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Home » जावेद आलम ख़ान की कविताएँ

जावेद आलम ख़ान की कविताएँ

क्रिकेट मैच तो आपने बहुत देखे होंगे, लेकिन उन पर लिखी कविताएँ शायद ही पढ़ी हों. जावेद आलम ख़ान की ‘तेज़ गेंदबाज की कविताएँ’ पढ़ते हुए आपको वह दिखाई देगा जो आम तौर पर आँखों से ओझल रह जाता है— गेंदबाज का अंतर्मन. मैच में एक ख़राब गेंद पूरी पारी ख़त्म कर सकती है, इसे जावेद आलम ख़ान समझते हैं. कविताएँ सधी हुई हैं, वाइड देने से बचा गया है. दिशा और गति भी संतुलित है. हालाँकि कविता क्रिकेट नहीं है, फिर भी इससे बड़ा विशेषण शायद ही कोई और हो कि कोई खेल कविता में बदल जाए. प्रस्तुत है.

by arun dev
September 28, 2025
in कविता
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जावेद आलम ख़ान की कविताएँ
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तेज़ गेंदबाज की कविताएँ
जावेद आलम ख़ान


अभ्यास  

1.
फेफड़ों को ऑक्सीजन की प्यास लगेगी
हलक़ को पानी की
साँस की सीढ़ियां जैसे जैसे चढ़ेंगी
उत्साह उतरता जाएगा
बैठने लगेगा दिल
झरता जाएगा साहस
बिखरने लगेगी उम्मीद
पर एक ख़्वाब उसे समेट लेगा
वह फिर उठेगा
दौड़ेगा
गेंद फेंकेगा

 

2.
इसी नेट में उलझकर रह गया हूँ
धूप मुझे सुखा देना चाहती है
मेरे दौड़ने से बेरूखी हो गई है मैदान की दूब
धरती की सहनशीलता घटती जाती है
यह तीखा प्रकाश मुझे निगल जाना चाहता है
कोई तो आए और जोर से चिल्ला दे
मैं गेंदें फेंकने से नहीं थका
अकेले दौड़ने से ऊब गया हूँ
मैदान के सन्नाटे में डूब गया हूँ

 

3.
प्रदर्शन के अनुपात में उभर आई हैं चेहरे की हड्डियाँ
गालों के गड्ढों में गुम हो गई है सुंदरता
आंखों के ठीक नीचे रतजगों के दस्तख़त है
उत्तेजना को साध लिया है कदम साधते साधते
उसकी आंखों के हरे हरे मैदान में
रोज एक लड़की तितली पकड़ने आती है
हाँ फते कानों में चुपके से कह जाती है
दौड़ते रहो
तुम्हारी दौड़ बहुत सुंदर है

 

4.
मेरी कायरता निचोड़ दो पसीने के साथ
कंधों में संचित कर दो समस्त ऊर्जा
यॉर्कर को बना दो अपनी किरणों-सा पैना
ओ सूरज! मेरे सर पर नहीं
मेरी आँखों में चमको
मेरे सीने में तपो
मेरी रफ़्तार में चलो

 

 

गेंद 

1.

विकेट चूमने की ख़्वाहिश से भरी
गेंद जानती है
क्रीज के दरवाज़े पर
बल्ला उसे पीटने के लिए खड़ा है
मगर गेंद का संकल्प उससे भी बड़ा है

 

2.

जो सीधी राह पर चलीं
बड़ी आसानी से ट्रैक हो गईं
जो बल्ले से डरकर दूर भागी
वे किसी गिनती में नहीं आईं
और दे गईं मुफ़्त के रन
कामयाब वहीं हुई
जो विचलन से नहीं डरी
और चूमते हुए निकल गईं
बल्ले का गाल

 

3.

गेंदबाज झूम रहा है
गेंद उदास पड़ी है
जिसने बल्लेबाज को बीट करने की
अतिरिक्त तेजी में
स्टंप को ही तोड़ दिया है

 

4.

प्रेम विद्रोह कर रहा है
या विद्रोह ढूंढ रहा है प्रेम
विकेट की तरफ दौड़ती गेंद
हर बार बल्ले से पीटी जाती है
न बल्ला अपनी हेकड़ी छोड़ता है
न गेंद अपनी जिद

 

 

आत्मालाप 

1.

