अंग्रेजी भाषा में लिखने वाली अमेरिकी कवयित्री लुइज़ ग्लुक (जन्म : २२ अप्रैल १९४३) को उनकी कविताओं के लिए २०२० के नोबेल की घोषणा के बाद हिंदी में उनकी ख़ूब चर्चा रही. नोबेल पाने वाली वह सोलहवीं महिला हैं.
नोबेल पुरस्कार की घोषणा के तुरंत बाद अलेक्ज़ांड्रा आल्टर ने उनसे यह बातचीत की थी जिसका अनुवाद रीनू तलवाड़ ने किया है साथ ही उनके चार कविता संग्रहों से छह कविताओं के अनुवाद भी दिए जा रहें हैं. .
समालोचन के दूसरे दशक की यह पहली प्रस्तुति है . सभी लेखकों, पाठकों, शुभचिंतकों के प्रति अनंत कृतज्ञता के साथ विनम्रतापूर्वक.
‘मैं तैयार नहीं थी\’
कविता, बुढ़ापे और आश्चर्यजनक नोबेल पर लुइज़ ग्लुक से बातचीत
अलेक्ज़ांड्रा आल्टर
\”काफी असंभव लगता था कि मुझे अपने जीवन में इस ख़ास घटना का सामना करना पड़ेगा\”
\”मैं बहुत मिलनसार हूँ. मुझे साक्षात्कार पसंद नहीं, इसका अर्थ यह नहीं कि मैं एकांत में रहना चाहती हूँ,\”
हमारे इंटरव्यू के शुरू होने के कुछ देर बाद ही कवयित्री लुइज़ ग्लुक ने कहा.
(अ.आल्टर) |
ग्लुक को असुविधा का सामना करना पड़ा. बृहस्पतिवार सुबह उन्होंने साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीता. कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स स्थित उनके घर के बाहर सड़क पर पत्रकारों का जमघट शुरू हो गया. सुबह 7 बजे से उनका फ़ोन बजना बंद नहीं हुआ था और इस तरह सबके ध्यान का केंद्र होना उन्हें \’भयावह\’ लग रहा था.
अब तक ग्लुक को प्रशंसा का आदी हो जाना चाहिए था. पांच दशकों से अधिक के कार्यकाल में उनके एक दर्जन कविता संकलन प्रकाशित हुए और हर प्रतिष्ठित साहित्य पुरस्कार प्राप्त हुआ : द नेशनल बुक अवार्ड, द पुलिट्जर प्राइज, द नेशनल बुक क्रिटिक्स सर्कल अवार्ड, और नेशनल ह्यूमेनिटीज़ मैडल सहित कई और. साहित्य आलोचकों और उनके समकालीन लेखकों में उनकी संक्षिप्त, स्पष्ट एवं स्वीकृति भरी कविताओं की वजह से उनके प्रति खूब श्रद्धा है.
\”उनका कवि कर्म एक आंतरिक वार्तालाप जैसा है. शायद वे स्वयं से बात कर रही हैं, शायद हम से बात कर रही हैं. उसमें एक तरह की विडम्बना है,\”
जॉनाथन गालासी कहते हैं, जो लम्बे समय से उनके मित्र एवं संपादक हैं और फर्रार, स्ट्राउस & जीरू के प्रेजिडेंट भी हैं.
\”एक बात जो उनके कृतित्व में सतत है, वह है उनकी भीतर की आवाज़. वे हमेशा अनुभव को किसी आदर्श के सम्मुख आंकती रहती हैं, जो कभी मेल नहीं खा पाता.\”
पिछले कुछ महीने ग्लुक के लिए कठिन रहे हैं. वे तलाकशुदा हैं और अकेली रहती हैं. महामारी से पहले, उन्हें आदत थी हफ्ते में छह रात दोस्तों के साथ बाहर खाना खाने की. वसंत में, कई महीनों तक वे लिखने का प्रयत्न करती रहीं. फिर, गर्मियों के लगभग अंत में, वे फिर कविताएँ लिखने लगीं, और उन्होंने एक नया संकलन पूरा कर लिया, जिसका शीर्षक है \”विंटर रेसिपीज़ फ्रॉम द कलेक्टिव \”, जिसका विमोचन अगले वर्ष करने का ऍफ़ एस जी का विचार है.
