कविताएँ
अम्बर पाण्डेय
अपने प्रेम के विषय में बताएँ, अम्बर जी?
१.
स्वच्छ,
श्वेत और धोने के लिए उपयुक्त रसायनों से सुगंधित
कई दिन मैं दोपहर से पूर्व जाता था, जल्दी-जल्दी
बिना कुछ खाए, बिना नहाए हुए
क्योंकि स्त्री के अन्त:वस्त्रों से टपकते पानी की ध्वनि
मेरी अनन्त नीरवता को भर देती थी हल्ले से
एक दिन जब आसपास कोई न था, दूर-दूर तक डाकिया भी
आता दिखाई नहीं दे रहा था, मैंने ख़ुद से ही आँख बचाकर
स्त्री के अन्त:वस्त्रों से टपकता पानी पी लिया
जैसा कि मैंने आपको बताया मैं जागते ही निकल जाता था
मैं बहुत देर से सोकर उठता था
मैं अक्सर प्यासा उठता था.
२
अन्त:वस्त्रों के चित्रों का विशाल संग्रह हो जाने के बाद
एक दोपहर, जब तापमान चालीस डिग्री था, जिस तार पर
वह वस्त्र सूख रहे थे वह एक तरफ़ आमों से भरे वृक्ष और दूसरी तरफ़
नीले पर्दों वाली खिड़की के सरिए से बँधा था और आधे तार तक गिलोय की
बेल सूखकर अटकी हुई थी
मैंने स्त्री का एक अन्त:वस्त्र चुरा लिया, उस दिन वह लाल रंग का था
आप मुझे चरित्रहीन, निम्न स्तरीय मनुष्य या स्त्री विरोधी समझ सकते है
इसमें दो बातें है-
एक तो उन अन्त: वस्त्रों से मुझे प्रेम था
दूसरी: मुझे इसकी बिलकुल भी परवाह नहीं कि आप
मेरे बारे में क्या सोचते है. मेरे बारे में सोचने के लिए आपको
मेरी तरह प्रेम करना होगा. चोरी के अन्त:वस्त्र अन्ततः प्रेम के सबसे आंतरिक भाग की
त्वचा थे.
३
उसके बाद जैसी कि मेरी दिनचर्या थी- मैं पुनः उसी प्रकार
अन्त: वस्त्रों का छायांकन करने जाता रहा, मेरी एक महिला मित्र ने
देश में ख़राब होती राजनीतिक स्थिति, ग़रीबी और इस तरह की चीज़ों पर
मुझे काम करने को कहा, उसने किसी स्त्री के बाहर सूखते अन्त: वस्त्रों के चित्र खींचने को
अनैतिक माना, उसने मुझे उस स्त्री से इसकी अनुमति लेने का आग्रह किया जैसे कि
अनुमति माँगने पर मुझे अनुमति मिल जाती और मैं बदस्तूर चित्र खींचता रहता
एक मुझसे उम्र में छोटे मित्र ने इसे विकृति का नाम दिया और तुरंत इसे बंद
करने के लिए कहता रहा मगर मैं तब तक चित्र खींचता रहा जब तक कि मैंने
एक दिन उस स्त्री को अपना पीछा करते नहीं पाया
वह मेरे घर तक मेरा पीछा करते हुए आई
मगर घर के अंदर नहीं आई, शायद वह मेरा पता जानने के लिए
मेरा पीछा कर रही थी, शायद वह अपने पति को
यह बताती और उसका पति पुलिसकर्मी को
४
फ़िलहाल मैं अपने घर में बंद रहता हूँ
फ़िलहाल मेरे कैमरे की बैटरी ख़त्म हो चुकी है
फ़िलहाल आत्महत्या करने की विविध विधियों के विषय में
मैं एक निबन्ध लिख रहा हूँ
फ़िलहाल मेरी उन अन्त: वस्त्रों के बिना जीवित रहने की
कोई योजना नहीं
५.
किसी स्त्री के बाहर सूखते हुए अन्त: वस्त्रों के चित्र पर
किसका अधिकार है यह नैतिक और क़ानूनी रूप से विवाद का विषय है
यदि वे इतने निजी है तो बाहर क्यों है?
क्योंकि अंदर अन्धकार है
यदि उनका चित्र खींचने से उस स्त्री की गरिमा का हनन होता है
तो वे बाहर क्यों है
क्योंकि अंदर बहुत अन्धकार है
मेरे अंदर भी बहुत अँधेरा है और मेरे लिए वे अंत: वस्त्र प्रकाश का एकमात्र
स्रोत है
६.
मनोचिकित्सक से भेंट हुई.
उसका कहना था कि अन्त: वस्त्रों से
अनुराग एक प्रकार का मानसिक विकार है
और कि इसका सम्बंध बचपन की किसी दुर्घटना से जुड़ा है
उसने यह भी कहा कि किसी भी राष्ट्र में जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
कुंठित होती है, वहाँ के नागरिकों में इस प्रकार की विकृतियों का बढ़ना देखा जाता है
उसने स्तालिन के सोवियत संघ और अन्त: वस्त्रों के आकर्षण पर लिखा एक
पुराना शोध पत्र पढ़ने को दिया. उसने मेरे प्रेम को प्रेम नहीं माना और यह
कहा कि मैं उससे मिलने प्रति शुक्रवार दोपहर को आऊँ, बातें करूँ.
