संस्मरण

सौमित्र मोहन: अशोक अग्रवाल

सौमित्र मोहन: अशोक अग्रवाल

दस खंडों में विभक्त सौमित्र मोहन की लम्बी कविता ‘लुकमान अली’ ‘कृतिपरिचय’ पत्रिका में 1968 में प्रकाशित हुई थी. इस कविता के प्रकाशन का प्रभाव यह हुआ कि बांदा से...

स्वर्ण नगरी में सोन चिरैया की खोज: कबीर संजय

स्वर्ण नगरी में सोन चिरैया की खोज: कबीर संजय

सोन चिरैया लगभग लुप्त होने को है. उसे बचाने की कोशिशें हो रहीं हैं. कथाकार और ‘जंगलकथा’ के सूत्रधार कबीर संजय इस पक्षी के पीछे-पीछे दूर-दूर तक भटकते रहे. इस...

‘अपने बचपन से आप क्या बदलना चाहेंगी?: रेखा सेठी

‘अपने बचपन से आप क्या बदलना चाहेंगी?: रेखा सेठी

विदेशों में भी हिंदी पठन-पाठन की एक छोटी सी दुनिया है. लेखिका और अनुवादक रेखा सेठी अमेरीका के ड्यूक यूनिवर्सिटी में कुछ दिनों के लिए थीं. यह संस्मरण उस दुनिया...

निर्मल वर्मा: एक लेखक की बरसाती: अशोक अग्रवाल

निर्मल वर्मा: एक लेखक की बरसाती: अशोक अग्रवाल

वरिष्ठ कथाकार अशोक अग्रवाल लम्बी बीमारी के बाद स्वस्थ हुए हैं, इसका प्रमाण यह आत्मीय, दिलचस्प संस्मरण है. निर्मल वर्मा की स्मृतियाँ उनकी कथाओं की तरह ही गहरी होती हैं....

चन्द्रकान्त देवताले: स्मरण: राजेश सक्सेना          

चन्द्रकान्त देवताले: स्मरण: राजेश सक्सेना          

राजेश सक्सेना के पास संवाद और स्वाद के रसिक चन्द्रकान्त देवताले (7 नवम्बर,1936-14 अगस्त, 2013) की विनोदप्रियता और प्रगल्भता के कुछ रोचक संस्मरण हैं जिनमें से कुछ यहाँ अंकित हुए...

चीन के राष्ट्रगुरु और भारत प्रेमी: ची श्यैनलिन:  पंकज मोहन

चीन के राष्ट्रगुरु और भारत प्रेमी: ची श्यैनलिन: पंकज मोहन

पंकज मोहन ऑस्ट्रेलिया नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबरा में एमेरिटस फैकल्टी हैं और भारत से सम्बन्धित दुर्लभ सामग्री के शोध ओर संचयन में व्यस्त हैं. कुछ दिनों पहले आपने समालोचन पर ही...

नौलखा गद्य का अनूठापन: अखिलेश

नौलखा गद्य का अनूठापन: अखिलेश

वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया पर केन्द्रित अखिलेश का यह संस्मरण उनके कथा साहित्य का आकलन भी साथ-साथ करता चलता है. ममता और रवीन्द्र कालिया को वह जिस गहराई से याद...

पंकज सिंह: सर ये नहीं झुकाने के लिए:  रविभूषण

पंकज सिंह: सर ये नहीं झुकाने के लिए: रविभूषण

वर्ष के अंत में अपने प्रिय कवियों में से एक पंकज सिंह पर आलोचक रविभूषण का यह आलेख: संस्मरण, आत्मवृत्तांत और कवि के मूल्यांकन का समिश्रण है, इसमें परिवेश भी...

छोटके काका और बड़के काका:  सत्यदेव त्रिपाठी

छोटके काका और बड़के काका: सत्यदेव त्रिपाठी

ग्रामीण जीवन के राग-विराग को सुनना हो तो संस्मरणों को पढ़ना चाहिए. वरिष्ठ लेखक सत्यदेव त्रिपाठी की पुस्तक ‘मूक मुखर प्रिय सहचर मोरे’ जिसके अधिकतर संस्मरण समालोचन पर ही छपे...

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