\”उम्मीद यह है कि अगर आप उस अनुभव को जी लें तो उसके पार कला है,\”
ग्लुक कहती हैं.
ग्लुक ने द टाइम्स से नोबेल पुरस्कार जीतने की खबर के कुछ ही घंटों बाद बातचीत की. उस बातचीत के कुछ सम्पादित अंश प्रस्तुत हैं.
१.
आपको पहले खबर कैसे मिली?
आज सुबह लगभग पौने सात बजे मुझे फोन आया. मैं अभी सो कर उठी ही थी. एक आदमी जिन्होंने अपना परिचय दे कर कहा कि वे स्वीडिश अकादेमी के सचिव हैं, बोले ,\”मैंने आप को यह बताने के लिए कॉल किया है कि आप को नोबेल पुरस्कार मिला है.”
मुझे याद नहीं मैंने क्या कहा, मगर उसमें काफी संदेह का पुट था.
मुझे लगता है मैं तैयार नहीं थी.
२.
जब आप को विश्वास हो गया है कि यह सच है, आपको कैसा लगा?
मैं एकदम स्तंभित थी कि उन्होंने एक श्वेत अमरीकी गीत कवि को चुना. कुछ समझ नहीं आ रहा है. मेरे घर के सामने वाली सड़क पत्रकारों से भरी है. लोग मुझे बता रहे हैं कि मैं कितनी विनम्र हूँ. मगर मैंने सोचा, मैं ऐसे देश से हूँ जिसके बारे में अब चाव से नहीं सोचा जाता, और मैं श्वेत हूँ, और सभी पुरस्कार भी प्राप्त कर चुकी हूँ. तो इस बात की संभावना बहुत कम थी कि अपने जीवन काल में मुझे इस विशेष घटना का कभी सामना करना होगा.
३.
महामारी के इन कठिन, एकांतवास के महीनों में आप का जीवन कैसा रहा? क्या आप लिख पायीं?
मैं वैसे ही बहुत अनियमित ढंग से लिखती हूँ, तो यह कोई स्थायी अभ्यास नहीं है. मैं चार वर्षों से एक संकलन पर काम कर रही हूँ, जिसने मुझे बहुत परेशान किया है. फिर जुलाई के अंत और अगस्त में, अप्रत्याशित ढंग से मैंने कुछ नई कविताएँ लिखीं, और एकाएक मैंने देखा कि उस संकलन को रूपाकार दे कर मैंने पूरा कर दिया है. यह एक चमत्कार था. हमेशा होने वाले उत्साह और राहत की भावनाएँ कोविड के कारण दबी-दबी थीं, क्योंकि मुझे रोज़ के अपने आतंक से और दैनिक जीवन के आवश्यक गतिरोधों से लड़ना था.
४.
आपके नए संकलन का विषय क्या है?
टूट के बिखरना. इस किताब में काफी उदासी है. बहुत कॉमेडी भी है, और कविताएँ अत्यंत अवास्तविक हैं.
मैंने मृत्यु के बारे में लिखा है चूंकि मैं लिख सकती थी. वस्तुतः मैं जब से 10 वर्ष की थी, तभी से मृत्यु के बारे में लिख रही हूँ. हाँ, तो मैं एक खुशदिल लड़की थी. बूढ़ा होना अधिक जटिल है. वह केवल यह तथ्य नहीं कि आप अपनी मृत्यु के और
पास आ गए हैं, बल्कि ऐसा है कि जिन शक्तियों पर आपने हमेशा भरोसा किया – शारीरिक सुंदरता व बल और मानसिक दक्षता – ये शक्तियाँ संकट में हैं, या कमजोर हो गयी हैं. इनके बारे में सोचना और लिखना काफी रोचक रहा.
