‘अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं.’
तो ‘लव’ को सरकारी परीक्षा पास करनी होगी कि वह जेहाद नहीं है. हालाँकि कभी इश्क ही कुफ्र हुआ करता था अर्थात धर्म विरुद्ध क्रिया-कलाप. नहीं तो मीर को क्यों कहना पड़ता –
सख़्त काफ़िर था जिन ने पहले \’मीर\’
मज़हब-ए-इश्क़ इख़्तियार किया
और इसका जवाब बाद में फ़िराक गोरखपुरी साहब को यह कहते हुए नहीं देना पड़ता कि
‘कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं’
ख़ासकर उस संस्कृति में जहाँ कृष्ण और राधा की प्रेम की ऊंचाई मौज़ूद है, अब वहां इश्क को आग का दरिया पार करना होगा.
कथाकार आनंद बहदुर की कहानी ‘लव-जेहाद.’ की सरहद कई प्रश्नों से टकराती है, स्त्री-पुरुष, व्यक्ति-समाज, काला-गोरा और जाति-धर्म के द्वैत यहाँ उपस्थित हैं. कथाकार वैचारिकता को जानबूझकर भाषाई खिलंदड़ेपन के साथ बरतता है. दिलचस्प और रवानगी से भरपूर.
कहानी प्रस्तुत है.
लव-जेहाद
आनंद बहादुर
वह एक काली लड़की थी.
उसका नाम काली लड़की ही है. एक बार लड़की काली हो जाये, फिर उसका उससे सार्थक नाम कोई दूसरा हो ही नहीं सकता. उसका भी स्वतः स्फूर्त नामकरण हो चुका था. इससे फिर कोई मतलब नहीं था कि वह हकीकत में बहुत सुन्दर थी, एक अलग परिप्रेक्ष्य में, जिसे लोग कहते हैं ना, डिफरेंटली एबल्ड, वैसे ही, डिफरेंटली ब्यूटिफुल. अरे नासपीटो, सौंदर्य की कुरूप व्याख्या करने वालों! क्या कोई डिफरंटली ब्यूटिफुल नहीं हो सकती? ऐसी, जिसके सौंदर्य को तुम नहीं समझ सकते. कब्भी नहीं, सात जनम में नहीं?
लड़की काली थी, और ’काली’ नाम से पुकारी गई, जिस बात में किसी को कोई खास एतराज नहीं था. यहां तक कि भोली भाली लड़की तक को. इसके अलावे भी उसके बहुत से और नाम थे, जो कि उस नाम के साथ ही फाव में मिले थे. जैसे आप कोई चीज खरीदते हैं, तो दुकानदार कोई और चीज साथ में अपनी ओर से दे देता है, और आप खुश हो जाते हैं, बिना समझे-बूझे, कि वह यह सब किसी गहरी साजिश के तहत कर रहा होगा. यहां मगर कोई साजिश नहीं थी, क्योंकि उसका नाम ’काली’ पड़ गया था, इसलिये लोग उसे साथ-साथ ’कलूटी’ भी कहने लगे. फिर वो दिन भी आया जब क्रोध के वशीभूत होकर किसी ने उसे ’कलमुंही’ की संज्ञा से भी नवाजा. इस तरह संज्ञा से संज्ञा का खेल आगे बढ़ा और उसने लड़की का जीना मुहाल कर दिया. एक तो लड़की, जिसका मतलब अपने-आप ’जीना मुहाल’ होता है, उसपर से ’काली-कलूटी-कलमुंही’ का जीना मुहाल होना! निहायत! इसलिये मैं कह सकता हूं कि वह एक काली, सताई हुई लड़की थी जो प्रेम में पड़ गई थी.
लड़का के लिये ’लव’, अथवा ’लभ’ अथवा ’लउ’ मनबहलाव होता है, हुआ हुआ न हुआ. लड़की के लिये वह जिंदगी-मौत का सवाल. वह सोचती रहती है, अपने समूचे भविष्य के बारे में. मन ही मन पटरी बैठाती रहती है. ये-ये, न-न वो-वो? वो कुशल ज्योतिषी की तरह गणना करती रहती है. कौन मुझे ठीक से रखेगा? उसका मूल प्रश्न होता है. मैं किसके साथ ताज़िंदगी खुश रहूंगी? वह अनटक्कर पंचे डेढ़ सौ करती रहती है. प्यार-व्यार तो बस एक स्वांग होता है. उसको पुरुषसत्तात्मक व्यवस्था में अपने लिये एक भरा पूरा, परिपूर्ण जीवन चाहिये, जिसके लिये ’लव’ यानी ’लभ’ यानी ’प्यार’ उसका जाती तौर पर किया गया संजीदा प्रयास है. पुरुष को लगता है कि उसके लिये भी वह वैसा ही खिलवाड़ है, जैसा उसकी अपनी बुद्धि में समा पाया है. इसलिये वह लड़की की बेवफाई के लिये हरदम तैयार बैठा रहता है. मौका मिला नहीं कि उसे बेवफाई, धोखेबाजी, इत्यादि के लिये सजा देने को उतावला. उसका गला रेत देने, चक्कू घोंप देने, गोली मार देने, उसके बेशर्म चेहरे पर तेजाब फेंक कर उसे हमेशा के लिये बदसूरत, अंधी, वीभत्स बना देने के लिये तैयार. ज्यादा रहम आये, तो उसके साथ चलो थोड़ा बलात्कार बलात्कार वगैरह भी कर लिया जाये, ओढ़नी से लटका कर फांसी देने के पहले.
उधर लड़की है कि प्राणपन से खोज रही है एक जीवनसाथी, जिसके साथ वह जीवन भर का साथ निभा सके, मगर शर्त है कि वह उसे जीवन भर खुश रखे. अब ऐसा पुरुष कहां मिले इसलिये कि वह छलिया तो सूरज-चांद-सितारों की भीड़ में जाने कहां छुप गया है. उधर घर वाले हैं कि इस आफत को जल्द से जल्द किसी और के पाले में फेंकना चाहते हैं. वे सोच रहे हैं कि इस डायनामाइट को कहां फेंकें कि किसी और का सत्यानाश हो. वह मगर इस सुलूक से सहमत नहीं है. इसलिये, जैसा मैंने कहा, लव मियां उसके लिये जीवन-मृत्यु का सवाल हैं. लव-जिहाद यहीं से कहानी में पदार्पण करता है. लेकिन उससे पहले काली-कलूटी लड़की कुलटा कैसे बनी की दास्तान आड़े आ रही है. जबतक इसे रास्ते नहीं हटाया जाये, यह लव-जेहाद तक पहुंचने नहीं देगी. वैसे भी लव-जिहाद को लेकर हमें किसी प्रकार का कौतूहल नहीं होना चाहिये, उसका हस्र तो सबको पहले से पता है. और यहां हम भी कहानी सुनाने के बहाने उसमें कोई गैर-मुनासिब बदलाव करने वाले भी नहीं हैं. उसका मामला एकदम अपना, सालिड है.
