आलोचना

विजयदेव नारायण साही की आलोचना दृष्टि : अरविंद त्रिपाठी

विजयदेव नारायण साही की आलोचना दृष्टि : अरविंद त्रिपाठी

विजयदेव नारायण साही की आलोचनात्मक मेधा को स्वीकार करते हुए भी आलोचक के रूप में उनके अवदान और महत्व पर पर्याप्त लिखा नहीं गया है. जायसी पर उनका कार्य तो...

पुरस्कार: राष्ट्रप्रेम, भूमि अधिग्रहण और प्रतिरोध : रोहिणी अग्रवाल

पुरस्कार: राष्ट्रप्रेम, भूमि अधिग्रहण और प्रतिरोध : रोहिणी अग्रवाल

‘पुरस्कार’ को प्रेम और राष्ट्र-प्रेम के द्वंद्व की कहानी के रूप में देखा जाता रहा है. इसके प्रकाशन के शतवर्ष पूरे होने को ही हैं. वरिष्ठ आलोचक रोहिणी अग्रवाल ने...

सूरजमुखी अँधेरे के : योगेश प्रताप शेखर

सूरजमुखी अँधेरे के : योगेश प्रताप शेखर

यह आलेख कृष्णा सोबती के प्रसिद्ध उपन्यास ‘सूरजमुखी अँधेरे के’ की चर्चा करते हुए उसके कुछ अज्ञात आयामों की ओर हमारा ध्यान खींचता है. युवा आलोचकों में योगेश प्रताप शेखर...

आलोचना की वैचारिकी: रोहिणी अग्रवाल

आलोचना की वैचारिकी: रोहिणी अग्रवाल

डिजिटल माध्यम की पत्रिका के रूप में पिछले डेढ़ दशकों के अपने नियमित प्रकाशन से समालोचन ने कई मान्य अवधारणाओं को बदल दिया है जिनमें से एक यह है कि...

थेरीगाथा : रोहिणी अग्रवाल

थेरीगाथा : रोहिणी अग्रवाल

विशिष्ट, विस्तृत और विचारोत्तेजक. थेरीगाथा को स्त्री-दृष्टि से विवेचित करते हुए रोहिणी अग्रवाल स्त्री-भाषा समेत उसके अनेक आयामों को गहराई से देखती हैं. भारतीय स्त्रियों की इस चेतना की परम्परा...

शिक्षक प्रेमचन्द: निरंजन सहाय

शिक्षक प्रेमचन्द: निरंजन सहाय

प्रेमचन्द शिक्षक भी थे, इसकी चर्चा कम होती है. उनका लेखन औपनिवेशिक शिक्षा-जगत की दुश्वारियों के प्रति संवेदनशील है. यह भी दिलचस्प है कि पेशे से ‘मुंशी’ न होते हुए...

परसाई को पढ़ना क्यों जरूरी है: रविभूषण

परसाई को पढ़ना क्यों जरूरी है: रविभूषण

आज़ाद भारत की दशा-दिशा को बारीकी से समझने वाले हरिशंकर परसाई (22 अगस्त, 1924-10 अगस्त,1995) के जन्मशती वर्ष की शुरुआत आज से हो रही है. साहित्य की व्यंग्य विधा को...

कीर्तिलता :  कमलानंद झा

कीर्तिलता : कमलानंद झा

मध्यकाल के कवि विद्यापति की ‘कीर्तिलता’ का साहित्यिक महत्व तो है ही इतिहास-अध्ययन में भी उसका ऊँचा स्थान है. एक हिन्दू राजा अपने राज्य को एक मुस्लिम शासक से मुक्त...

कफ़न: पुनरवलोकन: रविभूषण

कफ़न: पुनरवलोकन: रविभूषण

1935 में मूल रूप में उर्दू में लिखी गयी प्रेमचंद की कहानी ‘कफ़न’ हिंदी में ‘चाँद’ पत्रिका के अप्रैल, १९३६ अंक में प्रकाशित हुई थी. यह हिंदी ही नहीं संभवत:...

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