५.
आप की कविताओं के प्रेरणा स्रोत बहुधा प्राचीन कालिक पौराणिक कथाएँ हैं और उनमें पौराणिक आदि रूपों को पारिवारिक बंधनों और रिश्तों पर लिखी निजी आधुनिक पंक्तियों के साथ बुना गया है. उन पौराणिक चरित्रों में आप को क्या आकर्षित करता है, और जो आप अपनी कविताओं में खोजती हैं, उनके द्वारा कहना चाहती हैं, ये कथाएँ उसमें क्या जोड़ती हैं?
हर कोई जो लिखता है, वह अपनी सुदूर स्मृतियों से पोषित और प्रज्वलित होता है, उन बातों से जिन्होंने बचपन में छुआ हो या रोमांचित किया हो. मेरे दूरदर्शी माता-पिता ने बचपन में मुझे ग्रीक पौराणिक कथाएँ पढ़ के सुनाई थीं, और जब मैं स्वयं पढ़ने के काबिल हुई, मैं उन्हें स्वयं पढ़ती रही. वे देव और नायक मेरे लिए, लॉन्ग आइलैंड के उस भवनसमूह में रहने वाले बच्चों की अपेक्षा, अधिक सजीव थे. ऐसा नहीं था कि मैं अपनी कविताओं को प्रबुद्धता का रंग देने के लिए बाद के जीवन में पढ़ी-जानी चीज़ों से प्रेरणा ले रही थी. ये वे कहानियाँ थीं जो मैंने बचपन में सोते समय माता-पिता से सुनी थीं. और इनमें से कई कथाएँ मेरे भीतर गूंजती रही, विशेषकर पर्सीफ़नी, और मैं उसके बार में 50 वर्षों से यदा-कदा लिखती रही हूँ. और मुझे लगता है कि मेरी अपनी माँ के साथ उतनी ही खींचातानी रहती थी जितनी महत्वाकांक्षी लड़कियों की अक्सर रहा करती है.
मुझे लगता है इस मिथक विशेष ने उस खींचातानी को नया आयाम दिया. मेरा मतलब यह नहीं है कि रोज़मर्रा के जीवन में वह मेरे किसी काम आता था. जब मैं लिखती थी, अपना माँ की शिकायत करने के बजाय मैं डेमीटर की शिकायत कर सकती थी.
(डेमीटर पर्सीफ़नी की माँ थीं )
६.
कई लोग आपके काम की तुलना सिल्विया प्लाथ से करते हैं और आपकी कविताओं में स्वीकारोक्ति और आंतरिक आलाप पाते हैं. अपनी कविताओं में आपने कहाँ तक निजी अनुभवों से प्रेरणा ली है और सामान्य मानवीय विषयों को कितना खोज पायी हैं?
आप हमेशा अपने निजी अनुभवों से प्रेरणा लेते हैं क्योंकि बचपन से आरम्भ हो आपका जीवन उन्हीं से निर्मित होता है. मगर मैं आद्य अनुभव खोजती हूँ और यह मान के चलती हूँ कि मेरे संघर्ष और मेरी खुशियाँ अपूर्व नहीं हैं. जब आप उन्हें अनुभव करते हैं तो वे अनोखे लगते हैं, मगर मैं अपने ऊपर या अपने जीवन विशेष पर स्पॉटलाइट नहीं डालना चाहती हूँ, बल्कि मुझे रुचि है मनुष्यों के संघर्ष और उनकी खुशियों में, जो पैदा होते हैं और फिर दुनिया से जाने को बाध्य हैं. मुझे लगता है मैं नश्वरता के बारे में इसलिए लिखती हूँ क्योंकि बचपन में मुझे गहरा धक्का लगा था जब पता चला था कि यह जीवन हमेशा के लिए नहीं मिलता.
७.
अपने कार्यकाल के दौरान आपने कविता के विभिन्न शैलियों का प्रयोग किया हैं, हालाँकि आपका स्वर विशिष्ट रहा है. स्वयं को विभिन्न शैलियों के प्रयोग के लिए बाध्य करना, क्या यह एक सोचा समझा प्रयास था ?
