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Home » ख़ामोशी : शहादत

ख़ामोशी : शहादत

मूल रूप से कोरियाई भाषा में 2011 में प्रकाशित उपन्यास ‘ग्रीक लेसन्स’ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखिका हान कांग की एक अत्यंत महत्वपूर्ण कृति है, जो अपनी सघनता, मनोवैज्ञानिक गहराई और काव्यात्मक भाषा के लिए जानी जाती है. इस उपन्यास में एक ऐसी महिला की कहानी है, जो बोलने की क्षमता खो चुकी है, और एक ऐसा पुरुष है, जो अपनी दृष्टि खो रहा है. इन दोनों पात्रों के माध्यम से लेखिका ने लैंगिक और भावनात्मक अनुभवों को अत्यंत संवेदनशीलता और गहराई के साथ प्रस्तुत किया है. इसका अंग्रेज़ी अनुवाद डेबोराह स्मिथ और ई याईवॉन ने किया है. उपन्यास के दूसरे अध्याय का हिंदी अनुवाद कथाकार शहादत ने विशेष रूप से आपके लिए किया है. यह अध्याय लेखिका की काव्यात्मक और दार्शनिक दृष्टि का उत्कृष्ट उदाहरण है. इस जटिल अध्याय का हिंदी अनुवाद पढ़ते हुए मूल पाठ को पढ़ने की उत्कट इच्छा जागृत होती है—यही किसी भी अच्छे अनुवाद की विशेषता होती है. प्रस्तुत है यह अंक.

by arun dev
May 15, 2025
in अनुवाद
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ख़ामोशी : शहादत
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Han Kang
Greek lessons


ख़ामोशी
शहादत 

दूसरा अध्याय
Silence

वह औरत अपने दोनों हाथ सीने के सामने जोड़ लेती है. भँवें सिकोड़ती है और ब्लैकबोर्ड की तरफ़ देखती है.

“ठीक है, ये पढ़ो, ” मोटे शीशों और सुरमई फ्रेम की ऐनक वाले व्यक्ति ने मुसकुराते हुए कहा.

औरत के होंठ फड़कते हैं. वह अपनी जीभ की नोक से निचले होंठ को गीला करती है. उसके सीने के सामने बंधे दोनों हाथ बेचैन हैं. वह मुँह खोलती है और फिर बंद कर लेती है. वह सांस रोकती है और फिर गहरी सांस निकालती है. वह व्यक्ति ब्लैकबोर्ड की तरफ़ बढ़ता है और फिर उसे आराम से पढ़ने को कहता है.

उस औरत की पलकें लगातार झपक रही हैं, जैसे किसी कीड़े के पर तेज़ी से फड़फड़ा रहे हो. औरत अपनी आँखें बंद करती है और फिर खोलती है. शायद वह उम्मीद कर रही थी कि जब वह आँखें बंद करके खोलेगी तो ख़ुद को किसी और जगह पाएगी.

वह शख़्स अपना चश्मा ठीक करता है. उसकी उंगलियां चॉक की मोटी परत में लिथड़ी हुई हैं.

“चलो अब, ऊँची आवाज़ में बोलो.”

 

औरत ने हाई-नेक वाला काला स्वेटर और काली पतलून पहन रखी है. उसकी काली जैकेट कुर्सी पर टंगी है और उसका काला ऊनी स्कार्फ एक बड़े काले बैग में रखा है. उसकी इस काली ड्रेस को देखकर लगता है कि वह अभी-अभी किसी के जनाज़े से आ रही है. उसका चेहरा पतला और नैन-नक्श तीखे हैं. उसके लंबे चेहरे को देखकर लगता है, जैसे वह किसी मुजस्समे का चेहरा हो.

वह न तो जवान है और न ही ज़्यादा हसीन. वह आँखों से होशियार दिखाई देती है लेकिन आँखों की लगातार हरकत इस विचार के ख्याल को मुश्किल बना देती है. उसके ढलके हुए कंधों और कमर को देखकर लगता है कि वह हमेशा अपने कपड़ों में पनाह ढूंढ रही है और उसके नाखून भद्दे तौर पर तराशे हुए हैं. उसकी बाई कलाई में गहरी जामनी मख़मल का ब्रेसलेट है, जो उसके एक-रंगे लिबास से एकदम अलग रंग की इकलौती चीज़ है.

 

“चलो, सब मिलकर पढ़ते हैं,” वह व्यक्ति उस औरत का अब और इंतज़ार नहीं कर सकता. वह अपनी नज़र अन्य छात्रों पर डालता है: एक बच्चे-जैसे चेहरे वाली यूनिवर्सिटी की लड़की, जो उस औरत के बगल वाली कतार में बैठी है, एक अधेड़ उम्र आदमी एक खम्भे के पीछे आधा छिपा हुआ है और खिड़की के पास बैठा हुआ एक नौजवान पोस्ट ग्रेजुएट छात्र, जो अपनी कुर्सी में झुका हुआ है.

“Emos, hēmeteros۔ मेरा. हमारा.” तीनों छात्र धीमी और शर्मीली आवाज़ में पढ़ते हैं. “Sos. Humeteros ۔ तुम्हारा. तुम्हारे.”

