“महाभारत मात्र एक ऐतिहासिक महाकाव्य नहीं है. उसमे वर्तमान भी है. हम सबका वर्तमान. वर्तमान के गर्भ से भविष्य निकलता है और इस अर्थ में हम सबके इस महाभारत में यानि हमारे वर्तमान में, एक भविष्य मौजूद है.एक गतिशील परिदृश्य. न्याय और अन्याय की बदलती बनती परिभाषा. सच और झूठ के ताने बाने में झूलते जान गंवाते, जान लेते हम सब. यह हम सबकी नियति नहीं है. महाभारत यह बोध भी जगाता है और नियति के विरुद्ध होना, अपने समय में यानि वर्तमान में बने रहने की भी कोशिश है. इसलिए अर्जुन और दुर्योधन, भीष्म और कृष्ण का सन्दर्भ मात्र रूढ़ अर्थों में मौजूद नहीं है, वह रूढ़ होने की प्रक्रिया के विरुद्ध एक महाकाव्यात्मक प्रयत्न है. वह देश काल का हिस्सा होते हुए भी उससे परे है. परिस्थितियों के आलोक में मैंने अपने समय के महाभारत यानि अपने वर्तमान को देखने की कोशिश की है. लेकिन यह सवाल मेरे लिए अब भी उतना ही बड़ा सवाल है, क्या इस वर्तमान के भीतर से कोई भविष्य फूट रहा है? अगर हाँ तो क्या यह नियति हमे स्वीकार है ?”
अच्युतानंदमिश्र
अच्युतानंद मिश्र की कवितायेँ
1
धृतराष्ट्र की तरह तुम तो
अन्धें नहीं थे, अर्जुन
फिर क्यों देखते रहे सिर्फ
मछली की आंख में ?
2
अर्जुन न्याय के लिए लड़ता है
अठारह अक्षौहनी सेना खड़ी हैं
अन्याय की तरफ
सैनिक नहीं लड़ना चाहते थे युद्ध
उन्हें याद दिलाया गया
कर्तव्य सैनिक का
कहा गया कर्तव्य से विमुख होना
अन्याय है
अर्जुन पूछता है कृष्ण से
क्या हर बार जीत न्याय की होती है
हारता है अन्याय ?
नहीं ! कृष्ण ठीक करते हुए कहते हैं-
जो जीतता है
वहीँ न्याय है
हारना अन्याय
अठारह अक्षहौनी सेना खड़ी है
अन्याय की तरफ
अर्जुन जीत के लिए
नहीं न्याय के लिए लड़ता है.
3
गुरुकुल में
युधिष्ठिर चुप रहने का
अभ्यास करता है
भीम शब्दों की गांठ
पर मुक्का चलाता है
अर्जुन मुस्कुराता है
नकुल ,सहदेव
गिलहरी के पीछे भागते हैं
कौरव हारने का अभिनय करते हैं.
4
कौरव हार गए
क्योंकि अर्जुन को जीतना था
युधिष्ठिर चुप रहे
क्योंकि अर्जुन को जीतना था
भीम ने घटोत्कच को मरने दिया
क्योंकि अर्जुन को जीतना था
भीष्म बाणों की शैय्या से
सब कुछ देखते रहे
क्योंकि अर्जुन को जीतना था
और अर्जुन ?
वह मछली की आंख में देखता रहा
क्योंकि अर्जुन को जीतना था.
5
युद्ध से पहले युद्ध हुआ
युद्ध के बाद भी युद्ध हुआ
लेकिन युद्ध में युद्ध नहीं हुआ
युद्ध में अर्जुन था
युद्ध में कृष्ण थे
कृष्ण अर्जुन को युद्ध के विषय में
बताते रहे
युद्ध में युद्ध नहीं होना था
युद्ध में कृष्ण को होना था
युद्ध में अर्जुन को होना था
युद्ध से पहले युद्ध हुआ
युद्ध के बाद भी युद्ध हुआ
लेकिन युद्ध में युद्ध नहीं हुआ.
6
एक दिन सब मारे जायेंगे
कृष्ण ने कहा
अर्जुन ने मृत्यु के लिए
तीर चलाया.
7
अर्जुन क्रिया है
कृष्ण विचार
बाकि संज्ञाएँ
नष्ट होनी थी
नष्ट हुयीं.
8
कर्ण की हार तय है
अर्जुन की जीत निश्चित
कर्ण भी जीत सकता था
लेकिन जीत अर्जुन की ही होनी थी
कर्ण के पास मृत्यु के अतिरिक्त
कोई विकल्प नहीं था
विकल्प अर्जुन के पास भी कहाँ था
जीत के सिवा.
9
युद्ध में दो ही बचे
अर्जुन और कृष्ण
युद्ध में दो ही मरे
अर्जुन और कृष्ण
युद्ध दो के बीच ही हुआ
अर्जुन और कृष्ण.
10
युद्धभूमि में
अर्जुन के ठीक सामने
खड़े हैं द्रोणाचार्य
द्रोणाचार्य ने अर्जुन को
धनुर्धर बनाया है
क्या द्रोणाचार्य बच सकते थे
अर्जुन के तीर से !
अर्जुन के तीर से
कौन बचा है?
भीष्म मुस्कुराते हैं
द्रोणाचार्य मारे जाते हैं
11
द्रौपदी चीख रही है
अपनी जांघों पर
उसे बिठाना चाहता है दुर्योधन
दुर्योधन अट्टहास करता है
सभी मूक बैठे हैं सभा में
आगे का किस्सा कोई नहीं जनता
आगे का किस्सा सब जानते हैं
कृष्ण के अतिरिक्त.
12
गांधारी की आँखों पर पट्टी थी
इसलिए वह नहीं देख सकी
दुर्योधन को
पट्टी तो कुंती की आँखों पर भी थी
वह भी कहाँ देख सकी
कर्ण को.
13
अगर द्रौपदी ने
दुर्योधन को अंधे का पुत्र
न कहा होता
अगर कुंती ने कर्ण का
परित्याग न किया होता
अगर गांधारी की आंख पर
सचमुच पट्टी नहीं बंधी होती
अगर भीष्म ने प्रतिज्ञा न ली होती
तो
तो भी महाभारत होता
अच्युतानंद मिश्र
27 फरवरी 1981 (बोकारो)
महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में कवितायेँ एवं आलोचनात्मक गद्य प्रकाशित.
आंख में तिनका (कविता संग्रह, २०१३)
नक्सलबाड़ी आंदोलन और हिंदी कविता (आलोचना)
देवता का बाण (चिनुआ अचेबे, ARROW OF GOD) हार्पर कॉलिंस से प्रकाशित./ प्रेमचंद :समाज संस्कृति और राजनीति (संपादन)
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