(दो)
कलूटी लड़की को कुलटा कह देना कितना आसान है! जस्ट कुछ आकारों को इधर-उधर करना होता है. इन्हीं आकारों में फंसी हुई अनेक चक्करों में घिरनी की तरह नाचती हुई काली लड़की भी अपना समय जाया कर रही थी. एक तरह से उसने स्वीकार कर लिया था कि उसकी शादी नहीं होने वाली थी. उसकी सूरत शादी के अनुरूप भी नहीं थी, उसमें मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट था. ऐसे माल की सप्लाई बाजार में बंद थी, बल्कि बैन थी. सरासर अपराध था ऐसा माल खपाना. उस अपराध को नाजायज़ से जायज़ करने के उपाय थे, जैसा कि प्रजातंत्र में हर चीज के साथ होता है. मगर उसकी कीमत बहुत अधिक थी, जैसा कि सिस्टम में दर्ज है. और इतना पैसा यहां था नहीं कि उस तरह का जायज़ उत्कोच प्रदान किया जा सके. इसलिये काली लड़की की शादी अनवरत रूप से टल रही थी, जो बात कि बिना बताये सब समझते ही हैं.
मगर काली लड़की इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थी. वह निजाम को बदल कर रख देना चाहती थी. उसने सोच रखा था कि जमाना बदल चुका है. मगर वह नहीं जानती थी कि जमाना कभी इतना नहीं बदला करता. जमाना कभी किसी मजबूर लड़की के लिये इतना नहीं बदल सकता कि उसे मन मर्जी से जीवन-साथी चुनने का अवसर दे, और गिफ्ट थामे-थामे उसकी शादी की सेरेमनी में मुबारकबाद देता हुआ पहुंच जाये. मगर लड़की को गतलफ़हमी हो गई थी, क्या कीजिये. बहुत चेताया था उसे उन सैकड़ों उदाहरणों ने जो ऐसे मामलों के हस्र के रूप में चारों तरफ पतझर में पेड़ से टूटे सूखे पत्तों की तरह बिखरे पड़े थे. मगर वह लड़की थी कि मानती ही नहीं थी. उसने अपनी गलतफ़हमी को सहीफ़हमी समझ रक्खा था, जिस मर्ज का कि कोई इलाज आज तक कहीं नहीं हुआ, आप पता कर लीजिये.
दरअसल पहली बार जब उसकी शादी की बात चली थी, तभी से इसकी भूमिका बंध गई थी कि वह निजाम को बदलेगी, कि ऐसी शख़्सियतें ही निजाम को बदलना चाहती हैं. बाकी जो अघाये हुए हैं, जिनका काम आसानी से चल रहा है, वे भला क्यों निजाम को बदल कर अपना धंधा चौपट करने जाएं? शादी की बात भली निकली, क्योंकि उसी में उसके रंग को एक और उपमा दी गई थी. ऐसा हुआ कि लड़के को रंग को लेकर जरा सा संदेह हो गया, उसने अपने अभिभावकों से तफतीश की. पिता ने बताया कि लड़की सांवली है, मगर नाक-नक्श अच्छा है. लड़का जानता था कि ’सांवली’ एक अनेकाग्रही शब्द है, उससे जैसा चाहे काम चला सकते हैं. उसपर से वह जानता था कि घर के लोग चाहते थे कि वह जल्द से जल्द शादी कर ले, ताकि घर में कामकाज के लिये एक बिना तनख्वाह की नौकरानी आ जाये, आखिर वह लम्बे अरसे से बेरोजगार जो था, और नशे की लत अलग से. फिर छोटा भाई जिसकी नौकरी लग गई थी, वह उसके चलते शादी नहीं कर पा रहा था, जबकि उसने प्रेमिका खोज रखी थी, सबकुछ फिट कर रक्खा था, और लंबा चौड़ा ’फ्यूचर-प्लान’ बना रक्खा था. जब आप खाये-पीये और रसूखदार हों और भविष्य की योजना बनाएं तो उसे फ्यूचर प्लान कहकर पुकार सकते हैं, अन्यथा आपको यह कहकर अपनी भद पिटाने की जरूरत नहीं. कोई मजदूर, किसान, बर्तन मांजने वाली ’फ्यूचर-प्लान’ नहीं बनाते. वे तो जो कुछ सोचते हैं, वो अमूमन पूरा नहीं होता. जैसे, ‘मालकिन सोच रही हूं इस बरसात में खपरैल को फेरवा लूं’. मालकिन यह सुनकर मुसकुराती है.
फ्यूचर प्लान. छोटे भाई ने फ्यूचर प्लान बना रक्खा था, जबकि बड़े ने डूब मरने का कोई फ्यूचर प्लान नहीं बनाया था. सारा लफड़ा इसी के चलते हो रहा था, और इसी वजह से वह अभी एक घोषित रूप से ’सांवली’ लड़की को अपनी ’जीवसंगिनी’ बनाने का ख्वाब पाले-पाले उसे देखने जा रहा था. देखिये, यह ’जीवसंगिनी’ शब्द समय ने गढ़ा है, उनके लिये जो जीवन भर के लिये संग कर लेते हैं, वह जीवनसंग नहीं होता, बस जीव आत्मा में बदलने से बच जाये, उसमें इतनी भर सुविधा रहती है. तो मतलब यह कि ’काली’ या ’कलूटी’ का एक शालीन धातु-रूप भी होता है जिसका इस्तेमाल शादी-ब्याह तय तमन्ना करने के लिये मनोवांछित रूप से किया जाता है- सांवली. इस शब्द में कुछ-कुछ आंवले जैसी तासीर है, जिसके चलते एक बार तो आपका मन करेगा कि तुरंत उस कन्या से विवाह कर ही डालें. मगर हकीकत खुलती है, तो क्या होता है?
