दूसरा जीवन: कृष्णा सोबती की जीवनी (गिरधर राठी): कश्मीर उप्पल
कृष्णा सोबती का लेखन बहुआयामी है, उनका जीवन आवरण से ढंका हुआ उन्हीं की तरह. उनके सार्वजनिक निर्णय उसे और जटिल बनाते रहे हैं. गिरधर राठी ने रज़ा फाउण्डेशन की...
कृष्णा सोबती का लेखन बहुआयामी है, उनका जीवन आवरण से ढंका हुआ उन्हीं की तरह. उनके सार्वजनिक निर्णय उसे और जटिल बनाते रहे हैं. गिरधर राठी ने रज़ा फाउण्डेशन की...
हिंदी की बीसवीं शताब्दी के कुछ सबसे महत्वपूर्ण लेखकों में से एक जयशंकर प्रसाद हैं. कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, और आलेख इन सभी विधाओं में उनका कार्य आज भी प्रासंगिक...
ब्रजेश कृष्ण प्राचीन इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व के अध्येता, विद्वान हैं और हिंदी के कवि भी. अपने इस आलेख को उन्होंने प्रकाश मनु की किताब ‘एक दुर्जेय मेधा: विष्णु खरे’...
विनोद शाही की ख्याति आलोचक-विचारक की है. इधर किसान आन्दोलन की वैचारिकी से सम्बन्धित उनके कई आलेख प्रकाशित हुए हैं. ‘ईश्वर के बीज’ उनका उपन्यास है जिसे इसी वर्ष (२०२१)...
कवि, कथाकार, संपादक, अनुवादक तथा पेशे से चिकित्सक और अध्यापक उदयन वाजपेयी का उपन्यास ‘क़यास’ २०१९ में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है. इस उपन्यास पर उर्दू के इस समय...
किसी ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति पर समीक्षात्मक आलेख दो स्तरों पर उस कृति को देखता है, उसमें कहाँ तक इतिहास है और वह उपन्यास की अपनी प्रविधि में क्या सफलतापूर्वक ढल...
भारतीय फ़िल्म निर्देशकों में ऋत्विक घटक (4 नवम्बर, 1925 - से 6 फ़रवरी, 1976) का महत्वपूर्ण स्थान है. उन्होंने बांग्ला में कुछ कहानियाँ भी लिखीं हैं, जिनमें से सात का अनुवाद...
अनिल करमेले अपनी कल्पनाशील कविता पोस्टरों से आजकल दिन की शुरुआत करते हैं,कविता को उसके पाठकों तक पहुंचाने का यह भी सार्थक उद्यम है. उनका कविता-संग्रह ‘बाकी बचे कुछ लोग’...
प्रयोगधर्मी आख्यान- ‘नींद नहीं जाग नहीं’ के बाद कवि अनिरुद्ध उमट की क़िताब ‘वैदानुराग’ इधर प्रकाशित हुई है. उमट आत्मीय और संवेदनशील गद्य लिखते हैं. अनिरुद्ध उमट का कवयित्री पारुल पुखराज...
‘खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ’ के बारह साल बाद हरे प्रकाश उपाध्याय का यह दूसरा कविता-संग्रह- ‘नया रास्ता’ रश्मि प्रकाशन से छप कर आया है. इसकी चर्चा कर रहें हैं...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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