प्रतिक्रियाएं विलंबित है
गति सुस्त
पलस्तर उखड़ने लगा है
हर शॉट के साथ
टूट जाती है उत्साह की एक हड्डी
नियंत्रण में रहने से इनकार कर रही है गेंद
स्मृतियों के सहारे बटोरता हूँ आत्मविश्वास
कि सामने पड़ा छक्का
स्वाभिमान के गाल पर थप्पड़ की तरह गूंजता है
यह बढ़ती उम्र
मुझसे मेरी स्मृतियाँ भी छीन लेगी

 

 

2.

कैच मुझे संतुष्ट नहीं करेगा
हवा में उठी गेंद पिछले छक्के की याद दिलाएगी
पगबाधा केवल दिलासा भर होगा
काट बिहाइंड चालबाजी का अहसास कराएगा
इस सीधी लड़ाई में
बोल्ड करके ही होगा
मेरे आहत मन का शमन

 

3.

तेज़ी थम चुकी है
गुम चुकी है उष्णता
चमक उड़ गई है
गेंदें उधड़ गईं बारी बारी
खिलाड़ी चले गए एक एक करके
यहाँ जो खेल रही हैं – परछाइयां हैं

 

4.

गेंद की आक्रामकता के सामने
बल्ले का प्रतिरोध
बल्ले की हिंसा के बीच
गेंद की बचकर निकल जाने की प्रतिबद्धता
जिन्होंने खेल में भी सीखा प्रतिकार
वे कैसे हो सकते हैं सत्ता के हमवार

 

5.

बहादुरी का अर्थ
उन खिलाड़ियों से पूछो
जो खुद को हराने वालों को
बधाई देने का कलेजा रखते हैं

 

 

मैदान पर 

1.

उसे लगता है
पृथ्वी उसकी मुट्ठी में है
वह एक गेंद को लेकर दौड़ रहा है

 

2.

गेंदबाज जानता है
इस रंगमंच पर भी
भय का उद्दीपन
चेहरे की भंगिमाओं से होता है
स्पीड तो महज आंकड़ों का खेल है

 

3.

जबकि समस्त शंकाओं के लाभ
बल्लेबाजों के हिस्से आए
गेंदबाज के हिस्से आई फिक्र
कि गेंद की चमक फीकी न पड़ जाए

 

4.

किसी किताब में नहीं मिलता
गेंद को लेंग्थ पर डालने का
कोई निश्चित पूर्वानुमान
वह बल्लेबाज की आँखें हैं
जिनमें झांककर ढूंढ लेता है गेंदबाज
गेंद का स्पॉट

 

 5.

दिल न मिलना
हाथ मिलाना
भीतर तकरार
बाहर प्यार
जलन – हसद- प्रतिस्पर्धा – समर्थन
दुनिया क्रिकेट का मैदान ही तो है

 

6.

किरदार अपनी उम्र जी चुके हैं
सभी भूमिकाएं अब समाप्त हुईं
नेपथ्य में गूंजेगी आवाज़
मैं उठूंगा
और अपनी गेंद लेकर
मैदान से चला जाऊंगा

 

 

थर्डमैन

सीमर का सबसे बड़ा शुभचिंतक कौन है
वह जो स्टंप के पीछे गेंद पकड़ता है
या वह जो उसके भी पीछे चौके बचाता है
फील्ड पर थर्डमैन उसका प्रचार है
पर वह धूमिल का तीसरा आदमी नहीं
डबराल का संगतकार है.

 

 

जावेद आलम ख़ान का जन्म 15 मार्च, 1980 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँ पुर ज़िले के जलालाबाद में हुआ. उनका कविता संग्रह स्याह वक़्त की इबारतें  प्रकाशित हो चुका है तथा उनकी कविताएँ बारहवां युवा द्वादश  में भी शामिल हैं.

javedalamkhan1980@gmail.com

Tags: क्रिक्रेट और कविताएँजावेद आलम ख़ानतेज़ गेंदबाज की कविताएँ
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चेरी : दाजाया ओसामू : अनुवाद : निर्मल वर्मा

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