट पर जो इरॉटिज़्म एक आदमी के दिमाग़ पर हावी होता है, उसे बहुत ही खूबसूरती से उभारा गया है। कुछ लोग कह सकते हैं कि अंग्रेज़ी में संवाद और शब्द ज़्यादा हैं, लेकिन यह आज की पीढ़ी और जिस माहौल की कहानी है, उसके लिहाज़ से ज़रूरी भी है। बाकी, पब में जो तनाव रचा गया, उसने इस कहानी को अपने समय की अतिशय देशभक्ति का बेहतर प्रतिबिंब बना दिया है।
वाह भाई, एक ही कहानी में इतने ट्विस्ट
पहली बार पढ़ा राहुल श्रीवास्तव जी को, कमाल की कहानी, आज के समय की सच्चाई… काफ़ी समय बाद शानदार पढ़ने को मिला
बहुत ही शानदार कहानी. बहुत दिनों बाद ऐसी कहानी पढ़ने को मिली जिसमें उत्कंठा कहानी पढ़ने के साथ साथ बढ़ती जाती है और कहानी का अंत अवाक करने वाला है… लेखक को साधुवाद
आजकल मुम्बई में अधिकांशत गैर मराठी लोगों के साथ यही हो रहा है, भाषाई भेदभाव, मार्मिक और करूण कहानी , हार्दिक बधाई लेखक को
मैं सिर्फ़ पढ़ती जा रही थी और मना रही थी कि विधि के साथ कुछ बुरा न हो जाये। पर जो हुआ वो इतना जटिल है कि अवाक हूँ
अतिशय नाटकीयता के बावजूद कहानी पाठक को बांधे रखती है। यंगस्टर्स को पसंद आएंगी।
गजब लेखनशैली…कहानी पढ़ते समय ऐसा लगा मानो सामने घाटित हो राही हो शानदार लेखन राहुल भैया को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
अच्छी कहानी। सच सी कहानी।
कहानी शानदार है, कह नहीं सकती लेकिन समय की गिरेबान में झांक कर अफ़सोस जरूर हुआ कि दुनिया आख़िर पहुंचना कहां चाहती है। शादी खिलवाड़ है या आदमी कठपुतली बनता जा रहा है। जितने बड़े शहर उतने ही बड़े धोखे। मध्यमवर्गीय माता पिता बच्चों को ऊंचे से ऊंचा पद हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। बच्चे बड़ी उड़ानों में कामयाब हो भी जाते हैं लेकिन समय, बाज बनकर उनकी अस्मिता को ही निगलता जा रहा है, स्त्री, पुरुष की अहमियत और सादेपन को, अपने अपने होने में टिके रहने की जरूरत को इस्पाती तहजीब सोख ले रही है। कहानी में कितना भी नए समय और अंतरंगता को दर्ज करने के लिए भाषा, शब्द, सिचुएशन निर्मित किए गए हों लेकिन सिवाय दुःख के और कुछ इस कहानी का हासिल नहीं…..
रोचक कहानी है। खूब घूमती चलती है। पुरुष मनोविज्ञान का अच्छा विवरण है।
मुम्बई में कुछ अन्तराल के बाद फिर से हिंदी मराठी विवाद शुरू करवाया गया है और ज़ाहिर है ये उसी विकल्पहीन राजनीति का हिस्सा है जो सिर्फ़ जनता की कुंठा पर सवारी गांठ कर सीट जीतने के सपने देखती है। खिलंदड़े अंदाज़ में ये कहानी एक आम कहानी से अचानक इस दौर की वो तस्वीर दिखाती है जो हमें अंदर ही अंदर एक खौफ़ से भरता जा रहा है। राहुल ने आखिर में जो ट्विस्ट दिया है वो इस तेज़ रफ़्तार समय में परिचित सा लगता है। इसका डर उसका बेस्ट ऑर्गेज़्म है, ये आदमी औरत के बीच का अजीब रिश्ता है क्योंकि उनके जितना करीब कोई नहीं है फिर भी वो इतने दूर हैं। राहुल बाबू को अच्छी कहानी की बधाइयाँ
बहुत दिनों बाद कोई कहानी पढ़ी। अंदाजे बयां इतना बदल गया है, अब पता चला। लेखक ने बांध कर रखा और खूब रखा। कहानी फिल्म का सा आनंद देती है। लेखक को शुभकामनाएं।
अच्छी कहानी. खास तौर पर zen जनरेशन पर अच्छी शुरुआत , फिर सेकंड हॉफ में घटनाक्रम जिस तरह टर्न लेता है और वर्तमान हालात से जोड़ता है वह भी काफ़ी स्तब्ध करता है, फिर अंत में कहानी संभाले नहीं संभलती! फिर क्लीशे! संभवतः चमत्कारिक शीर्षक को निभाने के लिए!
