फ़िल्म

अंतरिक्ष भर बेचैनी: कुमार अम्बुज

अंतरिक्ष भर बेचैनी: कुमार अम्बुज

20वीं सदी के महान साहित्यकारों में से एक फरनांदो पेसोआ (13 जून, 1888 – 10 नवम्बर, 1935) ने अपने जीवन में सत्तर से अधिक छद्म नामों (हेटेरोनिम्स) से लेखन किया....

ऋत्विक घटक का जीवन और उनका फिल्म-संसार : रविभूषण

ऋत्विक घटक का जीवन और उनका फिल्म-संसार : रविभूषण

ऋत्विक घटक (1925–1976) की जन्मशती के अवसर पर उनके जीवन और फिल्मों पर आधारित यह विशेष आलेख प्रस्तुत किया जा रहा है. वरिष्ठ आलोचक रविभूषण ने उनकी फ़िल्मों की विशिष्टता...

स्मृतियों की स्मृतियाँ : कुमार अम्‍बुज

स्मृतियों की स्मृतियाँ : कुमार अम्‍बुज

20वीं शताब्दी के महानतम लेखकों में से एक मार्सेल प्रूस्‍त अपने अंतिम वर्षों की रुग्णता के एकांत में केवल काग़ज़ पर लिखने की आवाज़ भर सुनना चाहते थे. स्मृतियों का...

पेद्रो पारामो : क़ब्रों का करुण-कोरस : रवीन्द्र व्यास

पेद्रो पारामो : क़ब्रों का करुण-कोरस : रवीन्द्र व्यास

स्पेनिश भाषा में 1955 में प्रकाशित युआन रूल्फ़ो के उपन्यास पेद्रो पारामो का ठंडा स्वागत हुआ. कुछ कृतियाँ अपने होने को साबित करने में वक्त लेती हैं. इसके महत्व का...

सौ साल के राजकपूर : आशुतोष दुबे

सौ साल के राजकपूर : आशुतोष दुबे

राजकपूर ने हिंदी सिनेमा की मजबूत नींव रखी. उनकी फिल्में उन इमारतों की तरह हैं जिनसे आज़ादी की उम्मीद का सूर्योदय और भविष्य के सपनों की चमकीली रातें दिखती थीं....

ऑल वी इमैजिन एज़ लाइट : सुकून और आश्वस्ति की तलाश : सुदीप सोहनी

ऑल वी इमैजिन एज़ लाइट : सुकून और आश्वस्ति की तलाश : सुदीप सोहनी

पायल कपाड़िया की फ़िल्म ‘ऑल वी इमेजिन ऐज़ लाइट’ दुनिया भर में सराही जाने के बाद भारत के सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो गई है. यह सपने की तरह है और...

मोहन अगाशे से अरविंद दास की बातचीत

मोहन अगाशे से अरविंद दास की बातचीत

प्रसिद्ध अभिनेता और रंगकर्मी मोहन अगाशे मनोचिकित्सक भी हैं. हिंदी की मुख्यधारा की फिल्मों में भी उन्होंने काम किया है. उनसे अरविंद दास ने यह बातचीत की है. प्रस्तुत है.

विश्व सिनेमा से कुमार अम्बुज

विश्व सिनेमा से कुमार अम्बुज

विश्व सिनेमा से कुमार अम्बुज’ की इस कड़ी में ‘It Must Be Heaven’, ‘Many Beautiful Things’, ‘Coda’, और ‘Christ Stopped at Eboli’ जैसी प्रसिद्ध फ़िल्मों के समानांतर यह वृतांत रचा...

सारा आकाशः कथा-पटकथा: शीतांशु

सारा आकाशः कथा-पटकथा: शीतांशु

अक्सर जब किसी चर्चित औपन्यासिक कृति पर फ़िल्म बनती है, पाठकों को निराशा होती है. उपन्यास के पाठ और फ़िल्म की प्रस्तुति में इतना अंतर क्यों हो जाता है? क्या...

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