• मुखपृष्ठ
  • समालोचन
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • अन्यत्र
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फिल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • अन्यत्र
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फिल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
No Result
View All Result
समालोचन

Home » दून्या मिखाइल: सुधीर सक्सेना

दून्या मिखाइल: सुधीर सक्सेना

निर्वासन में रह रहीं इराकी कवयित्री  दून्या मिखाइल  की कविताओं का चयन और अनुवाद कवि सुधीर सक्सेना द्वारा.  दून्या मिखाइल  (Dunya Mikhail) १९६५ इराक में जन्मी दून्या मिखाइल ने ‘द बगदाद आब्जर्वर’ के लिए बतौर साहित्य-संपादक काम किया. इराकी सरकार की धमकियों के फलस्वरूप ९० के दशक के आखिरी वर्षोँ में मातृभूमि छोड़ने को बाध्य […]

by arun dev
December 22, 2012
in अनुवाद
A A
फेसबुक पर शेयर करेंट्वीटर पर शेयर करेंव्हाट्सएप्प पर भेजें

निर्वासन में रह रहीं इराकी कवयित्री  दून्या मिखाइल  की कविताओं का चयन और अनुवाद कवि सुधीर सक्सेना द्वारा. 

दून्या मिखाइल  (Dunya Mikhail)

१९६५ इराक में जन्मी दून्या मिखाइल ने ‘द बगदाद आब्जर्वर’ के लिए बतौर साहित्य-संपादक काम किया. इराकी सरकार की धमकियों के फलस्वरूप ९० के दशक के आखिरी वर्षोँ में मातृभूमि छोड़ने को बाध्य हुईं. २००१ में उन्हें संयुक्त राष्ट्र का ह्यूमन राइट्स अवार्ड मिला. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए सम्मानित दून्या के चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. एलिजाबेथ (Elizabeth Winslow) विनस्लो द्वारा अनूदित उनके संकलन – ‘द वार वर्क्स हार्ड’ (The War Works Hard) को पीईन (पेन) अनुवाद पुरस्कार मिला है. न्यूयार्क पब्लिक लाइबेरी ने इसे सन २००५ की श्रेष्ठ २५ कृतिओं में शरीक किया है. यह किसी भी इराकी कवयित्री का अरबी से अंगेजी में अनूदित प्रथम संकलन  है.  उनकी  डायरी  A Wave Outside the Sea को भी अरब अमेरिकन अवार्ड से नवाजा जा चुका है. 


सलाह                            

मैं लौटना चाहता हूँ
लौटना
लौटना
लौटना
तोते ने फिर – फिर कहा
कमरे में जहां
उसे छोड़ गयी थी उसकी मालकिन
एकाकी
दोहराने को
लौटना
लौटना
लौटना.

मैं हड़बड़ी में थी               

कल मैंने खो दिया एक देश
मैं हड़बड़ी में थी
और जान ही नहीं पायी
कि कब वह मुझसे गिर गया
भुलक्कड़ पेड़ से टूटी हुई टहनी की तरह
कृपया गर कोई उधर से गुज़रे
और उससे टकराये
मुमकिन है कि आकाश की  ओर मुहं बाये
सूटकेस में,
या कि किसी चट्टान पर खुदा
रिसते खुले घाव सा
याकि बहिरगतों के कंबलों में लिपटा हुआ
याकि खारिज़ किये
गुम लाटरी – टिकट की मानिंद
या कि सराय में
विस्मृत निरुपाय सा
या कि भागता हुआ बिना गंतव्य
बच्चों के प्रश्नों की मानिंद
या उठता हुआ युद्ध के धूम के साथ
या रेत पर लुढकता हुआ हेलमेट में
या चुराया हुआ अलीबाबा के मर्तबान में
या ऐसे पुलिस-कर्मी की वर्दी में अचीन्हा,
जिसने कैदिओं को हडकाया हो
और फूट लिया हो
या कि उकडू बैठी स्त्री के जेहन में
जो चाहती है मुस्काना
या बिखरा हुआ
अमेरिका में नये आव्रजकों के
सपनों की मानिंद

यदि कोई उससे टकराये
उसे मुझे लौटा दें, श्रीमान
कृपया लौटा दें, मादाम
यह मेरा देश है
मैं हड़बड़ी में थी
जब मैंने इसे गुमा दिया बीते कल.

सांता  क्लॉज़                              

युद्ध-सी अपनी लम्बी दाढ़ी
और इतिहास से रक्त अपने लबादे में
सांता  क्लॉज़ ठहरा सस्मित
और कहा मुझसे चुनूं कोई चीज़
तुम एक अच्छी लड़की हो, कहा उसने,
लिहाज़ा तुम्हें मिलना चाहिए कोई खिलौना
फिर उसने दी मुझे कविता जैसी कोई चीज़
और चूँकि मैं हिचकिचाई
उसने मुझे यकीन दिलाया
डरो मत, नन्ही बच्ची
मैं सांता  क्लॉज़ हूँ
मैं बांटता हूँ बच्चों को सुन्दर खिलौने
क्या तुमने मुझे पहले कभी नहीं देखा?
मैंने कहा
लेकिन सांता क्लॉज़ जिसे मैं जानती हूँ
पहनता है फौजी वर्दी
और हर साल बांटता है
लाल शमशीरें
अपंगों को गुडिये
कृत्रिम अंग
और गमशुदों की तस्वीरें
दीवारों पर टांगने के वास्ते.

