वाम बनाम दक्षिण की साहित्य परम्परा : विमल कुमार
हिंदी साहित्यकारों और सेवियों को राजनीतिक आधार पर बांट कर क्या हम समग्र साहित्य को क्षति पहुंचा रहें हैं ? स्वतंत्रता दिवस पर वरिष्ठ कवि पत्रकार विमल कुमार की यह...
हिंदी साहित्यकारों और सेवियों को राजनीतिक आधार पर बांट कर क्या हम समग्र साहित्य को क्षति पहुंचा रहें हैं ? स्वतंत्रता दिवस पर वरिष्ठ कवि पत्रकार विमल कुमार की यह...
राही मासूम रज़ा का उपन्यास ‘आधा-गाँव’ हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यासों में से एक है. उनका उपन्यास ‘टोपी शुक्ला’ भी चर्चित रहा है. शोध छात्र ज़ुबैर आलम इस उपन्यास की चर्चा...
कवि विष्णु खरे के दो संग्रह ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ और ‘और अन्य कविताएँ’ २०१७ में एक साथ प्रकाशित हुए, पहले की भूमिका केदारनाथ सिंह ने लिखी है दूसरे का फ्लैप कुँवर...
पंकज चौधरी की कविताएँ अभिधा की ताकत की कविताएँ हैं, इस ताकत का इस्तेमाल वह सत्ता चाहे सामाजिक और धार्मिक ही क्यों न हो की संरचनाओं में अंतर्निहित असंतुलन को...
प्रभात की कविताओं पर लिखते हुए अरुण कमल ने माना है कि ‘यह हिंदी कविता की उंचाई भी है और भविष्य भी’. उनका संग्रह ‘अपनों में नहीं रह पाने का...
भारतेंदु हरिश्चन्द्र को हिंदी उसी तरह प्यार करती है जिस तरह बांग्ला रबीन्द्रनाथ टैगोर से. असहमतियां रबीन्द्र से भी हैं भारतेंदु से भी रहेंगी. भारतेंदु के प्रेम सम्बन्धों को पहले...
मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू के साथ फ़ारसी के भी महान शायर हैं. आहत और विद्रोही. बकौल अली सरदार ज़ाफरी ग़ालिब ने खुद को ‘गुस्ताख़’ कहा है.इस अज़ीम शाइर की शायरी के...
सुपरिचित आलोचक ओम निश्चल की लेखन शैली की यह विशेषता है कि वह जो भी करते हैं पूरी तैयारी के साथ करते हैं और लगभग सभी पक्षों को समेटने का...
उदयन वाजपेयी के संपादन में प्रकाशित त्रैमासिक ‘समास’ साहित्य की कुछ गिनती की गम्भीर पत्रिकाओं में से एक है. इसके सोलहवें अंक (जुलाई-सितम्बर 2017) में हिंदी के महत्वपूर्ण उपन्यासकारों में...
पॉल गोमरा का स्कूटर उदय प्रकाश की लम्बी कहानी है जो हिंदी की कुछ बेहतरीन कहानियों में से एक है. इस कहानी को केंद्र में रखकर कथित भूमंडलीकरण और बाजारवाद...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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