कन्या सांवली नहीं काली थी, कालीमाई. खैर कालीमाई के प्रथम लड़की निरीक्षण परीक्षण की व्यथा-कथा आगे सुनिये. लड़के ने कहीं से सुन रक्खा था, या उसे खुद ही कुछ शक था. उसने अपने मामा, जो कि इस सब पचड़े में पड़े या कहिये अपादमस्तक लिसड़ाए हुए थे, उनसे तफतीश की. मामा थोड़े खिलंदड़े स्वभाव के थे, उन्होंने कहा कौन बोला कि लड़की काली है? लड़की तो गोरी है, गोरी! मैंने अपनी आंख से देखा है, तब कहता हूं, अब क्या कसम खिला कर पाप का भागी बनायेगा? येन प्रकारेन लड़का लड़की को देखने दल बल बांध कर जा पहुंचा. उसके साथ उसके चंद नशापत्ती वाले छोरे और थे, जो एक अविवाहित कन्या को विवाह से पहले भाभी कहने का सुख आत्मसात करना चाहते थे, तथा यथा सुविधा लड़की की छोटी बहनों तथा ’सखियाँ सहेलियाँ’ से नयन सुख प्राप्त करने को आतुर थे. वहां पहुंच कर उन लोगों ने पहले तो मोटा नाश्ता गड़पा, जिसमें कि लड़की पक्ष की सहमति थी.
फिर लड़की अपनी बैंजनी आभा बिखेरते हुए अवतरित हुई. जाहिर है, लड़के को धीरे वाला झटका जोर से लगा होगा. उसने मामा से शिकायत के लहजे में कहा, ’आप तो बोले थे गोरी है!’ मामा उवाच,
’’धत् बुड़बक, साइंस नहीं पढ़ा है का? गोराई तऽ कम्पेरेटिभ टर्म बा, हेकर ढेर मीनिंग होखेला. गोराई मने कई तरह की गोराई होती है. संगमरमरी गोराई, गेहुवां गोराई, ’मेरा वाला क्रीम’, साफ, सांवर- ये सब गोरेपन की ही श्रेणियां हैं. ई लड़की ’जमुनिया गोराई’ के क्लासिफिकेशन में आती है, जइसा कि तुम देख रहे हो. काली मने आबनूसी, जिसमें से प्रकाश की कोई भी किरण आर-पार न हो सके, वैसी हालत इसकी नहीं है, जैसा कि तुम देख रहे हो. मने लड़की देखने में नाक नक्श की ठीक ठाक है, घर के कामकाज में चुस्त है मने. तुम एक तो बेरोजगार हो, ऊपर से नशापत्ती करते हो, उपर से बुढ़ा गये हो, सोचो तुमसे पहले तुम्हर छोट भाई विवाह करेगा तो हम सबके लिये डूब मरने कि ’अस्थिति’ लागू होगी कि नहीं मने.’’
बात तो ’जबरजस्त’ थी और उसमें भी अंग्रेजी टर्मिनोलोजी का इस्तेमाल लड़के को ’नरभसा’ देने के लिये काफी था. मगर लड़का भी ठेठ थेथराया हुआ था, उसने इतनी बार भोलेशंकर का नाम लेकर तीन-तीन चिलम और कस कर करके गांजा गोला पानी किया था, कि उसके अंदर एक अज्ञात आत्मबल आ गया था, खासकर इसलिये कि वह मौकए वारदात पर भी फुल फार्म में था. वह इतनी आसानी से हाथ आने वाला नहीं था. उसने मामले को दूसरी ओर मोड़ दिया,
’आपे कह रहे हैं बाकी ई कोयला के खान से सीधे इम्पोर्टेड माल लग रहा है, खैर केतना पइसा कौड़ी देंगे, ईहो पूछिके देखिये, पन्द्रह लाख से कम में तैयार होने लायक मामला नहीं लोका रहा है ई त.’
बस यहीं पर मामा की सारी योजना फेल हो गई, जैसा कि आप जानते हैं. लड़के वाले सीधे पन्द्रह तो कैश ही मांग रहे थे, उसपर से जेवर, बारात का इंतजाम, एक अदद मोटरसाइकिल, टीवी, फ्रिज, पलंग, सोफा, डाइनिंग टेबुल, माने हेन तेन सब्ब. कालिकाकुमारी के पिता पांच छः में सारा कुछ निपटाने का ’पिलान’ बनाये हुए थे. मगर अनंत इंतजार के बाद जो लड़का देखने पहुंचा था उसे एकदम्म से हाथ से निकल जाने देना भी सही नहीं था. उन्होंने कुछ मोल तोल करना मुनासिब समझा, मगर कहां पच्चीस की लहलहाती फसल कहां कहां पांच-छह का सूखा हुआ पाला मारा खेत, लड़के ने तमक कर सीधे लड़की वालों को मुंह पर कह दिया,
’ई जमुनिया गोराई के लिये कोई और प्रिंस आफ भेल्स देखिये, टाटा!’
और लड़का ’पाल्टी’ हो-हो-हो करती ’जमुनिया गोराई जिंदाबाद’ का नारा लगाती हुई लौट गई. इस तरह एक और विशेषण लड़की के नाम से चस्पा हो कर रह गया.
(तीन)
इस बात को एक लड़की को छोड़कर कोई नहीं जानता है कि कोई विशेषण कितना बेरहम चीज होता है. वह किसी लड़की की काया से सट जाये, तो काया भले रास्ते से हट जाये, विशेषण नहीं हटता. उस काली कलूटी की संक्षिप्त सी लड़की-जिंदगी में जितने भी विशेषण आए, सब चिरस्थाई होकर रह गए थे, उस अहिवात की तरह जो तबतक अचल रहता है ’जब लगि गंग-जमुल की धारा’. उस रात लड़की ने पहली बार आत्महत्या का प्लान बनाया, जाहिर है यह निजाम को बदलने के उस प्लान से बहुत अलग कोटि की चीज थी.
आत्महत्या का प्लान और आत्महत्या में एक सूक्ष्म अंतर होता है, जिसके चलते काली लड़की उस रात बाल-बाल बच गई. जब वह बाल-बाल बच ही गई तो जाहिर है, उसके विवाह की और कोशिशें की जातीं. काली लड़की का काली होना इन कोशिशों की असफलता का बायस नहीं था, बल्कि उसके पिता का बेहद साधारण आर्थिक हैसियत का होना उसका ज्यादा बड़ा कारण था. अपनी उच्चतर परिधि से उलट पलट कर, कभी बायें से दायें, कभी दायें से बायें नाचता समय, साफ देख रहा था कि मामले को लड़की के घर-बार वाले, और नाते रिश्तेदार जानबूझकर ऐसा रंग दे रहे थे ताकि घर की माली हालत लोगों के सामने एक्सपोज न हो. कालीमाता यह सब देख-समझ रही थीं. अंत में लड़की के पिता ने अपनी तरफ से एक ईमानदार कोशिश और की जिसकी संजीदगी के आप भी कायल हो कर रह जाएंगे.
