बतकही: अजेय और आमिर हमज़ा
सुदूर प्रक्षेत्रों में जहाँ पीठ और परम्पराएँ नहीं हैं. साहित्य किस तरह अंकुरित होता है, पनपता और पसरता है? इसे जानना हो तो आपको लाहुल-स्पीति के कवि अजेय और दिल्ली...
सुदूर प्रक्षेत्रों में जहाँ पीठ और परम्पराएँ नहीं हैं. साहित्य किस तरह अंकुरित होता है, पनपता और पसरता है? इसे जानना हो तो आपको लाहुल-स्पीति के कवि अजेय और दिल्ली...
‘कोठागोई’ के प्रकाशन के नौ वर्ष बाद ‘क़िस्साग्राम’ शीर्षक से कथाकार-संपादक प्रभात रंजन का दूसरा उपन्यास राजपाल प्रकाशन से अभी जल्दी ही प्रकाशित हुआ है. इसे केंद्र में रखकर उनसे...
प्रख्यात समाजवैज्ञानिक श्यामाचरण दुबे ने देवेंद्र सत्यार्थी के लिए कहा था कि "लोगों को पता ही नहीं, कि उनके बीच कितना बड़ा आदमी रह रहा है, एकदम गुमशुदा की तरह...
साहित्य इतिहास में संवेदना का निवेश करता है. उसे समकालीन बनाने की उसकी कोशिश रहती है. इतिहास में रत्नसेन और पद्मावत के अस्तित्व को लेकर भले ही संशय हो. साहित्य...
मध्यकालीन साहित्य और उसके इतिहास पर आधारित आलोचक माधव हाड़ा की इधर कई पुस्तकें और महत्वपूर्ण आलेख प्रकाशित हुए हैं. ‘पद्मिनी : इतिहास और कथा-काव्य की जुगलबंदी’ उनका शोध कार्य...
29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाया जाता है. नृत्य की स्वीकार्यता हिंदी क्षेत्रों में लगभग नहीं है. सजीव प्रस्तुतियों के अवसर भी शून्य हैं. कथा को देह की भंगिमाओं...
‘मज़ाक़’ कवि कुमार अम्बुज का दूसरा कहानी संग्रह है जिसे इसी साल ‘राजपाल एन्ड सन्ज़’ ने प्रकाशित किया है. 2008 में प्रकाशित पहले कहानी संग्रह पर टिप्पणी करते हुए विनोद...
हिंदी-उर्दू कथा-साहित्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने को रेखांकित करने का यह सही समय है. जहाँ गीतांजलि श्री को बुकर सम्मान तथा विनोद कुमार शुक्ल को पेन-नाबाकोव पुरस्कार मिला...
पचास हज़ार डॉलर के अन्तर्राष्ट्रीय पेन/नाबाकोव पुरस्कार के कारण विश्व स्तर पर विनोद कुमार शुक्ल चर्चा के विषय बने हुए हैं वहीं बच्चों के लिए उनके लेखन पर भी इधर...
2023 के ‘PEN-Nabokov Award for Achievement in International Literature’ से विनोद कुमार शुक्ल के सम्मानित होने की सूचना से साहित्य जगत आह्लादित है. वे पहले भारतीय एशियाई मूल के लेखक...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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