• मुखपृष्ठ
  • समालोचन
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • अन्यत्र
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फिल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • अन्यत्र
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फिल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
No Result
View All Result
समालोचन

Home » डब्ल्यू. एस. मरविन की आठ कविताएँ : सरबजीत गरचा

डब्ल्यू. एस. मरविन की आठ कविताएँ : सरबजीत गरचा

हमारे समय के महत्वपूर्ण कवियों में से एक डब्ल्यू. एस. मरविन  (William Stanley Merwin : September 30, 1927 – March 15, 2019) का इसी साल मार्च में निधन हो गया, स्मरण करते हुए उनकी आठ कविताओं का हिंदी अनुवाद सरबजीत गरचा ने किया है जो खुद कवि हैं. अनुवाद डब्ल्यू. एस. मरविन की आठ कविताएँ   […]

by arun dev
July 23, 2019
in अनुवाद
A A
फेसबुक पर शेयर करेंट्वीटर पर शेयर करेंव्हाट्सएप्प पर भेजें
हमारे समय के महत्वपूर्ण कवियों में से एक डब्ल्यू. एस. मरविन  (William Stanley Merwin : September 30, 1927 – March 15, 2019) का इसी साल मार्च में निधन हो गया, स्मरण करते हुए उनकी आठ कविताओं का हिंदी अनुवाद सरबजीत गरचा ने किया है जो खुद कवि हैं.

अनुवाद
डब्ल्यू. एस. मरविन की आठ कविताएँ                   
सरबजीत गरचा


डब्ल्यू. एस. मरविन (1927-2019)

अमेरिका के महानतम कवियों में से एक. अनुवाद के लिए भी ख्याति-लब्ध. दुनिया के अनेक श्रेष्ठ कवियों ने अपनी कविता पर मरविन का प्रभाव स्वीकार किया है. कविता, अनुवाद, निबंध एवं संस्मरण की 50 से ज़्यादा पुस्तकें. शुरूआती संग्रहों के बाद अपनी कविता में विराम-चिन्हों का इस्तेमाल हमेशा के लिए छोड़ दिया क्योंकि उनका मानना था कि “मन विराम-चिन्हों में नहीं सोचता”. दो बार कविता के लिए पुलित्ज़र पुरस्कार के अलावा कई और सम्मान. नीचे दी गई आठ कविताओं में से छह उनके अंतिम संग्रह,गार्डन टाइम, से. आँखों की कमज़ोर पड़ती हुई रौशनी के कारण इस संग्रह की कविताएं उन्होंने अपनी पत्नी को डिक्टेट की थीं. मार्च 2019 में निधन.

सरबजीत गरचा





सुबह

क्या मैं उसे इसी तरह प्यार करता अगर वह रुक सकती
क्या मैं उसे इसी तरह प्यार करता अगर वह
सारा आसमान होती एक अकेला स्वर्ग होती
या अगर मैं मान सकता कि वह मेरी है
कोई मिल्कियत जो सिर्फ़ मेरी है
या मैं फ़र्ज़ करता कि उसने मुझे देख लिया
वह मुझे पहचानती है और शायद मुझ से मिलने आई है
उन तमाम सुबहों से निकलकर जिन्हें मैंने कभी नहीं जाना
और उन सारी सुबहों से भी जिन्हें मैं भुला चुका हूं
क्या मैं उसे ऐसे ही प्यार करता अगर मैं कहीं और होता
या पहली-पहली बार जवान होता
या बिलकुल यही पंछी नहीं गा रहे होते
या मैं उन्हें सुन नहीं पाता या उनके पेड़ नहीं देख पाता
क्या मैं उसे इसी तरह प्यार करता अगर मैं दर्द में होता
शरीर के सुर्ख ज़ुल्म या मातम की सलेटी ख़ला में
क्या मैं उसे इसी तरह प्यार करता अगर मैं जानता
कि याद आ जाएगा मुझे कुछ भी जो
अब यहाँ है
कुछ भी कुछ भी

मेरा दूसरा अंधेरा

कभी-कभी अंधेरे में ख़ुद को
एक ऐसी जगह पाता हूं जो
किसी और समय में पहचानी-सी थी
और सोचता हूं
क्या वो जगह मेरे कभी न देखे हुए
उन सूर्योदयों और सूर्यास्तों के बीच
कहीं बदल तो नहीं गई है
सोचता हूं क्या वो चीज़ें जो मुझे याद हैं
अब भी ठीक वहीं हैं जहां मुझे याद है कि वो हैं
क्या मैं उन्हें पहचान लूंगा अगर मेरा हाथ
इस अंधेरे में उन्हें छू ले
क्या वो मुझे पहचान लेंगी और क्या वो
अब तक मेरा इंतज़ार कर रही थीं
अंधेरे में

