रतन थियाम का ऋतुसंहार: के. मंजरी श्रीवास्तव
अपने प्रिय साहित्यकारों को उनके जन्म दिन के बहाने याद करने का जतन हम सब करते ही हैं. आज मणिपुरी के अपूर्व नाटककार और राष्ट्रीय तथा अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात...
अपने प्रिय साहित्यकारों को उनके जन्म दिन के बहाने याद करने का जतन हम सब करते ही हैं. आज मणिपुरी के अपूर्व नाटककार और राष्ट्रीय तथा अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात...
कलाओं के क्षेत्र में मध्य प्रदेश द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित कालिदास सम्मान (2021) रंगमंच लिए राजीव वर्मा को आज उज्जैन में दिया जाएगा. चयन समिति के सदस्यों- अनिल रस्तोगी,...
राकेश श्रीमाल के संयोजकत्व में कोलकाता की प्रसिद्ध सांस्कृतिक संस्था ‘नीलांबर’ की ‘उषा गांगुली स्मृति व्याख्यान माला’ के अंतर्गत ज्योतिष जोशी ने ‘रंगकर्म का संकट और आधुनिक रंगमंच’ पर कल...
रंगमंच में इधर अकल्पनीय प्रयोग हुए हैं, कल्पनाशीलता और आधुनिक तकनीक की मदद से भारतीय रंगमंच ने प्रादेशिक रंगमंचीय शैलियों के समिश्रण से अपने को नवीन किया है. रंग-आलोचक के....
रतन थियाम रंगमंच की दुनिया के विश्वविख्यात रंगकर्मी हैं. मणिपुरी रंगमंच के और भी निर्देशक हैं जो खूब सक्रिय हैं और भारतीय रंगमंच को लगातार समृद्ध कर रहें हैं. के....
भरतमुनि का ‘नाट्यशास्त्र’ अपनी विषयगत व्यापकता और समग्रता के कारण आज भी नाटककारों के लिए प्रेरणा और चुनौती का विषय है. नाट्यशास्त्र की समकालीन व्याख्या करते हुए उसे अपने समय...
साहित्य ही नहीं कला माध्यमों में भी विश्व स्तर पर बदलाव हो रहें हैं. विश्व-साहित्य से हिंदी-समाज कुछ परिचित है पर वैश्विक स्तर पर रंगमंच आदि की दुनिया में जो...
आश्रम प्राचीन भारतीय अवधारणा है, महात्मा गाँधी ने इसकी सक्रियता का विस्तार करते हुए इसे राजनीति से भी जोड़ा. कलाकारों ने भी इनका रचनात्मक इस्तेमाल किया है. रंगकर्मी राजेन्द्र पांचाल...
आज विश्व रंगमंच दिवस है (२७ मार्च). खड़ी बोली हिंदी साहित्य की शुरुआत में नाटकों की बड़ी भूमिका थी, इसके प्रस्तोता भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने ख़ुद रंगमंच में अभिनय किया था....
कला और साहित्य का असर राजनीति की तरह तत्काल नहीं दिखता पर होता गहरा है. सहृदय, विवेकवान और उदार मनुष्यता की निर्मिति में इसका महत्व असंदिग्ध है. इस तरह की...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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