उन्होंने अपने पुत्र, लड़की के बड़े भाई के सामने प्रस्ताव रखा कि ‘छोट बहिन’ की खातिर वह ’गोलट’ शादी कर ले. इस तरह का एक प्रस्ताव उनके पास काफी समय से पेंडिंग पड़ा हुआ था. ठीक उन्हीं के जैसे एक परिवार से. सजातीय ही था मामला, बस जरा सा फर्क था, कुछ उप जातीय बात फंस रही थी. उस परिवार की लड़की काली तो नहीं थी, मगर जिसे आप कहना चाहेंगे ’डिफरेंटली ब्यूटीफुल’- थी. अब इसका क्या अर्थ होता है, मुझसे मत पूछिये क्योंकि ’बदसूरती’, ’कुरूपता’, ये सब अर्थहीन शब्दावलियां हैं. सत्य तो यह है कि ईश्वर ने यदि इसका रंग उसे दे दिया होता, या उसका नयन-नक्श इसे दे दिया होता, तो कमसे कम एक लड़की की किस्मत जरूर संवर जाती. भले दूसरी की पूरी तरह फूट जाती, मगर इससे तो बेहतर ही होता, क्योंकि वह तो पहले से ही कोई खास अनफूटी नहीं थी, तिसपर यहां तो दो जिंदगानियां तबाह हो रही थीं.
दोनों तरफ के लड़के अपनी अपनी बहनों की ’सुंदरता’ के बोझ तले दबे हुए थे. दोनों पुरुषों के लिये ये मामला भीषण च्वाइस का था. मामला भावनात्मक है, अपनी-अपनी बहनों के लिये दोनों भाई यह सैक्रिफाइस करने के लिये लगभग राजी थे, और पहले तो सबकुछ ठीक जा रहा था, मगर तभी दोनों ही समाजों के कुछ बुजुर्गों ने ’खाप पंचायत’ वाले तौर तरीके अपनाते हुए एतराज करना शुरू कर दिया कि उन उप जातियों में आपस में शादी-ब्याह नहीं होता है, उनकी शादी करना भाई-बहन की शादी करने के जैसा है, घोर पातक का मामला है. भारतीय सामाजिक व्यवस्था की यह रणबांकुरी, जाति व्यवस्था, जैसे ही मैदान में उतरती है, कि बाकी सभी योद्धाओं की टांय-टांय फिस्स हो जाती है. कालीमाई के विवाह की यह महान कोशिश भी इस प्रकार काल कवलित हुई. यहां पर से मामला फिर लव जेहाद की ओर मुड़ता है.
फिर एक बार बर्नार्ड शा के चुटकुले वाला मामला भी दर पेश आया. बर्नार्ड शा वाला चुटकुला नहीं सुना? तो सुनिये- एक बार एक बहुत सुन्दर महिला बर्नार्ड शा के पास आयी और बोली मैंने सुना है आप पुरुषों में सबसे बुद्धिमान हैं, और मैं स्त्रियों में सबसे सुन्दर हूं. क्यों न हमलोग शादी कर लें? फिर हमारी जो औलाद होगी वो मेरी जैसी सुन्दर और आपके जैसी बुद्धिमान होगी… बर्नार्ड शा ने जवाब दिया कि मोहतरमा, ऐसा भी तो हो सकता है कि वह मेरी तरह सुन्दर और आपकी तरह बुद्धिमान हो!
काली लड़की से इस चुटकुले का ये संबंध है, कि एक बहुत गोरा-चिट्टा युवक उससे शादी करने को तैयार हो गया. वह एक ठिंगना, कद्दू जैसे शरीर वाला, बेहिसाब तोंदियल अधेड़नुमा लड़का था, उसका चेहरा क्लासिक डार्विन के मिसिंग लिंक वाला था. अपने सुगर मिल के मैनेजर पिता की इकलौती संतान. पैसा उनके पास इफरात था, मगर एक तो वह कोई काम धंधा नहीं करता था, और लड़का देखने में ऐसा कि इतनी दौलत रहते हुए भी उसका विवाह नहीं हो पा रहा था. इसलिये अब वे चाहते थे कि जो चीज उनके पास नहीं थी, उसे कुरूप मगर गोरे लड़के और काली मगर संतुलित नाक-नक्श वाली लड़की के हाइब्रिडाइजेशनम के मार्फतम प्राप्तम किया जाये. उनका ख्याल था कि अगर उनका पुत्र उस काली कन्या से विवाह कर ले, तो आने वाली संतान को लड़की का चेहरा, और कद-काठी, तथा लड़के का गोरा रंग मिल जाएगा.
यही बात उस लड़के ने लड़की को बताई जब वह उसे देखने आया. लड़की बर्नार्ड शा को नहीं जानती थी, न ही उसने कुछ खास पढ़ा लिखा ही था. फिर भी उसने ईमानदारी के साथ अपनी आशंका जाहिर की कि ऐसा भी हो सकता था कि आने वाले अज्ञात को लड़के की कद-काठी, नाक-नक्श और लड़की की ’जमुनिया गोराई’ मिल जाए. तब क्या होएगा? अपनी ओर से तो वह वैसी संतान को भी एक मां का सम्पूर्ण प्यार और वात्सल्य देने को तैयार थी, क्योंकि उसे उस ताने-तिश्ने वाले घर से आजादी चाहिये थी, और एक अपना मर्द जो एक छत और चार दरों-दीवार मुहैया करा सके, और दो जून का भात.
लड़का लेकिन बहुत डर गया. ‘बर बीसम बीसे बीसा, बर देखे एक्के दीसा’, वह तो एक ही डायरेक्शन में देखता हुआ चला आया था. यह संभावना तो उसकी बुद्धि में घुसी ही नहीं थी. इस तरह हालांकि लड़की ने, दो पल के लिये ही सही, बनार्ड शा की बराबरी कर अपने को दुनिया का सबसे बड़ा जीनियस क्यों न साबित कर डाला हो, एक बार फिर वह शादी-शुदा प्राणियों की लिस्ट में आने से रह गई थी.
