वह सूती कमीज, लट्ठे का पैजामा और सिर पर गुलाबी पगड़ी पहने था. उसकी मूँछों की ऐंठ और आँखों की चमक वैसी नहीं थी जैसी अमूमन रहा करती थी. उसका आत्मविश्वास डिगा हुआ था क्योंकि सारी स्थिति का विश्लेषण करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुँचा था कि दोष चम्पा का ही है. अपना ही सिक्का खोटा हो तो चाहने के बाद भी सिर उठा नहीं रह सकता.वे पतन की पराकाष्ठा पर खड़ी उस स्त्री को देखने आए थे जिसने डोली से उतरते ही अपने पति को पति मानने से इनकार कर दिया. उन्हें उम्मीद थी कि पंचायत सजा के तौर पर उसे नंगा करके घुमाएगी. एक लड़की को, जिसके बारे मे चर्चा थी कि वह बहुत खूबसूरत है, सरेआम नंगा देेखने का उन्माद उनकी नसों में दौड़ रहा था.
‘वर की कमर में तलवार बंधी है….पंच परमेश्वर बताएँ कि क्या पंचायत में हथियार लाने की इजाजत है?’
‘यह हमारा रिवाज है कि कमर में तलवार बांधकर लड़का शादी करता है और वह तब तक कमर से नहीं खोली जाती जब तक दूल्हा मंढे की बत्ती खोल कर दुल्हन को सकुशल घर के भीतर नहीं पहुँँचा देता. मामला यही है, जिसके लिए हमने पंचायत में गुहार लगाई कि मंढे की बत्ती नहीं खुली और बहू ने घर में परवेस नहीं किया, इसलिए तलवार कमर से नहीं खोली गई. तब भी, जब किसन की पंसली की हड्डियाँ टूट गई और, यहाँ तक कि दिशा-मैदान के समय भी इसे नहीं खोला गया. पंचपरमेसुर से गुजारिश है कि जब तक कोई फैसला नहीं हो जाता इसे किसन की कमर में बंधे रहने की इजाजत दी जाए.’
‘पंचायत में हथियार लाने की इजाजत नहीं है, लेकिन यह रिवाज का मामला है और, रिवाज कैसा भी हो, उससे छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए. फिर भी हम इसे स्त्री पक्ष पर छोड़ते हैं. अगर उसे ऐतराज न हो तो इस बार पंचायत वादी को कमर में तलवार बंधी रहने की इजाजत दे सकती है.’
एक ऐसी तलवार को, जो जंग खाई हो, म्यान से बाहर निकलती ही न और जो दूसरे पर नहीं खुद पर हमला करती हो, कमर में बंधे रहने देने में उसे क्या आपत्ति होती. उसने सिर हिला कर स्वीकृति प्रदान कर दी.
‘पंचपरमेसुरों को मेरी राम राम. मामला है कि सामने खड़ी यह लड़की, जिसने अपना मूंह घूँघट में छिपा रखा है, बिरौड़ गाँव की चम्पा है. विधि-विधान के साथ मेरे बेटे किसन से इसका ब्याह हुआ. फेरे हुए. कन्यादान और पाणिग्रहण हुआ. गवाह वे साठ सज्जन हैं जो इस ब्याह में बाराती की तरह बिरौड़ गाँव गए, जिनमें से कुछ इस बखत यहाँ भी मौजूद हैं. इसके अलावा कन्या पक्ष का शाहपट्टा मेरे पास है जो इस ब्याह का दस्तावेज है. याने लड़की के साथ कोई जोरजबडदस्ती नहीं की गई. उसे बहकाया, फुसलाया या उठाया नहीं गया. विधिवत ब्याह किया गया. पंचपरमेसुर लड़की से मालूम कर सकते हैं कि मैने जो कहा वह सच है कि गलत है.’
