मैं तुम्हें पतझड़ में मिलने आऊँगी : तेजी ग्रोवर
अपनी न्यूनतमवादी शैली (मिनिमलिस्ट) और सूक्ष्म भावों के लिए विख्यात फ़्रांसीसी कवयित्री आनी देवू बेर्तलो की कविताओं का हिंदी अनुवाद कवि रुस्तम सिंह ने किया है, जिसे Des Plumes Press...
अपनी न्यूनतमवादी शैली (मिनिमलिस्ट) और सूक्ष्म भावों के लिए विख्यात फ़्रांसीसी कवयित्री आनी देवू बेर्तलो की कविताओं का हिंदी अनुवाद कवि रुस्तम सिंह ने किया है, जिसे Des Plumes Press...
युवा कथाकार आयशा आरफ़ीन का पहला कहानी-संग्रह ‘मिर्र’ इसी वर्ष राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है. आयशा आरफ़ीन की कहानियाँ और अनुवाद आप पहले भी पढ़ते रहे हैं. उनकी कहानियों...
शिरीष कुमार मौर्य अपने कविता-संग्रह ‘धर्म वह नाव नहीं’ को ‘नव-चर्यापद’ कहते हैं. सिद्धों द्वारा विरचित आचरण के पदों (चर्यापद) के समानांतर चलती ये कविताएँ शब्दों में रहस्य, उपदेश में...
‘अपनों में नहीं रह पाने का गीत’ तथा ‘बंजारा नमक लाया' के बाद ‘अबके मरेंगे तो बदली बनेंगे’ प्रभात की कविताओं का नया संग्रह है. प्रभात गहन संवेदनशीलता, सघन लोकगति...
अरुन्धति रॉय समकालीन महत्वपूर्ण लेखिका तो हैं ही, वे उन कुछ लेखकों के सिलसिले में भी हैं जिन्होंने अपने शब्द और कर्म से सत्ता का प्रतिपक्ष रचा, परिणाम भुगते और...
एली वीज़ल (1928–2016) केवल एक लेखक नहीं, बल्कि इतिहास के सबसे गहरे घाव के जीवित साक्षी थे. होलोकॉस्ट से बच निकलने के बाद उन्होंने विस्थापन, यातना और मानवता की तलाश...
भारतीय इतिहास-लेखन में हाशिए के समाजों (जिनमें स्त्रियाँ भी शामिल हैं) की निर्णायक भूमिका की पड़ताल आरंभ तो हुई है, पर यह अभी अधूरी है और अनेक आयाम अब भी...
इसाबेल अयेंदे के उपन्यास ईवा लूना का स्पेनिश से अंग्रेज़ी अनुवाद 1988 में हुआ और शीघ्र ही इसने अपनी एक वैश्विक पहचान बना ली. इसकी चर्चा कर रहे हैं, महेश...
भारतीय साहित्य की सबसे बड़ी ऑनलाइन लाइब्रेरी ‘कविता कोश’ और ‘गद्य कोश’ के संस्थापक ललित कुमार का जीवन संघर्षों से भरा रहा है. उनकी आत्मकथा ‘विटामिन ज़िन्दगी’ पर चर्चा करते...
रज़ा की कलाकृतियों को देखना ही नहीं, उनके बारे में पढ़ना भी सम्मोहक अनुभव है. यशोधरा डालमिया की ‘सैयद हैदर रज़ा: एक अप्रतिम कलाकार की यात्रा’ ऐसी ही किताब है,...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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