अंग्रेजी साहित्य के समकालीन कवि, लेखक और पर्यावरणविद जॉन बर्नसाइड की कहानी \”द बेल रिंगर\” का अनुवाद यादवेन्द्र ने हिंदी में किया है और एक सुंदर टिप्पणी भी लिखी है. यह दोनों आपके लिए.
मार्च 2008 में \”द न्यू यॉर्कर\” में छपी इस कहानी का शीर्षक \”द बेल रिंगर\” है जिसका हू– ब–हू और शब्दशः हिंदी में अनुवाद करना मुश्किल है क्योंकि भारतीय समाज में ऊँचे टावर में टँगे धातुई घंटों को रस्सा खींच कर बजाने की कोई परम्परा नहीं है.
स्कॉटलैंड जैसे पारम्परिक ईसाई समाज में भी यह धार्मिक अनुष्ठान धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है- जैसे भारत की नई पीढ़ी शाम के समय मंदिरों में कीर्तन करने और सामूहिक रूप से आरती करने की परिपाटी से विलग हो गयी है- और धार्मिक पुनरुत्थानवादी इस लुप्तप्राय परिपाटी को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं. अनुवाद करते समय बहुत सोच विचार के बाद मैंने कहानी की भाव भूमि का ध्यान रखते हुए मूल शीर्षक बदल कर \”गूँज अनुगूँज\” रखने का निर्णय किया.
\”मैं अपने किरदारों और परिवेश को लेकर हद दर्जे तक संवेदनशील और जिद्दी हूँ. मेरी रचनाओं में जो भी पेड़ आएँ वे बिलकुल सही प्रजाति के होने चाहिए ,यदि कहीं रेत का वर्णन है तो रेत की मात्रा बिलकुल उपयुक्त होनी चाहिए …. सुबह सुबह खुलने पर पब में ऊँची खिड़की से अंदर झाँकती रोशनी में जरा सा भी हेर फेर मुझे नहीं बर्दाश्त – सब कुछ एकदम यथार्थवादी होना चाहिए. \”, एक इंटरव्यू में वे कहते हैं.
\”मैं अनुमान लगाने में अच्छा हूँ और मुझे लगता है अपनी रचनाओं में इस काम को बेहतर ढंग से करने के अतिरिक्त मैं और कुछ ख़ास नहीं करता …. मेरा मानना है कि वह समय दूर नहीं जब लोगबाग अपने जीवन में गोपनीयता बनाये रखने के लिए बड़े जोखिम उठाने की ओर कदम बढ़ाएँगे, भले ही सामाजिक तौर पर इसे अच्छा न माना जाये – वे खुद को सार्वजनिक बनने से बचाने के लिए कानून का उल्लंघन कर अपराध तक करने को तत्पर हो सकते हैं.\”
लाठोकर मिल के बोर्ड के आधा मील आगे चल कर ईवा लोवे मेन रोड से मुड़ी और किनेल्डी जंगल के अन्दर जा रहे रास्ते में दाखिल हो गयी. हाँलाकि गाँव में आने का यह सबसे सीधा रास्ता नहीं था पर उसके पिता को यह बहुत प्रिय था, हो सकता है इसको देख कर उनको पीछे छूट चुके स्लोवाकिया की याद आती हो, और माँ के जिन्दा रहते तक अक्सर इतवार को वे उधर घूमने आया करते थे.
अँधेरा हो चला था, अँधेरा भी खूब गहरा और चारों ओर सघन हरियाली — बाउण्ड्री वॉल पर झाड़ियाँ उग आयी थीं और ऊँचे दरख्तों के नीचे नमी पसरी हुई थी. औरों के लिए यह रास्ता उदासी और हताशा का प्रतीक था पर ईवा को यह बिलकुल घर के आहाते जैसा लगता — ख़ास तौर पर अब जब चीड़ के माथे और पहाड़ी ढ़लानों पर ताज़ा ताज़ा बर्फ़ गिरी हुई हो. उसको यह नज़ारा बिलकुल बच्चों की सचित्र किताबों जैसा लगता जिसमें किसी निष्ठुर परी के कोप से हँसता खेलता पूरा साम्राज्य कँटीली झाड़ियों और मकड़ी के घने जालों के बीच सौ साल तक दबे होने को अभिशप्त हो और उसके ऊपर बर्फ़ की चादर बिछ गयी हो. उसके पिता को यह परीकथा खूब प्रिय थी और उसने अपने पास अबतक वह किताब सँभाल कर रखी हुई है बचपन में जिस से पढ़ कर वे उसको कहानी सुनाया करते थे …. किताब हाथ में लेते ही वे अक्सर कहते कि उन चित्रों को देख कर उनको अपने बचपन और गाँव याद आने लगती है. किताब में बने वे चित्र उसको पिता के वास्तविक स्मृति चिह्न लगते …. बचपन से बार बार देखी हुई वह किताब हरी पत्तियों,नीले आसमान और गाढ़े बैंगनी रंग के फलों से भरी हुई दुनिया के चटक वाटर कलर चित्रों की थी पर अब दुर्भाग्य से उस लुभावनी दुनिया के पन्नों पर मवेशियों भरे ट्रक और बगैर नाम पते वाली हजारों कब्रें पसर गयी हैं.