‘लेकिन जब बहू की डोली हमारे आँगन में उतरी पंचपरमेसुरों तो सारा खेल बिगड़ गया. उसने डोली से उतरते ही ऐलान कर दिया कि किसन की माँ उसकी सास नहीं, किसन का घर उसका घर नहीं, और किसन उसका पति नहीं. उसे उसके घर वापिस भेज दो, नहीं तो वह खाई में कूदकर जान दे देगी. और बेहोश हो कर गिर पड़ी.’
किसन बौखला गया,
‘मैं इसके मन की बात कैसे जान सकता हूँ पंचपरमेसुरों. कोई यार रहा होगा इसका. आसनाई होगी किसी के साथ….तिरिया चरित को तो बरमा, बिसनू, महेस भी नहीं जान सके. मैं तो सीधे-सच्चे इनसानों में भी सीधा-सच्चा हूँ. मुझे तो सिरफ हल जोतना, बीज डालना और फसल उगाना आता है….’
दर्शकदीर्घा फुसफुसाहट में बदल गई किसन ठीक कहता है. यह लड़की कोई खेल खेल रही है.
‘क्योंकि इसे कमर में तलवार बांधना आता है लेकिन तलवार को म्यान से बाहर निकालना नहीं आता….’
‘अब इसका कोई मतलब नहीं,’ चम्पा ने स्थिर स्वर में कहा, ‘इसने उस बखत तलवार म्यान से बाहर नहीं निकाली जब इसकी जरूरत थी….ये नामर्द है.’
अपने को नामर्द कहे जाने से किसन बौखलाकर उछला और चिल्लाया, ‘मेरे साथ सोई नहीं हरामजादी और मुझे नामर्द कह रही. अभी गला रेत दूँँगा, इसी बखत. सबके सामने फिर चाहे मुझे फन्दे पर लटकना पड़े. फन्दे की परवाह नहीं मुझे.’ और चम्पा की ओर दौड़ा.
उधर चम्पा का भाई भी आस्तीने गुलटकर तैयार हो गया कि किसन चम्पा पर झपटे तो वह उसके हाथ-पैर तोड़ दे.
आक्रामक क्षण टल गया तो पंचपरमेसुर यह कहते हुए अपने आसनों पर बैठ गए कि आगाह किया जाता है किसी ने कोई गड़बड़ की तो इसका नतीजा बुरा होगा. यह न्याय का मंदिर है, दंगल का अखाड़ा नहीं.
इस चेतावनी के बाद लोग शान्त हो गए और आगे की कार्यवाई फिर शुरु हो गई.
‘चूँकि अब जमाना बदल रहा है. स्त्रियों का आचरण और लोकलाज भी बदल गया है. वे औरतें अब नहीं रही जो सबकुछ सहकर कभी मुँह नहीं खोलती थीं. ऐसी महान औरते भी रहीं हैं इस देश में, जो अपने कोढ़ी पति को कंधें पर उठाकर वेश्यालय ले गई क्योकि वह ऐसा चाहता था. उन्हें देवियों के आसन पर बैठाया जाता था. बदली हवा में पंचायत उस औरत पर दबाव नहीं डाल सकती कि वह उस आदमी को अपना पति मानें जो नामर्द हो. चम्पा को भी यह छूट है बशर्ते कि वह साबित कर सके कि किसन नामर्द है. हालांकि वह अपने पति के साथ सोई नहीं तो वह कैसे कह सकती है कि उसका पति नामर्द है. चम्पा को बताया जाता है कि अगर वो ये बात साबित नहीं कर सकी तो इसका नतीजा बहुत बुरा होगा.’
भूरे ने हवा में हाथ उछालकर कहा, ‘यह हमारे गाँव की रीत है, बहू की डोली एक दिन बाद आती है.’
पंचों के चेहरे बेचैन हो गए. उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी कि कोई बहू भरी पंचायत में यह सवाल उठा सकती है. यह डोली के एक दिन बाद पहुँचने का मामला नहीं था. यह एक रवायत के खिलाफ़ खुला विद्रोह था.
‘अपनी ससुराल के सब रिवाजों को निभाना हर बहू का फरज है. इस बात से क्या फरक पड़ता है कि डोली एक दिन पहले आई की एक दिन बाद आई.’