यानी एवम प्रकार से, समझिये कि कालीमाई की शादी की कई कोशिशें की गईं. कई बार देखने का नाटक करने वाले आए. उससे इंटरव्यू में तरह-तरह के रोचक सवाल किये जाते- जैसे, ’कालीचरण’ और ’कालिया’ में तुम्हें कौन फिल्म ज्यादा अच्छी लगती है? कालाजामुन और कलाकंद में कौन सी मिठाई बनाना जानती हो? ब्लैक डायमंड और डायमंड में क्या अंतर होता है? कालीमूंछ और बासमती चावल में किसका स्वाद तुम्हें बढ़िया लगता है? आदि. जब भी ऐसा होता, लड़की के अनेक नामों में एक नाम और जुड़ जाता. अब वह ’कालाजामुना देवी’, ’कलाकंदकुमारी’, ’ब्लैकडायमंड एक्सप्रेस’, ’कालीमूंछ चौधराइन’ इत्यादि नवीनतम नामों से भी विभूषित की जाने लगी. हर बार मामला थोड़ा-थोड़ा लव जेहाद की तरफ जा रहा था. कैसे? हम-आप इस बात को नहीं समझ सकते, मगर लड़की इस बात को समझ रही थी. रोज-रोज घर में शादी की बात होने के चलते मन के साथ ही उसका तन भी जवान होता जा रहा था. अकेली, बादलों वाली उमड़ती घुमड़ती रातों में वह उसे बहुत परेशान करने लगा था.
हां, इतनी सारी खुराफातें इस दास्तान में तफ्सील हैं कि एक बात तो मैं बताना ही भूल गया- कालीमाई बहुत अच्छा गाती थी. आपने इस बात को बहुधा नोटिस किया होगा, काली लड़कियों की मधुर आवाजों को. कोयल? शायद कोयल से प्रेरणा लेकर यह प्रकृति की सुधार की अपनी कोई व्यवस्था हो. यहां भी वह बात सोलह आने पाई रत्ती सच थी. जब भी कोई लड़का लड़की को देखने आता, वह सारा अपमान भूल कर कोशिश करती कि एक बार कोई उसे गाने का एक मौका दे दे. उसे कुछ ऐसा विश्वास था गाने की अपनी शक्ति पर. अपनी ’सखियाँ सहेलियाँ’ के बीच वह ’लमफे गायिका’ के रूप में मशहूर थी. नहीं समझे? लमफे आने के लता मंगेशकर फेल! मने उसके गाने के आगे लता मंगेशकर भी फेल थी! ये हुई बात! इसको कहते है एचीभमेंट! तो लड़की को पूरा विश्वास था कि कोई भी लड़का एक बार उसका गाना सुनेगा तो रंग-वंग सब भूल जाएगा, और गाने के भंग में डूबने उतराने लगेगा, और इसी बे ध्यानी में उसके मुंह से ’हां’ निकल जाएगा और उसका सारा घर-परिवार खुशी से झूम-झूम उट्ठेगा! कितना मासूम हृदय होता है अपनी लैलाओं का! कहना न होगा कि शादी-ब्याह ऐसे गंभीर मसले को लेकर इस तरह का एक्स्ट्रा-करिकुलर रुख किसी को पसंद नहीं आया, और लमफे-गायन करने की उस लालसा की हसरत नाकाम ही रही.
(चार)
इधर वक्त धीरे-धीरे, हंस के पंखों पर सवार होकर न सही, चमगादड़ के फड़फड़ाते डैनों पर इधर-उधर उजबक जैसा टकराता हुआ आगे बढ़ा जा रहा था. उसी के बीच हजार अपमानों से गुजरती हुई कालीमाई भी ’बुढ़ाने’ लगी थी, उधर उसकी छोटी बहन थी जो ’जमुनिया गोराई’ की हदों को पार कर ’मेरा वाला क्रीम’ की तरफ बढ़ निकलते हुए, जवानी की दहलीज पर दस्तक देने लगी. इससे एक तात्कालिकता पैदा हुई कि अब ब्लैक-डायमंड एक्सप्रेस के पास ज्यादा समय नहीं बचा था, अपने जीवन की मालगाड़ी को पटरी पर लाने के लिये उसे कुछ न कुछ रिस्की करना पड़ेगा. लड़की होने के रिस्क से ज्यादा रिस्क तो वह पहले से ही काली लड़की होकर उठा रही थी. अब उससे भी ज्यादा रिस्की?
लड़की लेवल के लव की बात तो हम आगे भी देख चुके हैं, जीवन की, जीवन में उसकी आवश्यकता की, आवश्यकता की सच्चाई की, और आप तो जानते ही हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. कुछ भी भावनात्मक नहीं, बस एक अदद जीवन-अवसर की चाहत ही वह आवश्यकता, जो सभी आवश्यकताओं की भी जननी है. जो कोई भी लड़की लव करती है दरअसल खुद से लव करती है. अपने लिये एक अदद घर, अपनी भूख के लिये दो रोटी, अपने गर्भ के लिये सही और सच्चे भ्रूण की तलाश को लव करती है जो लड़की होने के नाते उसकी प्रकृति प्रदत्त जिम्मेदारी है. अपनी कृत्रिम आवश्यकताओं के चलते बंदे मंदिर, मस्जिद, गिरजा, काबा-कैलाश भटकते फिरते हैं, नदी-नालों, गड़हों में डुबकियां लगाते, अजीबोगरीब हरकतें करते. वह भी एक तरह का ’लभ’ होता है, मगर स्वार्थ से लबालब. उधर लड़की जो अपनी अलौकिक जिम्मेदारी से मूं न मोड़ पाने के चलते प्रेम-पथ पर चल निकली है, उसे आसानी से छिनाल, रंडी, आवारा ठहराया जाता है. यह तो सरासर पुरुष होता है, जो प्रेम में भावनात्मक रूप से अनेक आग्रहों-दुराग्रहों से होकर गुजरता है. जीवन की नितांत आवश्यकता के परे जाकर जो कुछ भी किया जाये, वह एक तरह से देखा जाये तो छिनालियत है. इसलिये छिनालयित का आरोप तो उस पर लगना चाहिये.