जी हाँ, हर वक़्त. आप लिखते हैं जोखिम उठाने के लिए. मैं चाहती हूँ मुझे ऐसी जगह ले जाया जाए जिसके बारे में मुझे कुछ भी न पता हो. मैं ऐसी जगह होना चाहती हूँ जहाँ मैं अजनबी हूँ. बुढ़ापे के बारे में कहने को एक अच्छी बात है, कि यह अनुभव है. अवनति हर किसी के लिए एक अप्रत्याशित ख़ुशी नहीं लाती, मगर ताज़ी खबर की तरह इस अवस्था में एक रस है. और कवि या लेखक के लिए यह अमूल्य है. मुझे लगता है कि हमारे लिए हमेशा विस्मित होना, और एक तरह से नौसिखिया होना ज़रूरी है, नहीं तो मैं ऊब से मर जाऊंगी. और कितनी बार ऐसा ही हुआ भी है, जब मैंने सोचा है, सुनो यह कविता तो तुम लिख चुकी हो. बहुत अच्छी कविता है, मगर तुम पहले लिख चुकी हो.
8.
आपको किस तरह लगता है कि कवि के रूप में आयुवृद्धि आपको नए क्षेत्रों की खोज की ओर ले गई है?
आप स्वयं को यहाँ वहाँ संज्ञाएँ खोता पाते हैं, और आपके वाक्यों के बीच में बड़ी-बड़ी रिक्तियाँ पैदा हो जाती हैं, और आपको या तो वाक्य को दोबारा गढ़ना पड़ता है या उसे छोड़ ही देना पड़ता है. पर मुद्दा यह है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. और हालाँकि यह अप्रिय है, और ये ठीक लक्षण नहीं, फिर भी, कलाकार की नज़र में यह नया और उत्साहपूर्ण है.
९.
आप की लेखन शैली को सादा और छँटी हुई कहा गया है. क्या यह आपका स्वाभाविक ढंग है या आपने इसे विकसित किया है, तराशा है?
हाँ, कभी-कभी छँटी हुई. कभी मैं वार्तालाप की शैली में लिखती हूँ. आप अपनी आवाज़ को बनाते नहीं हो. वाक्य कहे जाने का मार्ग स्वयं खोज लेता है. यह कितना उभयार्थक सुनाई देता है. आवाज़, इस के बारे में बात करना कठिन है. मुझे लगता है वाक्य-विन्यास ने मुझे हमेशा आकर्षित किया है और उसका महत्व मैंने समझा है, और जिन कविताओं ने मुझे सब से अधिक प्रभावित किया उनमें शब्द-आडम्बर का अभाव था. वे ब्लेक और मिल्टन जैसे कवि थे जिनका वाक्य-विन्यास आश्चर्यजनक था, जिस तरह वे अपनी बात में वज़न लाए.
१०.
आप येल में पढ़ाती हैं और आपने बताया है कि अध्यापन ने कैसे आपको अपने लेखन की मुश्किलों का सामना करने में मदद की. क्या आपके अध्यापन कार्य ने आप के लेखक को गढ़ने में मदद की है?
आपका सामना निरंतर नए और अप्रत्याशित विचारों से होता रहता है. आप को अपने विचार पुनः व्यवस्थित करने पड़ते हैं ताकि आप अपने छात्रों में से वह निकल पाओ जो उन्हें उत्साहित करता है. मेरे छात्र मुझे अवाक कर देते हैं, चौंधिया देते हैं. हालाँकि मैं हर समय लिख नहीं पाती, हर समय दूसरों का लिखा पढ़ ज़रूर पाती हूँ.
११.
अपना समय देने के लिए बहुत धन्यवाद. आप कुछ और कहना चाहेंगी?
