गत ५जून को प्रसिद्ध अमेरिकी विज्ञान कथा लेखक रे ब्रेडबरी का निधन हो गया. उन्होंने सैकड़ों उपन्यास, कहानियों और नाटकों के साथ ही टेलीविजन और फिल्मों के लिए पटकथाएं भी लिखी थीं. १९५३ में प्रकाशित उनका उपन्यास फारेनहाईट 451 बहुत चर्चित हुआ था जिसपर फिल्म भी बनी. उनकी अन्य चर्चित कृतियाँ हैं – द मार्टियन क्रानिकल्स, दइलस्ट्रेटेड मैन, डेंडलियन वाइन, समथिंग विकेड दिस वे कम्स आदि. उन्होंने अपना समाधिलेख पहले से ही तय कर रखा था – \”फारेनहाईट का लेखक\”. उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए यहाँ उनकी एक कहानी प्रस्तुत है जो मूल रूप से Esquire के फरवरी १९५१ के अंक में प्रकाशित हुई थी.
मनोज पटेल
दुनिया की आखिरी रात : रे ब्रेडबरी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
\”यदि तुम्हेंयह पताचले कियह दुनियाकी आखिरीरात हैतो तुमक्या करोगी?\”
\”क्या करूंगीमैं, मतलबगंभीरता से?\”
\”हाँ, गंभीरतासे.\”
\”मुझे नहींपता — मैंनेसोचा नहीं.\” उसने चांदीके काफीपाटका हत्थाउसकी तरफघुमा दियाऔर दोकपों कोउनकी प्लेटोंपर रखा.
उसनेथोड़ी सीकाफी उड़ेली. पृष्ठभूमि मेंदो छोटीबच्चियां हरेझंझादीप कीरोशनी मेंबैठक कीकालीन परब्लाकों केसाथ खेलरही थीं. शाम केवातावरण मेंब्रू काफीकी हल्की, साफ़ सुगंधबसी हुईथी.
\”बेहतर हैकि इसकेबारे मेंसोचना शुरूकर दो.\” उसने कहा.
\”तुम्हारा यहमतलब नहींहोगा?\” उसकीपत्नी नेकहा.
उसनेसहमति मेंसर हिलाया.
\”कोई युद्ध?\”
उसकासर इन्कारमें हिला.
\”हाइड्रोजन याएटम बमतो नहीं?\”
\”नहीं.\”
\”या फिरकीटाणु युद्ध?\”
\”इनमें सेकोई बातनहीं है,\” अपनी काफीधीरे–धीरेफेंटते हुएऔर उसकीकाली गहराईयोंमें झांकतेहुए वहबोला. \”बल्कियूं कहोकि जैसेकोई किताबख़त्म होजाए.\”
\”मुझे नहींलगता किमैं समझपा रहीहूँ.\”
\”दरअसल मैंभी नहींसमझ पारहा. यहसिर्फ एकएहसास है; कभी–कभीयह मुझेडराता है, कभी–कभीमैं बिल्कुलनहीं डरताबल्कि शान्तिसे भरउठता हूँ.\” उसने लड़कियोंऔर तेजरोशनी मेंचमक रहेउनके पीलेबालों कीतरफ भीतरदेखा औरअपनी आवाजकम करलिया, \”मैंनेतुम्हें कुछबताया नहींथा. पहलीबार कोईचार रातपहले ऐसा हुआ था.\”
\”क्या?\”
\”मैंने एकसपना देखा. देखा किसब कुछख़त्म होनेजा रहाथा औरएक आवाज़ने कहाकि ऐसाथा; मुझेयाद नहींकि किसतरह कीआवाज़ मगरएक आवाज, कैसी भी, और उसनेकहा कियहाँ पृथ्वीपर चीजेंठहर जाएंगी. अगली सुबहजागने परमैंने उसपरज्यादा ध्याननहीं दिया, मगर फिरमैं कामपर गयाऔर वहएहसास पूरेदिन बनारहा. ऐनदोपहर मैंनेस्टैन विलिसको खिड़कीसे बाहरझांकते पायाऔर मैंनेकहा, \”तुम्हारेदिमाग मेंक्या चलरहा हैस्टैन?\” उसनेबताया, \”बीतीरात मैंनेएक सपनादेखा.\” औरइसके पहलेकि वहअपना सपनामुझे बतापाता, मैंजान गयाकि वहकौन सासपना था. मैं खुदही उसेबता सकताथा, मगरउसने मुझेबताया औरमैं उसकासपना सुनतारहा.\”