ब्लैकबोर्ड के पास खड़ा व्यक्ति क़रीब-क़रीब तीस का है. वह दुबला-पुतला है, भंवें इतनी घनी हैं कि मानो कुछ कह रही हों, नाक और ऊपर वाले होंठ के दर्मियान एक गहरी नाली है. उसके चेहरे पर भावों को दबाए हुए एक फीकी-सी मुस्कुराहट खेल रही है. उसकी गहरे भूरे रंग की मख़मल की जैकेट की कोहनियों पर हल्के भूरे रंग के चमड़े के टुकड़े लगे हुए हैं. जैकेट के बाज़ू छोटे हैं, जिसकी वजह से उसकी कलाई नज़र आ रही हैं. औरत देखती है कि उसकी बाईं आँख से मुँह के दहाने तक क़ौस की शक्ल का एक बारीक और मद्धिम-सा ज़ख़्म का निशान है. जब उसने पहली क्लास में यह निशान देखा था तो उसे सोचा था कि यह उस जगह का निशान है, जहाँ कभी आँसू बहते रहे होंगे.

सुरमई फ्रेम के ऐनक के पीछे से उस व्यक्ति की आँखें औरत के सख़्ती से बंद मुँह पर जमी हुई हैं. मुस्कुराहट ग़ायब हो जाती है. उसके चेहरे पर तनाव आ जाता है. वह ब्लैकबोर्ड की ओर मुड़ता है और तेज़ी से प्राचीन ग्रीक में एक छोटा-सा वाक्य लिखता है. इससे पहले कि वह कोमा लगाए, चॉक टूट जाता है और उसके दोनों हिस्से ज़मीन पर गिर जाते हैं.

 

 

दो)

पिछले साल वसंत के आखिर में वह औरत ख़ुद एक ब्लैकबोर्ड के सामने खड़ी थी, चॉक में अटा उसका एक हाथ ब्लैकबोर्ड पर टिका हुआ था. जब एक मिनट या उससे ज़्यादा वक़्त गुज़र गया और वह अभी भी अगला शब्द नहीं लिख पाई तो उसके साथी विद्यार्थियों ने कुर्सियों पर पहलू बदलना और फुसफुसाना शुरू कर दिया था. उसकी तीक्ष्ण निगाहें छात्रों, छत या खिड़की को नहीं देख पा रही थीं; सामने सिर्फ हवा का खालीपन था.

“क्या आप ठीक हैं, मैडम?” पहली क़तार में बैठी घुंघराले बालों और प्यारी आँखों वाली लड़की ने पूछा. उस औरत ने मुसकुराने की कोशिश की लेकिन इसके विपरीत उसकी पलकें थोड़ी देर के लिए सिकुड़ गईं. वह कांपते होंठों को कसकर बंद किए हुए थी. वह जीभ और गले के बजाय भीतर कहीं बुदबुदाई: ये फिर लौट आया है.

चालीस से कुछ ज़्यादा की संख्या में बैठे छात्र सवालिया निगाहों से एक-दूसरे को देख रहे थे. वह क्या कर रही है? मेज़ों के दरम्यान सवालों की सरगोशी हो रही थी. वह बस इतना कर पाई कि चुपचाप कमरे से बाहर चली जाए. ख़ुद पर ज़ोर डालकर वह जैसे-तैसे यह काम करने में कामयाब रही. जिस लम्हे उसने बाहर गलियारे में क़दम रखा था, कमरे में सरगोशियों की आवाज़ शोर में बदल गई, जैसे लाऊड स्पीकर से आवाज़ आ रही हो और ये शोर पत्थर के फ़र्श पर उसके जूते से पैदा होने वाली आवाज़ को निगल गया था.

 

यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होने के बाद उस औरत ने पहले एक बुक पब्लिशर के लिए और फिर छः साल से ज़्यादा अर्से के लिए ऐडिटोरियल प्रोडक्शन कंपनी में काम किया था. उसके बाद उसने राजधानी और उसके आस-पास स्थित कुछ यूनिवर्सिटियों और एक आर्टस सैकेण्डरी स्कूल में लिटरेचर पर लेक्चर देते हुए सात साल बिताए थे.

उसने कविता के तीन संग्रह लिखे थे, जो तीन या चार साल के अंतराल पर प्रकाशित हुए और फिर कई साल तक एक पाक्षिक साहित्यिक पत्रिका के लिए कॉलम लिखे. हाल ही में हर बुधवार की शाम संस्थापक सदस्य की हैसियत से वह एक ऐसी सांस्कृतिक पत्रिका की ओर से संपादकों की मीटिंग में शामिल होती रही थी, जिसका अभी नाम तक नहीं रखा गया था.

 

ऐसी कोई निशानदेही नहीं थी, जिसके आधार पर कहा जाता कि ऐसा फिर से हो सकता था या होना चाहिए.

बेशक यह हक़ीक़त है कि छह महीने पहले उसने अपनी माँ को खो दिया था, काफ़ी साल पहले तलाक़ के बाद आख़िरकार उसने अपने बेटे की कस्टडी भी खो दी थी. अदालतों की लंबी लड़ाई के बाद अपने पूर्व पति से अलग रहते हुए उसे पाँच महीने होने वाले थे. बेटे के छिन जाने के बाद अनिद्रा के कारण वह जिस भूरे बालों वाले मनोचिकित्सक के पास हफ़्ते में एक बार जाया करती थी, वह समझ नहीं पा रहा था कि वह इतने स्पष्ट कारणों से इनकार क्यों कर रही है.

“नहीं,” उसने मेज़ पर रखे सादा-काग़ज़ पर लिखा था, “यह इतनी आसान बात नहीं है.”