मृत्यु बाद की सारी औपचारिकताएँ जब पूरी हो गयीं तब उसको महसूस हुआ कि इतने बड़े पर बूढ़े पुराने फ़ार्म हाउस में वह निपट अकेली रह गयी है … और उसके पास न करने को कुछ है और न ही बातचीत के लिए कोई संगी साथी है. हाँ , मैट की बहन मार्था जरूर शनिवार को सुबह सुबह केक और सेबों की टोकरी लेकर उसके पास आ कर बैठने बतियाने लगी. मार्था इसका ध्यान रखती कि जब मैट घर पर हो वहाँ नहीं जाना है. यह लगभग एक रूटीन जैसा बन गया — हर शनिवार सुबह साढ़े दस बजे मार्था को आना है , गमलों के बाजू में बैठना है और घंटों बतियाना है…. कई कई बार यह सिलसिला और भी लम्बा खिंच जाता … और मार्था के कारण पहले से सोचे किसी काम में कभी कभी देर भी हो जाती, पर ईवा इन बातों को लेकर बहुत अफरा तफरी नहीं मचाती. कम से कम इतना तो हुआ ही कि मार्था ने नए नए आन पड़े दुःख के उन शुरूआती दिनों में उसका साथ निभाया था जब वह बिलकुल अकेली पड़ गयी थी. यह अलग बात कि मार्था को सेल्फ हेल्प वाली किताबों और महिलाओं की पत्रिकाओं की बातें धड़ल्ले से कहने में महारत हासिल थी पर उस समय वह जिस हाल में थी उसकी बातों ने ईवा पर कारगर असर किया — ईवा मार्था के आने का बड़ी बेसब्री से इन्तजार करती और घंटों एक प्लेट बिस्किट के साथ उस से बतियाती रहती …. जीवन में अचानक आने वाली किसी बड़ी तब्दीली के पहले तक लोगबाग क्या कर रहे होते हैं और बाद में उन बातों को कैसे याद करते हैं, लब्बो लुबाब यही सब था.
ईवा जब ठहर कर अपने जीवन को देखती है तो उसको समझ आता है कि पिता की मृत्यु दर असल कोई अचानक आया हुआ बदलाव नहीं था …. उसको बहुत पहले से इसका एहसास था कि पिता अब ज्यादा दिन नहीं बचेंगे, और उसने इस क्षति के लिए खुद को भरसक तैयार कर रखा था –हाँलाकि मार्था का कहना था कि आप चाहे जितनी कोशिश कर लें, अपने किसी प्रिय की मृत्यु के लिए वास्तव में तैयार हो नहीं पाते … और वह भी तब जब वह इतनी कष्टपूर्ण और धीमी गति से कदम आगे बढ़ा रही हो. पर पिता की अंतिम क्रिया के बाद ईवा को एकदम से यह महसूस हुआ कि सारी दुनिया अचानक अपने आप में सिमट कर एकदम चुप हो गयी है …. और उस को सबसे ज्यादा आघात पिता की अनुपस्थिति से नहीं बल्कि अपनी शादी से लगा था.
मैट मृत्यु बाद के कामों में हाथ बँटाने दो चार दिनों के लिए आया था और न चाहते हुए भी ईवा की निगाहों से इस लम्बे खिंचते चले आ रहे प्रसंग के पटाक्षेप से मैट के राहत की साँस लेने के भाव छुपे नहीं रह सके …कि और अब वह निश्चिन्त होकर फिर से अपने काम पर लौट सकेगा. इस से पहले तक जब भी ईवा अकेली होती और रातों में खिड़की से बाहर खेतों और बाग़ को देखती तो उसको लगता कि पति का अभाव उसको अन्दर ही अन्दर खाये जा रहा है. ये खेत और बाग़ थे तो मैट के परिवार के, पर अब उनको किराये पर पड़ोसियों को दे दिया गया था. कभी कभी उसको वे शुरूआती दिन याद आते जब वह पहली दफ़ा मैट से मिली थी …
उसका बाँकपन, हँसी ठिठोली करते रहने का चुलबुल स्वभाव और ईवा को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह के खेल गढ़ते रहना. वह अक्सर ईवा के लिए बाग़ से ताज़े सुन्दर फूल या रसीले फल लेकर आता …. और जब यह स्पष्ट हो गया कि दोनों एक दूसरे के साथ जीवन बिताने को लेकर गम्भीर हैं, तो वह अक्सर यह कहता फिरता कि दोनों के शरीर पर बिलकुल एक जैसे टैटू हैं– दिल, गुलाब, केल्टिक आकृतियाँ …. और दोनों के शरीरों के उन अंदरूनी अंगों पर टँकी हुई नन्हीं नीली चिड़िया जिन्हें सिर्फ वे ही देख सकते हैं, कोई और नहीं.