\”यह वहीसपना था?\”
\”हाँ. मैंनेस्टैन कोबताया किमैंने भीयही सपनादेखा था. वह हैरानहोता नहींलगा. दरअसलवह निश्चिन्तहो गया. फिर नजाने क्योंहमने दफ्तरोंके चक्करकाटना शुरूकर दिया. यह सबयोजनाबद्ध नहींथा. हमनेयह नहींकहा किचलो घूमतेहैं. हमनेबस अपनेआप सेटहलना शुरूकर दियाऔर हरजगह हमनेलोगों कोअपनी मेजों, अपने हाथोंया खिड़कीके बाहरनिहारते देखाऔर वेवह नहींदेख रहेथे जोउनकी आँखोंके सामनेथा. उनमेंसे कुछसे मैंनेबात भीकी; स्टैनने भीऐसा हीकिया.\”
\”और उनसबने सपनादेखा था?\”
\”उन सबने. वही सपना, बिना किसीफर्क के.\”
\”क्या तुमसपने परविश्वास करतेहो?\”
\”हाँ, इतनायकीन तोमुझे पहलेकभी नहींरहा.\”
\”और यहकब रुकेगी? मेरा मतलबयह दुनिया.\”
\”हमारे लिएरात केकिसी समय, और फिर, जैसे–जैसेरात पूरीदुनिया मेंफैलती जाएगीतो वेआते जानेवाले हिस्सेभी ख़त्महोते जाएंगे. पूरा ख़त्महोने मेंचौबीस घंटेलगेंगे.\”
कुछदेर तकवे बिनाअपनी काफीको छुएबैठे रहे. फिर उन्होंनेकाफी उठालिया औरएक–दूसरेकी तरफदेखते हुएउसे पीगए.
\”क्या हमइसी लायकहैं?\” पत्नीने पूछा.
\”इसमें लायकहोने जैसीकोई बातनहीं है, बस इतनाहै किचीजों नेकाम नहींकिया. मैंनेगौर कियाकि तुमनेइस बारेमें कोईबहस तकनहीं किया. ऐसा क्यों?\”
\”मुझे लगताहै किमेरे पासएक वजहहै.\” पत्नीने जवाबदिया.
\”वही वजहजो दफ्तरमें सबकेपास थी.\”
उसनेसहमति मेंसर हिलाया. \”मैं कुछकहना नहींचाहती थी. यह पिछलीरात हुआ. और ब्लाककी औरतें, आपस मेंही, इसबारे मेंबात कररही थीं.\” उसने शामका अखबारउठाकर उसकीतरफ घुमादिया. \”ख़बरोंमें इसबारे मेंकुछ नहींहै.\”
\”नहीं, सबलोग तोजानते हैंफिर जरूरतही क्याहै?\” उसनेअखबार लेलिया औरलड़कियों तथाउसकी तरफदेखते हुएवापस अपनीकुर्सी परबैठ गया. \”क्या तुम्हेंडर लगरहा है?\”
\”नहीं. बच्चोंके लिएभी नहीं. मुझे हमेशालगता थाकि मैंमौत सेडरूंगी, मगरमैं डरनहीं रही.\”
\”आत्म–संरक्षणकी वहभावना कहाँगई जिसकेबारे मेंवैज्ञानिक इतनीबातें करतेरहते हैं?\”
\”मुझे नहींपता. जबचीजें तर्कसम्मतहों तोआप बहुतउत्तेजित नहींहोते. यहतर्कसम्मत है. जिस तरीकेसे हमजिए उसतरीके सेतो इसकेअतिरिक्त कुछऔर नहींहो सकताथा.\”
\”हम इतनेबुरे तोनहीं रहे, है यानहीं?\”
\”नहीं, बहुतअच्छे भीनहीं रहे. मेरे ख्यालसे यहीसमस्या है. हम खुदके सिवायऔर कुछख़ास नहींरहे, जबकिदुनिया काबहुत बड़ाहिस्सा बहुतसी बिल्कुलखराब चीजेंहोने मेंजुटा हुआथा.\”
बैठकमें लड़कियोंने जबहाथ लहराकरब्लाकों सेबना अपनाघर गिरायातो वेहंस रहीथीं.
\”मैं हमेशासोचती थीकि ऐसेसमय मेंलोग सड़कोंपर शोरमचाएंगे.\”
\”मुझे नहींलगता. आपवास्तविक चीजके बारेमें शोरनहीं मचाते.\”
\”क्या तुमजानते हो, मैं तुम्हारेऔर लड़कियोंके सिवाकिसी चीजकी कमीनहीं महसूसकरूंगी. मुझेकभी शहर, गाड़ियां, कारखाने, अपना कामया तुमतीनों केसिवाय कोईऔर चीजपसंद नहींरही. मुझेअपने परिवारके अलावाऔर किसीचीज कीयाद नहींआएगी, औरशायद मौसमके बदलावया गर्ममौसम होनेपर एकगिलास ठन्डेपानी यासो जानेके आनंदकी भीयाद आए. बस छोटी–छोटी चीजें, सच में. हम कैसेयहाँ बैठकरइस तरहसे बातकर सकतेहैं?\”
\”क्योंकि औरकुछ करनेके लिएनहीं है.\”
\”हाँ, यहतो है, क्योंकि यदिकुछ होतातो हमउसे करतेहोते. मेरेख्याल सेदुनिया केइतिहास मेंयह पहलामौक़ा हैजबकि हरकिसी कोवास्तव मेंयह पताहै किवे आखिरीरात केदौरान क्याकरने जारहे हैं.\”
\”पतानहीं लोग अब क्या करेंगे, आज की शाम, अगले कुछ घंटों तक.\”
\”कोईकार्यक्रम देखने चले जाएंगे, रेडियो सुनेंगे, टीवी देखेंगे, ताश खेलेंगे, बच्चों को सुला देंगे, खुद भी सोने चले जाएंगे, हमेशा की तरह.\”
\”एकतरह से यह भी कोई गर्व करने की चीज है — हमेशा की तरह.\”
\”हमबिल्कुल बुरे भी नहीं हैं.\”
वे कुछ पल बैठे रहे फिर उसने थोड़ी और काफी उड़ेली. \”तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि यह आज ही की रात होगा?\”
\”क्योंकि.\”
\”पिछले दस सालों की किसी रात में क्यों नहीं, या पिछली सदी में क्यों नहीं, या पांच सदियों या दस सदियों पहले क्यों नहीं?\”
\”शायद इसलिए क्योंकि पहले कभी ३० फरवरी १९५१ नहीं आई, इतिहास में पहले कभी नहीं, और अब आई है तो यही वजह है, क्योंकि इस तारीख का मतलब आज तक की किसी और तारीख के मतलब से कहीं ज्यादा है और क्योंकि यही वह साल है जब चीजें वैसी हैं जैसी कि वे पूरी दुनिया में हैं और इसीलिए यह समाप्ति है.\”
\”आज की रात समुद्र के दोनों ओर से बमवर्षक अपनी उड़ान पर हैं जो दुबारा जमीन नहीं देख पाएंगे.\”
\”वह भी कारण का एक हिस्सा है.\”
\”ठीक है,\” वह बोला. \”क्या होगा? बर्तन साफ़ किए जाएं?\”
उन्होंने सावधानी से बर्तन धोए और विशेष स्वच्छता के साथ उन्हें करीने से लगा दिया. साढ़े आठ बजे शुभ रात्रि बोलकर लड़कियों को बिस्तर पर लिटा दिया गया और बिस्तर के पास की छोटी बत्तियां जला कर दरवाजे को थोड़ा सा खुला छोड़ दिया गया.
