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आर्थर रैम्बो की कविताएँ : अनुवाद मदन पाल सिंह
कुछ कवि अधूरे प्रेम की तरह होते हैं जहाँ बार–बार लौटने का मन करता है. फ्रेंच कवि (Jean Nicolas Arthur Rimbaud : 20 October 1854 – 10 November 1891) आर्थर रैम्बो इसी तरह के कवि हैं. २१ वर्ष की अवस्था तक उन्होंने आवेग से भरी हुई जिन कविताओं को जन्म दिया वे अभी भी उतनी ही […]
कुछ कवि अधूरे प्रेम की तरह होते हैं जहाँ बार–बार लौटने का मन करता है. फ्रेंच कवि (Jean Nicolas Arthur Rimbaud : 20 October 1854 – 10 November 1891)आर्थर रैम्बोइसी तरह के कवि हैं. २१ वर्ष की अवस्था तक उन्होंने आवेग से भरी हुई जिन कविताओं को जन्म दिया वे अभी भी उतनी ही वेगवान हैं, अर्थवान हैं.
उनकी छह प्रसिद्ध कविताओं का फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद मदन पाल सिंह ने किया है. वे पिछले चौदह वर्षों से पेरिस में रह रहे हैं. अनुवाद की उनकी दो किताबें भी प्रकाशित हैं. रैम्बो के जीवन और कविताओं पर उनकी किताब प्रकाशित होने वाली है.
इन कविताओं को शिव किशोर तिवारी ने देखा- परखा है, उनके सुझावों और संशोधनों से यह पाठ और सटीक हुआ है. उनका आभार
फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद : मदन पाल सिंह
आर्थर रैम्बोकी कविताएँ
\”रैम्बो की मृत्यु को एक शताब्दी से भी ज्यादा समय गुजर चुका है, फिर भी अभी तक कवि के अल्पकालिक साहित्यिक जीवन के आलोक में उनके मूल्यांकन को लेकर विभ्रम की स्थिति बनी हुई है. इस विभ्रम के अनेक कारण भी हैं. रैम्बो को शैतान का भी तमग़ा दिया गया और उन्हें भविष्य में झॉंकने वाले भविष्यदर्शी पैगम्बर के रूप में भी देखा गया. उन्हें एक ओर उनकी यायावर प्रवृति के कारण अन्वेषक माना गया, तो दूसरे छोर पर अक्खड़-आवारा कहकर ख़ारिज कर दिया गया. रैम्बो ने अल्पायु में ही कवि-मर्म और कविता के संवेग में अपने आपको समाधिस्थ कर लिया था. उन्हें अतियथार्थवाद और प्रतीकवाद से भी जोड़ कर देखा जाता है.\”
मदन पाल सिंह
क्या हासिल हुआ, बता ऐ मेरे दिल
क्या हासिल हुआ, बता ऐ मेरे दिल :
लहू का सैलाब, दहकती-उड़ती राख का मंजर, कत्ल-ओ-गारत हुए हजारों लोग,
छातीचीरनेवाला विलाप, सारे जहन्नुम की तबाही-भरी सिसकियाँ
और मलबों पर अभी तक बहती उत्तरी हवा!!
और यह सब बदले की आग! मिला कुछ नहीं!
लेकिन हाँ! इसके बाद भी हमें सब कुछ चाहिए—
उद्योग-धंधे और उनके सरमायेदार, राजवंश-औ-राजकुमार, सभा-परिषदें.
ताकत, इन्साफ, इतिहास सब हो जायें दोजख़ में गारत.
लहू और क्रांति की सुनहरी लपटें– ये हक़ है हमारा और नाज़िल है हम पर.
सब कुछ जंग, बदले और दहशत के लिए!
मेरी आत्मा मुड़ जा दर्द ओ जख्मोंकी तरफ, और दफा हो जाओ–
इस दुनियां की जमुहियरतें, गुलाम बनाने वाली ताकतें,
बादशाहत, जनता और पलटन.
बस बहुत हो गया!!
कौन भड़कायेगा आग की लपटें और शोले, कोई और नहीं बस
हमारे और उनके सिवा, जिन्हें हम समझते हैं भाई-बंधु
हमारे ख़ुशगवार दोस्तों, होगी हमें इससे भी ख़ुशी
हम नहीं करेंगे कभी भी मेहनत-मशक्कत, ओ आग की लपटो!
मिट जायेंगे यूरोप, एशिया और अमेरिका
हमारे बदले की आग ने सब कुछ घेर लिया है – देहात और शहर.
हमकुचले जायेंगे और होंगे सुपुर्द-ए-ख़ाक
फट जायेंगे ज्वालामुखी, और दरिया कर देंगे तबाही की हद पार…
मेरे दोस्तो! मेरे दिल-ए-सुख़न
यह सच है कि वे हमारे भ्राता-भाई काले अजनबी,
चलो चलें– चलो आगे बढ़ो, आओ!!
