सरहपा का सौन्दर्य: निरंजन सहाय
चौरासी सिद्धों में से कुछ ही सिद्धों के विषय में थोड़ा बहुत हम जानते हैं. सरहपा उन्हीं में से एक हैं. उनका व्यक्तित्व और लेखन दोनों क्रांतिकारी है. निश्चय ही...
चौरासी सिद्धों में से कुछ ही सिद्धों के विषय में थोड़ा बहुत हम जानते हैं. सरहपा उन्हीं में से एक हैं. उनका व्यक्तित्व और लेखन दोनों क्रांतिकारी है. निश्चय ही...
वरिष्ठ आलोचक रविभूषण का यह आलेख स्त्री-चिंतन और लेखन पर निगाह डालता है. प्रारंभ, परम्परा और विकास दर्ज करता है. विश्व के स्त्री-विचारकों और लेखकों को समझते और संदर्भित करते...
कहते हैं जब अरस्तु से पूछा गया कि आपका प्रिय कौन है. अरस्तु ने कहा- ‘प्लेटो, पर सत्य गुरु से भी प्रिय है’. गुरु-शिष्य की यह भी एक परम्परा है...
'क्योंकि मेरी समस्त यादें /सताई हुई नहीं हैं.' __ वरिष्ठ कवि अरुण कमल ने प्रभात के पहले संग्रह ‘अपनों में नहीं रह पाने का गीत’ की भूमिका में ठीक ही...
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का निबन्ध है ‘कविता क्या है’. 1909 से लेकर 1930 तक वह इसमें तरमीम-ओ-इज़ाफ़ा करते रहे. इसलिए यह महत्वपूर्ण भी है. और यह भी कि समय के...
वरिष्ठ कथाकार अशोक अग्रवाल की प्रकृति से मनुष्य के एकात्म पर आधारित चार कहानियों पर समाज विज्ञानी और कथाकार नरेश गोस्वामी का यह आलेख बेहद दिलचस्प है. यह कहानियों को...
वरिष्ठ लेखक-संपादक गिरधर राठी जीवनानन्द दाश की कालजयी कविता ‘वनलता सेन’ के विषय में लिखते हैं, ‘दशकों से, अर्थ विवेचन से अधिक इस कविता का नाद सौंदर्य, इसका संगीत, और...
हिंदी के सबसे बड़े व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की जन्मशती को मनाने का सबसे सार्थक तरीका तो यही है कि अब तक वह जहाँ नहीं पहुंचे हैं वहाँ पहुंचें. हर घर...
बांग्ला भाषा के महत्वपूर्ण कवि शंख घोष (5/2/1932- 21/4 2021) की स्मृति में हिंदी के कवि और अनुवादक प्रयाग शुक्ल आज 5 फरवरी को रवीन्द्र ओकाकुरा भवन, कोलकाता में स्मृति...
गांधी की हत्या ने गांधी के हत्यारों के मंसूबों को कुछ दशकों तक अमल में आने से रोक दिया था. उनका सम्पूर्ण जीवन ही महाकाव्य है. वह खुद एक कविता...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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