यह उनका आख़िरी सेशन था. लिखकर किए जाने वाले मनोवैज्ञानिक ट्रीटमेंट में बहुत ज़्यादा वक़्त लगता था और ग़लती का अंदेशा भी बहुत ज्यादा होता था. उसने मनोचिकित्सक की तरफ़ से भाषा से संबंधित इलाज के एक्सपर्ट से मिलने की सलाह को नरमी से रद्द कर दिया था. किसी भी चीज़ से ज़्यादा, उसके पास इतने महंगे ट्रीटमेंट को जारी रखने के लिए पैसे नहीं थे.

 

 

तीन)

महिला अपने बालपन में यक़ीनन ‘समझदार’ थी, कुछ ऐसा, जिसे उसकी माँ ने कैंसर के अपने इलाज के आख़िरी सालों में उसे याद दिलाने का भरसक प्रयास किया था. मानो यह ऐसी बात थी, जिसे वह अपने मरने से पहले स्पष्ट कर देना चाहती थी.

भाषा के मामले में यह लेबल शायद सच था. चार साल की उम्र में बिना सिखाए ही उसे ख़ुद से ही हंगुल की अच्छी समझ हो गई थी. व्यंजन और स्वर के बारे में कुछ भी न जानते हुए भी उसने अक्षरों को पूरे वाक्य के रूप में याद कर लिया था.

जिस साल वह छह साल की हुई थी, उसके बड़े भाई ने उसे हंगुल की संरचना के बारे में समझाया था. वही उसके पहले शिक्षक ने भी बताया था. हालांकि, जब वह उन्हें सुन रही थी तो उसे वह सब कुछ अस्पष्ट लग रहा था. फिर भी उसने वसंत के प्रारंभ की उस पूरी दोपहर यार्ड में बैठे हुए व्यंजन और स्वरों के बारे में सोचते हुए बिताई थी. तब उसने 나, na, और 니, nih में उच्चारण किए गए ㄴ ध्वनि के बीच सूक्ष्म अंतर की खोज की थी. उसके बाद उसने महसूस किया कि 사, sah में ㅅ की ध्वनि 시, shi की तुलना में अलग है. सभी संभावित डिप्थॉन्ग संयोजनों के बारे में दिमाग़ी रूप से सोचने पर उसने पाया कि एकमात्र ऐसा संयोजन जो उसकी भाषा में मौजूद नहीं था, उसी क्रम में eu के साथ संयुक्त रूप मेंㅣ, ih, ㅡ था. यही कारण था कि इसे लिखने का कोई तरीका नहीं था.

वे छोटी-छोटी खोजें उसके लिए इतनी ताज़ा और चौंकाने वाली थीं कि जब तीस साल से भी ज़्यादा समय के बाद मनोवैज्ञानिक ने उससे उसकी सबसे ताज़ा याद के बारे में पूछा तो उसके दिमाग़ में जो आया वह कुछ और नहीं बल्कि उस दिन आंगन में पड़ने वाली धूप थी. उस धूप की वजह से उसकी पीठ और गर्दन पर बढ़ती गर्मी थी. वे अक्षर, जिन्हें उसने छोटी लकड़ी से आंगन की ज़मीन खुरचते हुए लिखा था. ध्वनियों की एक अद्भुत लय, जो बेहद कमज़ोरी होने पर भी आपस में जुड़ गई थी.

 

प्राथमिक विद्यालय में दाखिल होने के बाद उसने अपनी डायरी के पिछले हिस्से में शब्दावली लिखनी शुरू कर दी थी. बिना उद्देश्य और संदर्भ के. केवल उन शब्दों की सूची जिसने उस पर गहरा प्रभाव डाला था. उनमें से वह जिस शब्द को सबसे अधिक महत्व देती थी, वह था 숲. पृष्ठ पर यह एक-अक्षर वाला शब्द एक पुराने शिवालय जैसा दिखता था: ㅍ, नींव, ㅜ, मुख्य भाग, ㅅ, ऊपरी भाग. उसे इसका उच्चारण करते समय जो एहसास होता था, वह उसे पसंद था: ㅅ—ㅜ—ㅍ, s–u–p, पहले अपने होठों को सिकोड़ने और फिर उनमें से धीरे-धीरे सावधानी से हवा छोड़ने की अनुभूति. फिर होठों के बंद होने का अहसास. ख़ामोश रहकर बोला गया एक शब्द. इस शब्द से मंत्रमुग्ध होकर जिसमें उच्चारण, अर्थ और रूप सभी ख़ामोशी में लिपटे हुए थे, उसने लिखा: 숲. 숲. वुड्स.

उसकी माँ द्वारा उसे “बहुत होशियार” बच्चे के रूप में याद किए जाने के बावजूद, फिर भी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय में किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया था. वह कोई शरारती बच्ची नहीं थी. हालांकि, उसके ग्रेड भी कोई ख़ास नहीं होते थे. हाँ, उसके कुछ दोस्त थे, लेकिन स्कूल के बाहर उसका किसी से मिलना-जुलना नहीं था. वह सिर्फ़ अपना चेहरा धोते वक्त ही आईने के सामने खड़ी होती थी. वह स्कूल की दसूरी लड़कियों की तरह चंचल नहीं थी. मुहब्बत के ना-समझ रेशे भी उसे कभी परेशान नहीं करते थें. दिन की पढ़ाई के बाद वह स्थानीय लाइब्रेरी जाती और स्कूल के काम से संबंधित कोई किताब पढ़ती, कुछ किताबें अपने साथ घर ले जाती, अपने कंबल के नीचे दुबक जाती और पढ़ते-पढ़ते सो जाती. केवल एक ही इंसान जानता था कि उसकी ज़िंदगी हिंसक रूप से दो भागों में बंट गई थी, जो वह खुद थी. उसने अपनी डायरी के पीछे जो शब्द लिखे थे, वे अपनी इच्छा से अनजाने वाक्य बनाने के लिए इधर-उधर घूम रहे थे. कभी-कभी वे शब्द उसकी नींद में किसी कटार की तरह घुस जाते, जिससे वह रात में कई बार चौंककर जाग जाती. वह दिन-ब-दिन कम सो रही थी, हर चीज़ का अहसास जैसे पैना होता जा रहा था, उसके ऊपर हावी हो रहा था, कभी-कभी उसकी छाती के बीचों-बीच, सोलर प्लेक्सस के पास, एक अजीब-सी जलन होती—जैसे किसी ने तपते लोहे की छाप लगा दी हो.

