रानी रूपमती की आत्मकथा’ उपन्यास है जिसे प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़्याल’ ने लिखा है जो इसी वर्ष राजकमल से छप कर आया है, इस उपन्यास की चर्चा कर रहीं हैं साधना अग्रवाल.
रानी रूपमती की आत्मकथा
इतिहास और किंवदंतियों के बीच अमर प्रेम कथा
साधना अग्रवाल
सुपरिचित कवि और शायर प्रियदर्शी ठाकुर \’ख़याल\’ का पहला उपन्यास रानी रूपमती की आत्मकथा अभी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है. स्वाभाविक है हमारे मन में यह विचार उठता है कि किसी दूसरे व्यक्ति की आत्मकथा कैसे लिखी जा सकती है, अगर लिखना ही हो तो जीवनी तो लिखना संभव है. इस पुस्तक को लिखने के लिए उन्होंने स्वयं को श्रुति लेखक के रूप में प्रस्तुत किया है मसलन उनका कहना है कि यह वाकई रानी रूपमती की आत्मकथा है. चूंकि रानी रूपमती ने उनसे यह आत्मकथा लिखवाई और उन्होंने लिख दी. लिखते हैं-
‘कि रानी स्वप्न में नहीं, साक्षात स्वयं आई थीं, लेकिन अफसोस, इस बात का कोई प्रमाण मेरे पास नहीं; इसलिए जिन्हें मेरे कथन पर विश्वास न हो, वे इसे रानी रूपमती और बाज बहादुर के जीवन तथा प्रेम- प्रसंग पर इतिहास में उल्लिखित घटनाओं, विवरणों और उनसे जुड़ी किंवदंतियों के आधार पर रचित एक सर्वथा काल्पनिक साहित्यिक कृति मान लें\’.
आगे लिखते हैं कि
\’इस पुस्तक का एकमात्र उद्देश्य रानी रूपमती के संक्षिप्त जीवन की विशेष घटनाओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और बाज बहादुर से उनके प्रेम- प्रसंग का एक नया पाठ रानी के अपने शब्दों में पाठकों तक पहुंचाना है.\’
चूंकि रानी रूपमती और बाज बहादुर के प्रेम- प्रसंग की जानकारी इतिहास में छुटपुट ढंग से मिलती है. जिसका हवाला देते हुए लेखक लिखता है कि उन्हें यह उपन्यास लिखने में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लिखते हैं –
\’मेरी दृष्टि में ऐतिहासिक कथा – साहित्य की तीन प्रमुख चुनौतियां इस प्रकार हैं: पहली, इतिहास में उल्लिखित तथ्यों और पीढ़ी- दर- पीढ़ी श्रुति से उतरती आई, और अक्सरहा विरोधाभासी, किंवदंतियों के बीच समन्वय; दूसरी, विभिन्न किंवदंतियों के अंतर-विरोधों का तर्कसंगत आख्यान; और तीसरी, कथानक तथा अंतर्कथाओं, पात्रों के चरित्र – चित्रण, संवाद इत्यादि का तत्कालीन देस- काल के परिदृश्य से ताल-मेल.’
चूंकि \’ख़याल\’ साहब पहले ही बता चुके हैं कि वे इस उपन्यास को लिखने में इसलिए सफल हो सके कि वह मात्र एक श्रुति लेखक थे. जो-जो रानी रूपमती उनसे लिखवाती गईं, वे उन घटनाओं को दर्ज करते गए. इसलिए उपर्युक्त चुनौतियां इस संदर्भ में अपने आप सरल होती गईं. कुछ पात्रों का चित्रण लेखक ने अपनी कल्पना के अनुसार किया है जैसे पंडीज्जू का पात्र सर्वथा काल्पनिक है. चूंकि यह कहने को तो आत्मकथा है लेकिन विशुद्ध आत्मकथा भी नहीं है और लेखक श्रुति लेखक होने के बावजूद इतनी छूट उठा लेना चाहता है.
