परायथार्थवाद (ट्रांसरियलिस्म)
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यह कोई विज्ञान कथा शैली नहीं है और यथार्थवाद भी नहीं वरन् इन दोनों के मध्य मंडराती हुई एक अस्थिर अवधारणा है. फ़िलिप के.डिक से लेकर स्टीफ़न किंगके दौरान पनपे परायथार्थवाद नामक इस महत्वपूर्ण प्रत्यय की विकास यात्रा पर निकले हैं डेमियन वाल्टर्स. यह उभरती हुई नवीन कथा शैली, साहित्य में पूर्वस्थापित यथार्थ की अवधारणा को समाप्त करने का लक्ष्य साध रही है.
परिसीमा अतिक्रमण
‘ए स्कैनर डार्कली’1 जिसे लिखा तो १९७३ में गया था लेकिन जो १९७७ में छप सका, फ़िलिप के. डिक का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास होने के साथ- साथ उनके सम्पूर्ण रचनाकार्य को वर्गीकृत करने वाला उपन्यास भी है. यह निश्चित तौर पर उनके लेखन कैरियर के पूर्वार्ध तक लिखे गए ‘द मैन इन द हाई कैसल’ और ‘डू एंड्राइड्स ड्रीम ऑफ़ इलेक्ट्रिक शीप?’ जैसे विज्ञान कथा श्रेणी के उपन्यासों और फिर इन्हें पीछे छोड़ने वाले उनके उत्तर रचनाकाल के लेखन जिसमें परायथार्थवादी उपन्यास ‘वैलिस’ और ‘द डिवाइन इनवेज़न’ भी शामिल हैं, के बीच एक विभाजक का काम करता है. ‘ए स्कैनर डार्कली’ दो कहानियों का सम्मिश्रण है – बाह्य रूप से यह एक विज्ञान कथा लगती है जबकि हकीक़त में यह फ़िलिप के. डिक द्वारा मानसिक क्षमता का नाश करने वाली नशीली दवाओं और नशे के व्यसनियों के बीच गुज़ारे गए समय की कठोर यथार्थवादी आत्मकथात्मक प्रस्तुति है.
लेखक, अलोचक और गणितज्ञ रूडी रकर ने 1983 में अपने निबंध ‘ए ट्रांसरियलिस्ट मेनीफेस्टो’२ में पहली बार इसे परायथार्थवादी साहित्यिक आन्दोलन नाम से नवाज़ा. आज तीन दशक बाद रकर का वह निबंध समकालीन साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पहले से भी अधिक प्रासंगिक है. फर्क इतना है कि जिन दिनों रकर लिख रहा था उन दिनों विज्ञान कथा साहित्य और मुख्य धारा साहित्य परस्पर भिन्न धाराएं थीं ऐसा आभास हो रहा है कि रकर ने २१वीं सदी के आरंभ में जिस आन्दोलन का आवाह्न किया था वह अंततः फलीभूत हो गया है.
परायथार्थवाद आधारभूत स्तर पर एक पूर्णतः यथार्थवादी उपन्यास लिखे जाने की पैरवी करता है. यह बनावटी रूपरेखा और आद्यप्रारूपीय पात्रों जैसी कृत्रिम संरचनाओं की बनिस्बत लेखक के खुद के अनुभवों से उठाई गयी घटनाओं और चरित्रों को तरज़ीह देता है. लेकिन फिर इसी यथार्थवादी ताने-बाने में वह एकदम अविश्वसनीय और अनूठे काल्पनिक विचारों को बुनता चलता है, जैसे उन्हें किसी काल्पनिक विज्ञानकथा, फंतासी और दहशतअंगेज़ रोचक कथा-किताब से उठाया गया हो. और वह परायथार्थवादी लेखक जो अभी एक अमरीकी हाई स्कूल के जीवन का विस्तृत और वास्तविक वर्णन कर रहा था अचानक अपने कथानक में अनजाने ग्रह की उड़न तश्तरी ले आता है और एक बहुत मामूली लगने वाला लड़का अतिमानवीय ताकतों से लैस हो जाता है, ताहम पूरा यथार्थवादी कथानक चकनाचूर हो जाता है.
कुछ काम ऐसे हैं जो रकर की मंशा के अनुरूप परयाथार्थवाद में खरे नहीं उतरते. बेहद लोकप्रिय विज्ञान कल्पना आधारित कहानियों जैसे ‘हैरी पॉटर’ या ‘द हंगर गेम्स’ में यथार्थ का चित्रण इतना कम है कि उनकी चर्चा परायथार्थवाद के सिद्धांतों के तहत नहीं की जा सकती. ‘स्पाई थ्रिलर्स’ जैसे उच्च तकनीकी आधारित उपकरण जो आभासी तौर पर सच्ची घटनाओं के वास्तविक आख्यान लगते हैं, वे भी अपनी कृत्रिम रूपरेखा और आद्यप्रारूपीय पात्रों के चलते वास्तविकता से बहुत दूर हैं. परायथार्थवाद एक विशिष्ट प्रयोजन के अंतर्गत कल्पना और वास्तविकता के विशिष्ट संयोजन पर लक्ष्य साधता है, जो समकालीन पाठकों के लिए बेहद प्रासंगिक सिद्ध हुआ है.
परायथार्थवादी लेखकों की संभावित सूची विवादास्पद और आकर्षक दोनों है. जैसे मार्गरेट ऐटवुड का ‘द हैण्डमेड्स टेल’ और उसके उपन्यास‘ओरिक्स’ तथा ‘क्रेक’ आदि. स्टीफन किंग अपनी रचनाशीलता का सर्वोत्तम दे रहे होते हैं जब वह कामगार अमरीकियों का चित्रण करते-करते उन्हें अतिमानवीय भयों से ग्रस्त कर ध्वस्त कर देते हैं. थॉमस पिंचन, डॉन डीलिलो और डेविड फ़ॉस्टर वालास आदि अन्य उल्लेखनीय नाम हैं. अमरीका के कुछ प्रबुद्ध लेखकों के बीच ‘द हैण्डमेड्स टेल’ तथा ‘ओरिक्स’ और ‘क्रेक’ जैसे उपन्यासों के लिए मशहूर मार्गरेट ऐटवुड, संभ्रांत अमरीकी जीवन के एक आक्रांता पराशक्ति द्वारा हो रहे विनाश का बेहतरीन वर्णन करने वाले स्टीफन किंग, थॉमस पिंचन, डॉन डीलिलो और डेविड फ़ॉस्टर वैलेस आदि उल्लेखनीय हैं. विज्ञान कथा शैली से जन्मे लेखकों में ‘ह्विट और ‘द ब्रिज’ उपन्यासों के लेखक इएन बैंक्स, जे जी बालार्ड और मार्टिन एमिस का नाम भी परयाथार्थवादी तकनीकी के प्रवर्तकों में अग्रणी है.समकालीन कथा साहित्य में चमत्कार तत्व के प्रसार को बहुधा ‘विज्ञान कथा का मुख्यधाराकरण’3 नाम भी दिया जाता है. लेकिन साइ फाइयानि विज्ञान कथाएँ हमेशा से उन पाठकों के लिए पलायनवादी कल्पनाओं की जन्मदात्री रही हैं जो जीवन की कठिन वास्तविकताओं से कुछ समय के लिए भागकर अपना मनोरंजन करना चाहते हैं. इसके अलावा बुकर पुरस्कारों से सम्मानित शुद्ध यथार्थवादी उपन्यासों की भी आज कमी नहीं है. साइ फाइ और यथार्थवाद दोनों ही दो अलग अलग तरह से अपने पाठकों को राहत प्रदान करते हैं- पहला, उन्हें जीवन की नीरस वास्तविकता से उबार कर और दूसरा उन्हें यह विश्वास दिला कर कि यथार्थ, जिस पर हम भरोसा करते हैं वह स्थिर, दृढ़ और अपरिवर्तनशील है. जबकि परायथार्थवाद का विचार ही असुविधाजनक है, यह हमें आभास कराता है कि न केवल हमारी वास्तविकता एक हद तक कृत्रिम है, बल्कि देखा जाये तो उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है और यह हमें इस असुखद अनुभूति से कभी मुक्त नहीं होने देता.
परायथार्थवाद एक क्रांतिकारी कला शैली है. यथार्थ की पूर्वस्थापित अवधारणा का मिथक सामूहिक विचार नियंत्रण का महत्वपूर्ण औजार रहा है. ‘सामान्य इन्सान’ की पूर्वनिर्धारित परिभाषा भी इसी मिथक से कदम से कदम मिला कर चलती है. रकर द्वारा परायथार्थवाद का एक क्रांतिकारी विचारधारा के रूप में निरूपण और भी अधिक सार्थक हो जाता है जब इसकी समीक्षा इसके सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों द्वारा किये गए विविध उपयोगों के आधार पर की जाती है. ऐटवुड, पिंचन, फ़ॉस्टर-वालास ने पारंपरिक सर्वमान्य यथार्थवाद के द्वारा परिभाषित, स्त्रियों के राजनैतिक उत्पीड़न से लेकर उपभोक्तावादवाद द्वारा जबरन थोपी गयी आध्यात्मिक मृत्यु जैसी घटनाओं की सामान्यता और असामान्यता को चुनौती देने के लिए परायथार्थवादी तकनीकों का उपयोग किया.
आज परायथार्थवाद समकालीन साहित्य लगभग सभी मौलिक और चुनौतीपूर्ण कार्यों को आधार प्रदान कर रहा है. जैसे ‘द इंट्यूशनिस्ट’ में कोलोज़न वाइटहेड्स द्वारा जातीयता को आधार प्रदान करने वाली व्यवस्था का प्रबुद्ध विश्लेषण और ज़ोम्बियों के सर्वनाश पर आधारित उपन्यास ‘ज़ोन वन’ में न्यूयॉर्क टाइम्स के ढब का परायथार्थवादी मोड़. मोनिका बर्न द्वारा वर्णित विकासशील देशों के भविष्य के पार तक की गयी मतिभ्रमकारी सड़क यात्रा और ‘द गर्ल इन द रोड’में गरीबी और तेज़ रफ़्तार तकनीकी परिवर्तनों के बीच फंसी स्त्रियों की ज़िन्दगी. मैट हेग का सशक्त युवतर उपन्यास, ’द ह्यूमन्स’, जो लोगों को आमंत्रित करता है कि वे मानव जीवन को परग्रहवासियों की दृष्टि से देखें . परायथार्थवाद का अपना ३० वर्ष पुराना इतिहास है लेकिन हम देखेंगे कि आने वाले ३० वर्षों में यह साहित्य की दिशा और दशा भी तय करेगा.
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3. http://www.tor.com/2012/01/18/what-is-genre-in-the-mainstream-why-should-you-care/ (What is Genre in the Mainstream? Why Should You Care?) – Ryan Britt
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अनुराधा सिंह |
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