उनके साझा जीवन का पहला साल बीतते बीतते रोमांटिक भाव पूरी तरह से तिरोहित हो चुके थे, पर ईवा को वह सब गुदगुदाने वाला घटनाक्रम अब भी पूरी तरह याद था. शुरू-शुरू में मैट जब बाहर जाया करता, बड़ी निष्ठा और जिम्मेदारी से ईवा उन बातों को सायास याद किया करती … मन ही मन यह बात बार बार दुहराया करती कि जब एक समय उन दोनों ने इतना सघन प्यार किया है तो भले ही बीच में कुछ ख़ला आ गया हो पर प्यार भरे दिन दुबारा जरूर लौट आयेंगे. हाँलाकि ईवा मन ही मन यह बखूबी जानती थी कि मैट के साथ प्यार के पलों को इस तरह बार-बार याद करने के लिए उसको काफी मशक्कत करनी पड़ती, पर अपने मन के अंदरूनी कोनों में जागृत एहसास भी था कि अकेले रहते हुए वह किसी चीज़ का अभाव महसूस तो करती है पर वह कुछ और था, मैट नहीं…यकीनन.
वास्तविकता यह थी कि अपने में सिमट कर रहने में ईवा को कोई परेशानी नहीं महसूस होती,बस बड़े से घर में अकेला रहना उसको अच्छा नहीं लगता था. यदि वह इस घर की बज़ाय किसी और घर में रहती होती — यदि मैट ने यह घर बेच दिया होता और किसी दूसरे गाँव में जमीन खरीद ली होती, जैसा उसने करने का मन लगभग बना भी लिया था, पर आखिरी पलों में उससे किनारा कर लिया — तब उसको कोई परेशानी नहीं थी. मैट जब महीने भर के लिए भी घर से बाहर गया होता, बगैर उसके हस्तक्षेप के अपना जीवन अलग ढंग से जी रहा होता, ईवा को कई कई दिनों तक फोन नहीं करता –
जब करता भी तो यह जताना नहीं भूलता कि अभी उसके सिर पर दुनिया जहान के काम का जिम्मा है — और अभी जो फोन वह कर भी रहा है वह एक घरेलू दायित्व से ज्यादा कुछ और नहीं. कभी कभी वह फोन बीच में रख देती, फिर किसी खूब प्रकाशित कमरे में लोगों से घिरे उसके बैठे होने की कल्पना करती — सोचती वह कॉन्फ्रेंस रूम हो सकता है, कोई होटल भी हो सकता है— मैट अपने सहकर्मियों के साथ किसी भारी भरकम विषय पर विचार विमर्श में मशगूल है, विषय कुछ भी हो सकता है…. इंजीनियरिंग से लेकर राजनीति तक…. और बातचीत इतनी ऊँची आवाज़ में भी हो सकती है कि आस पास से गुजरती हुई वेटरेस को भी सब कुछ स्पष्ट सुनायी दे. सम्भव है वह उन सजी धजी युवतियों के साथ कुछ फ्लर्ट भी करता हो, या बात इस से आगे भी चली जाती हो. आँखें बंद करके वह मैट को उन युवतियों के साथ मज़ाक करते देखती, उनके बीच घुलमिल कर बैठा मैट कितना बाँका और सुन्दर दिख रहा है.
ऐसे लुभावने जवान के आस पास मँडराने और उसको खुश करने का मौका कोई भी युवती भला कैसे छोड़ देगी. जब जब वह ऐसी बातें सोचती लगता जैसे पूरा घर– अँधेरा, सीलन भरा, सालों साल से एक जैसी दशा में पड़ा हुआ, पीढ़ी दर पीढ़ी वहाँ जीवन गुजार चुके वासिंदों की स्मृतियों की प्रतिध्वनियों से भरा भरा— सिमटता हुआ पास आकर उसको अपने पाश में बाँधता जा रहा है.