इस समय अन्त: वस्त्रों के मेरे पास कुल छह सौ चित्र है. कुछ
श्वेत श्याम, कुछ रंगीन और कुछ न श्वेत श्याम न रंगीन.
कुछ केवल स्मृतियों में है- मन के रंग के.
७.
न पुलिस न उस स्त्री का पुरुष आया.
एक दिन वह स्त्री अवश्य आई. उसने पूछा कि मैं उसके अन्त: वस्त्रों के चित्र क्यों लेता हूँ.
मैंने उससे पूछा क्या वह पुलिस के शिकायत नहीं करेगी?
उसने कहा इससे उसका मज़ाक़ बनेगा. उसका पति उससे गुस्सा हो सकता है
क्योंकि वह हमेशा उसे अपने अन्त: वस्त्र अंदर सुखाने के लिए कहता है.
मैंने नहीं पूछा कि फिर वह उसे बाहर क्यों सुखाती थी?
क्या वह अपने अन्त: वस्त्र अँधेरे में सुखाने को स्त्री दमन का प्रतीक मानती है?
मैंने नहीं पूछा. मैंने स्त्री की उन अन्त: वस्त्रों में कल्पना भी नहीं की.
मैंने यहाँ वह स्त्री कैसी थी इसका वर्णन भी नहीं किया
शायद आपने ध्यान दिया होगा. मैंने अन्त: वस्त्रों का छायांकन करने के अलावा
कुछ नहीं किया. उस स्त्री की गोद में एक बच्चा भी था.
८.
दूसरे दिन जब वह स्त्री खिड़की से देख रही थी
उसका पति खिड़की को पीठ दिए भोजन कर रहा था
स्त्री के कंधों पर सिर टिकाए बच्चा सो रहा था
मैंने अन्त: वस्त्रों को देर तक सूँघा
वे अन्त: वस्त्र वहाँ सूख अवश्य रहे थे मगर धुले हुए नहीं थे.
इस तरह उस स्त्री ने मेरा प्रेम स्वीकार किया.
निश्चय ही हमारा प्रेम अफ़लातूनी नहीं था
निश्चय ही हमारा प्रेम शारीरिक नहीं था.
निश्चय ही वह विशुद्ध प्रेम था
अन्त: वस्त्रों के विशुद्ध सूत की तरह.
९.
किसी ने छह हाथ गहरा, साढ़े सात हाथ लम्बा गड्ढा खोदा है
मैं वहाँ गाड़ा गया हूँ. वह गड्ढा अन्त: वस्त्रों के तार के नीचे खुदा है.
या अन्त: वस्त्रों के विशाल ढेर से मैं कितने भी हाथ पाँव मारूँ
निकल नहीं पाता. मैं डूब रहा हूँ. मैं मरनेवाला हूँ.
यह मैंने लिखा अन्त: वस्त्र के एक चित्र के पीछे.
उस घर में कोलाहल तो था
उस घर में जीवन के दसों चिह्न थे.
अन्त: वस्त्र नहीं थे.
शायद वह मुझसे किसी बात पर गुस्सा थी.
क्या उसने अन्त: वस्त्र पहनना छोड़ दिए थे
जैसे अपना हाथ कोई काट ले इस तरह
या धोना छोड़ दिए थे अपने अन्त: वस्त्र या सुखाना
या उसने मुझे छोड़ दिया था?
अख़बार में छपा स्त्रियाँ अन्त: वस्त्र त्याग रही है
मगर वह फ्रांस का समाचार था. हो सकता था उसके पति को
हमारे प्रसंग के बारे में समाचार हो गया हो.
१०.
उसने कहा उसे गर्भपात हुआ है. उसने कहा इन दिनों उसका पति
उसके कपड़े धो रहा है. उसने कहा वह घर के अंदर ही कपड़े सुखाता है.
उसने कहा उसे दुःख है कि उसने मुझे इतना दुःख दिया.
उसने कहा कुछ दिनों तक मुझे उसके अन्त:वस्त्रों से दूर रहना चाहिए.
उसने इसके आगे कुछ नहीं कहा. केवल एक दरवाज़े की ओर संकेत किया.
मैं अंदर गया तो उस स्नानगृह में खून से भरा उसका अन्त: वस्त्र सूख रहा था.
यदि मैं इसे लेता हूँ तो निश्चय ही मैं मानसिक विकृति का शिकार हूँ
मगर क्या इस देश में सभी इसके शिकार नहीं.
यदि मुझे उसके अन्त: वस्त्रों से इतना प्रेम था तो क्या उसके खून से नहीं हो सकता?
मैंने उसे खूँटी से उतारा, उसे प्यार से तह किया और रूमाल की तरह
पतलून की जेब में रखकर लौट आया.
११.
