आलोचना

सन १८५७ का विद्रोह: सुराज के लिए संघर्ष : मैनेजर पाण्डेय

सन १८५७ का विद्रोह: सुराज के लिए संघर्ष : मैनेजर पाण्डेय

भारत और इंग्लैण्ड के तथाकथित ‘साझे रिश्ते’ (जिसे अक्सर राजनेता ब्रिटेन के सरकारी दौरों पर दुहराते रहते हैं) बराबरी और परस्पर सम्मान के नहीं थे. और ये अगर ‘रिश्ते’ थे...

सबद भेद : कवि विजय कुमार : अच्युतानंद मिश्र

कवि आलोचक विजय कुमार के तीन कविता संग्रह अदृश्य हो जाएँगी सुखी पत्तियां, चाहे जिस शक्ल से और रातपालीप्रकाशित हैं. आलोचना के क्षेत्र में भी उनका गम्भीर कार्य है.  उनके कवि...

‘अंग्रेजी ढंग का नावेल’ और भारतीय उपन्यास: नामवर सिंह

‘अंग्रेजी ढंग का नावेल’ और भारतीय उपन्यास: नामवर सिंह

प्रेमचन्द साहित्य संस्थान गोरखपुर से संपादक केदारनाथ सिंह और सह संपादक सदानंद शाही द्वारा 'साखी' पत्रिका का प्रवेशांक अक्तूबर-दिसम्बर,१९९२ में निकला था.  इस अंक में नामवर सिंह का लेख छपा...

यथार्थ और साहित्य : रोहिणी अग्रवाल

रोहिणी अग्रवाल कथाकार के साथ  कथा–साहित्य की गम्भीर अध्य्येता भी हैं. इस पुस्तक मेले में उनकी आलोचना किताब ‘साहित्य का स्त्री स्वर’ साहित्य भंडार इलाहबाद से और  \'हिंदी कहानी: वक्त...

कबीर का घर और देश: सदानन्द शाही

कबीर का घर और देश: सदानन्द शाही

कबीर की कविता में घर और देश को लेकर आलोचक प्रो. सदानन्द शाही का यह व्याख्यान भक्तिकाल के तीन बड़े कवियों कबीर, तुलसी और रैदास के अपने-अपने  आदर्श राज्यों की...

कबीर: जाति जुलाहा मति का धीर: सदानंद शाही

कबीर: जाति जुलाहा मति का धीर: सदानंद शाही

कबीर के अपढ़ होने को स्थापित तथ्य माना जाता है. किसने स्थापित किया, क्यों किया और क्या वास्तव में कबीर अपढ़ थे, क्या साक्षर होना ही पढ़ा-लिखा होना है, अनुभव,...

कुँवर नारायण की कविता: शिरीष कुमार मौर्य

कुँवर नारायण की कविता: शिरीष कुमार मौर्य

मुक्तिबोध ने कुँवर नारायण को ‘कविता में अंतरात्मा की पीड़ित विवेक चेतना और जीवन की आलोचना’ का कवि कहा है. खुद कुँवर नारायण यह मानते हैं कि ‘कविता मूलत: एक...

रामविलास शर्मा और हिंदी नवजागरण: मैनेजर पाण्डेय

रामविलास शर्मा और हिंदी नवजागरण: मैनेजर पाण्डेय

रामविलास शर्मा की हिंदी नवजागरण  की विचारधारा पिछले कई दशकों से अकादमिक दुनिया में व्याख्या और आलोचना के केन्द्र में रही है. हिंदी नवजागरण के अस्तित्व और उसके प्रभाव पर...

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