चीन के राष्ट्रगुरु और भारत प्रेमी: ची श्यैनलिन: पंकज मोहन
पंकज मोहन ऑस्ट्रेलिया नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबरा में एमेरिटस फैकल्टी हैं और भारत से सम्बन्धित दुर्लभ सामग्री के शोध ओर संचयन में व्यस्त हैं. कुछ दिनों पहले आपने समालोचन पर ही...
पंकज मोहन ऑस्ट्रेलिया नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबरा में एमेरिटस फैकल्टी हैं और भारत से सम्बन्धित दुर्लभ सामग्री के शोध ओर संचयन में व्यस्त हैं. कुछ दिनों पहले आपने समालोचन पर ही...
वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया पर केन्द्रित अखिलेश का यह संस्मरण उनके कथा साहित्य का आकलन भी साथ-साथ करता चलता है. ममता और रवीन्द्र कालिया को वह जिस गहराई से याद...
वर्ष के अंत में अपने प्रिय कवियों में से एक पंकज सिंह पर आलोचक रविभूषण का यह आलेख: संस्मरण, आत्मवृत्तांत और कवि के मूल्यांकन का समिश्रण है, इसमें परिवेश भी...
ग्रामीण जीवन के राग-विराग को सुनना हो तो संस्मरणों को पढ़ना चाहिए. वरिष्ठ लेखक सत्यदेव त्रिपाठी की पुस्तक ‘मूक मुखर प्रिय सहचर मोरे’ जिसके अधिकतर संस्मरण समालोचन पर ही छपे...
अघटित के घटित होने का समय कुसमय ही होता है, उसे अभी इस समय में नहीं घटित होना था. राकेश श्रीमाल (5 दिसम्बर,1963- 23 दिसम्बर, 2022) ने अपने होने से...
सुरेंद्र मनन लेखक के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित फ़िल्मकार हैं. गांधी पर उनकी फ़िल्म ‘गाँधी अलाइव इन साउथ अफ्रीका’ बहुत सराही गयी है. वर्धा के सेवाग्राम में गांधीजी पर...
आज हिंदी के कुछ ही लेखक बचे हैं जिन्होंने ब्रिटिश भारत में आँखें खोली थीं- उनमें से एक है कवि-कथाकार रामदरश मिश्र, जब देश स्वतंत्र हुआ वह २३ वर्ष के...
नवीन सागर (29 नवम्बर, 1948-14 अप्रैल, 2000) की रचनात्मक दुनिया में कविताएँ, कहानियां, बाल साहित्य और चित्र आदि शामिल हैं. उनकी सृजनात्मक उत्तेजना और अ-थिर जीवन के साथी रहे वरिष्ठ...
कुछ लेखक अधूरे प्रेम की तरह होते हैं, लौट-लौट कर आते हैं. आकर्षण की तीव्रता मंद नहीं पड़ती. ऐसे ही लेखक हैं मलयज. कवि मलयज का एक रूप उनके पत्रों...
अपराधियों के माथे पर दाग़ लगाकर मुगल काल में उन्हें ‘दाग़े-ए-शाही’ (हिमाचल प्रदेश) में सजा काटने के लिए भेज दिया जाता था, बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने अपराधियों...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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