उसको महसूस होता जैसे लोवे खानदान के छोटी कद काठी और गठीले बदन वाले तमाम लोग अपनी चमकीली काली आँखों से खूब फैले हुए घर के कोने अँतरे से चुप्पी साधे हुए झाँक-झाँक कर उसके सारे क्रिया कलाप पर नजर गड़ाए हुए है — वे सब बातें सुनते रहते हैं जो वह फोन पर करती है, सुनते ही नहीं वे सब उसको घूरते भी रहते हैं…. और उनपर अपने फैसले भी थोपते रहते हैं. कई बार उसको लगता जैसे सचमुच उसने अपनी नंगी आँखों से उनको देखा भी है … हाँलाकि इस बात पर वह पक्के तौर पर टिक नहीं पाती थी कि सचमुच किसी फैंटम को देखा या सिर्फ़ देखने का भरम भर हुआ.
मैट प्यार के शुरूआती दिनों में उसको घर में विचरण करने वाले फैंटम की कहानियाँ खूब सुनाया करता — जैसे, उधर देखो बूढ़ा जॉन लोवे अपने हाथ में लालटेन थामे हुए बाग़ से निकल कर इधर आ रहा है … या जुड़वाँ बहनें मेबेथ और कैथी झंडे वाले ठण्डे चबूतरे पर बिलौटों (बिल्ली के बच्चों) से घिरी बैठी मस्ती कर रही हैं …. बला की सुन्दर एलिनॉर भरी जवानी में गेस्ट रूम में बिस्तर पर पड़ी पड़ी दम तोड़ रही है.
ईवा जब भी घर में अकेली होती, इनमें से सब के सब जरूर कोई न कोई ऐसी हरकत जाहिरा तौर पर करते जिनसे उनका वज़ूद साबित हो सके … साफ़-साफ़ उनको देखना मुमकिन नहीं था पर वे निरंतर यहाँ वहाँ जिस ढंग से मँडराया करते उस से ईवा को लगने लगता जैसे वे सब मिलकर कुछ घटने का इन्तज़ार कर रहे हैं. थोड़ी देर इस माहौल में रहने के बाद जब ईवा थोड़ी सहज होती तो खुद को बोलती बतियाती पाती….खुद से नहीं बल्कि उन सब के साथ, जैसे छुटकारा पाने के लिए उनको भरोसे में लेने और बहलाने की कोशिश कर रही हो.
उसको समझ नहीं आ रहा था कि आज कौन सा काम पहले पूरा करे, सो बाज़ार का काम निबटा कर वह घर न जा कर गाँव में ही किसी सैलानी की तरह यहाँ वहाँ टहलती रही– चर्च,पब और वे भी दो-दो, स्कूल.
स्कूल खूब खुला-खुला और हराभरा था, दक्षिण दिशा में ऊँचे दरख्तों की सीधी कतार. वहीँ गाँव में उसका घर भी था, पर उसको कभी यह महसूस ही नहीं हुआ कि वह यहीं की रहने वाली है. उसके पिता अपनी जवानी के दिनों में वहाँ आ बसे थे …वह वहीँ के स्कूल में पढ़ी लिखी है …. उसकी माँ कसाई की दूकान में औरतों की लाइन में खड़ी रह कर गोश्त खरीदा करतीं, उन दिनों गोश्त थमाने वाला कसाई खून लगे हाथों से पैसे नहीं लेता था बल्कि दूकान में पैसे लेने का काउन्टर अलग से हुआ करता था– माँ को कसाई का यह इंतजाम अच्छा लगता. कसाई भला आदमी था और माँ के साथ उसका रिश्ता दोस्ताना था — वह हमेशा माँ के साथ अच्छी तरह से बात करता और गोश्त के सबसे उम्दा टुकड़े उनके पैकेट में डालना न भूलता.
कसाई की बीवी कुटिल और घुन्ना औरत थी— कई बार माँ के हाथ से नोट ले कर अपने हाथ में पकडे हुए उसको देर तक निहारती रहती जैसे वह पहली बार नजरों के सामने आया हुआ कोई विदेशी नोट हो…… पर वे लोग ऐसे ही थे, उनको अपने बीच में आकर बस गया कोई बाहरी शख्स बिलकुल नहीं सुहाता था — तब तो और भी नहीं जब उनकी बिरादरी की ही कोई युवती उसको दिल दे बैठी हो और शादी की ठान ले. अब तो वे सब लोग ख़ुदा को प्यारे हो गए.