दुर्भाग्य, काँप रहा हूँ मैं थरथर, यह पुरानी धरती
पिघलती हुई मुझपर छाती जा रही है.
सीमा शुल्क अधिकारी
कुछ लोग तो कहते हैं : खुदा के वास्ते … उफ़! या खुदा!
और कुछ कहते हैं : कुछ भी नहीं है! …दोज़ख में जाओ लानती!
चाहे सैनिक हों या नाविक, राज्य के अधम कर्मचारी या हों पेंशनयाफ्ता
सब बेकार हैं, अपना बदतर वज़ूद लिए– सीमा शुल्क कर्मचारियों के सामने
जो करते रहते हैं कतरब्योंत सुदूर तक, अपनी कुल्हाड़ी के घातक वार से.
मुँह में पाइप लिए, छुरी हाथ में थामे, भावहीन, बेपरवाह चाकर,
और जब जंगल में छाने लगता है अँधेरा, तब ये जारज जाते हैं
बड़े-बड़े चापलूस कुत्तों को लिए हुए
निभाने के लिए अपने भयंकर धतकर्म.
वे बख़ान करते हैं नए कायदे-कानून और तजवीजों का
भोले-भाले बेचारे अनपढ़ों के लिए,
और होते हैं बगलगीर शैतान से, पाने के लिए ताकत ओ रुतबा
वे शैतान को सौंप देते हैं अपने जमीर (१)
मीनमेख निकालकर कहते हुए :
\’यह नहीं वह, पुराना कर !! माल के गट्ठर-पोटली जमा करो.\’
और जब शांत होकरचुंगी अधिकारी करता है जांच युवाओं की
वह हो जाताहै, जब्तशुदा माल के करीब,
तब अपचारी पड जाते हैं नरकीय मुसीबत में
जिनका टटोला था उसनेमाल-असबाब!!
(सीमा शुल्क अधिकारी (फ्रांसीसीमें कस्टम अधिकारीयोंया चुंगी अधिकारीयों पर यह कविता है जिन्हे वहाँ Les douaniers कहते हैं. यहाँ अर्थ और स्पस्ष्टकरने केलिए कुछ शब्द बढ़ाये गए हैं. कविता की मूल भावना सुरक्षित है. रैम्बो ओर उनका दोस्त पॉल देमिनी बेल्जियम से तमाखूलाते हुएइनसे टकराये थे)
(१) यहाँ प्रसिद्ध जर्मन कथा नायक फॉस्ट के प्रतीक काउल्लेख है जो अपनी महत्वकांक्षाओं की पूर्तितथाशक्ति और सफलता हांसिल करने के लिए अपने आदर्श और नैतिकता को सैतान (Diavolo) के पास छोड़ देता है.
चर्च में गरीब-गुरबे
गिरजाघर के कोने में, बलूत की बैंचों की कतारों के बीच
खचाखच-भरे भक्तों की भीड़
जिससे फैल रहे हैं उनकी घृणित बदबूदार श्वासों के भभके,
और टिकी हैं सारी ऑंखें, सुनहरी वेदी तथा कर्कश स्वर में गाते हुए– यंत्रवत्
धार्मिक भजन मण्डली के बीस सदस्यों पर.
सूँघते हुए मोम की गंध, जैसे हो यह रोटी की सोंधी महक
ये मुदित और दब्बू – अपमानित, जैसे हों कान ढलकाये हुए पिटे कुकुर,
ये बेचारे गरीब, तारणहार ईसा को समर्पित, इनके पिता और स्वामी
आह्वान कर रहे हैं भक्तों का, प्रार्थना में भाग लेने के लिए
अपनी बेहूदी, हास्यजनक, हठपूर्ण प्रार्थना की लम्बी तान खींचते हुए.
घर-गृहस्थी के काम-धाम में डूबी, छह दिन के प्रभु-प्रदत्त कष्ट के बाद
औरतों के लिए सुखद है चिकनी बैंचों पर बैठकर लुत्फ़ उठाना,
वे झबला हुए अजीब लम्बे फर के लबादे में लिपटाये हुए
अपने बेहताशा रोते बच्चों को
हिला-झुला रही हैं चुप कराने के लिए
ऐसे बच्चे, जिनका विलाप प्रलय तक भी नहीं रुकता.
उनकेमलिन कमजोर स्तन लटक रहे हैं बाहर
ये सूप पीकर जिन्दा रहने वाली औरतें
इनकी आँखों में है प्रार्थना की दीनता, पर अंतरात्मा में प्रार्थना का कोई चिह्न नहीं.
दिखता हैकिशोरियों का झुण्ड अल्हडत्ता से चलकदमी करता हुआ
जो लिए हैं अपनी पिचकी टोपियॉं.
