अमरीकन कथाकार Tobias Wolff (जन्म: जून १९, १९४५) की कहानी ‘Say Yes’ का लेखक-अनुवादक यादवेन्द्र द्वारा हिंदी रूपांतरण ‘हां बोल दो न’ पढ़ते हुए लगता है कि आप किसी टिक-टिक करते टाइम बम्ब पर बैठे हैं जो अब फटा तब फटा. पत्नी के साथ किचन में हाथ बटाते हुए पति का यह कहना कि गोरे लोगों को कालों के साथ शादी नहीं करनी चाहिए’ इस कहानी को रंग भेद (भारत में जाति) और संस्कृतियों के अंतर में लावे की तरह धधक रहे ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ा कर देता है. कहानी में बर्तन और साफ़ सफाई भी बहुत कुछ कहते हैं जैसे वे भी इस कहानी के पात्र हों.
प्रस्तुत है कहानी
टोबॉयस वोल्फ
हां बोल दो न
यादवेन्द्र
रसोई में अभी दोनों मिलकर बर्तन साफ कर रहे थे- उसकी पत्नी बर्तनों को धो रही थी और वह उन्हें सुखा रहा था. कल रात उसने बर्तन साफ किए थे. अपनी पहचान वाले लोगों में वह कम लोगों को जानता था जो घर के काम काज करना और समेटना करते थे. अभी कुछ दिनों पहले की बात है उसकी पत्नी से कोई सहेली कह रही थी कि तुम बड़ी किस्मत वाली हो कि तुम्हारा पति इतना मददगार और तुम्हारा हाथ बंटाने वाला है, यह बात उसने दूसरे कमरे से सुनी थी. उसके बाद उसे लगा जैसा वह सहेली कह रही थी उसे वैसा बनने की कोशिश करनी चाहिए. उसे लगा कि बर्तन साफ करने और सहेजने का काम ऐसा था जिसके माध्यम से वह यह साबित कर सकता था कि वह वास्तव में एक समझदार और मददगार पति है.
काम करते हुए वे अलग-अलग विषयों पर बात कर रहे थे पर अचानक उनकी बातचीत इस बिंदु पर आकर टिक गई कि गोरे लोगों को कालों के साथ शादी करनी चाहिए या नहीं. उसने अपनी राय दी कि सारे पहलुओं पर गौर करते हुए उसे यह विचार सही नहीं लग रहा है.
\”क्यों?\”, उसकी पत्नी ने तपाक से पूछा.
कई बार उसकी पत्नी अपनी भवों को तिरछा कर निचला होंठ दबाकर उसे ऐसे ही घूरती है जैसे उस समय कर रही थी. अपनी पत्नी के ये तेवर देखकर उसने यही उचित समझा कि अपना मुंह बंद रखे, इस विषय में आगे और कुछ न बोले पर उसका ऐसा सोचना सच में संभव कहां हो पाया, जिस मुद्दे पर बात शुरू हुई थी वह आगे बढ़ती ही गई. पत्नी के चेहरे पर वही तीखे तेवर थे.
\”क्यों?\”, एक बर्तन के अंदर अपना हाथ डालकर काम करते हुए पल भर को ठहर कर उसने फिर पूछा.
\”सुनो\”, उसने कहा,
\”मैं अपने स्कूल में काले लड़कों के साथ पढ़ा हूं, मैंने कालों के साथ काम किया है और मुझे कभी उनके साथ कोई दिक्कत नहीं हुई, हमारे बीच बहुत अच्छे संबंध रहे. यहां मैं तुम्हें यह बात इसलिए बताना जरूरी समझता हूं जिससे तुम्हारे मन में यह गलतफहमी न पैदा हो जाए कि मैं काले गोरे का भेद करने वाला एक रेसिस्ट हूं.\”
\”मैंने तो ऐसा कुछ कहा ही नहीं\”, पत्नी ने जवाब में कहा और हाथ घुमा–घुमा कर बर्तन फिर से साफ करने लगी.