ठीक चार बजे चर्च की घंटी बजी, वह उठ कर अपनी कार तक जाने को हुई कि लगा कम्युनिटी सेंटर तक घूम आये. वहाँ एक कैफ़े था और उसके अंदर कुछ न कुछ गतिविधियाँ चलती रहतीं… कभी फ्लावर अरेंजमेंट तो कभी इटैलियन क्लासेज़. कभी- कभी वे वुमेन इंस्टीच्यूट भी चलाते. खुद के बारे में उसको लगता था कि वह वुमेन इंस्टीच्यूट टाइप स्त्री नहीं है— खुद को लेकर दूसरी गतिविधियों के बारे में उसकी राय बहुत स्पष्ट नहीं थी, फिर भी वह कैफ़े के अंदर चली गयी. नोटिस बोर्ड में चस्पाँ पन्नों को एक एक कर पढ़ने लगी … विभिन्न कार्यक्रमों के टाइम टेबुल, कराटे की सफ़ेद ड्रेस में बच्चों की फ़ोटो इत्यादि. उसका ध्यान योग सिखाने की सूचना पर भी गया और उसको लगा कि उस से तनाव कम करने में मदद मिलेगी … पर फ़ौरन ही उसको समझ आ गया कि योग के लिए जिस सादे लम्बे लिबास को पहनना पड़ेगा उसमें ईवा अच्छी चुस्त दुरुस्त नहीं दिखेगी, सो यह विचार सिरे से खारिज. बुधवार की रातों में फ्रेंच सिखाने की शुरूआती क्लासें लगती हैं —
स्कूल में उसने भी फ्रेंच पढ़ी थी पर अब दिमाग से सब साफ़ — उसने लगभग तय कर लिया था कि वह दुबारा से फ्रेंच सीखना शुरू करेगी कि तभी उसकी नजर सभी पन्नों से अलग रखे एक सफ़ेद पोस्टकार्ड पर पड़ गयी जिसमें लिखा था कि चर्च में घंटी बजाने का काम करने वाले बेल रिंगिंग क्लब को नए सदस्यों की दरकार है. इसके लिए बगैर किसी ख़ास शर्त के सभी आमंत्रित हैं, और किसी पूर्व अनुभव की बाध्यता भी नहीं है.
यदि कभी किसी ने ईवा लोवे को बेल रिंगर्स की कल्पना करने को कहा होता तो उसके मन में अपना अधिकाँश समय घर की बजाय चर्च में गुजारने वाली, हाथ से बुने हुए पुरानी शैली के कार्डिगन पहनी हुई अनब्याही अधेड़ औरतें आतीं … या ट्वीड के हैट सिर पर रखे, फौजी स्वेटर पहने मर्द आते. पर यह नोटिस पढ़ते ही ईवा के मन में अचानक बेल टावर के अन्दर खड़ी खुद का ख्याल जाने कैसे कौंध गया … एक समान काम में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का एक गोल बना कर खड़े रहने, सबके चेहरों पर लैम्प से निकलती हुई गुनगुनी और ताम्बई रंग की रोशनी पड़ने और चर्च के पूरे विस्तृत आहाते में बजती हुई घंटी की ध्वनि के पसर जाने का मंजर एकदम से जीवंत हो गया. वह कभी भी धार्मिक इंसान नहीं रही पर चर्च उसको अलग कारणों से लुभाते रहे, ख़ास तौर पर तब जब क्रिसमस से पहले वाली रात इनमें रोशनी की जाती…. या फसल काटने के समय जौ और पके हुए फलों के चढ़ावे का भण्डार इनके आहातों में इकठ्ठा किया जाता. जब वह बच्ची थी तो एकाध बार लंच टाइम में टहलते हुए स्कूल से लगी हुई कब्रगाह में चली गयी थी… अन्य बच्चे तो खेल कूद में मशगूल रहे पर वह एक एक कब्र के पास जा कर उसपर लिखे नाम पढ़ती रही. उसके पिता ने ऐसा करने से मना किया हुआ था, उनका कहना था कि ईश्वर निरा ढकोसला और झूठ है और स्वर्ग नाम की कोई जगह वास्तव में नहीं होती बस कपोल कल्पना में होती है. इन सबके बावज़ूद ईवा को लगता था कि कब्रगाह से ईश्वर या उसके फरिश्तों का कुछ लेना देना नहीं….बल्कि यह तो सिर्फ उन कामनाओं का प्रतीक है जिसमें पहले से चली आ रही परम्पराओं को बगैर किसी छेड़ छाड़ के यथावत चलने देने की निर्दोष कोशिश है. ईस्टर, फसल कटाई, क्रिसमस — सदियों से चले आ रहे हैं, और इनमें कभी कहीं कुछ नहीं बदला.
