कोश्का: अरुण खोपकर : अनुवाद: रेखा देशपाण्डे
‘बिल्लियाँ होती हैं अच्छी हर कहीं /ये तमाशा सा है बिल्ली तो नहीं’ (मीर). फ़ारसी, तुर्की, अरबी आदि भाषाओं में बिल्लियों पर लिखने की पुरानी रवायत है. मीर (1723-1810) ने...
‘बिल्लियाँ होती हैं अच्छी हर कहीं /ये तमाशा सा है बिल्ली तो नहीं’ (मीर). फ़ारसी, तुर्की, अरबी आदि भाषाओं में बिल्लियों पर लिखने की पुरानी रवायत है. मीर (1723-1810) ने...
प्रियंवद प्रसंग में ओमा शर्मा का यह संस्मरण भी प्रस्तुत है. व्यक्ति, कथाकार, संपादक और साहित्य के कार्यकर्ता के रूप में प्रियंवद की छवियाँ इसमें उभरती हैं. इन छवियों के...
तेजी ग्रोवर हमारे समय की विरल और विशिष्ट रचनाकार हैं. जहाँ उन्होंने नॉर्वीजी, स्वीडी, फ़्रांसीसी, लात्वी आदि भाषाओं के साहित्य का हिंदी में अनुवाद किया है, वहीं उनकी कृतियाँ स्वीडी,...
इस ‘साथ-साथ’ में दिल्ली का करोल बाग है. घर-परिवार, दोस्त और मुलाक़ातें हैं. भीष्म साहनी की शोर करती मोटर साइकिल है. जिन्हें आज हम महत्वपूर्ण लेखक कहते हैं उनके अंखुवाने...
दस खंडों में विभक्त सौमित्र मोहन की लम्बी कविता ‘लुकमान अली’ ‘कृतिपरिचय’ पत्रिका में 1968 में प्रकाशित हुई थी. इस कविता के प्रकाशन का प्रभाव यह हुआ कि बांदा से...
ज्ञान चंद बागड़ी ऐसे लेखक हैं जो जिस पर लिखते हैं उसके बीच रहकर पहले उन्हें जीते हैं. गरासिया जनजाति पर उनका यह कथेतर इसी तरह का है. विस्तार से...
सोन चिरैया लगभग लुप्त होने को है. उसे बचाने की कोशिशें हो रहीं हैं. कथाकार और ‘जंगलकथा’ के सूत्रधार कबीर संजय इस पक्षी के पीछे-पीछे दूर-दूर तक भटकते रहे. इस...
विदेशों में भी हिंदी पठन-पाठन की एक छोटी सी दुनिया है. लेखिका और अनुवादक रेखा सेठी अमेरीका के ड्यूक यूनिवर्सिटी में कुछ दिनों के लिए थीं. यह संस्मरण उस दुनिया...
वरिष्ठ कथाकार अशोक अग्रवाल लम्बी बीमारी के बाद स्वस्थ हुए हैं, इसका प्रमाण यह आत्मीय, दिलचस्प संस्मरण है. निर्मल वर्मा की स्मृतियाँ उनकी कथाओं की तरह ही गहरी होती हैं....
राजेश सक्सेना के पास संवाद और स्वाद के रसिक चन्द्रकान्त देवताले (7 नवम्बर,1936-14 अगस्त, 2013) की विनोदप्रियता और प्रगल्भता के कुछ रोचक संस्मरण हैं जिनमें से कुछ यहाँ अंकित हुए...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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