\”मैं तो बस इतना मानती हूं कि यदि कोई गोरा इंसान किसी काले इंसान से शादी करता है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है, बस इतनी सी तो बात है.\”
\”वे दोनों अलग संस्कृति वाले लोग हैं, हम दोनों जैसे एक समान संस्कृति के लोग नहीं हैं. कभी उन लोगों की बातचीत सुनो, उनकी जुबान तक हमसे अलग होती है. वैसे मुझे उनको लेकर कोई दिक्कत नहीं है, मैं उनके साथ बातचीत मजे से कर सकता हूं.\”
उसने जो कहा सचमुच वैसा करता भी था और ऐसा करके उसे अच्छा लगता था.
\”पर यह मुश्किल तो है, उनकी संस्कृति का एक इंसान हमारी संस्कृति के किसी इंसान को वास्तविक रूप में अच्छी तरह से जान सकता ही नहीं, उनके बीच अंतर हर दम बना ही रहेगा.\”
\”जैसे तुम मुझे जानते हो?\”, उसकी पत्नी ने पूछा.
\”हां, बिल्कुल सही- जैसे तुम मुझे जानती हो.\”
\”लेकिन यदि उन दोनों के बीच प्यार हो, तब?\”, पत्नी ने कहा.
उसने बर्तनों की सफाई के अपने काम की रफ्तार थोड़ी बढ़ा दी थी और उसकी तरफ सीधा देख कर बोल रही थी.
\”देखो जो मैं कह रहा हूं उन शब्दों को मत पकड़ो, बाल की खाल निकालना छोड़ो… जो आंकड़े हमारे सामने हैं उनकी तरफ भी गौर करना चाहिए. वे साफ़–साफ़ बताते हैं कि गोरे और कालों की ज्यादातर शादियां ब्रेकअप के रूप में टूट जाती हैं.\”
\”आंकड़े?\”, पत्नी जल्दी-जल्दी अपना काम पूरा करती जा रही थी.
कई बर्तनों में अब भी चिकनाई लगी हुई थी और कांटों के बीच में खाने के टुकड़े फंसे हुए थे.
\”चलो तुम्हारी बात मान लेती हूं\”, पत्नी ने कहा:
\”पर विदेशियों का क्या? मुझे लगता है कि उनके बारे में भी तुम्हारी यही राय होगी कि अलग-अलग देशों से आए हुए दो लोग शादी करके भी बेमेल ही रहेंगे…रहने को चाहे वे जीवन भर साथ रह लें.\”
\”यह तुम ठीक कह रही हो,सच्चाई यह है कि उनके बारे में भी मेरी राय यही है- बिल्कुल अलग तरह की परवरिश के बाद एक दूसरे से मिले दो लोग कैसे एक दूसरे को समझ सकते हैं?\”
\”अलग?\”, पत्नी ने कहा, \”एक समान नहीं, जैसे हम दोनों?\”
\”हां, मैंने यही तो कहा कि अलग\”, उसने खीझ कर कहा.
उसे इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि पत्नी उसी के शब्दों को बार–बार इस तरह दोहरा रही है कि उनके अर्थ बदले हुए लगें या लगे जैसे मैं ढोंग वाली कोई बात कह रहा हूं.
इसी गुस्से में उसने चांदी के सारे बर्तनों को एक साथ सिंक में पटक दिया :
\”ये सब गंदे हैं.\”
पत्नी ने उनकी तरफ निगाह मारी, अपने दोनों होंठ कस के दबा लिए और हाथ लगाकर बर्तनों को छुआ.
\”ओह\”, उसने जोर से आवाज निकाली और पीछे की ओर कूद पड़ी. दाहिना हाथ ऊपर उठाकर देखा तो अंगूठे से खून बह रहा था.
\”ऐन, अभी वहीं खड़ी रहो… मैं गया और बस आया\”, उसने कहा और दौड़ता हुआ सीढ़ियों से ऊपर बाथरूम तक गया. वहां रखी दवाइयां, रुई और बैंड एड लेकर नीचे आया तो देखा कि पत्नी फ्रिज से टिक कर, अपनी आंखें मूंदे हुए और दूसरे हाथ से अपना जख्मी अंगूठा थामे हुए खड़ी है.
उसने पत्नी का हाथ पकड़ा और अंगूठे के चारों ओर रुई लपेट दी, खून बहना रुक गया था.