सबसे तकलीफ़देह बता यह थी कि जब वह अपना मुँह खोलती और एक-एक करके शब्द बाहर निकालती तो वे उसे भयानक रूप से अलग-अलग महसूस होते थे. यहाँ तक कि सबसे नासमझ वाक्यांश भी पूर्णता और अपूर्णता, सच और झूठ, सुंदरता और कुरूपता को बर्फ की ठंडी पारदर्शिता के साथ रेखांकित कर देता था. किसी मकड़ी  के जाले की तरह उसके हाथ और जीभ से निकले हुए वे वाक्य उसे बेहद डरावने लगते थे.

वह उल्टी करना चाहती थी. वह चीखना चाहती थी.

 

ऐसा पहली बार सर्दियों में हुआ था, जब वह सोलह बरस की हो गई थी. वह भाषा उसके मस्तिष्क से ऐसे गायब हो गई थी, जैसे हज़ारों सूइयों से सिला हुआ लिबास अचानक ग़ायब हो जाये. शब्द अभी भी उसके कानों तक पहुंच रहे थे लेकिन अब हवा की एक मोटी और घनी परत उसके कोक्लीअ और दिमाग़ के बीच की जगह को ढंक रही थी. उस कोहरे में लिपटी ख़ामोशी के घिराव में बोलने के लिए भाषा और होंठों को इस्तेमाल करने की उसकी याददाश्त और मज़बूती से पेंसिल पकड़ने की याददाश्त धुँधलाती जा रही थी. वह अब भाषा में नहीं सोचती थी. वह बिना भाषा हरकत करती थी और भाषा के बिना ही समझती थी. उसका जो हाल बोलना-सीखने से पहले था, नहीं बल्कि वैसा जब उसे ज़िंदगी भी नहीं मिली थी. चुप्पी ने उसके जिस्म को अंदर और बाहर, दोनों तरफ़ से अपनी लपेट में ले लिया था और वह वक़्त के बहाव को ऐसे जज़्ब कर रही थी जैसे रुई के गाले पानी को जज़्ब करते हैं.

ख़तरा महसूस करते हुए उसकी माँ उसे एक मनोचिकित्सक के पास ले गई थी, जिसने उसे गोलियां दीं थीं, जिन्हें उसने जीभ के नीचे छिपा लिया था और घर आकर फूलों की क्यारी में दबा दिया था. दो मौसमों तक वह आंगन के उसी कोने में बैठती रही, जहाँ वह दोपहर की तेज धूप में व्यंजन और स्वरों को समझा करती थी. उसकी गर्दन का पिछला हिस्सा गर्मियों के आने से पहले ही काला पड़ चुका था, जो हमेशा पसीने से लथपथ रहता था. फिर जब उसकी दबाई हुई गोलियों के नतीजे में साज के फूल की कोंपलों फूटीं तो उसकी माँ और मनोचिकित्सक की आपस में सलाह के बाद तय हुआ कि उसे वापस स्कूल भेज दिया जाये. यह स्पष्ट था कि उसे घर में बंद करने से कोई मदद नहीं मिली था और फिर उसे अपने सहपाठियों से पीछे भी नहीं रहना था.

उसके स्टेट हाईस्कूल में पहली बार दाख़िले से कई महीने पहले ही स्कूल वालों ने एक ख़त के ज़रिये सूचित कर दिया था कि नया शैक्षिक वर्ष मार्च में शुरू होने जा रहा है. यह एक बहुत सुस्त और डराने वाला पड़ाव था. सभी कक्षाओं को पहले ही काफ़ी कुछ पढ़ा दिया गया था. अपनी उम्र से कम नज़र आने वाले सभी शिक्षक व्यवहारिक नज़रिये वाले थे. उसके किसी सहपाठी को ऐसी लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं थी, जो सुबह से शाम तक एक शब्द भी नहीं बोलती थी. जब उसे किताब पढ़ने के लिए कहा जाता या पीई के दौरान ज़ोर से गिनने के लिए कहा जाता था तो वह ख़ाली नज़रों से शिक्षक को तकती और हर बार या तो उसे वापस क्लास में भेज दिया जाता या उसके गालों पर चपत पड़ती.

उसकी माँ और मनोचिकित्सक ने सोचा था कि सामाजिक मेल-जोल की हलचल उसकी ख़ामोशी में शिगाफ़ डालेगी लेकिन ऐसा न हुआ. उल्टा एक और उदास और ज़्यादा सख्त स्थिरता ने उसके जिस्म की काली मिट्टी से बने मर्तबान को भर दिया. घर के रास्ते में भीड़ भरी सड़कों पर वह अपने ढीले पैरों से ऐसे चलती जैसे किसी बड़े साबुन के बुलबुले में बंद हो. उस चमकदार बुलबुले के अंदर ऐसी शांति होती, जैसे मानो कोई पानी के अंदर से ऊपर सतह की ओर देख रहा हो. शोर करतीं कारें गुज़रती हुई पैदल चलते लोगों की कोहनियां, कंधों और उनके बाज़ुओं से टकराती हुई ग़ायब हो जा रही थी.