अभाव

अभाव मेरा भाई था
भाई है
लेकिन मेरे पास उसकी
कोई तस्वीर नहीं
उसका नाम हैन्सन था
जो कभी इस्तेमाल में नहीं लाया गया
वो मेरे नाना का नाम हुआ करता था
जो जवानी में ही चल बसे
मां उसे देख भी न पाई थी
कि उसका बच्चा उससे
दूर ले जाया जा चुका था
शायद नहलाने के लिए
उन्होंने आकर उससे कहा
कि वह हर तरह से बेनुक़्स था
कहा कि उन्होंने इतना
ख़ूबसूरत बच्चा पहले कभी नहीं देखा था
और फिर बताया कि वह मर चुका है
वह ख़ुद को इस भरोसे संभाले रही
कि वह उनसे कहीं गिर गया होगा
उसकी नज़र और पहुंच के बाहर
गिर पड़ा होगा अपने ख़ाली नाम से बाहर
ज़िंदगी भर वह मेरे क़रीब रहा है
लेकिन मैं उसके बारे में
तुम्हें कुछ नहीं बता सकता

एक दिन सुबह-सुबह

यह रही अंधेरे में चलती स्मृति
जैसी वह है उसकी वैसी कोई तस्वीर नहीं
आने वाले दिन को पहले कभी न देखा गया था
तारे किसी दूसरे जीवन में चले गए हैं
चले गए हैं सपने अलविदा की आवाज़ किए बग़ैर
कीड़े जाग उठते हैं उड़ते हैं अपने गीले पैरों को लिए हुए
रात को अपने साथ ले जाने की कोशिश करते हुए
केवल स्मृति जगी हुई है मेरे साथ
क्योंकि वह जानती है कि यह
हो सकता है आख़िरी रतजगा

भूलने की आवाज़

रात भर जब बारिश हो रही थी
स्याह घाटी ख़ामोशी से सुन रही थी
ख़ामोश घाटी ने याद नहीं किया
तुम मेरी बग़ल में सो रही थीं
जब गिरती रही बारिश हमारे इर्द-गिर्द
मैंने तुम्हें सांस लेते हुए सुना
मैं तुम्हारी सांस की आवाज़ को
याद करना चाहता था
लेकिन हम वहां लेटे रहे भूलते हुए
सोते और जागते
एक वक़्त पर एक सांस भूलते
जबकि बारिश हमारे इर्द-गिर्द गिरती रही

सौग़ात

जब वे बाग़ छोड़कर जा रहे थे
फ़रिश्तों में एक उनके सामने झुका
और फुसफुसाया
मुझसे कहा गया है कि
जब तुम बाग़ छोड़कर जाने लगो
मैं तुम्हें यह दे दूं
मुझे नहीं पता यह क्या है
या किसलिए है
और तुम इसका क्या करोगे
तुम इसे रख नहीं पाओगे
लेकिन तुम तो
कुछ भी नहीं रख पाओगे
फिर भी सौग़ात के लिए
दोनों एक साथ आगे बढ़े
और जब उनके हाथ मिले
वे हंस पड़े

मेरा हाथ

देखो किस तरह अतीत ख़त्म नहीं होता
इस वर्तमान में
वह हर समय जगा हुआ है
कभी इंतज़ार न करता हुआ
वह अब मेरा हाथ है लेकिन
वह नहीं जो मेरी गिरफ़्त में था
वह मेरा हाथ नहीं है बल्कि
वह है जो मेरी गिरफ़्त में था
लेकिन वह कभी एक-सा नहीं लगता
किसी और को वह याद नहीं
बहुत पहले हवा में घुल चुका घर
ईंटो की सड़क पर टायरों की घरघराहट
किसी गुम हो चुके बेडरूम में ठंडी रौशनी
दो ज़िंदगानियों के बीच
ओरियल की कौंध
नदी जिसे एक बच्चा देख रहा था

जगह

दुनिया के आख़िरी दिन
मैं एक पेड़ लगाना चाहूंगा
किसलिए
फल के लिए नहीं
फल देने वाला पेड़
वह नहीं होता जो लगाया जाता है
मैं चाहता हूं वह पेड़
जो ज़मीन में पहली बार खड़ा होता है
जब सूरज
ढल रहा हो
और पानी
जड़ों को छू रहा हो
मृतकों से भरी ज़मीन में
और गुज़र रहे हों बादल
एक-एक कर
उसके पत्तों के ऊपर 

 ___________________
सरबजीत गरचा

कवि एवं अनुवादक. अंग्रेज़ी में कविता. तीन कविता संग्रह एवं अनुवाद की दो पुस्तकें. नवीनतम संग्रह, अ क्लॉक इन द फ़ार पास्ट, 2018 में प्रकाशित और चर्चित.
sarabjeetgarcha@gmail.com
Tags: डब्ल्यू. एस. मरविन
ShareTweetSend
Previous Post

आखेट से पहले : नरेश गोस्वामी

Next Post

गूँगी रुलाई का कोरस: रणेन्द्र

Related Posts

No Content Available

अपनी टिप्पणी दर्ज करें Cancel reply

समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

  • Privacy Policy
  • Disclaimer

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2022 समालोचन | powered by zwantum

No Result
View All Result
  • समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • आलोचना
    • आलेख
    • अनुवाद
    • समीक्षा
    • आत्म
  • कला
    • पेंटिंग
    • फिल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • शिल्प
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • संपर्क और सहयोग
  • वैधानिक