उसने अंगूठे को थोड़ा दबाया जिससे यह देख सके कि जख्म कितना गहरा है…खून का एक कतरा नीचे फर्श पर टपक पड़ा. पत्नी ने उसकी तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा.
|
(Promotesh Das Pulak: Beautiful way to die)
|
\”मामूली सी चोट है, कोई गहरा जख्म थोड़े ही है…देखना, कल जब तुम इसे देखना चाहोगी तो ढूंढे भी नहीं मिलेगा.\”, उसने माहौल को हल्का करने की गरज से कहा. उसे उम्मीद थी कि पत्नी मदद करने की उसकी फुर्ती देखकर प्रभावित होगी… उसके मन में पत्नी की मदद करने की सरल इच्छा भर थी, उसके बदले किसी प्रकार के अवदान की बिल्कुल नहीं.
उसी समय उसके मन में यह ख्याल आया कि पत्नी उसके दयालु व्यवहार को देखकर इतना तो कर ही सकती है कि जो बहस अब तक चल रही थी उसको फिर से आगे न बढ़ाए… बहुत हो गया, वह उस विषय पर बात करते–करते थक चुका था.
\”अब बाकी काम मैं कर लूंगा\”, उसने पत्नी से कहा:
\”तुम यहां से हटो, और अब जाकर बिस्तर पर आराम करो.\”
\”ठीक है, मैं हाथ सुखा लेती हूं\”, पत्नी ने जवाब दिया.
उसने चांदी के बर्तनों को फिर से हाथ लगाया, उनकी सफाई शुरू की पर कांटों का विशेष ध्यान रखा जिससे गफलत में पहले वाले हादसे की पुनरावृत्ति न हो.
\”इसका मतलब यह हुआ कि यदि मैं काली होती तो तुम मुझसे शादी नहीं करते\”, पत्नी ने बात का सिरा आगे बढ़ाया.
\”खुदा के लिए, ऐसा न कहो ऐन\”
\”तुमने ही तो कहा था…बोलो, क्या ऐसा नहीं कहा था तुमने?\”
\”नहीं, मैंने ऐसा बिल्कुल नहीं कहा. यह पूरा सवाल ही एकदम वाहियात और बेहूदा है. यदि तुम काली होतीं तो इस बात की भरपूर संभावना होती कि हम कभी मिलते ही नहीं. तुम्हारे तुम्हारी तरह के दोस्त होते होते और मेरे मेरी तरह के दोस्त होते. इतने सालों में अब तक मैं सिर्फ एक काली लड़की को जानता हूं जो डिबेट में मेरी पार्टनर हुआ करती थी और जब उससे मुलाकात हुई उससे पहले ही हमारी पहचान हो गई थी… और हम अपने भविष्य के बारे में सपने देखने लगे थे.\”
\”फर्ज़ करो हम एक दूसरे से मिले होते… और मैं गोरी नहीं काली होती?\”
\”तब भी तुम मेरे साथ नहीं बल्कि किसी काले लड़के के साथ जुड़ी होतीं.\”
उसने साबुन के छींटे बर्तनों पर मारे, नल का पानी इतना गर्म था कि पहले तो बर्तनों का रंग नीला हो गया, फिर धीरे-धीरे ठंडा होने पर चांदी का अपना स्वाभाविक रंग लौट आया.
\”फर्ज़ करो ऐसा नहीं होता… मैं काली होती और किसी काले लड़के के साथ मेरा कोई चक्कर नहीं होता. तब क्या हम मिलते और गोरे काले होते हुए भी दूसरे के प्यार में पड़ जाते?\”
पत्नी ने जोर दे कर कहा.
उसने पत्नी को गौर से निहारा…देखा, वह भी उसकी ओर ही देख रही थी. पत्नी की आंखों में एक अलग तरह की चमक थी.
\”देखो, इतनी देर से तुम कैसी बेवकूफी भरी बातों को घोंटती जा रही हो, सीधी से बात यह है कि यदि तुम काली होतीं तो वह तुम होतीं ही नहीं\”, इस बार उसने अपनी आवाज़ में निर्णायक गंभीरता थोपते हुए कहा.