यह सम्भव नहीं था कि मैं उसके अन्त: वस्त्रों से प्रेम करता मगर उससे नहीं.
यह सम्भव नहीं था कि मैं उससे प्रेम करता मगर उसके खून से नहीं.
यह सम्भव नहीं था कि मैं केवल उसके खून से प्रेम करता मगर उससे नहीं.
यह सम्भव नहीं था कि मैं उससे प्रेम करता मगर उसके अन्त: वस्त्रों से नहीं.
यह सम्भव नहीं था कि मैं उसके अन्त: वस्त्रों से प्रेम करता तो उसे छुपाता.
प्रेम को छुपाया जाता है.
प्रेमपात्र को उघाड़ा जाता है.
प्रेमपत्र छुपाया जाता.
मनोभाव उघाड़ा जाता है.
१२.
उसने अस्पताल से फ़ोन किया कि ज़्यादा खून जाने से वह अस्पताल में भर्ती है.
मैं गया तो वह अस्पताल के कपड़े पहने सो रही थी.
उसका बच्चा उसके पास नहीं था.
उसके पास कोई नहीं था. उसे खून चढ़ाया जा रहा था.
उसने कहा उसने अन्त: वस्त्र नहीं पहने है. टाँगे फैलाई और कहा,
अस्पताल में अन्त:वस्त्र पहनने की आवश्यकता नहीं. मैंने उसे बताया दुनिया की
महान प्रेमकथाओं की नायिका की तरह
वह मरनेवाली नहीं. मैंने अस्पताल में खून दिया जिसके बदले में
उसे खून मिला. वह घर लौट आई.
(Painting: Alen Malier) |
१३.
वे भी अन्त: वस्त्र ही थे. खून से सने कपड़े, पट्टियाँ
जो उसने मुझे उपहार में दिए. खोलने पर उस पर लाल से कत्थई
कत्थई से गुलाबी, गुलाबी से नारंगी होती हुई आकृतियाँ मुझे दिखाई देती थी
कहीं पर कमल नाल बनती हुई दिखती, कहीं सरीसृप के पंख
कहीं घर कहीं सूरजमुखी के फूल
सबसे ज़्यादा उसके रक्त ने मेघ बनाए थे- मेघों की पतलून पहने
एक आदमी को बनाया था जिसे मैंने आत्मचित्र के नाम से मढ़ाया
मैंने उन सभी कपड़ों पर खून से बने चित्रों की खोज की.
ऐसे हमारा प्रेम प्रगाढ़ हुआ. ऐसे मेरी कला प्रौढ़ हुई.
१४.
साफ़ शफ़्फ़ाक सफेद अन्त:वस्त्रों से उधड़ी, फटी चिंदियाँ
खून से भरी- हमारे सम्बन्धों का क्रम
(Trajectory of our love)
दो मनुष्यों का एक ही स्थान पर एक ही समय एक दूसरे से
प्रेम करना बहुत दुर्लभ घटना होते हुए भी बहुत सामान्य घटना है
दुर्लभ खगोलीय घटनाओं की तरह, जिन्हें अख़बार हर बार अत्यंत दुर्लभ बताते है
और हर महीने ऐसी दुर्लभ खगोलीय घटनाएँ होती है.
१५.
मनुष्य इसलिए सर्वश्रेष्ठ कलाकृति है क्योंकि मनुष्य नष्ट हो जाता है
मेरी उसके खून से उसकी बनाई किन्तु तब भी मेरी यह कलाकृतियाँ अब नष्ट हो रही है
खून तैल रंग नहीं जो मरियम के बिना खून के गर्भवती होने से लेकर
ईसा मसीह के सूली पर चढ़ने, पुनर्जीवित होने से आज तक वैसा का वैसा रहे
खून जीवित स्त्री के शरीर से गिरकर भी नहीं मरता
और हर जीवित प्राणी की तरह धीरे-धीरे मृत होता है, फिर सड़ता है
कपड़े भी सड़ रहे थे, उसके चित्र रूप बदल रहे थे, मेघों की पतलून पहना आदमी
पिस्तौल की तरह दिखाई देता था तो सरीसृप किसी अप्सरा की तरह
मेरी मृत्यु के बाद बीस पच्चीस वर्ष से अधिक नहीं होगी इन कलाकृतियों की उम्र
अजायबघरों से विशेषज्ञ रसायन लेकर आते है ताकि बची रहे कलाकृतियाँ
किन्तु मैं उन्हें इन कलाकृतियों को छूने भी नहीं देता
दूर-दूर के देशों के फ़ोटोग्राफर आते है ताकि वे खींच ले इनके चित्र
मैंने इस पर भी कड़ी पाबंदी लगाई है
जैसे हमारा प्रेम नष्ट हो गया कुछ समय बाद
जैसे वह नष्ट हो गई कुछ समय बाद
जैसे मैं नष्ट हो जाऊँगा कुछ समय बाद
वैसे ही इन अन्त:वस्त्रों पर बने चित्रों को भी नष्ट हो जाना चाहिए कुछ समय बाद.
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