यह उपन्यास रानी रूपमती और बाज बहादुर की प्रेम कथा है, जो देखने में ऊपरी तौर पर मात्र प्रेम- कथा लगती है, लेकिन इस प्रेम- कथा में लेखक ने इतिहास प्रसिद्ध उस दौर की दुरभिसंधियों को बखूबी हमारे सामने प्रस्तुत किया है, जिनके बारे में इतिहास लगभग मौन है. जैसे- रानी रूपमती कौन थी ? इस उपन्यास में उसे राव यदुवीर सिंह, जिनके पुरखे कभी मांडवगढ़ के राजा थे, की बेटी के रूप में दर्शाया गया है. साथ ही इस उपन्यास की कथा इतिहास की संकरी गलियों से होते हुए सत्ता के गलियारों और युद्ध के बीच धारदार प्रसंगों से होते हुए रानी रूपमती के जहर खाने तक जाती है. यह कथा उस समय की राजनीति के साथ-साथ तत्कालीन समाज का भी चित्रण करती है. स्त्री- पुरुष पात्रों का जिक्र भी करती है. धर्म और धर्मनिरपेक्षता जैसे सवाल तो अपनी जगह हैं ही, लेकिन इस उपन्यास की शैली बेहद रोचक है. जिसे प्रियदर्शी ठाकुर \’ख़याल\’ ने बखूबी गुना है. यह स्वप्न- दर्शन और वर्णन शैली में बुनी गई एक ऐसी दिलचस्प कथा है जो कि खुद रानी रूपमती लेखक को स्वप्न में अपनी कथा सुनाती हैं. और बीच-बीच में क्षेपक के तौर पर अपने श्रुति लेखक को संबोधित करती जाती हैं, जिससे न केवल रोचकता बढ़ती है बल्कि विश्वसनीयता भी बढ़ जाती है. यह एक ऐसी शानदार प्रेम कथा है जिसे सुनकर, बुनकर और पढ़कर हम रानी रूपमती और बाज बहादुर के अप्रतिम प्रेम को महसूस कर सकते हैं.
उपन्यास के अनुसार रानी रूपमती की मां रुक्मिणी एक क्षत्राणी थीं, जिन्हें उनकी मां के साथ मुस्लिम आक्रांताओं ने उठा लिया था. उनके चंगुल से वे निकल भागीं. वेश्यालय में शरण ली, जहां उनकी शादी राव यदुवीर से हो गई.
रानी रूपमती के सपने में अक्सर उनकी मां आती है लेकिन वह उनसे कभी मिल नहीं पातीं, जिसका उन्हें भारी अफसोस होता है. रानी रूपमती ने जिस दिन गढ़ धर्मपुरी में नए जीवन में प्रवेश किया, उस दिन उन्हें पता लगा कि उनके साथ- साथ एक स्त्री जिसका नाम केतकी था, भी रहती है. जो स्वभाव से कठोर है. हालांकि वह यह नहीं समझ पातीं कि केतकी का राव से संबंध क्या है ? केतकी का एक छोटा भाई भी था भंवर, जो मन ही मन रूपमती से प्रेम करता था.
रानी रूपमती के एकाकी जीवन में बस दो ही सहारे थे एक उनकी सखी तारा और दूसरे पंडीज्जू. उनके मन में प्रश्नों का झंझावात उठता लेकिन उन प्रश्नों के उत्तर पूछने की हिम्मत उनमें संभवत: नहीं थी या कह सकते हैं कि एक झिझक थी जो उनको कुछ भी पूछने से रोक लेती.
राव यानी जद्दू बाबा ने रूपमती को शिक्षा – दीक्षा देने के लिए पंडीज्जू को नियुक्त किया, उस समय रूपमती की उम्र अनुमानतः 8 वर्ष की थी. पंडीज्जू का संदूक ग्रंथों और ज्ञान का एक अकूत भंडार था, और उनका मस्तिष्क उससे भी बड़ा. उन्होंने रूपमती को 2 वर्षों के क्रम में ही अपनी ज्ञान सरिता से रूपमती के मस्तिष्क में ज्ञान का सागर भर दिया. अक्षर व गणित – ज्ञान से इतिहास -भूगोल, प्राचीन से वर्तमान तक की अनगिनत बातें! द्वापर, त्रेता और कलियुग की पौराणिक कथाएं, साहित्य में कालिदास से अमीर खुसरो तक और भी न जाने क्या-क्या. रूपमती बताती हैं – पंडीज्जू न होते तो दोहे और कबित्त लिखने वाली कवयित्री बनना तो दूर, शायद मैं मूढ़ की मूढ़ रह जाती. पंडीज्जू रूपमती को समझाते कि शिक्षा के आगार में जानकारियां तो इतनी हैं कि कोई सात जनम भी अध्ययन करे तो पार नहीं पा सकता. रूपमती को शिक्षा के अतिरिक्त संगीत में भी बेहद रुचि थी. और राव ने उसके संगीत शिक्षक के रूप में रेवादिया को चुना था जो रूपमती को निरंतर संगीत का अभ्यास करवाता था.
एक दिन रेवादिया रूपमती की प्रशंसा करते हुए कहता है कि सचमुच तुम रूपमती ही नहीं सर्वगुणमती भी जान पड़ती हो- पंडीज्जू अन्य विषयों में भी तुम्हारी ग्रहण एवं स्मरण शक्ति और प्रत्युत्पन्नमति की प्रशंसा करते नहीं थकते.
रूपमती संगीत अभ्यास के बहाने कभी-कभी अर्द्ध-पद्मताल पर पहुंच जाती और चिंतन मनन करती. वही एक दिन उसकी मुलाकात बाज बहादुर से होती है, जो खुद बहुत बड़ा संगीत प्रेमी था. और उस पहली मुलाकात में ही दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगते हैं. रेवादिया, जो रूपमती का संगीत गुरु था, उसकी बुरी नजर रूपमती पर पड़ने लगती है.