बाहर है शीत और भूख का साम्राज्य, मद्यपान में धुत आदमी :
\’ठीक है, एक घण्टाबचा है, उसके बाद फिर वही मुसीबत.\’
इस दौरान झुर्रियों से भरे गले वाली बुढ़ियाओं के झुण्ड का प्रमाद,
नकियाना, खरखराना, आस-पड़ोस की शिकायत और कानाफूसी:
\’ये अजीब डरे लोग और वे मिर्गी के मरीज
कल चौराहे पर जिन्हें हमने अनदेखा कर दिया था
और प्राचीन प्रार्थना-पुस्तकों में नाक गड़ाए ये अंधे,
जिन्हें एक कुत्ते ने सड़क पार कराकर सुरक्षित
बरामदों तक पहुँचाया था.\’
और सब करते हुए अपनी दरिद्र मूढ़ भक्ति का विश्वास-गान
यीशु से करते हैं, कभी ख़त्म न होने वाली शिकायतें.
गिरजाघर में लगे बदरंग और पुराने चित्रों वाले शीशे से आने वाले प्रकाश के नीचे
यीशु, जो दिखता है पीतवर्ण और ऊपर है स्वप्नमग्न,
घृणित कृशकाय और तोंदल दुष्ट-फरेबियों से दूर.
वह है मांस और फफूंदी लगे कपड़ों की गंध से दूर
वह दूर है घृणित हाव-भाव वाले बेहूदे धार्मिक स्वांग से
वह विरत है भजन कीर्तन, चुने हुए स्तुति गान और चोंचलों से
और अलग है उतावलापन लिए हुए एक अड़ियल रहस्यवाद से भी.
जब गिरजे के मध्य भाग से छॅंटने लगती है धूप
तो आती हैं सदाबहार झूठी मुस्कान लिए, साधारण रेशमी वस्त्रों की तहों से आवृत
खाते-पीते, समृद्ध, कुलीन वर्ग की स्त्रियॉं: हे यीशु ! ये हैं जिगर रोग से पीड़ित !!
और ये फिराती हैं अपनी पीली अंगुलियॉं, पवित्र जलपात्र में
आशीर्वाद के लिए.
सीजर का रोष
(सेदां के युद्ध के बाद नेपोलियन तृतीय)
काले कपड़ों में, सिगार दांतों में दबाये
एक कांतिहीन आदमी जा रहा है फूलों के लॉन से
यूँ निर्बल सोच रहा है बार-बार, त्यूलेरीके बगीचेके पुष्पों के बारे में
और कभी-कभी उसकी बुझी-सी तिरछी ऑंखें चमकने लगती हैं.
क्योंकि सम्राट है उन्मत, अपने बीस वर्ष के शासन के ताण्डव से
और कहा था उसने : मैं बुझाने वाला हूँ आजादी की मशाल
आराम से जैसे बुझती है एक मोमबत्ती,
आजादी तो फिर जी उठी
और वह अपने आपको महसूस करता है ठगा-सा, शक्तिहीन.
वह कैद हो गया! और अब उसके बंद होठों पर किसका नाम थरथराता है?
वह महसूस करता है – कैसा निर्दयी पश्चाताप?
राजा की मृत बुझी आँखों से
यह कोई नहीं जान सकेगा!
वह याद करता है कर्म,अपने उस ऐनक वाले साथी के
और देख रहा है आग में ख़ाक होते, धूम्र उड़ाते अपने सिगार को
जैसे महल \’संत क्लॉद\’ से हल्की नीली साँझ में उठता था धुआँ.
लोकतन्त्र
ध्वज घृणित और भ्रष्ट परिदृश्य का हिस्सा बन जाता है और हमारी भदेश बातें ढोल-नगाड़ों की आवाज को दबा देती हैं. केंद्र में हम पोषित करेंगे अधम, दुरुपयोगी तंत्र को. हम न्याय संगत जरूरी विद्रोहों को कुचल देंगे.
विशाल, हृदयहीन, शैतानी, सैनिक और औद्योगिक शोषण चक्र की सेवा में रत –आर्द्र जलवायु वाले मसालों से सम्पन्न मुल्को! मैं यहाँ से विदा लेता हूँ,न जाने कहॉं होगा मेरा ठौर! जैसा कि बदा है, हमारी मनोवृत्ति होगी उद्दण्ड और क्रूर,तर्क और विज्ञान के प्रति अनजान,भौतिक सुख-सुविधा के लिए अधीर और पीड़ित.दुनियॉं, जीने के मुर्दार तौर-तरीके में उलझकर खुद अपने पतन का रास्ता अख्तियार करेगी.यही इस तरह के कर्मों की गति है. आगे बढ़े चलो!
(लोकतन्त्र – यहाँ लौकिक वेश्यावृत्ति की बात नहीं है अपितु नीच, अधम तंत्र की बात है. उदहारण के लिए : फ्रेंच में एक आम गाली है fils de putte जिसका शाब्दिक अर्थ वेश्या पुत्र/ हरामी/ जारज होता है. लेकिन इस गाली का व्यापक अर्थ अधम / नीच/ कमीना है. यहाँ कविता में यह औपनिवेशिक अधमता के सन्दर्भ में है)