ऐसा कहने के बाद उसने महसूस किया कि उसने जो कहा वह शत प्रतिशत सही था. इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि उसकी पत्नी यदि काली होती तो वह बिल्कुल नहीं होती जो आज है, इसीलिए उसने फिर से दुहराया:
\”यदि तुम काली होतीं तो जो आज हो वह तुम तुम होती ही नहीं .\”
\”जानती हूं\” पत्नी ने कहा: \”लेकिन मान लो \”
उसने गहरी सांस ली. यह सही था कि बहस वह जीत गया था पर पत्नी ने हथियार अभी डाले नहीं थे.
\”क्या मान लूं?\”, उसने पूछा.
\”यही कि मैं काली हूं और मैं वही हूं जो मैं हूं… और हम दोनों प्यार में पड़ जाते हैं. तब क्या तुम मुझसे शादी करोगे?\”
उसने इस मुद्दे पर विचार किया.
\”चुप्पी मत ओढ़ो, बोलो\”, यह कहते हुए वह उसके पास आकर खड़ी हो गई, उसकी आंखों में अब पहले से ज्यादा चमक आ गई थी.
\”बोलो, क्या मुझसे शादी करोगे?\”
\”मुझे सोचने तो दो\”, उसने जवाब दिया.
\”बिल्कुल नहीं करोगे, मैं पहले ही बता सकती हूं. सोचने के बाद तुम यही जवाब दोगे… कि नहीं.\”
\”तुम तो बस अपनी बात पर अड़ी हुई हो…\”
\”अब और सोच विचार नहीं … सीधा बोलो: हां या ना?\”
\”हे भगवान… तो चलो ऐन, मैं ना कहूंगा.\”
\”शुक्रिया\”, यह कहते हुए पत्नी किचन से निकलकर अंदर कमरे में चली गई. थोड़ी देर के बाद उसने पत्नी को किसी पत्रिका का पन्ना पलटते हुए सुना, उसे मालूम था कि पत्नी जितने क्रोध में है उसमें पढ़ाई तो क्या ही होगी. हालांकि पत्नी इस बात का ध्यान रख रही थी कि उसके क्रियाकलाप से उसके क्रोध का पता बिल्कुल न चले, इसीलिए वह पत्रिका के पन्नों को हौले–हौले पलट रही थी जिससे यह लगे कि वह छपे हुए एक–एक शब्द को बड़े गौर से पढ़ रही है. वह भरपूर कोशिश कर रही थी कि जता सके कि इन सारी बातों से उसके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. उसे मालूम था कि वह जो कर रही है उसे जतलाने के लिए ही कर रही है, इस बात ने पुरुष को ज्यादा आहत किया.
अब उसके पास भी पत्नी के प्रति बेरुखी दिखलाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. बिल्कुल चुपचाप रह कर और धैर्यपूर्वक उसने शेष बचे बर्तनों को साफ किया, उन्हें सुखाया और जगह पर रखा. उसके बाद स्टोव और स्लैब को पोंछा, फर्श पर जो खून की एक बूंद पड़ी थी उसको भी साफ किया. जब सब काम पूरा हो गया तो उसने सोचा फर्श को बुहार भी दिया जाए. यह काम पूरा करने के बाद उसे तसल्ली हुई, किचन वैसा ही नया-नया लगने लगा जैसे पहली बार वे जब घर देखने आए थे तब लगा था.
उसने कूड़े वाली बाल्टी उठाई और घर से बाहर निकलने को हुआ- आसमान एकदम साफ था और पश्चिम दिशा में उसे कुछ तारे दिखाई दिए जो शहर की चकाचौंध से धुंधले नहीं पड़े थे. एल कैमिनो पर ट्रैफिक की रफ़्तार धीमी दिखाई दे रही थी… उसकी गति भी उतनी ही सुस्त थी जितनी नीचे बहती नदी की.
उसे लगा उसने पत्नी से खा–म–खा झगड़ा मोल ले लिया. अब उम्र ही कितनी बची है- मुश्किल से 30 साल और जब वे दोनों इस दुनिया में नहीं होंगे- फिर यह सब झगड़ा झंझट क्यों मोल लेना. सोचते सोचते उसे दोनों के साथ बिताए दिन याद आने लगे, उसे लगा कि दोनों के बीच कितनी अंतरंगता रही है, दोनों एक दूसरे को कितनी अच्छी तरह से जानते समझते हैं. यह सोचते हुए उसका गला इतना भर आया कि सांस लेना मुश्किल होने लगा.