 

काफ़ी वक़्त गुज़र गया तो वह सोचने लगी.

क्या होता अगर छुट्टियों से ठीक पहले की सर्दी में उस बिल्कुल आम से फ़्रेंच शब्द ने उसके अंदर हलचल न मचाई होती?

क्या होता अगर उसने अनजान भाषा को याद न रखा होता, जैसे जिस्म के किसी अनदेखे हिस्से (गुर्दा, मस्तिष्क) के वजूद को याद रखा जाता हैं?

फ़्रेंच ही क्यों? प्राचीन चीनी या अंग्रेज़ी भाषा क्यों नहीं? शायद उसके नयेपन के कारण, क्योंकि यह वह भाषा थी, जिसे वह सैकेण्डरी स्कूल में स्वैच्छिक विषय के तौर पर पढ़ना सीखने के लिए चुन सकती थी. हमेशा की तरह उसकी ख़ाली निगाहें ब्लैकबोर्ड पर गईं लेकिन वहाँ वे किसी चीज़ पर अटक गईं. छोटे क़द वाले गंजे फ्रेंच शिक्षक उस शब्द की ओर इशारा कर रहे थे और उसे दोहरा रहे थे. वह चौंक पड़ी, उसने महसूस किया उसके होंठ बच्चों की तरह कंपकंपा रहे थे. Bibliothèque. बुदबुदाती आवाज़ जीभ और गले से कहीं ज़्यादा गहराई से मुनमुनाती हुई निकली.

उसके पास यह जानने का कोई तरीक़ा न था कि वह लम्हा कितना अहम था.

ख़ौफ़ अब भी कहीं छिपा हुआ था, ख़ामोशी की गहराइयों से दर्द अपनी शिद्दत ज़ाहिर करने से हिचकिचा रहा था. जहाँ लहजे, आवाज़ें और बेमेल अर्थ मिले थे, खुशी और बग़ावत का धीमे से जलने वाला फ़्यूज़ जल उठा था. 

 

 

चार)

वह औरत दोनों हाथ मेज़ पर रख लेती है. उसके जिस्म में तनाव है और वह यूं झुकी हुई है, जैसे वह ऐसी बच्ची हो, जिसके नाखूनों की जांच होने जा रही हो. वह लेक्चर हॉल में गूंजती उस व्यक्ति की आवाज़ सुन रही है.

“निष्क्रिय और सजीव आवाज़ के अलावा, प्राचीनक ग्रीक में एक तीसरी आवाज़ भी है, जिसे मैंने पिछले लेक्चर में संक्षेप में बताया था, याद है?”

औरत की क़तार में बैठा नौजवान हाँ में सिर हिलाता है.

वह नौजवान दर्शनशास्त्र का द्वितीय वर्ष का छात्र है, जिसके गोल गाल उसके एक होशियार और शरारती बच्चा होने का आभास देते हैं.

वह औरत खिड़की की तरफ़ देखने लगती है. उसकी नज़रें उस पोस्ट ग्रेजुएट छात्र पर पड़ती हैं, जिसने जैसे-तैसे प्री-मेडिकल की परीक्षा तो पास कर ली थी लेकिन वह दूसरों की ज़िंदगियों की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था, इसलिए उसने मेडिकल इतिहास का अध्ययन करने के लिए पढ़ाई छोड़ दी थी. वह ऊंचे क़द, गोल-मटोल चेहरे और दोहरी ठुड्डी वाला है. उसने सींग के बने हुए फ्रे़म वाली काली ऐनक पहनी हुई है. पहली नज़र में वह शांत नज़र आता है. वह हर ब्रेक दर्शन-शास्त्र के नौजवान छात्र के साथ बिताता है- वे धीमी आवाज़ में एक-दूसरे को बेहूदा चुटकुले सुनाते रहते हैं. लेकिन जैसे ही क्लास शुरू होती है, उसका रवैया बदल जाता है. कोई भी देख सकता है कि उस वक्त वह कितना तनाव में होता है और गलतियां करने से डरता रहता है.

“ये आवाज़, जिसे हम मध्य स्वर कह रहे है, एक ऐसी क्रिया को व्यक्त करती है, जो विषय से संबंधित होती है.” (यहाँ संकेत reflexive pronoun और verb की तरफ़ है.) अनुवादक.

दूसरी मंज़िल की खिड़की से बाहर बिखरती हुई नारंगी रोशनी कम ऊंची उदास इमारतों पर पड़ रही है. अंधेरे में चौड़े पत्तों वाले नौजवान दरख़्त की दुबली और स्याह शाख़ें पत्तों के पीछे छिपी हुई हैं. उसकी खामोश निगाहें बाहर के वीरान दृश्य, सहमे हुए पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट और ग्रीक भाषा के लेक्चरर की कमज़ोर कलाई पर से गुज़रती हैं.

