आप किसी शहर में हो और ग़र ज़्यादतर मोटरसाईकिलों के पीछे या आगे अध्यक्ष / छात्र नेता / पत्रकार लिखा–खुदा देखे और गौर करने पर मलूम हो कि इनमें से अधिकतर की नंबर प्लेट कोरी स्लेट है या उन पर एक अबूझ सी लिपि में कुछ लिखा है तो मान ले कि आप पूर्वांचल या पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसी शहर में है और ये वाहन किसी शेरे–पूर्वांचल या शेर–A– पूर्वांचल का है. ऐसा ही एक शहर है देवरिया. ये न बनारस है न इलाहाबाद न लखनऊ, गोरखपुर और बलिया भी नही . बनारस इलाहबाद इसलिये नही कि गंगा मैया कि कृपा इस शहर पर हुई नही, लखनऊ राजधानी है, गोरखपुर ठहरा महानगर और कोई अध्यक्ष जी यहाँ है नहीं कि यह बलिया हो जाये. ले देकर नदी वगैरह के नाम पर एक कुरना नाला है जिसके किनारे सब्जी मन्डी बनने की बात सालो से होती रहती है और अध्यक्ष के नाम पर एक अदद नगर पालिका अध्यक्ष है इस शहर के पास. नगर पालिका देवरिया जिसके लगाये बिज़ली के खम्भों पर इसका शार्टकट न.पा.दे. देखकर स्कूल आते जाते बच्चे हँसते है अच्छा है नगर पालिका बिज़ली पानी की वयव्स्था करे न करे कम से कम बच्चों के चेहरे पर हँसी तो लाती है.
इस शहर का नाम देवरिया क्यों हुआ इसके पीछे अनेक कथायें है. मसलन कुछ का मानना है कि देवरहा बाबा के नाम पर यह देवरिया हुआ पर देवरहा बाबा राजीव गाँधी के समकालीन थे और शहर उससे बहुत पहले का है, कुछ का मानना है कि शहर के कोने पर स्थित देवरही माता के नाम पर यह हुआ, कुछ मानते है कि प्राचीन काल में यह बहुत पवित्र शहर था और माना जाता कि यहाँ देवों का निवास है इसलिये देवरिया हुआ. किसी ज़माने में यहाँ कुछ शिलालेख मिले थे जिनमें इसे देवरिया कहा गया था, कुरना नाला दरअसल कुरना नदी है पर ये बात शहर के कुछेक बुद्धिजीवियों और देवरिया की सरकारी वेबसाईट बनाने वालों के अलावा कोई नही जानत . कौन जाने देवरिया का नाम देवरिया क्यूँ हुआ हाँ ये जरूर है कि अरसा पहले किसी स्थानीय प्रकाशक ने देवरिया का इतिहास नाम की किताब भी छापी थी जिसमें इस पर बिन्दुवार चर्चा थी और साथ ही देवरिया शहर का मानचित्र अर्थात नक्शा भी. कुछ समय तक यह स्कूलों में पाठ्यक्रम का हिस्सा भी रही. आज भी कुछ आएसाये और पीसीयसाये कैन्डिडेट इस किताब को खोजते दिख जाते है कि मान ल इंटरव्यू में पूछ लेलस तब ?
पुराने लोग बताते है कि शहर बनने कि पहले असल में कुछ गाँव थे जैसे देवरिया खास या लँगड़ी देवरिया, रामनाथ देवरिया, बाँस देवरिया वगैरह और बाज़ार नुमा जगह थी आज के हनुमान मंदिर से रामलीला मैदान तक की जगह. देवरिया खास खास शायद इसिलिये था कि बाज़ार से सबसे करीब था हाँ लँगड़ी क्यों था मालूम नही.
आज के देवरिया को देखे तो मालूम होता है कि गोरखपुर देवरिया रोड शहर को दो हिस्सों में बाँटती है पूरब तरफ़ न्यू कालोनी, सिविल लाईन्स, गरुलपार, खरजरवा वगैरह तो इस तरफ़ देवरिया खास, भुजौली, रामनाथ देवरिया वगैरह. पूरब तरफ़ के मोहल्लों में ज्यादतर देवरिया के पाश इलाकों की श्रेणी में आते है. न्यू कालोनी को देवरिया का सबसे मार्डन मोहल्ला कहा जा सकता है. शहर के ज्यादतर स्कूल इस मोहल्ले में है . एक गुरुद्वारा और एक छोटा चर्च भी इसी मोहल्ले की सीमा में है . देवरिया शहर का एक मात्र पार्क, (अर्थात मोहल्ले के बीच में छोड़ा गया ज़मीन का बड़ा टुकड़ा , जो बच्चों के क्रिकेट खेलने, गायों के आराम और डेटिंग करने और लगन के महिनों में तम्बू , शामियाना लगा कर लोगों को खाना खिलाने के काम आये) , इसी मोहल्ले में है. देवरिया में कुछ और पार्क भी हैं जैसे टाउन हाल के सामने का पार्क जहाँ अतीत में गर्मियों में फ़व्वारा चला करता था और जो आज माध्यमिक शिक्षा संघ से लेकर व्यापारी मंडल के धरनों– प्रदर्शनों के काम आता है. आचार्य रामचंद्र शुक्ल नगर में भी एक पार्क था लेकिन आज कल वो पार्क की उपरोक्त परिभाषा के अन्तर्गत आता है फ़र्क केवल इतना है कि यहाँ समय समय पर सौ रूपया प्रति टीम लेकर पाँच सौ के ईनाम वाले गोल्डेन कप टाईप नाम के क्रिकेट टूर्नामेंट भी होते है . खैर.. न्यू कालोनी का यह पार्क औसतन हमेशा टीप टाप ही रहता है. पार्क में फ़व्वारा भी है और अगर आपके दिन की शुरुआत नीलकंठ पक्षी देखकर हुई हो तो ये आपको चलता हुआ दिखाई देता है.