लड़की उधर हर तरह से हताश निराश हो कर आत्महत्या की दिशा में उभ-चुभ कर रही थी. गनीमत यह कि हर बार वह अपनी संभावित आत्महत्या के बारे में किसी न किसी को बता दे रही थी, जो कि, विद्वान लोग जानते हैं, आत्महत्या से बचने का शर्तिया उपाय है. मतलब, लड़की में अभी भी जीने की इच्छा बाकी थी. जिस दिन यह इच्छा चुक जाती, उस दिन लड़की बताना भूल जाती. मगर लड़की को पता भी नहीं था, कि जीवन एक खास कोण से उसकी ओर झांककर देख रहा था, और मुस्कुरा रहा था, उस अफरोज टेलर की नजरों से, जो रोड के ठीक उस पार, थोड़ा हट कर, तीन दुकानों के बाद खड़े अपनी दुकान ’इस्टाइलो टेलर्स’ के टपरे के नीचे से, जहां से वह गाहे- बगाहे लड़की की दूर से आती सुरीली गुनगुनाहट को सुनता था, जब कालीमाई अपने पिता पांचू हलवाई के दुकान-मकान नामक टू-इन-वन के सामने वाले हिस्से में झाड़ू मारती हुई लता मंगेशकर को फेल करने की अपने इच्छा को मूर्त रूप देती थी.
यानी यह कहानी पांचू हलवाई की बेटी और अफरोज टेलर के लव जिहाद की है? धत्! तो और क्या जनाब? आप क्या सोचे थे? कालीमाई कोई नडानी जी या लुम्बानी जी, गोयनका जी, पचाई जी, बिड़ला जी, झुनझुनवाला जी, चैकसे जी, की नातिन और अफरोज कोई जोवैसी जी, पिद्दिकी साहब, अख्तर साहब, दाउद मियां के पड़पोते हैं! गजब करते हैं, उस लेवल पर लव जिहाद होता है भला! लव जेहाद तो होता ही है पांचू हलवाई और अफरोज टेलर लेवल पर. हो ये रहा था कि उधर कालीमाई के घर के लोग नाना प्रकार से उसकी कलछंह हथेलियों को पीला करने की कोशिश कर रहे थे, इधर कालाजामुना महोदया खुद अफरोज के साथ नयन-क्रीड़ा नामक आईपीएल खेलने में व्यस्त थीं.
इसकी शुरुआत किधर से हुई यह तो नहीं पता, और ऐसे डिटेलों में जाने से कोई फायदा भी नहीं, मगर बाद में इसका आरोप अफरोज टेलर पर लगेगा, ये तो लव जिहाद का निश्चित तकाजा है. जबकि हकीकत में यह लव जिहाद कुछ-कुछ इन रास्तों से प्रगति कर रहा था. अब यह तो सभी जानते हैं कि एक लड़की को हमेशा पता होता है कि कौन उसे देख रहा है, कौन इग्नोर कर रहा है, कौन देखने का बहाना कर रहा है, कौन इग्नोर करने का बहाना कर रहा है, आदि-इत्यादि. यह मादा को एक प्रकृति प्रदत्त उपहार है, गर्भधारण करने की उसकी बाध्यता को सफल करने के लिये उसे दी गई आत्मानुभूति जिसके माध्यम से वह अपने गर्भ के लिये सही वीर्य दे सकने वाले पुरुष का चयन करती है. तो लड़की को पता था कि सामने तीन दुकान हट कर टेलर दुकान में से कोई उसे छुप-छुप कर देख रहा है. मगर इससे उसके गाने पर लगाम नहीं लगी, बल्कि उसकी आवाज और तेज हो गई.
एक दिन अचानक अफरोज को लगा कि गाने की आवाज जो पहले बहुत मद्धिम सुनाई देती थी, बिल्कुल साफ सुनाई देने लगी. जैसे उसके कानों की सुनने की क्षमता कई गुना बढ़ गई हो. उसने प्यार-व्यार के बारे में बहुत कुछ सुन रक्खा था, कि प्यार हो जाने पर आदमी की बहुत सारी सलाहियतों में इज़ाफ़ा हो जाता है. उसने सुन रक्खा था कि कोड़ा जब मजनूँ की पीठ पर पड़ता था, तो लैला की पीठ खुद ब खुद छिल जाती थी. उसके साथ जो हो रहा था वह तो उसकी तुलना में बहुत साधारण था. फिर भी उसने ख़ुदा का शुक्र अदा किया और दो की जगह पांच वक्त की नमाज और ईमान लाकर पढ़ने लगा. यह जानते हुए कि राज्य के मुख्यमंत्री ने अभी हाल में ही लव जेहाद के विरुद्ध नया कानून लागू किया है, उसने उस विजातीय लड़की को पाने की इबादत कर डाली.
इबादतों के बारे में अपना जाती ख्याल है कि जिन बातों से अपनी जान जोखिम में पड़ने की सम्भावना हो, उनको बिल्कुल नहीं मांगना चाहिये. वो हर हाल में पूरी होती हैं. खुदा को भी ऐसे खेल खेलने में बहुत मजा आता है. अगले दिन जब अफरोज चाय पीने के बहाने पांचू हलवाई की दुकान पर आया तो पाया कि पिता की तबीयत खराब होने और भाई के किराना लाने बाहर गये हुए होने के चलते ’कालाजामुना देवी ’ दुकान पर बैठी ग्राहक सेवा प्रदान कर रही थी. चाय का गिलास उसके हाथ में देते हुए कलाकंदेश्वरी कुमारी ने पूछा, ’हरदम मेरी तरफ क्यों देखता रहता है?’ अफरोज का कलेजा तो एकदम्म धक्क से रह गया, उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि ’म्युजिकल-लड़की’ डायरेक्ट ऐक्शन में विश्वास रखती होगी. उसे पता नहीं था कि लड़की विवाह प्रयोजन से दिखाये जाते-जाते इतनी तंग आ चुकी थी कि आत्महत्या तक के बारे में सोच चुकी थी, कि डायरेक्ट ऐक्शन उसके लिये क्या चीज थी, वह किसी अपरिचित के साथ डायरेक्ट भाग जाने तक के लिये तैयार थी, जबकि अफरोज के बारे में उसने एक एक बात पता कर रक्खा था.
अफरोज हदस गया, थोड़ी चाय छलक कर उसकी पैंट पर गिर गई. उसने हड़बड़ा कर उत्तर दिया, ’’देखता नहीं हूं, सुनता हूं, आप बहुत अच्छा गाती हैं.’’ अब लड़की के चारो खाने चित्त होने की बारी थी. दूसरी लड़की होती तो गुस्से से फनफना जाती कि उसे देखने, घूरने लायक तक नहीं समझा गया, और प्यार-व्यार की सारी संभावना टें बोल जाती. यहां उसका बिल्कुल उलटा हुआ. लड़की झूम उट्ठी. उसने कहा, ’आपका चाय छलक गया, थोडा़ और ले लीजिये.’ और उसने चाय की प्याली फिर से पूरी भर दी. उसकी इबादत के फजल से उस समय दुकान में और कोई नहीं था, जिसका लाभ उठाते हुए अफरोज ने उसका नाम पूछ लिया. तब कहीं जाकर हमें पहली बार पता चला कि उस लड़की का एक अदद प्यारा सा नाम भी था- स्निग्धा! पुलकित होकर उसने फिर कहा, ’थोड़ा आप भी लीजिये ना!’ स्निग्धा ने चुपचाप एक कप में थोड़ी चाय उड़ेली और उसे इस तरह पीने लगी जैसे उसकी एक-एक बूंद अमृत हो.