पहले के विपरीत बीस साल बाद लौटने वाली उस चिपचिपाहट में न तो नयापन है, न गहराई और न चमक. अगर पहली बार छाने वाली ख़ामोशी कुछ चिपचिपाहट जैसी थी तो ये बाद वाली मौत की ख़ामोशी जैसी थी. जहाँ अतीत में उसने यह महसूस किया था कि वह होंठों में बुदबुदाए जाकर ऊपरी सतह की ओर देख रही थी, अब वह महसूस कर रही है कि वह एक साया बन गई है, जो ठंडी और सख़्त दीवार और नंगी ज़मीन पर चल रहा है, ज़िंदगी पानी का एक बड़ा-सा टैंक है और वह बाहर से उसका ऑब्ज़र्व कर रही है. वह हर शब्द पढ़ और सुन सकती है लेकिन उसके होंठ ज़रा-सी आवाज़ निकालने के लिए भी नहीं खुलते. मानो जिस्म से रुह निकाल ली गई हो, जैसे किसी मुर्दा दरख़्त का अंदरुनी हिस्सा, जैसे दो चमकीले रंगों के बीच काली ख़ला, रुखी और गहरी ख़ामोशी.

बीस साल पहले वह उस चीज़ का अंदाज़ा लगाने में नाकाम रही थी कि एक अजनबी भाषा, जो उसकी मातृ-भाषा कोरियाई से बहुत कम या बिल्कुल भी मिलती-जुलती नहीं होगी, उसकी चुप्पी को तोड़ देगी. उसने इस प्राइवेट एकेडमी में प्राचीन ग्रीक भाषा सीखने का विकल्प चुना, क्योंकि वह अपने अंदर से अपनी मर्ज़ी की भाषा बाहर निकलवाना चाहती थी. उसे होमर, अरस्तू और हिरोडोटस के साहित्य में या उसके बाद के दौर के साहित्य में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अगर बर्मी या संस्कृत भी पढ़ाई जा रही होती तो वह उसका चुनाव भी कर लेती, हालांकि इन दोनों भाषाओं की लिपि एक-दूसरे से पूरी तरह अलग है.

 

“उदाहरण के लिए, मध्य स्वर में क्रिया ‘खरीदना’ का उपयोग करते हुए “मैं अपने लिए एक्स खरीदता हूं” का अंततः अर्थ है “मेरे पास एक्स है.” मध्य स्वर प्रस्तुत क्रिया ‘प्यार करना’, ‘एक्स को प्रयास किया जाता है,’ का अंततः अर्थ है कि एक्स मुझे प्रभावित करता है. अंग्रेज़ी में कहा जाता है, ‘उसने ख़ुद को मार डाला,’ है न? प्राचीन ग्रीक भाषा में ‘ख़ुद को’ कहना की आवश्यकता नहीं होती- अगर हम मध्य स्वर का उपयोग करते हैं तो एक ही अर्थ एक ही शब्द में व्यक्त किया जा सकता है.

इस तरह,” लेक्चरर समझाता है और फिर ब्लैकबोर्ड पर लिखता है- ἀπήγξατο (ख़ुदकुशी)

ब्लैकबोर्ड पर लिखे शब्दों के बारे में सोचते हुए वह अपनी पेंसिल उठाती है और वह शब्द अपनी नोटबुक में लिख लेती है. उसने पहली बार किसी भाषा में इतना पेचीदा नियम देखा है. क्रियाएं विभिन्न प्रकार से अपना रूप बदलती हैं: विषय का मामला, लिंग और संख्या, व्यवहार, वक्त जिसके कई दर्जे हैं; और स्वर, जिसके तीन अलग-अलग प्रकार हैं. लेकिन इन असामान्य रूप से विस्तृत और सावधानीपूर्वक नियमों के कारण ही व्यक्तिगत वाक्य वास्तव में सादा और आसान हैं. तहरीर को बयान करने की ज़रूरत ही नहीं और न जुमले में शब्द की तरतीब की क़ैद. यह एक शब्द- जिसे यह दर्शाने के लिए संशोधित किया गया है कि विषय एकवचन, तीसरा व्यक्ति पुरुष है; काल पूर्ण, जिसका अर्थ है कि यह अतीत में किसी बिंदु पर घटित हुई किसी चीज़ का वर्णन करता है; और स्वर मध्य- ने इसके भीतर अर्थ को संकुचित कर दिया है, जैसे कहें- ‘उसने एक बार ख़ुद को मारने की कोशिश की थी.’

 

उस वक़्त जब आठ साल पहले उसका बच्चा पैदा हुआ था और जिसकी देखभाल करने के लिए अब उसे अयोग्य घोषित कर दिया गया था, वह बच्चा जब पहली बार बोलना सीख रहा था तो उसने एक ऐसे शब्द का सपना देखा था, जिसके अंदर दुनिया की सभी भाषाएँ समाई हुई थीं. यह इतना डरावना सपना था कि उसकी कमर पसीने से भीग गई थी. इकलौता शब्द जिसमें बेपनाह गहराई और वज़न हो. एक ऐसी भाषा कि जिसे बोलने के लिए कोई जैसे ही मुँह खोले तो उसके शब्द धमाके की तरह फट जाएँगे और ऐसे फैलना शुरू हो जाएँगे जैसे दुनिया की शुरुआत में सभी पदार्थ फैल गए थे. हमेशा जब भी वह अपने थके हुए और चिड़चिड़े बच्चे को सुलाकर नींद की आग़ोश में जाती तो वह सपना देखती कि सभी भाषाओं का विशाल क्रिस्टलीकृत द्रव्यमान उसके दिल के केंद्र में बर्फीले विस्फोटक की तरह तैयार हो रहा है, जो उसके धड़कते निलय में समाया हुआ है.

 

वह इस एहसास पर दांत पीसती थी, जिसकी महज़ याद ही तकलीफ़देह थी, और लिखती है: ἀπήγξατο (ख़ुदकुशी)

एक ऐसी भाषा जो किसी बर्फ़ीले सतून की तरह सर्द और सख़्त है.