दर्शकदीघा में सन्नाटा फैल गया. यह ठाकुर की प्रजा थी. उसके बंधुआ मजदूर, हलिए, गुलाम, मातहत, कृपापात्र, कर्जदार, आतंकित, डरे, सहमें, कुचले, खरीदे हुए और वफादार….
तप्पड़ जिसमें वे बैठे थे, पंचायतघर, पंच, बावड़ी, कुएं, स्कूल सब ठाकुर के थे. ठाकुुर के पास सिपाही थे, कारिन्दे थे. ठाकुर के हाथ में जिन्दगियाँ थीं, ठाकुर के हाथ में हत्याएँ थीं. देश आज़ाद हो चुका था लेकिन गाँव गु़लाम थे.
ठाकुर को पंचायत में तलब नहीं किया जा सकता था.
भूरे को ठाकुरों की ओर से तीन बीघे की माफी मिली थी और अब वह हलिया नहीं किसान था.
दर्शकदीर्घा से ठाकुर का कारिन्दा और उसके सिपाही चिल्लाए, ‘किसी ने भी ऐसी जुर्रत की तो उसे गोली से उड़ा दिया जाएगा. लड़की तू अपनी औकात में रह. और पंचैत भी पहले ही सँभल जाए.’
विरोध में खड़े जनसमूह ने चम्पा को चेता दिया कि उसे न्याय मिलने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. पंचायत नौटंकी है और उसकी सजा तय है. औरतों की सजाएँ तभी तय हो जाती हैं जब वे जन्म लेती हैं. जो चुपचाप उन्हें सह लेती हैं, वे देवियाँ हैं. जो नहीं सहती वे कुल्टाएँ हैं. देवी और कुल्ट के बीच औरत की कोई जगह नहीं. उसका उठा हुआ सिर किसी को बर्दाश्त नहीं होता.
‘तेरी बात सुने बिना कोई फैसला नहीं किया जाएगा. यह छूट का मामला है. ऐसी छूट जिसकी कोई वाजिब वजह भी नहीं है. किसन के साथ सोए बगैर उस पर नामर्दी का आरोप लगाया जाना सरासर गलत है.’
‘मैं डोली से उतरते ही गिर पड़ी और बेहोश हो गई,’ चम्पा ने कहा, ‘लेकिन मैं बीमार नहीं थी, टूटी हुई थी और वहाँ तक टूटी हुई थी जहाँ तक कोई लड़की टूट सकती है. बस एक जिन्दा लाश. इस गाँव की बहू बनने से मैंने इनकार किया और अब भी मैं इनकार करती हूँ. एक लाश क्या किसी घर की बहू बन सकती है?’
उसकी बात किसी की समझ में नहीं आई. वह खड़ी थी, साँस ले रही थी, बोल रही थी और अकेले पंचायत का सामना कर रही थी. वह लाश कैसे हो सकती है.
एक औरत कैसे लाश हो जाती है? कोई औरत ही यह समझ सकती थी.
चम्पा के दूसरी ओर खड़ी औरत को अपने गवाह के रूप में चुनने से लोगों को आश्चर्य हुआ और पंचायत को भी. उसकी गवाही एक निर्णायक मोड़ दे सकती थी. इधर या उधर.
पंचों ने राजेसुरी से पूछा, चम्पा जो कह रही वह सही है. और राजेसुरी ने कहा, जिसे सबने दिल थामकर सुना, ‘चम्पा ने जो कहा, वह सही है. अगर मैं उसे बचा न लेती तो वह सुर्ख चिमटे से दाग दी जाती. और उस समय वह इतनी दुरबल थी कि मर भी सकती थी.’
इसी के साथ दर्शकदीर्घा में खलबलाहट मच गई और उस खलबलाहट से पत्थर फेंके जाने लगे. एक पत्थर चम्पा के सिर पर लगा और खून के फव्वारे के साथ वह ज़मीन पर गिर पड़ी. उसके गिरते ही भगदड़ मच गई.