उसको लगा यह प्रतिमा पूजन जैसी कामना है और वह स्थान भी प्रतिमा पूजन का स्थान है — सदाबहार की घनी झाड़ियों और खूब छितरी गुलाब की डालियों के बीचों बीच खड़ा पत्थर का वह चर्च, उसकी वेदी (ऑल्टर) और पवित्र जल रखने वाला पात्र (फॉन्ट) …… सबसे बढ़ कर उसकी भारी भरकम घंटियाँ. क्लब के सब के सब सदस्य टॉवर के ऊपर लगी घण्टी के इर्द गिर्द विराजमान ठण्डी और ठहरी हुई हवा के केंद्र में सिमटे हुए, जैसे किसी ऐसे पल का बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं जब कोई आएगा और उनमें दुबारा प्राण फूँक कर पुनर्जीवित कर देगा. उसको खुद पर भी ताज्जुब हो रहा था कि वहाँ खड़े खड़े उसके मन में एकसाथ इतनी सारी बातें आ कैसे गयीं……. सिर्फ एक अदना सा पोस्ट कार्ड पढ़ते-पढ़ते. उसने अपने पर्स में से खरीदने वाले सामानों की लिस्ट वाला कागज़ निकाला और उसपर बेल रिंगिंग क्लब का फोन नंबर लिख लिया.
मैट ने कहा, \”पर ईमानदारी से कहूँ तो मुझे लगता है तुम्हारा दिमाग फिर गया है … तुम बावली हो गयी हो … पर तुम्हारा मन जब इसी में लगता है तो ……\”.
मैट को दिखाई दे गया कि ईवा उसकी बातें सुनकर अनमनी हो गयी थी, और उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दे रही थी पर सबकुछ देख सुन कर भी उसने मामले को समझदारी के साथ सम्भाल लेने का कोई यत्न नहीं किया … जैसे इस से उसकी सेहत पर कोई फ़र्क न पड़ता हो. मैट जब घर पर होता है, घंटों फोन पर लगा रहता है … या फिर अपने पुराने दोस्तों के साथ ज्यादा समय पब में बिताता है ….
और यूँ ही देखते देखते उसके वापस जाने का समय आ जाता. ईवा को इसकी उम्मीद कतई नहीं थी कि मैट को अपने किये की कभी समझ आएगी , फिर भी उसके इतने बेफिक्र और उपेक्षापूर्ण ढंग से बर्ताव करने से उसको गहरा धक्का लगा था. मार्था से इस घटना के बारे में बात करने के बाद उसको मैट पर क्रोध भी आया था , हाँलाकि पहले उसके मन में अपमान का भाव था …… जब अपने भाई के ऐसे बर्ताव पर मार्था क्रोध से तिलमिला गयी तो ईवा के मन का गुस्सा नाक तक जा पहुँचा. जब ईवा ने अपने नए काम के बारे में मार्था को बताया तो उसने उसकी हौसला अफ़जाई की… सिर्फ यह सोच कर नहीं कि ईवा को दिल बहलाये रखने के लिए किसी हॉबी की दरकार है बल्कि इसलिए भी कि ईवा को चर्च और उसका सारा माहौल आकर्षित करता था– ख़ास तौर पर उसकी रोशनी, उसकी भारी भरकम घण्टी और उनसे निकलती हुई सम्मोहित कर देने वाली झंकार जो धीरे धीरे गाँव की विस्तृत हरियाली को अपने आगोश में ले लेती है. मार्था दर असल पहले से ऐसी ही थी.
यह बोलते हुए मार्था ने अपना माथा ऊपर उठाया, उसके चेहते पर निश्चय और सन्तुष्टि के मिश्रित भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे: \” बस ये सब कुछ यार ही हो गया …. अचानक … बगैर किसी सोची समझी योजना के….हमारे बगैर कुछ किये, बस यूँ ही. \”
और तो और वह क्या सोचेगा जब उसको आगे यह पता चलेगा कि ईवा को मार्था के अफ़ेयर के बारे में पहले से सब कुछ पता था. ईवा ने अपना ग्लास उठाया और किचेन के सिंक में रखते हुए बोल पड़ी :\”हाय राम, जरा घड़ी की ओर तो ताको …. कितना समय हो गया. \” यह कहते हुए भी ईवा को अपने इस अजीबोगरीब और अशिष्ट बर्ताव का पता था. उसने पलट कर मार्था को देखा …. मन में कहीं उसको ऐसा करते अफ़सोस हो रहा था, पर वह वास्तव में बुरी तरह खीझ गयी थी … हो सकता है इसकी वजह यह रही हो कि वह इस दुराव छुपाव के खेल की भागीदारी से बचना चाहती हो … या यह कि वह अपने मन को संग साथ नजदीकी जैसे भावों और अफेयर की परत दर परत बारीकियों के झमेलों से दूर रखना चाहती हो … या इन दुर्बल करने वाले भावों से पूर्णतया मुक्ति चाहती हो.
