युवा अंकिता आनंद की कविताओं के लिए Gigi Scaria की कृति ‘Shadow of the Ancestors’ प्रस्तुत करते हुए मैं एक बारगी ठिठक गया. क्या बढियां, अर्थगर्भित शीर्षक है और किस तरह वीराने में पेड़ के तने का एक सूखा हुआ हिस्सा हमें अपनी ही सभ्यागत दुर्घटना/विभीषिका के सामने खड़ा कर देता है. कलाएं तमाम तरह से इस सच को अभिव्यक्त कर रही हैं. एक भी कविता, एक भी पेंटिग, और एक भी कृति मैंने इस वर्तमान सभ्यता के गुणगान में नहीं देखी -पढ़ी है.
अंकिता आनंद की कविताओं पढ़ते हुए भी यह अहसास बराबर बना रहता है. वह हर चीज पर प्रश्न उठाती हैं. जो चीजें हमें ‘नार्मल’ लग रही हैं वे हैं नहीं. तमाम आम प्रसंगों से वह कविता का ख़ास खोज लेती हैं.
उनकी दस नई कविताएँ आपके लिए.
अंकिता आनंद की कविताएँ
ड्रायवर जी का अलग घर, अलग आँगन
पेड़, रंगा चबूतरा
हमारे घर के पीछे
एक नई दुनिया
एक नया दोस्त
ड्रायवर जी का बेटा
शांत और कोमल
दोस्त के स्वभाव जैसा
मेहमानों के लिए खाने में क्या बनेगा,
इसके अलावा कोई और बात न करनेवाले
मेरे अंकल–आँटी नॉर्मल थे.
पड़ाव
हमारा शहर धुँधला है.
सफेदी की चमकार ऐसी
कि हाथ को हाथ नहीं सूझता.
एक टोकरी आम
आसमान को चीर कर जाने की कोशिश में रहती है हमारी आवाज़
जब हम बलात्कारियों के लिए फाँसी माँगते हैं
क्योंकि हम वो श्राप सुनाना चाहते हैं
सिर्फ़ उन बर्बर लोगों को, या न्याय व्यवस्था, या प्रशासन को नहीं,
1.
कवि नामक प्रेमी के लिए
उसके अधखुले होंठ
किसी हया, तमन्ना या हर्षोन्माद का इशारा नहीं.
वे डोल रहे हैं उम्मीद और मायूसी के बीच
ये विचारते कि क्या उनकी आवाज़
तुम्हारे कानों तक पहुँच सकेगी
जिनमें तुम्हारे दिवास्वप्न की \”वाह–वाह\”
अभी से भिनभिनाने लगी है,
जिसे सुन अधीरता से उसका हाथ छोड़
तुम कलम साधने लगे हो
उस म्लान चेहरे की रेखाएं अंकित करने
अपनी नई कविता में.
2.
घटनाक्रम
ड्रायवर जी का अलग घर, अलग आँगन
पेड़, रंगा चबूतरा
हमारे घर के पीछे
एक नई दुनिया
एक नया दोस्त
ड्रायवर जी का बेटा
शांत और कोमल
दोस्त के स्वभाव जैसा
एक दिन साथ छुआ–छुई खेलना–
जिसको छू दिया वो चोर.
मेरा दोस्त के पीछे भागना
गिरने का नाटक करना
दोस्त का आना, घबराना
उसके घबराने में परिपक्वता होना
हमउम्र होने के बाद भी उसे हमारे बीच का फ़र्क पता होना
उस फ़र्क की फ़िक्र का उसके चेहरे पर दिखना
मेरा उसे झट से छूकर चोर बना देना
उसका हँसना, राहत पाना.
जिसको छू दिया वो चोर.
मेरा दोस्त के पीछे भागना
गिरने का नाटक करना
दोस्त का आना, घबराना
उसके घबराने में परिपक्वता होना
हमउम्र होने के बाद भी उसे हमारे बीच का फ़र्क पता होना
उस फ़र्क की फ़िक्र का उसके चेहरे पर दिखना
मेरा उसे झट से छूकर चोर बना देना
उसका हँसना, राहत पाना.
\”देर\” का मतलब समझे बिना मेरा घर पहुँचना
घबराए घरवालों का सवाल पूछ्ना
\”उनके\” बच्चों के साथ खेलने की बात जानकर खुश न होना
मेरा उनकी थोड़ी कही ज़्यादा समझना,
दोबारा वहाँ न जाना.