एक ऐसी भाषा, जिसे बोलने से पहले किसी अन्य के साथ जोड़ने की ज़रूरत नहीं होती, पूरी तरह एक अलग भाषा है.

एक ऐसी भाषा, जिसमें होंठ खुलने से पहले ही पूरी तरह क्रिया के सबब और अंदाज़ का पीछा कर लिया जाता है.

 

 

पाँच)

रात अशांत है.

आधे ब्लॉक दूर मोटरवे से आने वाले इंजनों की गर्जना उसके कानों में जमे बर्फ पर अनगिनत स्केट ब्लेड की तरह चीरे लगाती है.

स्ट्रीट लाइट की रोशनी से जगमगाता हुआ लिली मैगनोलिया अपनी मुरझाई हुई पंखुड़ियों को हवा में बिखेर देता है. वह शाखाओं को झकझोरते हुए फूलों के बीच से गुजरती है और वसंत की रात की हवा में, जो कुचली हुई पंखुड़ियों की प्रत्याशित मिठास से भरी हुई है. वह कभी-कभी अपने हाथों को अपने चेहरे तक ले जाती है, इस बात को जानते हुए कि उसके गाल सूखे हुए हैं.

 

मेलबॉक्स के पास से गुजरते हुए, जो पर्चों और टैक्स नोटिस से भरा हुआ है, वह चाबी को ग्राउंड-फ्लोर के सामने के दरवाजे के ताले में डालती है, उसे लिफ्ट की ठंडी चमक के बगल में एक भारी, स्थायी उपस्थिति दिखाई देती है.

फ्लैट बच्चे की निशानियों से भरा हुआ है, ऐसी चीजें जिन्हें उसने दूर रखने से इनकार कर दिया था, यह मानते हुए कि उसे वापस पाने के लिए एक और अदालती कार्यवाही पर्याप्त होगी. पुराने मखमली सोफे के बगल में कम ऊंचाई वाली किताबों की अलमारी में तस्वीरों वाली वो किताबें भरी पड़ी हैं, जिन्हें वे उसकी दो साल की उम्र से साथ-साथ पढ़ना शुरू कर चुके थे, जबकि कई लेगो ईंटों को जानवरों के स्टिकर से सजे नालीदार-कार्डबोर्ड के बक्सों में रखा गया था.

उसने कई साल पहले यह जगह इसलिए चुनी थी ताकि उसका बेटा ग्राउंड फ्लोर पर खुलकर खेल सके. लेकिन उसने अपने पैर पटकने या इधर-उधर भागने की कोई इच्छा नहीं दिखाई.

जब उसने उसे बताया कि लिविंग रूम में रस्सी कूदना ठीक है तो उसने पूछा, “लेकिन क्या इससे कीड़े और घोंघे शोर नहीं करेंगे?”

वह अपनी उम्र के हिसाब से बहुत छोटा था और नाजुक शरीर वाला भी. वह जो किताब पढ़ रहा होता था, उसमें कोई डरावना दृश्य दिख जाता तो उसका तापमान सौ डिग्री से ऊपर चला जाता था, और अगर उसे किसी बात की फिक्र होती तो उसे उल्टी या दस्त हो जाते थे. क्योंकि वह उसके पति का पहलौठी का बच्चा था और उसके पति का बाप भी पहलौठी का बच्चा था, क्योंकि वह अब इतना छोटा नहीं था, क्योंकि उसके पूर्व पति ने लगातार यह रुख अपनाए रखा था कि उसकी बीवी बहुत ज़्यादा जज़्बाती औरत है, जो बच्चे के लिए ठीक नहीं है. इसके सबूत के तौर पर उसने अपनी बीवी के लड़कपन में हुए उसके मनोवैज्ञानिक ट्रीटमेंट का रिकॉर्ड पेश किया कि पति के मुक़ाबले में उसकी आय के साधन बहुत सीमित और अस्थायी थे. उसका पति हाल ही में तरक़्क़ी के बाद बैंक के हेड ऑफ़िस में चला गया था. इसलिए वह सुनवाई अंततः एक व्यापक हार में बदल गई. चूंकि अब वह मामूली वेतन भी मिलने वाला नहीं था, इसलिए आगे कोई और मामला दर्ज करना असंभव था.

 

छह)

वह अपने जूते उतारे बिना ही सामने के दरवाजे के अंदर ऊंची सीढ़ी पर बैठ जाती है. वह अपना बैग बगल में रखती है, जिसमें मोटी ग्रीक पाठ्य पुस्तक और शब्दकोश, उसकी अभ्यास पुस्तिका और एक सपाट पेंसिल बॉक्स है. वह अपनी आँखें बंद रखती है और पीले सेंसर लाइट के बंद होने का इंतज़ार करती है. एक बार जब अंधेरा हो जाता है तो वह अपनी आँखें खोल लेती है. वह अंधेरे में नीचे झुके काले फर्नीचर, काले पर्दे और रहस्यमय शांति में डूबे काले बरामदे को देखती है.

वह बहुत आहिस्ता से अपने होंठ खोलती है, फिर उन्हें एक साथ भींचती है.

अब उसके दिल में तैयार ठंडे विस्फोटक का जलता हुआ फ्यूज नहीं है. उसके मुँह का अंदरूनी हिस्सा उतना ही खाली है जितना कि वे नसें जिनसे अब खून नहीं बहता, यह उतना ही खाली है जितना कि लिफ्ट का शाफ्ट जहाँ लिफ्ट काम करना बंद कर देती है.

वह हमेशा की तरह अपने गालों को अपने हाथ के पिछले हिस्से से पोंछती है.

