अंतर्दृष्टि पत्रिका की अथकथा : विनोद दास
हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता की बात ‘मधुमती’ के बहाने शुरू हुई है तो अब दूर तलक जाएगी. साहित्यिक पत्रिका निकालना दीवानों का काम है. कोई अच्छा भला आदमी यह काम...
हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता की बात ‘मधुमती’ के बहाने शुरू हुई है तो अब दूर तलक जाएगी. साहित्यिक पत्रिका निकालना दीवानों का काम है. कोई अच्छा भला आदमी यह काम...
सदाशिव श्रोत्रिय ने ‘श्रेष्ठ काव्य के प्रति पाठकों की बढती अरुचि और घटती समझ को देखते हुए’ अपनी पसंद की कविताओं के भाष्य का उपक्रम इधर आरम्भ किया है. कविता...
भारत में पत्रकारिता और स्वाधीनता संघर्ष का नजदीकी रिश्ता रहा है, हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता भी इसी औपनिवेशिक विरोधी चेतना के बीच विकसित हुई. हिंदी साहित्य के एक युग का...
स्त्रियों का लेखन प्रारम्भ से ही संदेह और सवालों के घेरे में रहा है, चाहे भारत हो या यूरोप. अव्वल तो उन्हें बहुत दिनों तक सुना ही नहीं गया. सुना...
ठीक है आप कवि कर्म को महिमा मंडित नहीं करना चाहते. उसे ‘ब्रह्म सहोदर’ नहीं मानते कोई बात नहीं. पर कविता में जो असाधारणता है उसे कवि से आप अलग...
हिंदी कविता का परिसर विस्तृत है. इसमें से प्रभा मुजुमदार, अशोक सिंह और संतोष अलेक्स की कविताओं पर राहुल राजेश का यह आलेख प्रस्तुत है. कविता का प्रक्षेत्र : प्रभा...
पाठकों का कवि होकर ही कोई कवियों का कवि हो सकता है. शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं को लेकर इधर उत्साह देखने को मिल रहा है. शमशेर की कविताएँ...
शायर शहरयार और अफ़सानानिगार क़ाज़ी अब्दुल सत्तार समकालीन थे और अलीगढ़ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में साथ थे. दोनों का क़द अदब की दुनिया में बहुत बड़ा है, इसके साथ...
स्वाधीन भारत के इस कोरोना काल में मजदूरों की जो दुर्दशा हो रही है, वह अमानवीय तो है ही औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों द्वारा कुली के रूप में हिन्दुस्तानियों ख़ासकर...
सआदत हसन मंटो ने एक उपन्यास भी लिखा था, यह बहुत कम लोग जानते हैं. इस उपन्यास के हिंदी में छपने की भी एक कथा है और उपन्यास की अपनी...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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