घबराए घरवालों का सवाल पूछ्ना
\”उनके\” बच्चों के साथ खेलने की बात जानकर खुश न होना
मेरा उनकी थोड़ी कही ज़्यादा समझना,
दोबारा वहाँ न जाना.
3.
नॉर्मल
मेहमानों के लिए खाने में क्या बनेगा,
इसके अलावा कोई और बात न करनेवाले
मेरे अंकल–आँटी नॉर्मल थे.
मेरी दोस्त का फ्रॉक
उठाकर देखनेवाले
उसके पड़ोसी अंकल भी नॉर्मल थे.
उठाकर देखनेवाले
उसके पड़ोसी अंकल भी नॉर्मल थे.
अपने बच्चों की किताब में
\”ड\” से \”डर\” वाले पन्ने पर जिनकी फोटो प्रकट होती थी
वोपापानॉर्मलथे.
\”ड\” से \”डर\” वाले पन्ने पर जिनकी फोटो प्रकट होती थी
वोपापानॉर्मलथे.
डैडी की पसंद की कंपनी में काम करता
कभी ना मुस्कुराने वाला
लड़का बिलकुल नॉर्मल था.
कभी ना मुस्कुराने वाला
लड़का बिलकुल नॉर्मल था.
तलाक से बेहतर
पिटाई को माननेवाली
बहू बहुत नॉर्मल थी.
पिटाई को माननेवाली
बहू बहुत नॉर्मल थी.
मानवता से बढ़कर
मानचित्र को समझने वाली
जनता भी फुल्टू नॉर्मल थी.
मानचित्र को समझने वाली
जनता भी फुल्टू नॉर्मल थी.
कातिल को सरगना चुनकर
उसे कंधे पर घुमानेवाले
लोग सौ टका नॉर्मल थे.
उसे कंधे पर घुमानेवाले
लोग सौ टका नॉर्मल थे.
x x x
ज़रा चेक करें,
कहीं आपका नॉर्मल लीक तो नहीं कर रहा?
कहीं आपका नॉर्मल लीक तो नहीं कर रहा?
4.
पड़ाव
फ़र्क है
पकड़ने और
थामने में.
पकड़ने और
थामने में.
दूसरे में
थम जाना होता है
साथ.
थम जाना होता है
साथ.
कभी साथ चलने से
कहीं ज़रूरी हो जाता है
साथ ठहरना.
कहीं ज़रूरी हो जाता है
साथ ठहरना.
5.
नैशनल कैपिटल टेरिटरी
हमारा शहर धुँधला है.
सफेदी की चमकार ऐसी
कि हाथ को हाथ नहीं सूझता.
और आप चाहते हैं
कश्मीर, छत्तीसगढ़, मणिपुर, उड़ीसा . . .
सब तरफ़ हमारी नज़र पहुँचे.
कश्मीर, छत्तीसगढ़, मणिपुर, उड़ीसा . . .
सब तरफ़ हमारी नज़र पहुँचे.
कहाँ से?
6.
पर्याप्त
एक टोकरी आम
पर्याप्त होने चाहिए,
मेरे पिता ने सोचा
जब वो नाना के लिए उन्हें लेकर आए.
होने भी चाहिए थे
(पर्याप्त),
पर नाना के लिए
जो अब है, वो सब है.
सो जब उन्होंने पाए
केवल चार आम जो
पर्याप्त
रूप से पके हुए थे, तुरंत खाए जा सकते थे,
वे बाहर निकले, उस गति से जो
पर्याप्त
थी फलवाले तक पहुँच
एक उपयुक्त पाँचवे को ढूँढ़ने के लिए.
उनकी पत्नी और दामाद सिर हिलाते
उनकी पीठ को धुँधला होते देखते रहे,
हाँलाकि बीते सालों में वे जान चुके थे
पर्याप्त
ये समझने के लिए कि
हर आम के साथ वे जीवन का पूरा स्वाद
चूसते जाते थे, ताकि वो हो सके
पर्याप्त
अगली गर्मी तक और पिछली कई गर्मियों के
अभाव को मिटाने के लिए,
जिसे वो जी चुके थे, जिसकी मृत्यु की प्रतीक्षा कर चुके थे
पर्याप्त.
7.