\”मैं सोच रहा हूँ,\” बाहर आते समय पति ने पीछे मुड़कर देखते हुए कहा. अपना पाइप लिए हुए वह एक पल के लिए खड़ा हो गया.
\”क्या?\”
\”कि दरवाजे को पूरा बंद कर दिया जाए या थोड़ा सा खुला छोड़ दिया जाए ताकि यदि वे पुकारें तो हम सुन सकें.\”
\”पता नहीं बच्चे जानते हैं या नहीं — किसी ने उनसे कुछ बताया होगा या नहीं?\”
\”नहीं, बिल्कुल नहीं. उन्होंने इस बारे में हमसे पूछा होता.\”
उन्होंने बैठकर अखबार पढ़ा, बातें किया और रेडियो पर कुछ संगीत सुना. फिर साथ-साथ आतिशदान के पास बैठकर कोयले के अंगारों को देखते रहे जबकि घड़ी साढ़े दस, ग्यारह और साढ़े ग्यारह बजाती गई. उन्होंने दुनिया के बाक़ी सारे लोगों के बारे में सोचा जिन्होनें अपने-अपने ख़ास तरीके से अपनी शाम बिताई होगी.
\”अच्छा,\” आखिरकार वह बोला. वह बहुत देर तक अपनी पत्नी को चूमता रहा.
\”चाहे जैसे, हम एक-दूसरे के लिए अच्छे रहे.\”
\”क्या तुम रोना चाहती हो?\” उसने पूछा.
\”मैं ऐसा नहीं सोच रही.\”
पूरे घर में घूमकर उन्होंने बत्तियां और दरवाजे बंद किए और शयनकक्ष में जाकर रात के ठन्डे अँधेरे में कपड़े उतारने लगे. उसने बिस्तर के ऊपर की सजावटी चादर को उठा लिया और हमेशा की तरह उसे सावधानी से एक कुर्सी पर तह किया. पलंगपोश को हटाकर वह बोली, \”चादरें कितनी ठंडी, साफ़ और अच्छी हैं.\”
\”मैं थका हुआ हूँ.\”
\”हम दोनों ही थके हुए हैं.\”
वे बिस्तर में घुसे और लेट गए.
\”एक मिनट रुकना,\” वह बोली.
उसने उसे उठकर घर के पीछे की तरफ जाते सुना. फिर उसे एक घूमने वाले दरवाजे की मद्धिम आवाज सुनाई पड़ी. एक क्षण के बाद वह वापस आ गई. \”रसोई में मैं पानी खुला छोड़ आई थी,\” वह बोली. \”मैंने टोंटी बंद कर दी.\”
इसमें कुछ ऐसा हास्यप्रद था कि उसे हंसना पड़ा.
उसके साथ वह भी हँसी, यह समझते हुए कि उसने ऐसा क्या किया था जो इतना हास्यप्रद था. अंततः उन्होंने हंसना बंद किया और रात के अपने ठन्डे बिस्तर में लेटे रहे. उनके सर मिले हुए थे और उन्होंने एक-दूसरे के हाथों को कसकर पकड़ा हुआ था.
एक पल के बाद उसने कहा, \”शुभ रात्रि\”.
\”शुभ रात्रि,\” वह बोली, और बहुत आहिस्ता से कहा, \”प्रिय…\”
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मनोज पटेल : प्रसिद्ध अनुवादक एवं ब्लॉगर (पढ़ते-पढ़ते )
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