वह लड़की भी जेन जनरेशन की आधुनिक लड़की हो सकती थी. उसे ‘मुक्ता ‘ में रिड्यूस कर देना कहानी को छोटा बनाता है. वह संबंध एक नए धरातल पर भी जा सकता है. पर शायद भारत का zen जनरेशन abhi आधुनिक नहीं हो पाया है! पितृसत्ता और सांप्रदायिकता का उतना ही शिकार है, जितना इस देश का मध्यवर्ग!
अगर कहानी की मार्कशीट बनाई जाए तो राहुल के प्राप्तांक बड़े आराम से फ़र्स्ट डिवीजन में आते हैं।
भाषा बहुत मोहक है— एकदम ताज़ा कटी घास की तरह। संवादों की टाइमिंग भी ख़ूब है। लेकिन घटनाओं की रफ़्तार पीछे देखने और चीज़ों को एक-दूसरे से जोड़ पाने का मौक़ा नहीं देती— सब कुछ जैसे सर्र से निकल जाता है। दूसरे ढ़ंग से कहा जाए तो कहानी चप्पू वाली नाव की तरह नहीं मोटरबोट की तरह चलती है।
एक और ‘लेकिन’ की अनुमति चाहता हूं : ज़्यादा रोमांच और घुमावों के चलते यह कहानी अपने पीछे कोई ख़ाली जगह नहीं छोड़ती जिसे देखकर फिर कुछ याद आए।
जैसा कि अमिता शीरीं ने भी इंगित किया है, आख़िर में विधि का मुक्ता निकलना लगभग क्लीशे की श्रेणी में आता है।
पर इस सबसे अलग हटकर देखें तो इस कहानी का एक और पहलू भी है कि यह पिछले समाज की सलवटों के साथ बाज़ार, आइटी और नव-उदारतावाद आदि के संश्रय से उभरे नए शहरी समाज की तरंगों को भी दर्ज करती है।
मुंबई के जीवन के इस पक्ष को लेकर बेहतर कहानी बन सकती थी मगर राहुल ने वृतांत में उसे पोर्न में रिडयूज कर दिया। विधि के प्रति एक हलकी टिच टिच के कहानी सोचने को कुछ नहीं छोड़ती
राहुल की नई कहानी भी उसी तरह से झकझोर गई जैसे उनके पहले संग्रह से ‘चूहे’। हालांकि मैंने समकालीन हिंदी साहित्य अधिक नहीं पढ़ा है लेकिन अपने सीमित अनुभव में शायद इतनी ‘बोल्ड’ कहानी नहीं पढ़ी, वैचारिक व लेखन की दृष्टि से, वो भी ऐसी जो फूहड़ या भौंडी न लगे। अंत में लघु कथा की परिचित शैली में मज़ेदार पेंच, जो अवाक भी करता है और हमारे देश की वर्तमान असहिष्णुता के एटिट्यूड को भी दर्शाता है। और हाँ, कहानी में हिंग्लिश का प्रयोग भी नया लगा। बहुत बधाई 👏🏼👏🏼
बदलते हुए दौर में सब कुछ कितना तुरत फुरत हो गया है यही इस कहानी का सार है, पारिवारिकता के समाप्त होने के साथ मानवीय रिश्ते भी समाप्त प्राय हैं, लखनऊ का युवा बम्बइया नहीं बन पाया,विधि के स्थान पर मुक्ता और मराठी मानुस का गहराता विवाद और पुलिसिया तौर तरीके कहानी के बहते अन्दाज बिलकुल बदले हुए हैं, भाई राहुल को एकदम नये तौर की कहानी के लिए हार्दिक बधाइयां,,,,,
कहानी के लिखने के पहले एक केंद्रीय विचार कौंधता है। उसका विस्तार कहानी बनाता है।
राहुल की कहानी का ये केंद्रीय विचार बहुत मौजूं है, सामयिक है। कहानी के शिल्प में बहुत से “ये हो सकता था, वो हो सकता था” की गुंजाइश तो हमेशा होती ही है।
अक्सर ऐसा होता है, उस नए विचार को कहानी में ढालने की उत्तेजना में शुरुआत बहुत सधी हुई होती है,, पर अंत आते तक कहानीकार थक जाता है, और किसी तरह कहानी को अंत तक पहुंचाता है।
राहुल की कहानी में भी ऐसा कुछ हुआ। लेकिन इन सब से ऊपर है वो है “खुलेपन के नाम पर उपजती भावनात्मक शून्यता की भयावहता ”
इसे कम्यूनिकेट करने में कहानी सक्षम रही!