उसके चेहरे और गर्दन में झुरझुरी उठने लगी, सीने में उसने गर्माहट महसूस की. थोड़ी देर इसी तरह खड़ा रह कर वह इन अनुभूतियों का आनंद लेता रहा. फिर कूड़े की बाल्टी लेकर वह घर से बाहर निकल आया.
बाहर निकलने पर दो कुत्ते कूड़े की बाल्टी के लिए छीना झपटी करने लगे- उनमें से एक जमीन पर लोट रहा था और दूसरे के मुंह में कुछ था जिसे धीरे–धीरे गुर्राते हुए उसने बाहर निकाला, फिर अपने मुंह में लिया और बार-बार इस प्रक्रिया को दोहराए जा रहा था. उसके हाथ में कूड़े की बाल्टी देखते ही दोनों कुत्ते झपट्टा मारते हुए उसकी तरफ बढ़े. आमतौर पर वह कुत्तों को अपनी ओर आते देख पत्थर मारकर उन्हें भगा देता था लेकिन आज उसने उन्हें रोका नहीं.
जब वह अंदर आया तो घर में अंधेरा पसरा हुआ था. पत्नी बाथरूम में थी, दरवाजे पर खड़े होकर उसने उसे आवाज दी. अंदर से उसे बोतलों के टकराने की आवाज आ रही थी लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला.
\”ऐन, मैं बहुत शर्मिंदा हूं, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था\”, उसने कहा:\” चलो, आगे से ऐसा नहीं करूंगा… वायदा करता हूं.\”
\”कैसे भला?\” उसने पूछा.
उसे इस सवाल की उम्मीद कतई न थी, पत्नी की आवाज और उसके अंदर समाए हुए भाव उसे एकदम अजनबी लगे. उसे समझ आ गया है कि जो भी जवाब उसे देना है बहुत सोच समझकर और सावधानी से देना होगा. वह दरवाजे से टिक कर खड़ा हो गया.
\”मैं तुमसे शादी करूंगा\”,
वह धीरे से फुसफुसाया.
\”देखते हैं\”, उसने कहा…\” तुम बिस्तर पर चलो, मैं एक मिनट में आई.\”
उसने अपने कपड़े उतारे और बिस्तर पर आकर चादर ओढ़ कर लेट गया. थोड़ी देर के बाद उसे बाथरूम का दरवाजा खोलने और फिर बंद करने की आवाज़ सुनाई दी.
\”लाइट बंद कर दो\”, बिस्तर की ओर आते हुए उसने हिदायत दी.
\”क्या कहा?\”
\”कहा, लाइट बंद कर दो.\”
उसने हाथ बढ़ाकर बिस्तर के बगल में रखा लैंप बंद किया, कमरे में अंधेरा पसर गया.
\”अब ठीक है.\” उसने कहा.
वह बिस्तर पर वैसे ही पड़ा रहा लेकिन कहीं कुछ अलग हुआ नहीं.
\”ठीक है.\” उसने फिर कहा.
उसे कमरे में चहलकदमी होती हुई महसूस हुई. वह उठ कर बैठ गया पर साफ़-साफ़ कुछ दिखाई नहीं पड़ा. कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था. उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा बिलकुल वैसे ही जैसे सुहागरात के पलों में धड़क रहा था. उस रात भी जब मध्य रात्रि में अंधेरे शोर के बीच उसकी नींद खुली तो वह उन आवाजों को दम साध कर सुनने की कोशिश करने लगा घर के बीच चहलकदमी करता कोई इंसान… पर उससे एकदम बेपरवाह, एकदम से अजनबी.
(अंग्रेजी से हिंदी रूपांतरण यादवेन्द्र )
______
यादवेन्द्र
बिहार से स्कूली और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1980 से लगातार रुड़की के केन्द्रीय भवन अनुसन्धान संस्थान में वैज्ञानिक.
प्रचुर अनुवाद और मौलिक लेखन, साहित्य के अलावा सैर सपाटा, सिनेमा और फ़ोटोग्राफ़ी का शौक.
yapandey@gmail.com