काश उसने उस रास्ते का नक्शा बना लिया होता जिस पर उसके आँसू बहते थे.

काश, उसने सुई से उस रास्ते पर चुभन या खून के निशान बना दिए होते, जहाँ से शब्द बहते थे.

लेकिन, वह जीभ और गले से भी कहीं गहरी जगह से बुदबुदाती है, वह रास्ता बहुत भयानक था. 

_________

 

शहादत युवा कथाकार और अनुवादक है. उनके अभी तक दो काहनी संग्रह ‘आधे सफ़र का हमसफ़र’ और ‘कर्फ़्यू की रात’ प्रकाशित हो चुके हैं. उर्दू शायर ज़हीर देहलवी की आत्मकथा ‘दास्तान-ए-1857’, मकरंद परांजपे की किताब ‘गांधी मृत्यु और पुनरुत्थान’ और उर्दू अफ़सानानिगार हिजाब इम्तियाज़ अली के कहानीं संग्रह ‘सनोबर के साये’ का हिंदी अनुवाद प्रकाशित हो चुका है. इन अपने पहले उपन्यास ‘मुहल्ले का आख़िरी हिंदू’ पर काम कर रहे हैं.

संपर्क- 786shahadatkhan@Gmail.com

 

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Comments 5

  1. कुमार अरुण says:
    1 month ago

    अलग सा – किंतु इतना अलग कि जैसे पहली बार दिखा.. हालांकि समझने के सूत्र भी हैं, और छोटे छोटे खला भी हैं जहां अनुमान की गुंजाइश नहीं है .. एक ही अध्याय है यह – वह भी दूसरा .. न पहले से कुछ पता है .. बाद का तो खैर, जब घटेगा तब पता चलेगा – या क्या पता वह घट चुका हो, जिसका पता बाद में चलेगा ..
    हर बात कितनी सफाई से कही गयी है, और कितना संक्षिप्त .. क्या यह किताब छप चुकी है तर्जुमित होकर ? प्रतीक्षा रहेगी.

    Reply
  2. Anupam Ojha says:
    1 month ago

    पूरी किताब पढ़ने की इच्छा जगी और एक अध्याय का कसा हुआ अनुवाद पूरी किताब पढ़ने के अनुभव जैसा ही लगा। बहुत बढ़िया।

    Reply
  3. पवन करण says:
    1 month ago

    अच्छा अनुवाद है। लगता नहीं अनुवाद पढ़ा है। कुछ पंक्तियों के बाद ही कथानक की मुख्य पात्र पाठक का विश्वास हासिल कर लेती है।
    पवन करण

    Reply
  4. M P Haridev says:
    1 month ago

    अंततः पढ़ लिया है । शहादत साहब की अनुवाद की भाषा भावनाओं को समझने में समर्थ है । कहानी की विषयवस्तु रूह कँपाती है । कोई भी मुल्क क्यों न हो, स्त्री की ज़िंदगी मुश्किलों से भरी होती है । नोबेल पुरस्कार प्राप्त महिला ने भावनाओं को समझने के लिए महीन भाषा चुनी । यूँ अहसास होता है कि ख़ुद मिलता-जुलता जीवन जिया हो ।
    मनुष्य की ज़िंदगी में होने वाली सभी घटनाओं, समस्याओं और परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व किया है । शहादत महोदय से अपेक्षा थी कि वे उर्दू के लफ़्ज़ों के शुद्ध रूप लिखें । अंग्रेज़ी के शब्द लाउडस्पीकर लिखते समय लाऊड स्पीकर लिखा । एक जगह अहसास और कुछ जगहों पर एहसास । हल्का शब्द का अर्थ क्षेत्र है । वह कोई भी हो । जल्दी समझ आने वाला विधानसभा या लोकसभा चुनाव को हल्का कहते हैं । मुज़स्समे शब्द पढ़कर मज़ा आया । बहुत समय बाद पढ़ा । आज़ादी से पहले भी तब के पूर्वी पंजाब [अब भारतीय राज्य] में उर्दू पाठ्यक्रम में नहीं थी । समालोचन में पढ़ने के लिए मिलती है । श्री श्रीविलास सिंह सऊदी अरब, ईरान या यूएई के रचनाकारों के लेखन का अनुवाद करते हैं तब भी ।
    इस समीक्षा को पढ़ते समय महसूस हुआ कि दुनिया में ‘बहुत ज़्यादा अच्छा’ कहीं भी प्रयोग लाते हैं । पहले बोलते समय और परिणामतः लिखने में । एक शब्द का एक रूप चुनना चाहिए । एक पंक्ति में एक जगह क़तार लिखा और दूसरी जगह क़तार ।
    सबके बावजूद शहादत साहब [नाम का दूसरा हिस्सा जानने के लिए वापस जाना होगा और डर है कि टिप्पणी ग़ायब न हो जाए] का ख़ैरमक्दम करता हूँ । इस वाक्य में अनायास ग़ायब लिखा गया । आपने एक जगह गायब लिखा । मख़मल शुद्ध लिखा । सिखों का भजन है या आदि ग्रंथ में-आनंद भयो मेरी माय [माँ] सत्गुरु मैं पाया । सत्गुरु मैं पाया …मन भरियाँ वधाइयाँ ।

    Reply
  5. Hemant Deolekar says:
    1 month ago

    हान कांग का लेखन रुचिकर भी है और विचारोत्तेजक भी. पूरा उपन्यास पढ़ने की विकलता जागी. यह लेखन का ही प्रभाव है. अनुवाद भी बहुत तरल है, शहादत जी को बधाई.

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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