पार्क के किनारे पर एक गोल छतरी बनी है जिसके नीचे बैठने की भी जगह है इसे गोलाम्बर कहा जाता है . अक्सर शिवाजी और महाराणा प्रताप स्कूल के लड़के यहाँ बैठकर रघुवंश मिश्र कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की लड़कियों को देखने का प्रयास करते मिलते है . ऐसा नहीं है कि ये मोहल्ले आज़ादी के बाद पाश हुए, अंग्रेजो के ज़माने का सिविल लाईन्स भी पूरब तरफ़ ही है . गोरखपुर रोड डी.एम. बंगले के बाद सिविल लाईन्स में बदल जाती है . सिविल लाईन्स की सड़क देवरिया की कुछ उन चुनिन्दा सड़को में है जहाँ सड़क के बीच डिवाईडर है हालाँकि देवरिया के लोग आज तक डिवाईड नहीं हुए और हिन्दुत्व का उभरता गढ़ कहे जाने वाले गोरखपुर के ठीक बगल में होने के बावजूद यहाँ “दो समुदायों के बीच तनाव” जैसी खबरें अखबार के तीसरे पन्ने पर नही मिलती, बाँटने वाली हर चीज का विरोध करते हुए देवरिया के लोग डिवाईडर को अनदेखा कर सड़क के दोनों हिस्सों को भी एक ही मानते है.
हर शहर कि तरह यहाँ भी मोहल्लों के नाम बदलते रहते है या नये मोहल्ले बनते रहते है और कुछ साल बेनाम रहने के बाद उन्हें भी नये नाम मिलते रहते है जैसे देवरिया खास का एक हिस्सा काफ़ी साल खाली रहने के बाद बसा और बसने के बाद कुछेक साल बेनामी रहने के बाद नाम हो गया कृष्णा नगर कालोनी , कृष्णा नगर इसलिये कि इस मोहल्लें में वृन्दावन वालों ने एक सत्संग भवन या गीता भवन बना दिया जो सुबह शाम अपने लाउड्स्पीकर से लोगों का भ्रम दूर कर उन्हे भक्ति क्षेत्रे खींचता रहता है. ऐसे ही भुजौली इलाके के किनारे विकास प्राधिकरण ने एक कालोनी बनायी नाम रखा आचार्य रामचंद्र शुक्ल नगर जो कालान्तर में RC कालोनी के नाम से जाना गया,जानकारों का कहना है कि जो सज्जन उस समय प्राधिकरण के मुखिया थे वे बड़े साहित्यानुरागी जीव थे,. अब मसला ये हो गया कि इस कालोनी की सीमा के पहले जो इलाके थे उन्हे क्या कहा जाये क्योंकि रामचंद्र शुक्ल कालोनी कहे तो रिक्शावाला उतनी दूर जाने को तैयार होता नहीं था, भुजौली कहे तो इतना बड़ा इलाका है कि घर की location बतानें से कम समय में आदमी पैदल पहुँच जाये खैर एकाध साल के बाद इस इलाके का नाम हो गया भुजौली कालोनी.
इस शहर की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर है. देवरिया उत्तर प्रदेश का आखिरी शहर है और इसके बाद सीवान से बिहार शुरु हो जाता है. गोरखपुर वाले और गोरखपुर ही क्या लखनऊ तक के लोग देवरिया को बिहार में धकेल देते है, जब देवरिया वाला मासूमियत से कहता है कि देवरिया यू.पी में है तो सामने वाला कहता है “अरे खाली कहे के यूपी में बा” और इस तर्क के आगे देवरिया वाला ढ़ेर हो जाता है . जब तक कुशीनगर देवरिया में था तब तक देवरिया दुनिया के नक्शे पर था पर जब से कुशीनगर अलग ज़िला बन गया देवरिया यूँ कह लीजिये बिना दुकान की बाज़ार हो गया . अब आलम यह है कि देवरिया का आदमी परदेस में, परदेस जो दिल्ली से अमरीका तक फैला है, खुद को गोरखपुर का कहता है. गोरखपुर में कहाँ ? के उत्तर में धीरे से बोलेगा, “देवरिया”.
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