व्हाट्सएप इतिहास : कारण और निदान : सौरव कुमार राय
इतिहास-लेखन कितना संवेदनशील और राजनीतिक है, यह कहने की आवश्यकता नहीं है. रसूल हमज़ातोव (मेरा दाग़िस्तान) ने ठीक ही लिखा था कि ‘अगर तुम अतीत पर पिस्तौल से गोली चलाओगे,...
इतिहास-लेखन कितना संवेदनशील और राजनीतिक है, यह कहने की आवश्यकता नहीं है. रसूल हमज़ातोव (मेरा दाग़िस्तान) ने ठीक ही लिखा था कि ‘अगर तुम अतीत पर पिस्तौल से गोली चलाओगे,...
लेखन ही नहीं लेखक का सामाजिक व्यक्तित्व भी वाद-विवाद के विषय रहे हैं. हिंदी साहित्य का मुख्य स्वर अभी भी वैचारिक प्रतिबद्धता का है. इधर अधिकतर ‘साहित्यिक’ आयोजन पूँजी द्वारा...
साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित एलिस मुनरो का लेखन इधर विवाद में आ गया है. उनकी बेटी ने यह आरोप लगाया है कि सौतले पिता ने जब वह...
चौरासी वर्षीय चन्द्रकिशोर जायसवाल हिंदी कथा साहित्य में केन्द्रीय हैसियत रखते हुए भी बहुत कम दिखते हैं. उनपर लिखने से न जाने क्यों बचा जाता रहा है. जबकि उनके ग्यारह...
पंक्तियाँ भी कविता से कटकर, सन्दर्भ च्युत होकर कहीं की नहीं रहतीं. वरिष्ठ कवयित्री अनामिका की कविता ‘बेजगह’ कुछ इसी कारण से इधर चर्चा में रही. कविता लिखने का व्याकरण...
हमारे जीवन में तकनीक अब नियंता की भूमिका में है. वह हमारा भविष्य निर्धारित कर रही है. कृत्रिम मेधा और रोबॉट के बिना अब इस संसार की कल्पना करना जहाँ...
हिंदी में लेखक और प्रकाशक के बीच जिस वस्तु की सबसे अधिक उपेक्षा होती है वह है लेखक की बिकी किताबों की रायल्टी. सिर्फ़ पुस्तकों के प्रकाशन से मिली रायल्टी...
पाँच साल पहले आज ही के दिन एमएम कलाबुर्गी की हत्या के विरोध में उदय प्रकाश ने साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाया था और तब यह एक आंदोलन में बदल गया....
\'देखियो ग़ालिब से उलझे न कोई, है वली पोशीदा और काफ़िर खुला.\'मिथिलेश श्रीवास्तव के कविता संग्रह ‘पुतले पर गुस्सा’ के उमेश चौहान द्वारा लिखित ब्लर्ब पर विष्णु खरे की टिप्पणी पर...
लोग थर्रा गए जिस वक़्त मुनादी आयीआज पैग़ाम नया ज़िल्ले इलाही देंगे.परवीन शाकिर का यह शेर इधर मुझे बार – बार याद आता है, ख़ासकर जब विष्णु खरे कुछ कहते...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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