उसने क्लब के बारे में सुना तो उसमें शामिल होने की इच्छा जाहिर की, और क्लब के सदस्यों ने भी उसको शामिल करने में कोई कोताही नहीं बरती हाँलाकि उसकी उम्र , बोलने का भिन्न लहजा और अजीबो गरीब जुमले लिखे हुए खूब चटक रंग के स्वेटशर्ट पहनने का शौक क्लब के अन्य सदस्यों से बिलकुल मेल नहीं खाता था. ख़ास तौर पर कैथरीन उसको खूब पसंद करती और अक्सर उसके लिए अपने बाग़ से ताज़े सेब और खाने पीने का ढ़ेर सारा सामान लेकर आती. उम्र की देखें तो वह उसकी माँ जैसी होगी, पर कई बार ईवा को महसूस होता कि कैथरीन की नजरों में सिर्फ मातृत्व भाव नहीं और कुछ भी था. आम तौर पर जैसे अमेरिकी होते हैं, हर्ले भी उसके साथ बड़ी अदब के साथ पेश आता ….
देखने पर बेहद विनम्र और घनिष्ठ,पर उतने ही निर्विकार भी …. जैसे सामने वाले की बला से, उसके निजी जीवन में जो होना हो होता रहे.
जहाँ तक ईवा का सवाल था वह हर्ले के साथ कोमलता के साथ पेश आती पर बेहद सजगता भी बरतती …सायास एक दूरी भी बनाये रखती. पर अक्सर वह मन ही मन उसके साथ साझा पलों के ख्वाब भी बुनती …. सेक्स नहीं, पर किस ढंग का साथ इसका बहुत स्पष्ट खाका या तस्वीर उसके मन में भी साफ़ नहीं थी …. हाँ ,साथ की ख्वाहिश स्पष्ट जरूर थी. वह पिकनिक हो सकती थी … या लाठोकर के घने जंगलों में साथ साथ लम्बी दूरी तक सैर करना हो सकता था. जब जब भी ईवा ऐसे पलों के बारे में कल्पना करती, ईवा और हर्ले के शरीर कभी एक दूसरे के साथ छूते नहीं — ऐसा नहीं था कि हर्ले को देख कर उसके बदन में सुरसुरी नहीं उठती पर उसको इधर यह महसूस होने लगा था कि वह खुद ऊपर से चाहे जैसी दिखाई दे मन के अन्दर से वह हद दर्जे की दकियानूस और अंधविश्वासी प्रकृति की है …
इतना ही नहीं वह इस बात की कल्पना करने से डरती बचती भी थी जो उसके मन में हर्ले को लेकर अक्सर ताज़ा हवा के एक झोंके की मानिन्द आया करती थी. उसको अंदेशा था कि जैसे ही वह उनके बारे में तस्वीर बनाना शुरू करेगी , वे असम्भव के बियावान में जाकर कहीं गुम हो जायेंगे
हाँलाकि वह मार्था की कही हुई बातों को अपने ध्यान में आने से रोक नहीं पायी और जब घण्टी तक ले जाने वाले सँकरे और अंधेरे गलियारे में ईवा हर्ले के साथ साथ चल रही थी तब बार बार उसकी निगाहें हर्ले के हाथों पर जाकर टिक जातीं — और मर्दों से कितने अलग बला के सुन्दर, नाज़ुक और कोमल हाथ हैं…. पर दुर्बल नहीं, किसी पियानो बजाने वाले या डांसर की तरह भरपूर शक्तिशाली. हाथ देख कर जैसे ही उसके मन में जन्म लेती कल्पना अपने साजो सामान का पिटारा खोलने लगी, ईवा ने डर कर निर्ममता के साथ उनपर ठण्डे पानी की तेज़ बौछार कर दी — उसको लगा हर्ले के बारे में उसका ऐसा सोचना उचित नहीं. हाँ, चंचल उड़नशील मन था कि बार बार हर्ले के उसी ठिकाने पर लौट आता था — उसकी काली आँखें, चलने का उसका अनूठा ढ़ंग ,उसके हाथों का सलोनापन … ध्यान बँटाने की उसकी भरसक कोशिशें नाकाम हुई जा रही थीं. उन हाथों को ईवा अपने बदन पर महसूस करना चाहती थी … हौले से , भरपूर कोमलता के साथ , शालीनता के साथ