आशुतोष द्विवेदी
विवेचना रंगमंडल
जबलपुर (म प्र)
मुझे सच में समझ नहीं आ रहा कि उनकी प्रणय लीला को पोर्न जैसा देखूँ या फिर महानगरों में बनने वाले रिश्तों को नए लेंस से। अगर मुंबई शहर की कहानी न होती तो उसकी गति और इस प्रकार ऊबड़खाबड़ होने से आपत्ति होती, मैं मुंबई में रहता हूँ और जो यहाँ घटता है वो कहीं और रहने वाले को काल्पनिक लगेगा जैसे मुंबई वालों को गाँव शहरों की बातें हमेशा से अतिशयोक्ति ही लगती हैं। राहुल सफल हुए कि विफल नहीं कह सकता पर जम कर दिमाग़ को मथ दिया है। विधि को अपना ऑर्गैज़म मिल गया, उन मराठी बोलने वालों को अपना ऑर्गैज़म। मुझे लग रहा है कि अंत कुछ और करते राहुल तो मुझको भी मेरा ऑर्गैज़म मिल जाता
नये दौर की पुरानी कहानी . लेकिन समायोजन और केंद्रीय भाव मज़बूत हैं और नये तरीक़े से कहानी में आये हैं . महत्वपूर्ण है राष्ट्र के नाम पर होती धुरंधर हवाबाज़ी के सीन , महत्वपूर्ण है वैसी स्त्री का ठंडा बदन और आत्मा में खिलता ऑर्गेज्म कँवल.
राहुल जी , बधाई !
बहुत शानदार कहानी।ऐसा शुरू से लग रहा था कि कुछ बुरा होने वाला है पर जो पब में हुआ वो गजब रियालिस्टिक लगा और अंत तो शानदार है ही।
One of the best story I have ever read.
हर बात पर मुझे आपत्ति हो सकती थी।
अंग्रेज़ी के प्रयोग में, सेक्स को लिखने में, विधि के मुक्ता होने पर, मराठी भाषा के प्रयोग पर ।
लेकिन अगर हर चरित्र सिर्फ़ अपनी सच्चाई के साथ नंगा खड़ा है तो मैं क्यों ऐसी भाषा, ऐसी दुनिया देखना चाहता हूँ जो किसी मापदंड पर खरी उतरती हो?
क्या होता है फ़िल्मी होना? कहानी में मोड़ होना फ़िल्मी है?
क्या सच में ज़रूरी है लच्छेदार भाषा का प्रयोग करके हिन्दी का ज्ञान बघारना। युवा वर्ग ६सेकंड में रील चाहता है और ये उसी वर्ग के लोगों की कहानी है। उसमें वही गति चाहिए।
कहानी में बीच में लगा कि रणवीर के मन की बात थोड़ी कम की जा सकती थी पर उस से शायद गति और बढ़ जाती।
‘पुई’ किताब के बाद राहुल अपने तेवर बदल रहे हैं जानकार ख़ुशी हुई।
राहुल श्रीवास्तव का कहानी कहने का ढंग और अनूठे विषय मुझे पसंद हैं । मैंने पहले भी कई बार उनकी कहानियों पर बात की है .
