महात्मा की ज़मीन: राजीव रंजन गिरि
स्वाधीनता संग्राम के दौरान असंख्य लोगों ने वर्षों तक इसकी निराई गुड़ाई करके इसे इस लायक बनाया था कि इसपर आधुनिक भारत की फ़सलें लहलहा सकें. यह गांधी की ज़मीन...
स्वाधीनता संग्राम के दौरान असंख्य लोगों ने वर्षों तक इसकी निराई गुड़ाई करके इसे इस लायक बनाया था कि इसपर आधुनिक भारत की फ़सलें लहलहा सकें. यह गांधी की ज़मीन...
एक भाषा की कविता को दूसरी भाषा में लिखते हुए जो हम करते हैं वह अनुवाद है कि पुनर्रचना, वह कितना मूल है और कितना मौलिक. ऐसे सवाल उठते रहे...
पराधीन भारत में जनता की दशा-दिशा को समझने के लिए गांधी जी 1915 में हरिद्वार के कुम्भ मेले में शामिल हुए थे. सौरव कुमार राय उस समागम को याद करते...
शायरी का ख़ुदा कहे जाने वाले मीर तक़ी मीर (1723-1810) की कविताओं की मार्मिकता दिल में बस जाती है. प्रेम और विरह का उनसे बड़ा शायर अभी विश्व ने नहीं...
‘2024 : इस साल किताबें’ का यह तीसरा हिस्सा है. इसके पहले हिस्से में आपने महत्वपूर्ण रचनाकारों मृदुला गर्ग, हरीश त्रिवेदी, मदन सोनी, ज्योतिष जोशी, चंद्रभूषण, मुसाफ़िर बैठा और शुभनीत...
इस साल क्या रहा किताबों का हाल-चाल? क्यों ने सीधे प्रकाशकों से पूछा जाये. हिंदी के कुछ महत्वपूर्ण प्रकाशकों की इस वर्ष की लोकप्रिय पुस्तकों की यह सूची दिलचस्प है....
साल समाप्ति पर है. लेखकों की दुनिया किताबों की दुनिया है. पाठक अपने प्रिय लेखकों को पढ़ते हैं और लेखक अपने प्रिय लेखकों को. लेखक किस तरह की पुस्तकों का...
1929 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जर्मन लेखक और कथाकार थॉमस मान के उपन्यास ‘द मैजिक माउंटेन’ (1924) के विषय में यह कहा जाता है कि वह कुछ...
1924 में प्रकाशित ई. एम. फ़ॉर्स्टर के उपन्यास ‘ए पैसेज टु इण्डिया’ पर वरिष्ठ आलोचक और अनुवादक हरीश त्रिवेदी का आलेख और उन्हीं के द्वारा अनूदित इस उपन्यास के कुछ...
जेम्स ज्वायस की ‘द डेड’ कहानी का शिव किशोर तिवारी द्वारा किया गया अनुवाद आपने यहीं पढ़ा था. कहानी आकार में बड़ी है और अर्थ में भी. इसका अनुवाद भी...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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