बहसतलब

बेजगह की विडम्बना: अच्युतानंद मिश्र

बेजगह की विडम्बना: अच्युतानंद मिश्र

पंक्तियाँ भी कविता से कटकर, सन्दर्भ च्युत होकर कहीं की नहीं रहतीं. वरिष्ठ कवयित्री अनामिका की कविता ‘बेजगह’ कुछ इसी कारण से इधर चर्चा में रही. कविता लिखने का व्याकरण...

लेखक का बल: गगन गिल

लेखक का बल: गगन गिल

हिंदी में लेखक और प्रकाशक के बीच जिस वस्तु की सबसे अधिक उपेक्षा होती है वह है लेखक की बिकी किताबों की रायल्टी. सिर्फ़ पुस्तकों के प्रकाशन से मिली रायल्टी...

परिप्रेक्ष्य : विष्णु खरे (२)

\'देखियो ग़ालिब से उलझे न कोई, है वली पोशीदा और काफ़िर खुला.\'मिथिलेश श्रीवास्तव के कविता संग्रह ‘पुतले पर गुस्सा’ के उमेश चौहान द्वारा लिखित ब्लर्ब पर विष्णु खरे की टिप्पणी पर...

परिप्रेक्ष्य : विष्णु खरे

लोग थर्रा गए जिस वक़्त मुनादी आयीआज पैग़ाम नया ज़िल्ले इलाही देंगे.परवीन शाकिर का यह शेर इधर मुझे बार – बार याद आता है, ख़ासकर जब  विष्णु खरे कुछ कहते...

शिल्प की कैद से बाहर : अशोक कुमार पाण्डेय

शिल्प की कैद से बाहर : अशोक कुमार पाण्डेय

पुरुषोत्तम अग्रवाल की कहानी  'नाकोहस'  पर राकेश बिहारी का आलेख- 'कहानी कहने की दुविधा और मजबूरी के बीच' आपने पढ़ा. अपने आलोचनात्मक आलेख 'शिल्प की कैद से  बाहर' के माध्यम से  इस कहानी पर...

बहसतलब : २ : कविता और समाज : गिरिराज किराडू

साहित्य के भविष्य पर आयोजित बहसतलब -२ की अगली कड़ी में कवि - संपादक गिरिराज किराडू का आलेख. कविता की पहुंच और उसकी लोकप्रियता पर गिरिराज ने कुछ दिलचस्प आकड़े एकत्र किए...

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