शिल्प की कैद से बाहर : अशोक कुमार पाण्डेय
पुरुषोत्तम अग्रवाल की कहानी 'नाकोहस' पर राकेश बिहारी का आलेख- 'कहानी कहने की दुविधा और मजबूरी के बीच' आपने पढ़ा. अपने आलोचनात्मक आलेख 'शिल्प की कैद से बाहर' के माध्यम से इस कहानी पर...
पुरुषोत्तम अग्रवाल की कहानी 'नाकोहस' पर राकेश बिहारी का आलेख- 'कहानी कहने की दुविधा और मजबूरी के बीच' आपने पढ़ा. अपने आलोचनात्मक आलेख 'शिल्प की कैद से बाहर' के माध्यम से इस कहानी पर...
साहित्य के भविष्य पर आयोजित बहसतलब -२ की अगली कड़ी में कवि - संपादक गिरिराज किराडू का आलेख. कविता की पहुंच और उसकी लोकप्रियता पर गिरिराज ने कुछ दिलचस्प आकड़े एकत्र किए...
रचना और आलोचना के रिश्ते पर संवाद की इस कड़ी में अध्येता, अनुवादक सुबोध शुक्ल का यह लेख इस बहस को आगे ले जाता है और एक मजबूत सवाल छोड़ता...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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