इस बार ‘समालोचन’ में उनकी कहानी ‘ऑर्गैज़म’ पढ़ी ,अनूठे विषयों पर उनकी कई कहानियां पढ़ चुकने के कारण मुझे महसूस हुआ था कि कहानी के शीर्षक का राहुल की अब तक की लेखन परंपरा के अनुसार कथ्य से कुछ ख़ास लेना- देना नहीं होगा . लेकिन ऐसा नहीं था .कहानी के अनेक प्रसंग अपने खुले वर्णनों में मुझे असहज कर गये.हालाँकि साहित्य की दुनिया से थोड़ा बहुत रिश्ता होने के कारण संबंधों में अंतरंगता के वर्णन पढ़ना कोई चौंकाने वाली बात नहीं लगती .लेकिन इस बार ऐसा लगा कि एक मजबूत कथ्य वाली कहानी जो गहरे प्रश्न उठाती हुई चल रही थी.और समसामयिक मुद्दों पर गहरा वार करती प्रतीत होती थी लेखक ने उसमें अपनी ही शैली में नयेपन के लिये जबरन प्रयोग किये हैं और इस बदलाव को वह संभाल नही पाया है.और कहानी की चमचमाती रेलगाड़ी अपने चिर परिचित मजबूत लौह पथ से उतर कर दलदली रास्ते पर आ गई है.
(ये भी हो सकता है बकौल कहानी के नायक मुंबई की तुलना में लखनऊ जैसे छोटे शहर की मिडल क्लास मानसिकता के कारण मुझे ऐसा लगता हो😀😀 )
कहानी का मूल मर्म जेन जी की ,पूरी तरह से ,यहाँ तक कि भावात्मक मामलों में भी टेक्नोलॉजी पर निर्भरता से उत्पन्न विद्रूपताओं को चित्रित करना था, साथ ही कहानी इस पीढ़ी द्वारा सेक्स के टैबूज़ तोड़ने की आतुरता की भी बात करती है. भावनात्मक संबंधों में भी पूर्ण समर्पित न हो कर चतुराई से अपने-अपने chauvinisms संभालने के प्रयास रोचक हैं
जो कुछ रेस्टोरेंट और पुलिस स्टेशन में हुआ वह निसंदेह रोजमर्रा आस-पास घटती सिहराने वाली बातें है उन पर कहानी के माध्यम से सवाल उठाने का प्रयास आज के माहौल में ‘साहसी’ क़लमकार की पहचान है.राहुल इसके लिये प्रशंसा के हक़दार हैं .
कलम की सदाबहार,भरपूर पठनीयता,आँखों के सामने चित्र सा खींच देने जैसे सुंदर वर्णन एवं तथाकथित तकनीकी आधारित आधुनिकता के हाथों छली गई नई पीढ़ी की निराशाओं को उकेरती अपने समय के वाज़िब प्रश्न उठाती एक अच्छी कहानी का स्टीरियो टाइप अंत पाठक को उत्सुकता के ‘ऑर्गैज़म’ पर लाते – लाते अपने अजीबोगरीब अंत के कारण अधूरी आस पर छोड़ देता है .
Badhiya Kahani hai…Maza aa Gaya padh kar…
Bahut hi khoobsurat kahaani…..