अगर आप इस बात पर गौर करें कि शुरुआत मैंने कुछ न कहने की इच्छा से की थी, मैं कुछ अधिक ही कह गयी हूँ. नहीं, मुझे ऐसा कुछ नहीं सूझ रहा. जो भी कहना ज़रूरी है, वह अधिकतर मेरी कविताओं में आ ही जाता है, और बाकी सब केवल मनोरंजन है.
(अंग्रेजी में प्रकाशित, नई यॉर्क टाइम्स , 8 अक्टूबर, 2020)
क वि ता एँ
सफ़ेद फूल
तुम जानते हो मैं क्या थी, कैसे जीती थी? तुम्हें पता है
निराशा क्या है; फिर
सर्दी के मायने होने चाहिए तुम्हारे लिए.
मुझे कोई आशा न थी
बचने की, धरती तले दबे हुए, नहीं थी
आशा फिर जागने की, गीली मिट्टी
में फिर से महसूस करने की
अपनी देह की
हलचल, याद रखते हुए
इतने समय बाद फिर से कैसे
खिलना है वसंत के आरम्भ की
ठंडी रोशनी में-
डरती हूँ, हाँ, पर फिर तुम्हारे बीच
रोती हूँ, हाँ, आनंद का जोखिम
इस नई दुनिया की ठंडी हवा में.
मैदान के फूल
क्या कह रहे हो तुम? कि तुम्हें
चाहिए अमरत्व? क्या तुम्हारे विचार
सच में इतनी सम्मोहक हैं? निस्संदेह
तुम हमें देखते नहीं, हम को सुनते नहीं,
तुम्हारी देह पर
धूप के चिह्न, धूल
पीले नवनीत की: मैं तुम से
बात कर रही हूँ, तुम जो झाँक रहे हो
घास के ऊँचे तिनकों के बीच से बजाते
हुए अपना छोटा-सा झुनझुना- आह
आत्मा! आत्मा! क्या केवल भीतर
देख पाना ही काफी है? घृणा
करना मानवता से एक बात है, मगर इस
विस्तृत मैदान का तिरस्कार
क्यों, तुम्हारी दृष्टि उठती है जंगली नवनीत
के स्पष्ट सिरों के ऊपर, मगर कहाँ जाती है? स्वर्ग
का तुम्हारा घटिया विचार: बदलाव
का अभाव. धरती से बेहतर? कैसे
जान सकते हो तुम, तुम जो हो
न इधर के न उधर के, बीच में खड़े?
चांदनी में प्रेम
कभी-कभी एक आदमी या औरत अपना नैराश्य
लाद देते हैं किसी दूसरे पर, जिसे कहते हैं
मन खोल के रख देना, या कहें आत्मा ही खोल के रख देना-
यानी इस पल के लिए उन्होंने आत्मा पा ली–
बाहर, गर्मियों की साँझ, एक पूरी दुनिया
न्योछावर चांद पर, रजत आकृतियों के समूह
जो हो सकते हैं पेड़ या इमारतें, छोटी बगिया जहाँ
बिल्ली छुपती है, धूल में पीठ के बल लोटती है,
गुलाब, स्वर्णगुच्छ, और, अँधेरे में, संसद भवन
का सुनहरी गुम्बद
चांदनी के मिश्रधातु में रूपान्तरित, केवल आकार,
विवरण रहित, मिथक, आदि रूप, आत्मा
आग से भरी जो वास्तव में चांदनी ही है, किसी
अन्य स्रोत से ली गई, और क्षण भर
को चांद जैसे ही चमकती, पत्थर है या नहीं,
चन्द्रमा अब भी उतना ही जीवंत है.
नीरव सांझ
तुम मेरा हाथ पकड़ते हो ; फिर हम अकेले हैं
इस जानलेवा जंगल में. लगभग उसी समय
हम एक घर में हैं ; नोआ
बड़ा हो कर, घर से दूर जा चुका है; मूर्वा की बेल दस वर्ष बाद
अचानक सफ़ेद फूलों से लद जाती है.
संसार में किसी और वस्तु से अधिक
मुझे यह सांझ पसंद है जब हम संग होते हैं,
गर्मियों की ये नीरव शामें, आकाश इस पहर भी रोशन.
