पूर्वोत्तर और हिंदी : गोपाल प्रधान
हिंदी से पूर्व–उत्तर की भाषाओं के रिश्तों पर केंद्रित गोपाल प्रधान का यह आलेख गम्भीरता से हिंदी साहित्य में पूर्व–उत्तर ...
हिंदी से पूर्व–उत्तर की भाषाओं के रिश्तों पर केंद्रित गोपाल प्रधान का यह आलेख गम्भीरता से हिंदी साहित्य में पूर्व–उत्तर ...
भारत में राष्ट्रवाद के उदय की एक धारा इस पर खासी आलोचनात्मक थी. प्रेमचंद ने इसे आधुनिक युग का कोढ़ ...
भारतीय समाज को समझने में जिनकी दिलचस्पी है और जो समझ कर इसे न्यायप्रिय और लोकतांत्रिक बनाने का कोई सपना ...
भाष्य के अंतर्गत परम्परा के पुनर्पाठ की सोच है. उसके विश्लेषण और नये सन्दर्भ में उनके पुनर्वास की कोशिश है. ...
फ़िल्मलेकिन : मिथक का यथार्थगोपाल प्रधान बीसवीं सदी के नब्बे दशक के शुरू में आई फ़िल्म लेकिन कई दृष्टियों से ...
गोपाल प्रधान : १ जनवरी,१९६५, गाजीपुर (उत्तर –प्रदेश) उच्च शिक्षा : BHU और JNU से आलोचना : छायावादयुगीन साहित्यिक वाद ...
“मुद्दतों बाद उर्दू में एक ऐसा उपन्यास आया है, जिसने हिंदो–पाक की अदबी दुनिया में हलचल मचा दी है. क्या ...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum