संस्मरण

चीन के राष्ट्रगुरु और भारत प्रेमी: ची श्यैनलिन:  पंकज मोहन

चीन के राष्ट्रगुरु और भारत प्रेमी: ची श्यैनलिन: पंकज मोहन

पंकज मोहन ऑस्ट्रेलिया नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबरा में एमेरिटस फैकल्टी हैं और भारत से सम्बन्धित दुर्लभ सामग्री के शोध ओर संचयन में व्यस्त हैं. कुछ दिनों पहले आपने समालोचन पर ही...

नौलखा गद्य का अनूठापन: अखिलेश

नौलखा गद्य का अनूठापन: अखिलेश

वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया पर केन्द्रित अखिलेश का यह संस्मरण उनके कथा साहित्य का आकलन भी साथ-साथ करता चलता है. ममता और रवीन्द्र कालिया को वह जिस गहराई से याद...

पंकज सिंह: सर ये नहीं झुकाने के लिए:  रविभूषण

पंकज सिंह: सर ये नहीं झुकाने के लिए: रविभूषण

वर्ष के अंत में अपने प्रिय कवियों में से एक पंकज सिंह पर आलोचक रविभूषण का यह आलेख: संस्मरण, आत्मवृत्तांत और कवि के मूल्यांकन का समिश्रण है, इसमें परिवेश भी...

छोटके काका और बड़के काका:  सत्यदेव त्रिपाठी

छोटके काका और बड़के काका: सत्यदेव त्रिपाठी

ग्रामीण जीवन के राग-विराग को सुनना हो तो संस्मरणों को पढ़ना चाहिए. वरिष्ठ लेखक सत्यदेव त्रिपाठी की पुस्तक ‘मूक मुखर प्रिय सहचर मोरे’ जिसके अधिकतर संस्मरण समालोचन पर ही छपे...

राकेश स्मृति : कुमार अम्‍बुज

राकेश स्मृति : कुमार अम्‍बुज

अघटित के घटित होने का समय कुसमय ही होता है, उसे अभी इस समय में नहीं घटित होना था. राकेश श्रीमाल (5 दिसम्बर,1963- 23 दिसम्बर, 2022) ने अपने होने से...

सेवाग्राम में क्रिस्तान: सुरेन्द्र मनन

सेवाग्राम में क्रिस्तान: सुरेन्द्र मनन

सुरेंद्र मनन लेखक के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित फ़िल्मकार हैं. गांधी पर उनकी फ़िल्म ‘गाँधी अलाइव इन साउथ अफ्रीका’ बहुत सराही गयी है. वर्धा के सेवाग्राम में गांधीजी पर...

रामदरश मिश्र: प्रकाश मनु

रामदरश मिश्र: प्रकाश मनु

आज हिंदी के कुछ ही लेखक बचे हैं जिन्होंने ब्रिटिश भारत में आँखें खोली थीं- उनमें से एक है कवि-कथाकार रामदरश मिश्र, जब देश स्वतंत्र हुआ वह २३ वर्ष के...

नवीन सागर: अशोक अग्रवाल

नवीन सागर: अशोक अग्रवाल

नवीन सागर (29 नवम्बर, 1948-14 अप्रैल, 2000) की रचनात्मक दुनिया में कविताएँ, कहानियां, बाल साहित्य और चित्र आदि शामिल हैं. उनकी सृजनात्मक उत्तेजना और अ-थिर जीवन के साथी रहे वरिष्ठ...

दिग्शाई: चीड़ों की चीत्कार: सुरेन्द्र मनन

दिग्शाई: चीड़ों की चीत्कार: सुरेन्द्र मनन

अपराधियों के माथे पर दाग़ लगाकर मुगल काल में उन्हें ‘दाग़े-ए-शाही’ (हिमाचल प्रदेश) में सजा काटने के लिए भेज दिया जाता था, बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने अपराधियों...

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