राहुल जी की ये कहानी इंसानी दिलों दिमाग़ में चल रही हलचलों को बेहद ईमानदारी से बयान करती है साथ ही नई युवा पीढ़ी किस तरह से टेक्नोलॉजी वाली दुनिया में जी रही है साथ ही ऑर्गेज्म जैसे संवेदनशील विषय को छूते हुए कहानी आखिर में जिस मोड़ तक पहुंची है, उस के लिए राहुल को बहुत बधाई। हाथ में शराब थामे आधे नशे में झूलता युवा किस तरह राष्ट्रगान के बजने पर हिलते डुलते खड़ा है और जो लोग नहीं खड़े हो रहे उन्हें ज़लील करते हुए हिंसक हो रहा है, काबिले तारीफ है।
मैंने बहुत कहानियाँ पढ़ी हैं पर कहानी और फ़िल्म का मज़ा एक साथ कभी नहीं आया। सारे सीन सामने दिख रहे थे, हर चीज़ का डिटेल था। विधि कितनी सुंदर रही होगी ये भी अंदाज़ा हो गया। हर माहौल को महसूस कर पाये। और इतने तेज़ चल रही थी कहानी कि रुकने का मन ही नहीं किया। ये वेब सीरीज का बिंज वॉच जैसा अनुभव था। राहुल फ़िल्मी दुनिया से जुड़े हैं शायद उसका असर होगा पर मुझे ऐसी ही कहानियाँ पसंद हैं जहां रुकने और भटकने का समय ही न मिले
कहानी बहुत ढंग से बुनी गई और पाठकों को ‘तात्कालिक वर्तमान’ महसूस कराती है और आगे बढ़ती रहती है तमाम उतार-चढ़ावों को लेकर। अंत में Surprise करती जाती है अपना अन्तिम संदेश लोगों तक पहुंचाती है। दरअसल आजकल महानगरों की जीवनशैली कुछ-कुछ Mechanical सी हो रही है अर्थात Feeling-less. इस कहानी का Nature ही काफ़ी कुछ ऐसा ही रखा गया है। किरदारों को देखेंगे तो वे अपनी ज़िन्दगी की आपाधापी में खप रहे हैं एक-दूसरे की संवेदनाओं से सरोकार कम ही है। जैसे समय ही नहीं है भावनाओं को दिल में रखने का। फिर अचानक कहीं किसी कोने में भावनात्मक जुड़ाव उभरता है।
यह कहानी महानगरीय जीवन में अकुंठ प्रेम की सच्चाई का उद्घाटन करते हुए उस त्रासदी तक पहुँचती है जहाँ नायक उसके रूबरू होते हुए हतप्रभ रह जाता है।कहानी का अंत एक पेशेवराना औरत को भले ही नंगा करता हो ,किंतु उसका अंतिम आत्म-स्वीकार उसके प्रति करुणा जगाता है।कहानी को फ़ोकल टच उसे विश्वसनीय बनाता है।
घिसा-पिटा अंत कहानी की थोड़ी-बहुत सुंदरता को भी नष्ट कर देता है। कहानी सिर्फ़ संवाद नहीं है, कथ्य नहीं है, वो दृष्टि भी है जो लेखक देना चाह रहा है। और इस कहानी में लेखक के पास कोई दृष्टि नहीं है। थोड़ी सी सांप्रदायिकता, थोड़ा सा भाषावाद डालने से काम नहीं चलेगा जबकि उनसे सीधे दो-दो हाथ करने की ज़रूरत है।
There are several things worth noting in this latest offering by Rahul Srivastava and then some, which do not surprise at all. The title is certainly one that would cause a raised eyebrow or two amongst the conservative readers, the use of Hinglish is another. Rahul’s ability to evoke shock and awe is something that we are getting used to. As soon as the reader is lulled into a false sense of complacency with all the romantic banter, the story suddenly sets all the alarm bells jangling with an incident similar to the currently trending mother tongue based intolerant skirmishes all over the country but the final revelation puts all the romantic, happy ending hopes to rest as another idealistic romance bites the dust.
कहानी पढ़ते समय शुरुवात में ऐसा बिल्कुल नहीं लगा था कि कहानी वहाँ तक जायेगी जहाँ ख़त्म हुई !
हाँ ये बात अवश्य है कि शुरुवात में porn site पर sex story पढ़ने जैसा feel होता है !
पर जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ते जाती है उसकी दिशा बदलती रहती है !
रणवीर की सोच पहले तो काफ़ी संकीर्ण लगती है परन्तु बाद में उसकी छवि बदलती है !
मुक्ता का पक्ष थोड़ा और पढ़ने के लिए मिलता तो मज़ा आता !
मुक्ता, विधि बन कर क्या पाना चाहती है ये बहुत सतही तरह से समझ आता है ! विधी का पक्ष थोड़ा और जानने को मिलता तो बेहतर होता ।
Orgasm कहानी, पूर्ण कहानी का feel देती है ।
भावनाओं के ज्वार भाटे से गुजरती हुई जब यह कहानी अपने अंत को पहुंचती है तो हमें यह समझाती हैं कि मानवीय संवेदनाएं कितनी अहम है हमारी जिंदगी में!!