सर्वनाम                                      

वह बनता है ट्रेन
वह बनती है सीटी
वे चले जाते हैं दूर.
वह बनता है रस्सी
वह बनती है पेड़
वे झूलते हैं साथ – साथ
वह बनता है स्वप्न
वह बनती है पंख
वे भरते हैं उड़ान.
वह बनता है जनरल
वह बनती है जनता
वे करते हैं
ज़ंग का ऐलान.

गैर फौजी वक्तव्य                                       

 1
हाँ,मैंने लिखा था अपने खत में
कि मैं सर्वदा इंतज़ार करुँगी तुम्हारा
तो \’सर्वदा\’ से मेरा मतलब नहीं था ठेठ वही
उसे तो मैं लय के वास्ते रखा था वहां
2
नहीं, वह उसमें नहीं था
वहां तो ढेर सारे लोग थे
किसी भी टेलीविज़न स्क्रीन पर
अपनी जिन्दगी में देखे लोगों से भी ज्यादा
और उसके बावजूद भी
3
उस पर न कोई नक्काशी है
न ही उसके हत्थे हैं
वह सदा वहीँ रहती है
टेलीविज़न के सम्मुख
वह खाली कुर्सी
4
मैं सपना देखती हूँ जादुई छड़ी का
जो झाप्पियों को बदल देती है सितारों में
रात में तुम उन्हें देख सकते हो
और जान सकते हो कि वे अनगिन हैं
5
हर किसी को मेरा धन्यवाद ज्ञापन
जिन्हें मैं प्रेम नहीं करती,
उनसे मेरे दिल में प्रेम नहीं उपजता
उनके चलते मुझे लिखने नहीं पड़ते लम्बे खत
वे मेरे सपनों में खलल नहीं डालते
मैं उनकी व्यग्र प्रतीक्षा नहीं करती
मैं पत्रिकाओं में नहीं पढ़ती उनके राशिफल
मैं उनके नम्बर नहीं घुमाती
मैं उनके बारे में नहीं सोचती
मैं उनकी बहुत-बहुत आभारी
कि उनसे नहीं होती जिन्दगी मेरी औंधी.
6
मैंने कपाट खींचे
कि बैठ सकूँ पीछे, सचेत
और खोल सकूँ
ऐन तुम्हारे आते ही द्वार.

जवाहरात                                      

अब यह नदी के आरपार फैला नहीं है
नहीं है उसका वजूद शहर में
न नक्शे में,
पुल जो कभी था
पुल जो कि हम थे
पीपों का पुल हम रोज़ पार करते थे
जो नदी में ढह गया युद्ध के हाथों
उस नीलमणि की मानिंद,
जिसे स्त्री ने गिरा दिया था अतल में
टाइटैनिक से नीचे.

पथराती कुर्सी                                 

जब वे आये
चाची तब भी वहीं थीं
पथराती कुर्सी पर
तीस साल तक
वह पथरायी रहीं
अब
उस मौत ने उनका हाथ माँगा
वह चली गयीं
बगैर कहे एक भी लफ्ज़
छोडकर कुर्सी
तन्हा
पथराती

ट्रेवल एजंसी                                      

मेज़ पर यात्रिओं का हुजूम है
कल उनके विमान उड़ान भरेंगे
और आसमान को भर देंगे रुपहलेपन से
और उतरेंगे शहरों में साँझ की मानिंद
श्रीमान जार्ज कहते हैं कि उनकी प्रिया
अब नहीं मुस्काती उन्हें देख
वह सीधे जाना चाहते हैं रोम
वहां उसकी मुस्कान जैसी कब्र खोदने के वास्ते
मैं दिलाती हूँ उन्हें याद कि हर रास्ता रोम को नहीं जाता
और उन्हें थमा देती हूँ टिकट एक के वास्ते
वह खिड़की के पास बैठना चाहते हैं
इस यकी की खातिर
कि आकाश
एक सा है
हर कहीं. 
______________________________________

३० सितम्बर, १९५५
कविता संग्रह — \’कभी न छीने काल\’ , \’बहुत दिनों बाद\’ \’समरकंद में बाबर\’, \’रात जब चंद्रमा बजाता है बाँसुरी\’
सम्मान — \’सोमदत्त पुरस्कार\’, \’पुश्किन सम्मान\’
रूस, ब्राजील, बैंकाक आदि देशों की यात्राएं. 
संप्रति –\’दुनिया इन दिनों \’ पत्रिका के प्रधान संपादक 
ई पता : 

sudhirsaxena54.gmail.com
Tags: दून्या मिखाइल
ShareTweetSend
Previous Post

देस – वीराना : राँची-सिमदेगा चाईबासा : प्रत्यक्षा

Next Post

मति का धीर : चंद्रकांत देवताले

Related Posts

No Content Available

अपनी टिप्पणी दर्ज करें Cancel reply

समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

  • Privacy Policy
  • Disclaimer

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2022 समालोचन | powered by zwantum

No Result
View All Result
  • समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • आलोचना
    • आलेख
    • अनुवाद
    • समीक्षा
    • आत्म
  • कला
    • पेंटिंग
    • फिल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • शिल्प
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • संपर्क और सहयोग
  • वैधानिक