छापा कलाकार श्याम शर्मा से के. मंजरी श्रीवास्तव की बातचीत
मशहूर छापा कलाकार पद्मश्री श्याम शर्मा से (जन्म: 8 फरवरी 1941) के. मंजरी श्रीवास्तव की यह बातचीत छापा कला (प्रिंट मेकिंग) के आयामों पर प्रकाश डालती हुई श्याम शर्मा की...
मशहूर छापा कलाकार पद्मश्री श्याम शर्मा से (जन्म: 8 फरवरी 1941) के. मंजरी श्रीवास्तव की यह बातचीत छापा कला (प्रिंट मेकिंग) के आयामों पर प्रकाश डालती हुई श्याम शर्मा की...
शिल्पकार शम्पा शाह का लोक और आदिवासी कलाओं पर आधारित लेखन भी महत्वपूर्ण हैं. काँगड़ा चित्र-शैली की विशेषताओं पर यह लेख बारीकी से उसकी विशेषताओं को उद्घाटित करता...
अखिलेश द्वारा लिखी यह श्रृंखला ‘रज़ा जैसे मैंने देखा’ इस कड़ी के साथ अब यहाँ सम्पूर्ण हुई, समालोचन में यह पिछले छह महीने से माह के पहले और तीसरे शनिवार...
चित्रकार और लेखक अखिलेश द्वारा लिखित विश्व प्रसिद्ध चित्रकार सैयद हैदर रज़ा के जीवन और चित्रकारी पर आधारित स्तम्भ, ‘रज़ा जैसा मैंने देखा’ की यह ग्यारहवीं क़िस्त है. हमेशा की...
भूरीबाई को इस वर्ष के पद्मश्री सम्मान दिए जाने की घोषणा के साथ ही उन्हें लेकर जिज्ञासा प्रकट की जाने लगी कि वे कौन हैं और उनका कार्यक्षेत्र क्या है...
सैयद हैदर रज़ा की कला और शख़्सियत पर आधारित अखिलेश का यह स्तम्भ ‘रज़ा: जैसा मैंने देखा’ धीरे-धीरे अपनी सम्पूर्णता की तरफ बढ़ रहा है. किसी मूर्धन्य चित्रकार को समझने...
पेंटिंग देखकर कवियों ने कविताएँ लिखीं हैं, कविताएँ पढ़कर भी चित्र बनाये जाते हैं. कभी-कभी दोनों साथ-साथ भी रहते हैं. पतंगे वैसे तो उड़ती रहती हैं पर मकर संक्रांति के...
प्रसिद्ध चित्रकार सैयद हैदर रज़ा के जीवन और उनकी चित्रकला पर आधारित स्तम्भ ‘रजा: जैसा मैंने देखा’ पिछले कई महीनों से आप माह के पहले और तीसरे शनिवार को समालोचन पर...
अंतहीन पन्नों की कॉपी के किसी कोरे पन्ने पर यह जो आज तिथि अंकित की गयी है, उसे नव वर्ष का आरम्भ कह सकते हैं. यह वर्ष धरती पर सभी...
कलाओं के आपसी रिश्ते घनिष्ठ रहें हैं. संगीत से कविता का नाता आदि से अबतक अनवरत है. चित्र से कविता की यारी भी पुरानी है, भारतीय चित्रकला में इसकी पुष्ट...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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