(पांच)
इसके बाद क्या हुआ होगा यह वे लोग अनुमान कर सकते हैं, जिनके हृदयों ने कभी उड़ान भरी हो. बाकी के लिये ये ’मैं बपुरी डूबन डरी रही किनारे बैठ’ है. मैं यहां पर प्रेम के औदात्य पर एक लम्बा पैराग्राफ लिख मारना चाहता हूं, लेकिन उस लोभ का संवरण कर आगे की जरूरी बात की तरफ आता हूं. उधर स्निग्धा को देखने-दिखाने का नाटक चलता रहा, इधर मामला लुक छिप वाला होता चला गया. हालांकि समाज ने इसकी ढेर सारी क्रेडिट ले रक्खी है, मगर हकीकत में अपने मिलने पर सारी पाबंदी खुद स्त्री ने लगा रक्खी है. यही स्त्री अगर तय कर ले कि उसे किसी से मिलना है तो सारी दुनिया उसे रोक नहीं पायेगी, ये मेरा दावा है. लोग कहते हैं बैर, प्रीत, खांसी, खुशी छिपाए नहीं छिपते हैं. लोग बेवकूफ हैं, या बदल गये समय के तकाजों से वाकिफ नहीं हैं. मोबाइल फोन के आगमन के बाद बैर, खांसी, और खुशी के बारे में तो हम नहीं जानते, प्रीत को छिपाने की सार्वजनिक सुविधा प्रेमीजन को उपलब्ध हो चुकी है. अब कहां हैं वे मांएं, बहनें, बुआएं जो रात दिन ताक लगाए जासूसी करती रहती थीं? लद चुका उनके अत्याचार का जमाना! अब तो वे टुकुर टुकुर ताक भर सकती हैं, बस्स!
हलवाई की दुकान की कमाई ठीक ठाक हो रही थी, नतीजतन घर में सबके पास फोन था, भले ही वह स्मार्टफोन न हो, मगर अनलिमिटेड टाकटाइम हर एक के पास था. इसका फायदा स्निग्धा और अफरोज ने जम कर उठाया. इसी बीच लड़की की शादी की कोशिश भी जम कर चली, क्योंकि छोटी बहन ’मेरा वाला क्रीम’ के लिये उपयुक्त वर आसानी से तलाश लिया गया था, वह एक लड़का था जो कालीमाई को देखने आया था, मगर ’मेरा वाला क्रीम’ को पसंद कर के चला गया था. जिस दिन ’कालाजामुना देवी’ के जीवन में यह हादसा घटा, उसी दिन उसने अपने प्रेमी से बात की.
’तुम अब ज्यादा देर नहीं करो, मुझसे अब बरदाश्त नहीं होता.’
’क्या बात हुई?’ अफरोज ने पूछा. स्निग्धा ने उसे सबकुछ बताया.
’तुम मुझे अपने घर बैठा लो अब’, वह गिड़गिड़ाई, ’मैं तुम्हारे मजहब को कबूल करने को तैयार हूं.’
’’तुम नहीं जानती हमारा मुख्यमंत्री नया कानून बनाया है, निकाह के लिये मजहब नहीं बदल सकते.’’
’तो फिर बिना मजहब बदले मुझे ले चलो, इससे क्या फर्क पड़ता है!’
’’ऐसा हमलोग के मजहब में नहीं होता!’’
’तो तुम अपना मजहब छोड़ दो, मैं भी अपना धरम छोड़ दूंगी. ऐसे मजहब-धरम से क्या फायदा?’
अफरोज, फीकी मुस्कान के साथः ’’इतना आसान नहीं है!’’
’तो फिर चलो हम दानों एक साथ फांसी लगाकर मर जाते हैं!’
’’हां, ये हो सकता है, बल्कि सबसे आसान राह यही है. मगर मैं तो तुम्हारे साथ निकाह करके उम्रभर तुम्हारा गाना सुनना चाहता था!’’
इस तरह संयुक्त आत्महत्या का प्रस्ताव तिरोहित हुआ. लड़की ने कहा, तब फिर मैं मां से बात करती हूं. अफरोजः हर्गिज मत करना, तुमको कूट डालेंगे, और मेरी दुकान जला डालेंगे! ऐसा लगता है खुदा या अल्लाताला दोनों में से कोई एक अफरोज की ज़बान से उस दिन बोल रहा था, क्योंकि सचमुच उस दिन कालीमाई की कुटाई की गई. उसे कुलटा और कलंकिनी के लेटेस्ट माडल विभूषणों से आभूषित किया गया.
मामला घर ही में दबा दिया गया, मगर अब उसे जंगल की हवा लग चुकी थी, ’मेरा वाला क्रीम’ ने होशियारी दिखाते हुए सारा मामला अपने होने वाले खसम को बता दिया, जिसका सख्त एतराज ही नहीं था, बल्कि उसने शादी तोड़ देने की धमकी दे डाली. घर के लोग ऐंटीवायरस मोड में आए, मगर तब जाकर बात सार्वजनिक होने से बच पाई.
मगर जैसा मैंने पहले ही कहा था, यह कालीमाई जरा हटके है. इसने निजाम बदल कर रख देने की कसम खा रक्खी है. ये इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाली है, बशर्ते कि अब उसपर कड़ी नजर रखी जा रही है और अफरोज टेलर की पांचू हलवाई की दुकान पर आना-जाना बंद हो गया है. लड़की कुछ न कुछ नायाब जुगाड़ लगा कर अफरोज से बदस्तूर मिल ले रही है. एक दिन उसके हाथ में अखबार में छपा एक न्यूज पड़ा.