प्रत्यक्ष, प्रमाण
आसमान को चीर कर जाने की कोशिश में रहती है हमारी आवाज़
जब हम बलात्कारियों के लिए फाँसी माँगते हैं
क्योंकि हम वो श्राप सुनाना चाहते हैं
सिर्फ़ उन बर्बर लोगों को, या न्याय व्यवस्था, या प्रशासन को नहीं,
पर घर–पड़ोस के हर उस हाथ को
जिसने रात सोते वक़्त हमें छुआ,
जिसके दिन में सामने आने से
हम उसे बाँध नहीं पाते
उस रस्सी के एक छोर से
जो हम बनाते हैं औरों की फाँसी के लिए,
जिसने रात सोते वक़्त हमें छुआ,
जिसके दिन में सामने आने से
हम उसे बाँध नहीं पाते
उस रस्सी के एक छोर से
जो हम बनाते हैं औरों की फाँसी के लिए,
और हर रोज़ उसे सामने देख,
उसके सामने हाथ जोड़ मुस्कुराते हुए,
हमारे नारे, हमारी चीख का स्वर तीव्र होता जाता है,
फाँसी बँटती जाती है,
वहीं रहते हैं वो हाथ हमारे साथ तालियाँ बजाते, नारे उछालते, हमें टटोलते हुए.
उसके सामने हाथ जोड़ मुस्कुराते हुए,
हमारे नारे, हमारी चीख का स्वर तीव्र होता जाता है,
फाँसी बँटती जाती है,
वहीं रहते हैं वो हाथ हमारे साथ तालियाँ बजाते, नारे उछालते, हमें टटोलते हुए.
8.
विस्मरण
मंडी से आया आलू
घंटों पानी के कटोरे में पड़ा रहता है,
फिर रगड़ा जाता है
दृढ़निश्चयी अंगूठों द्वारा.
मिट्टी के हर कण से मुक्त कर,
छील–काट कर,
उसका रूप बदल दिया जाता है,
हल्दी उसे अपने रंग में सराबोर कर देती है.
घंटों पानी के कटोरे में पड़ा रहता है,
फिर रगड़ा जाता है
दृढ़निश्चयी अंगूठों द्वारा.
मिट्टी के हर कण से मुक्त कर,
छील–काट कर,
उसका रूप बदल दिया जाता है,
हल्दी उसे अपने रंग में सराबोर कर देती है.
थाली तक आते–आते
भूल चुका होता है वो भी
मिट्टी से सने उन हाथों को
जो धरती के भीतर जा,
उसे दुनिया में लेकर आए थे.
भूल चुका होता है वो भी
मिट्टी से सने उन हाथों को
जो धरती के भीतर जा,
उसे दुनिया में लेकर आए थे.
और ये उसके हित में है,
क्योंकि नाज़ुक, उजले काँच की प्लेटें
भरभरा कर टूट जाएँगी
अगर उनके ज़हन पर आ पड़ा
ऊबड़–खाबड़ भूरी हथेलियों की
स्मृति का बोझ,
आलू फिर से हो जाएगा
धूल धूसरित.
क्योंकि नाज़ुक, उजले काँच की प्लेटें
भरभरा कर टूट जाएँगी
अगर उनके ज़हन पर आ पड़ा
ऊबड़–खाबड़ भूरी हथेलियों की
स्मृति का बोझ,
आलू फिर से हो जाएगा
धूल धूसरित.
9.
पहाड़–पेड़–पीठ
पहाड़ पर देखा कि गाय की पीठ पर खुजली हुई
तो देवदार की खुरदुरी छाल से पीठ रगड़
उसने राहत पा ली.
चरवाहे को थकान हुई,
तो सागवान से टेक लगा
सुस्ता लिया.
पेड़ और पहाड़ को तिलांजलि देकर
हम अब एक दूसरे की पीठ खुजाने का काम करते हैं.
पीठ को टिकाने के ठिकाने के अभाव में.
उसे सीधी ना कर पाने की स्थिति में,
बेलें बन एक–दूसरे पर लदे रहने को बाध्य हैं.
10.
समझदारी
दाँत कींच के
\”मार देंगे\”
बोलने से
तुमपे आनेवाला गुस्सा कटेगा.
लेकिन इससे
\”नारीवादी होके मौखिक घरेलू हिंसा कैसे\”
वाला बात सब उठ जाएगा.
सब सभ्य रूप से करना होगा,
अपने जीभ में ही दाँत काट के रह जाना बेहतर है,
काम चलाना होगा.
__________
अंकिता आनंद ‘आतिश’ नाट्य समिति और ‘पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’ की सदस्य हैं. इससे पहले उनका जुड़ाव सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय अभियान, पेंगुइन बुक्स और ‘समन्वय: भारतीय भाषा महोत्सव’ से था. यत्र –तत्र कविताएँ प्रकाशित हैं.
anandankita2@gmail.com