आलोचना

आलोचना की वैचारिकी: रोहिणी अग्रवाल

आलोचना की वैचारिकी: रोहिणी अग्रवाल

डिजिटल माध्यम की पत्रिका के रूप में पिछले डेढ़ दशकों के अपने नियमित प्रकाशन से समालोचन ने कई मान्य अवधारणाओं को बदल दिया है जिनमें से एक यह है कि...

थेरीगाथा : रोहिणी अग्रवाल

थेरीगाथा : रोहिणी अग्रवाल

विशिष्ट, विस्तृत और विचारोत्तेजक. थेरीगाथा को स्त्री-दृष्टि से विवेचित करते हुए रोहिणी अग्रवाल स्त्री-भाषा समेत उसके अनेक आयामों को गहराई से देखती हैं. भारतीय स्त्रियों की इस चेतना की परम्परा...

शिक्षक प्रेमचन्द: निरंजन सहाय

शिक्षक प्रेमचन्द: निरंजन सहाय

प्रेमचन्द शिक्षक भी थे, इसकी चर्चा कम होती है. उनका लेखन औपनिवेशिक शिक्षा-जगत की दुश्वारियों के प्रति संवेदनशील है. यह भी दिलचस्प है कि पेशे से ‘मुंशी’ न होते हुए...

परसाई को पढ़ना क्यों जरूरी है: रविभूषण

परसाई को पढ़ना क्यों जरूरी है: रविभूषण

आज़ाद भारत की दशा-दिशा को बारीकी से समझने वाले हरिशंकर परसाई (22 अगस्त, 1924-10 अगस्त,1995) के जन्मशती वर्ष की शुरुआत आज से हो रही है. साहित्य की व्यंग्य विधा को...

कीर्तिलता :  कमलानंद झा

कीर्तिलता : कमलानंद झा

मध्यकाल के कवि विद्यापति की ‘कीर्तिलता’ का साहित्यिक महत्व तो है ही इतिहास-अध्ययन में भी उसका ऊँचा स्थान है. एक हिन्दू राजा अपने राज्य को एक मुस्लिम शासक से मुक्त...

कफ़न: पुनरवलोकन: रविभूषण

कफ़न: पुनरवलोकन: रविभूषण

1935 में मूल रूप में उर्दू में लिखी गयी प्रेमचंद की कहानी ‘कफ़न’ हिंदी में ‘चाँद’ पत्रिका के अप्रैल, १९३६ अंक में प्रकाशित हुई थी. यह हिंदी ही नहीं संभवत:...

अभिनवगुप्त और जयशंकर प्रसाद: राधावल्लभ त्रिपाठी

अभिनवगुप्त और जयशंकर प्रसाद: राधावल्लभ त्रिपाठी

कवि, कथाकार और नाटककार जयशंकर प्रसाद (1890-1937) आधुनिक हिंदी साहित्य के कालजयी लेखक हैं, वह गहरे चिंतक भी हैं, इसकी अभी यथोचित व्याख्या नहीं हुई है. संस्कृत साहित्य से उनकी...

मंगलेश डबराल का काव्य-संसार: संतोष अर्श

मंगलेश डबराल का काव्य-संसार: संतोष अर्श

युवा आलोचक संतोष अर्श समकालीन हिंदी कविता पर तैयारी के साथ लगातार लिख रहें हैं. महत्वपूर्ण कवि मंगलेश डबराल पर यह आलेख मंगलेश के सम्पूर्ण कवि-कर्म पर मेहनत के साथ...

नवजागरण और ‘स्त्री दर्पण’ की नवचेतना: अल्पना मिश्र

नवजागरण और ‘स्त्री दर्पण’ की नवचेतना: अल्पना मिश्र

औपनिवेशिक भारत में स्वाधीनता और सुधार के हिंदी-क्षेत्र की गतिविधियों में स्त्रियों के लिए किसी पत्रिका का प्रकाशन क्रांतिकारी घटना है. भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1874 में ‘बालाबोधिनी’ पत्रिका का प्रकाशन...

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