तो पनेलपी ने ओडीसियस का हाथ थामा,
उसे रोकने के लिए नहीं बल्कि लगाने के लिए मुहर
इस शान्ति की उसकी स्मृति पर :
इस क्षण के बाद, जिस मौन से तुम गुज़रोगे
तुम्हारा पीछा करती वह मेरी आवाज़ है.
गाहना
गगन की रोशनी पहाड़ के पीछे
हालाँकि सूरज डूब चुका है- यह रोशनी
धरती पर से गुज़रती सूरज की परछाई है.
पहले, जब सूरज सिर पर था,
तुम आकाश की ओर नहीं देख सकते थे, अंधे हो जाते.
दिन के उस पहर, आदमी काम नहीं करते.
वे छाँव में लेट जाते हैं, सुस्ताते, प्रतीक्षा करते;
उनकी बनियान पसीने से भीगी होती हैं.
लेकिन पेड़ों के तले ठंडक है,
जैसे सुराही में पानी की, जिस से एक-एक कर सब पी रहे हैं.
एक हरा शामियाना उनके सिर पर तना, धूप को रोकता है.
कोई बात चीत नहीं, केवल लू में पत्तों की सरसराहट,
एक हाथ से दूसरे हाथ जाती सुराही में हिलते पानी की छप.
यह दो-एक घण्टे दिन का बेहतरीन समय है.
न सोए, न जागे, न नशे में धुत्त,
और औरतें कहीं दूर
जिनकी हलचल के बिना
दिन अचानक शांत, स्थिर और विस्तृत हो गया है.
आदमी छाँव में लेटे हैं, गर्मी से दूर,
मानो दिन का काम पूरा हो चुका हो.
खेतों के पार, नदी है निःशब्द, नीरव-
झाग सतह को छींटती हुई.
हर आदमी को पता है वह समय कब बीत बीत चुका है.
सुराही एक ओर धर दी जाती है, और रोटी भी, अगर बची है.
पत्तों का रंग गहराता है, परछाइयाँ बदलती हैं.
सूरज फिर चल दिया है, आदमियों को संग लिए,
उनकी पसंद-नापसंद की परवाह बिना किए.
अतीत
छोटी-सी रोशनी उभरती है
अचानक आकाश में
चीड़ की दो टहनियों के बीच, उनके नुकीले पत्ते
अब उज्ज्वल सतह पर उकेरे गए हैं
और उनके ऊपर
ऊँचा, पंख जैसा गगन-
हवा की खुशबू लो. यह सफ़ेद चीड़ की गंध है,
जब हवा उसमें से बहती है तो गहन हो जाती है
और जो आवाज़ होती है वह उतनी ही अजीब,
जैसे किसी फिल्म में बहती हवा की आवाज़-
डोलती परछाइयाँ. रस्सियों की
चरमराहट. अब जो तुम्हें सुनाई देगा
वह बुलबुल का गीत होगा,
मादा को नर का प्रणय निवेदन-
रस्सियाँ सरकती हैं. आराम झूला
हवा में झूलता है, दो चीड़ के
पेड़ों के बीच मज़बूती से बंधा.
हवा की खुशबू लो. यह सफ़ेद चीड़ की गंध है.
यह मेरी माँ की आवाज़ है जो तुम सुन रहे हो
या केवल वह आवाज़ है जो पेड़ों से आती है
जब हवा उनमें से गुज़रती है
क्योंकि वह कैसी आवाज़ होती
जो किसी से नहीं गुज़रती ?
(\’फैथ्फुल एंड वर्चुअस नाईट :पोएम्ज़\’ : 2014) से
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फ्रेंच भाषा की शिक्षिका और कवयित्री रीनू तलवाड़ दशकों से विदेशी भाषाओं से हिंदी में अनुवाद कर रहीं हैं. उनके अनुवाद सभी प्रमुख पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं.
reenu.talwarshukla@gmail.com