ख़लील : तनुज सोलंकी
विश्वयुद्धों से कुछ सीखा नहीं गया. शताब्दी बीतते न बीतते, हम वहीं लौट आए हैं जहाँ से चले थे. युद्ध, धार्मिक अतिवाद, अनुदार और अलोकतांत्रिक व्यवस्था, लूट और झूठ की...
विश्वयुद्धों से कुछ सीखा नहीं गया. शताब्दी बीतते न बीतते, हम वहीं लौट आए हैं जहाँ से चले थे. युद्ध, धार्मिक अतिवाद, अनुदार और अलोकतांत्रिक व्यवस्था, लूट और झूठ की...
इंगलिस्तान और हिंदुस्तान का युद्ध अभी चल ही रहा है. इसे अलग-अलग अलग मोर्चों पर युवा लड़ रहे हैं. एक अहम मोर्चा अकादमिया है. कहानी एक युवा के इलाहाबाद विश्वविद्यालय...
राहुल श्रीवास्तव फ़ीचर और विज्ञापन फ़िल्मों से जुड़े हैं. ‘साहेब, बीबी और गैंगस्टर’ के संपादन के लिए सम्मानित हो चुके हैं. 2024 में प्रकाशित ‘पुई’ उनका पहला कहानी संग्रह है....
कुछ कथाकार एक समय के बाद खुद कथानक बन जाते हैं. 72 वर्षीय प्रियंवद ऐसे ही लेखक हैं. उनके परिचित उनके विषय में एक अपरिचित कथा हर बार सुनाते जरूर...
रील आज महामारी की तरह है. जो संक्रमित हैं उनमें से अधिकतर इसके वाहक बन जाते हैं और यह बढ़ता जाता है. ये अधिकतर भ्रष्ट, अविवेकी और कुरुचिपूर्ण सामग्रियों से...
पुत्री का प्रेमी जैसे विषयों पर कहानी लिखने की अपनी चुनौतियाँ हैं. वरिष्ठ कथाकार ओमा शर्मा इसे स्वीकार करते हुए नगरीय युवाओं के बीच घटित हो रहे लगाव-अलगाव की इस...
युवा कथाकार आयशा आरफ़ीन की कहानियाँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं. उड़िया से हिंदी में अनुवाद करती हैं. अंग्रेजी के महत्वपूर्ण उपन्यासों पर भी लिखा है. समाजशास्त्र की अध्येता है....
यह कहानी आपको छूती है, आपके मन के चोर दरवाज़े पर दस्तक देती है. जिससे आप छुपते रहते हैं, नज़र-अंदाज़ कर देते हैं वही सामने आ खड़ा होता है. इसकी...
शिल्पा कांबले मराठी कथा-साहित्य की सुपरिचित लेखिका हैं. एक युवा लड़की और उसकी बिल्लियों की यह कथा महानगरीय संत्रास के बीच उनके होने को सरस ढंग से प्रस्तुत करती है....
अम्बर पाण्डेय अपनी कविताओं के लिए प्रशंसित और पुरस्कृत हैं. हालाँकि अभी उनका कोई कहानी-संग्रह नहीं आया है पर संग्रह लायक उनके पास कहानियाँ भी हैं. समालोचन पर ही पिछले...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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