रूपमती के पिता राव को जब यह बात पता लगती है कि रूपमती बाज बहादुर से प्रेम करती है तो वह रूपमती को मृत्युदंड का आदेश दे देता है लेकिन संयोगवश किसी तरह रूपमती अपना संदेश बाज तक पहुंचाने में कामयाब हो जाती है और बाज बहादुर रूप को अपने साथ ले जाता है. जहां रूपमती का भव्य स्वागत- सत्कार होता है. रूपमती सोचती है- मात्र दो रातों में ही मेरे जीवन में जमीन आसमान का अंतर आ गया था – कहां तो ढहते हुए गढ़ धर्मपुरी की महज मामूली कोठरी, दो-तीन जोड़े साधारण वस्त्र और रूखे-सूखे भोजन वाला वह एकाकी अस्तित्व, और कहां यह कोर्निश करते सिपहसालारों- सैनिकों का मजमा और नालछा किले के महलसरे का राजसी ऐश्वर्य!\’ यही नहीं उसके मन में उहा-पोह होने लगती है कि कहीं उसने बाज बहादुर से प्रेम करके कोई गलती तो नहीं कर दी. लेकिन फिर सोचती है-\’
फिर मेरा अपना मन ही जवाब देता- तो तू ही बता कि क्या करती मैं ? अवश होकर तन – मन जिस प्रियतम पर वार दिया, उससे दूर खलनायक जैसे पिता का दिया विष पीकर मर जाती! या भाग जाती भॅवर के साथ जीवन भर गिरते- पड़ते रहने के लिए, या कि निहोरे करती उस दुष्ट, दुराचारी रेवादिया से कि मुझे बचा लो, मैं तुम्हारी वासना की कठपुतली बनकर नाचूंगी आजीवन —- नहीं, कदापि नहीं. जो हुआ है अच्छे के लिए ही हुआ होगा, यही मानकर अपने इस तीसरे जनम का एक -एक स्वर्णिम पल जी ले अपने मनचाहे कामदेव सरीखे प्रियतम के संग. बाद की बाद में देखी जाएगी.\’
लेकिन बाज बहादुर सचमुच रूपमती से अनंत प्रेम करता था. और यही कारण है कि उसने रूपमती से निकाह ना करके गंधर्व विवाह किया था. यही नहीं खुद एक मुसलमान होते हुए भी उसने रानी रूपमती की भावनाओं और धर्म का सम्मान करते हुए हिंदू रीति रिवाजों का भी हमेशा ध्यान रखा.लेकिन षडयंत्रों के चलते उसे पहले रानी दुर्गावती से हार और उसके बाद अधम खान कोका से पराजय का मुंह देखना पड़ा. यहां तक की रानी रूपमती को यह सूचना मिलती है कि अधम खान ने बाज को मार गिराया है और अब वह रूपमती को हासिल करना चाहता है. लेकिन रूपमती सचमुच में बाज बहादुर से बे इंतहा प्रेम करती थी.
रूपमती ने अधम खान के नाम एक पत्र लिखा और अपनी मुट्ठी में दबा दिया. वह जहर पीकर अपनी जान दे कर बाज बहादुर से अपने सच्चे प्रेम का उदाहरण पेश करती है.
रानी रूपमती का वह पत्र बहुत मार्मिक था. लिखा था- अधम खान हम बाज की बेवा हैं- हमें उड़ान भरने से रोकने की कु़व्वत न तुझमें है न तेरी फौज में. हमारी हाय तुझे जरूर लगेगी, देख लेना. तुझ जैसे नराधम को समर्पण से मौत लाख गुना अच्छी . मोहर- रानी रूपमती.\’
इस उपन्यास को लिखने में लेखक ने पर्याप्त शोध किया है. इसकी शैली भी अनूठी है, कहा जा सकता है कि उपन्यास विधा में एक नया प्रयोग किया गया है जो काफी रोचक है. पठनीयता तो भरपूर है ही. इसलिए कहीं भी बोरियत नहीं होती. और यही इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता है. कथा में कई पात्र-गण अपने मूल और पृष्ठभूमि के हिसाब से संवाद बोलते हैं: कुछ हिंदी में, कुछ राजस्थानी में, कुछ अरबी- फारसी से लैस हिंदी में; यहां तक कि एक स्त्री पात्र तो भोजपुरी भी बोलती है. रानी रूपमती कर्मकांडी ब्राह्मण की शिष्या रही होने के कारण अधिकतर संस्कृत निष्ठ हिंदी बोलती हैं. जैसा कि इस पुस्तक के अंतिम आवरण पृष्ठ पर बिल्कुल ठीक लिखा है कि \”मांडू के मध्य कालीन महल के अवशेष से रानी रूपमती और बाज बहादुर नाम के प्रेमी-युगल की किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं. यह उपन्यास उन्हीं किंवदंतियों और इतिहास के सुमेल से बुना गया है.\”
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साधना अग्रवाल
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