यह अखबार कागज के एक ठोंगे में बदल गया था जिसमें पैक होकर चंद लड्डुओं, इमरतियों या बालुशाहियों को किसी न किसी ग्राहक के घर जाना बदा था. मगर एक ऐसे ठोंगे में बदल जाने के बावजूद वह जरा जिद्दी किस्म का अखबार था, उसने अपने मूल चरित्र में, अपनी नीयत में कोई बदलाव नहीं आने दिया था. वह अभी भी अपने आप को एक ठोस अखबार मानता था. लड़की खुद उसी अखबार जैसी जिद्दी थी. अखबार के ऊपर एक सूचना छपी थी कि पढ़ाई-लिखाई के नाम पर दूसरे शहरों में जाकर पढ़ रहे अमुक प्रतिशत लड़के लड़कियां ’लिव-इन’ रिलेशनशिप में रह रहे थे. अब इस लिव-इन टिव-इन के बारे में हम तफ्सील से कुछ पेश करना चाहेंगे, मगर इसमें कहानी के मूल उद्देश्य को ठेस पहुंचेगी, इसलिये बेहतर हो आप खुद नेट-फेट पर जाकर खोज-खाजकर इसके सामाजार्थिक पहलुओं पर गौर फरमा लें. ऐसा नहीं भी करते हैं तो भी अपना काम चल जाएगा, क्योंकि स्निग्धा ने अपनी ओर से उस पर काफी गौर कर लिया है. और उसका निष्कर्ष हम यहां बता देते हैं.
स्निग्धा अखबार के उस टुकड़े को पढ़ कर अवाक रह गई. अरे बाप रे! एक छोटे से शहर में चार हजार लड़का-लड़की लिव इन में हैं! न किसी का नाम धर्म ठीक से अता-पता, न जाति-पांति, न मां-बाप का कोई ठिकाना, मगर ये छोरे-छोरी हैं कि अपनी मर्जी से रह रहे हैं, और ये बेवकूफ उधर लव-जिहाद का कानून बना रहे हैं. उधर वे सब के सब रोज-डे, चाकलेट-डे, हग-डे, किस-डे, वेलेन्टाइन-डे मना रहे हैं. और ये लोग लव जेहाद को लानत भेज रहे हैं. लोग हिन्दी-अंग्रेजी-उर्दू को भूल-भालकर इमोजी लैंग्वेज में बात कर रहे हैं, और ये राष्ट्रभाषा दिवस मना रहे हैं, लड़कियां अधनंगी होकर यू-टृयूब और इंस्टाग्राम पर नाच-नाच कर वीडियो लगा रही हैं, और ये संस्कृति की रक्षा के लिये माब लिंचिंग कर रहे हैं. लोग खुलकर होंठ रंग, नाक छिदवा कर समलैंगिक विवाह कर रहे हैं, और ये धर्मान्तरण को रोकने के बहाने सच्चे प्यार को लव जिहाद का नाम देकर शव यात्राएं निकाल रहे हैं. ये अपनी स्त्रियों को अपने जीवन में जगह नहीं दे रहे, उलटे अगर वह कहीं और जाकर एक समूचा जीवन जीना चाहे तो उसके खिलाफ कानून बना रहे हैं! मगर कोई करे तो क्या? सब जगह यही लोग छाये हुए हैं. एक पूरी समूची सभ्यता का कट्टरीकरण हो गया है. एक समूची सभ्यता का ब्रेनवाश कर दिया गया है!
मगर इसकी तोड़ क्या है? उसने तत्काल योजना बनाई- वह भी आगे की पढ़ाई करने दूसरे शहर जाएगी. शादी-ब्याह का चक्कर ही छोड़ो. वह खुल कर घोषणा कर देगी कि अब वह कभी शादी नहीं करेगी, कि वह आजीवन कुंआरी रहेगी, किसी प्राइवेट स्कूल में मास्टरनी बन कर, या दुकान में सेल्सगर्ल बन कर, जोमैटो, स्विगी आदि जैसी किसी कम्पनी के लिये सामान पहुंचाने वाली बनकर, या किसी पेट्रोल पम्प पर पेट्रोल भरने वाली बन कर. अफरोज उसी शहर में अपनी सिलाई मशीन के साथ रहेगा. उसकी अपनी दुकान न भी हो पाए तो कोई हर्ज नहीं. वह कपड़े की किसी दुकान की सीढ़ी के नीचे अपनी सिलाई मशीन डाल लेगा और झोला-रुमाल-पाजामा सिलाई करता हुआ जीवन गुजर-बसर करने भर कमा लेगा. न वह धर्म बदलेगी न अफरोज को बदलने की जरूरत होगी. उनको शादी-ब्याह करने की भी दरकार नहीं होगी, क्योंकि वे भी इन हग-डे मनाने वालों, सड़ा हुआ फटा हुआ जींस-पैंट के अंदर से टांग झलकाने वालों-वालियों की तरह, लिव-इन में जीयेंगे, और लिव-इन में मरेंगे.
वह काली लड़की, ब्लैक-डायमंड एक्सप्रेस, कालाजामुना देवी, कलाकंदकुमारी, जमुनिया गोराई, जिसकी शादी किन्हीं कारणों से नहीं हो पा रही है, और लव जिहाद जिसे अपनी मर्जी से एक अदद जीवन साथी चुनने, अपनी मर्जी से जीने-मरने नहीं दे रहा है, यह सब योजना बनाकर अभी-अभी सोई है. उसे पूरे जमाने में किसी पर नहीं, बस अपने अफरोज पर पूरा भरोसा है. वह उसीके बच्चे को जन्म देना चाहती है. वह सोई हुई अपना मनमाफिक सपना देखना चाह रही है. मगर वह यह क्या देख रही है?
हे भगवान, हे अल्लाताला! आप दोनों जल्दी से आओ और देखो. वह क्या सपना देख रही है!
सपने में वह देख रही है कि कभी अचानक उसको घेरकर उसके घर के लोग ही उसके टुकड़े-टुकड़े कर रहे हैं, कभी हैवानों की एक भीड़ अफरोज को घर से घसीट कर उसकी लिंचिंग कर रही है और अदालतें हत्यारों को बा इज्जत बरी कर रही हैं, उन्हें फूलमालाएं पहनाई जा रही हैं, कभी शादी का वादा कर डर के परिवार की ओट में छुप जाने के चलते अफरोज ही उसपर तेजाब फेंक कर भागता हुआ पकड़ा जा रहा है और पुलिस उसके गुप्तांग पर डंडा बरसाती हुई उसे लहूलुहान कर रही है. एक सत्ताधीश सत्त है का नारा लगाता है और उसका चेहरा नरकंकाल में बदल जाता है. लड़की अभी सोई हुई है. जब वह उठेगी तो क्या करेगी?
अभी कोई निजाम नहीं बदला है. आपको क्या लगता है? क्या निजाम बदलेगा?
____
आनंद बहादुर
एम.ए. अंग्रेजी साहित्य, डी.एच. लारेंस पर पी-एच. डी.