ईवा चर्च से जब बाहर निकली तब भी बर्फ़ गिर रही थी …हरे भरे पेड़ों को अपने आगोश में लिए हुए …. क्रिसमस के लिए सजी धजी दूकानों में रंग बिरंगी रोशनी जली हुई थी. कसाई और ग्रोसर की दूकान के खिड़की दरवाज़े पर नीले रंग की पट्टियाँ चमक रही थीं. अब ईवा को क्रिसमस से भी घबराहट होने लगी थी ,त्यौहार के नाम पर हर बार की तरह जेम्स और मार्था मिलने घर ज़रूर आयेंगे …. और उसको उनके साथ यह जतलाते हुए बैठना भी पड़ेगा कि उसके और मैट के बीच सब कुछ एकदम सहज सामान्य चल रहा है … गप्पें मारते हुए शराब के दौर में साथ बैठना भी पड़ेगा
खाते पीते हुए मैट जब आदतन उसकी बनायीं मिन्स पाई का मज़ाक उड़ायेगा तब भी उसको किसी हाल में अपना आपा नहीं खोना होगा …. ईवा ने तय कर लिया है कि इस बार वह मिन्स पाई ख़ुद नहीं बनायेगी बल्कि नयी खुली दूकान से खरीद कर ले आयेगी …और खामोशी से इंतज़ार करेगी कि देखें, कोई घर की बनी और बाज़ार से खरीद कर लायी हुई मिन्स पाई में अन्तर कर पाता है या नहीं
बल्कि बेहतर तो यह होगा कि उस दिन वह चुपचाप बिना बताये घर से बाहर निकल पड़े और जंगल में लम्बी सैर कर आए. …. ताज़ा पड़ी बर्फ़ पर अपने कदमों के निशान छोड़ती हुई काफ़ी आगे निकल कर ठहरे ,पीछे मुड़े और वहाँ से उनकी लम्बी रेखा को निहारे — बचपन में उसके पिता अक्सर ऐसा किया करते थे. यह सोचते सोचते एकबारगी उसको एहसास हुआ कि पिता की मृत्यु के बाद से शायद ही वह कभी जंगल में सैर को आयी हो… या घास के उन प्रशस्त मैदानों में निकली हो गर्मी की शामों में जहाँ पिता उसको फतिंगों के झुण्ड दिखाने लाया करते थे …. उन फतिंगों के अलग अलग नाम पहले तो वे उस स्थानीय भाषा में बताते जिसे ईवा बोलती समझती है ,फिर अपनी मातृभाषा में …… हाँलाकि कई फतिंगे ऐसे भी होते जो सिर्फ़ इस इलाके में होते हैं पिता के छूट चुके देश में नहीं.
\”मुझे लग रहा है जैसे इस बार क्रिसमस पर चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ दिखेगी \”,वह बोली …… \”पर ऐसे मौसम के तुम शायद अभ्यस्त हो …. वैसे तुम रहते कहाँ हो ?\”
ईवा सोचने लगी, अभी अभी तो यहीं पास में खड़ा था, यहाँ से निकल के सड़क पर चलता हुआ भी दिखायी दे रहा था …. इस तरह अचानक गुम कहाँ हो गया. उसको तो यह भी नहीं मालूम कि वह रहता कहाँ है, इतना ही पता है कि गाँव के बाहर किसी ऐसे मकान में रहता हैं जहाँ कुछ और भी लोग रहते हैं …. शायद जंगल पार कर के पश्चिम दिशा में पड़ता है उसका कमरा, यहाँ से आधा मील दूर होगा … हो सकता है ज्यादा ही दूर हो …. एकदम से उसका मन ग्लानि से भर गया कि इस क्रूर मौसम में आखिर उसने अपनी कार में बिठा कर हर्ले को उसके कमरे तक क्यों नहीं छोड़ दिया. पर उसने ही तो बताया था कि ठण्डे मौसम का उसको भरपूर अनुभव है …. और बर्फ़ की मोटी चादर ओढ़ी सड़क पर उसको अपनी कार में बिठा कर छोड़ने जाना ख़तरनाक भी तो हो सकता था … बिलकुल सुनसान रास्ते में सिर्फ़ उसके साथ कार के अंदर, वह भी अंधेरे में बर्फ़बारी के बीच … शायद उसके मुँह से कुछ ऐसा वैसा निकल जाता जिसके लिए जीवन भर उसको पश्चात्ताप करना पड़ता …. कुछ भी तो हो सकता था.
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