समीक्षा

गिनीपिग (अजय गोयल): सुधांशु गुप्त

 अजय गोयल पेशे से चिकित्सक हैं, ‘एक और मनोहर’ शीर्षक से उनका उपन्यास प्रकाशित हो चुका है. ‘गिनीपिग’ उनका तीसरा कहानी-संग्रह है जिसे हापुड़ से संभावना प्रकाशन ने छापा है,...

हमारे समय में धूमिल: ओम निश्‍चल

धूमिल समग्र तीन खंडों में हाल ही में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है जिसका संकलन एवं संपादन धूमिल के  पुत्र डॉ. रत्‍नशंकर पांडेय ने किया है. ज़ाहिर है यह...

गूँगी रुलाई का कोरस(रणेन्द्र): प्रेमकुमार मणि

गूँगी रुलाई का कोरस(रणेन्द्र): प्रेमकुमार मणि

आलोचक रविभूषण का मानना है कि रणेन्द्र का उपन्यास ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ गहन अध्ययन, श्रम-अध्यवसाय से लिखा गया एक शोधपरक उपन्यास है. इसमें यह और जोड़ा जाना चाहिए कि...

फणीश्वरनाथ रेणु और आंचलिकता: संदीप नाईक

फणीश्वरनाथ रेणु और आंचलिकता: संदीप नाईक

फणीश्वरनाथ रेणु (४ मार्च, १९२१ - ११ अप्रैल, १९७७) का यह जन्मशती वर्ष है. उनपर एकाग्र पत्रिकाओं के अंक प्रकाशित हो रहें हैं और कुछ प्रकाशित होने वाले हैं. ‘बनास जन’...

सांस्कृतिक हिंसा के रुप (राजाराम भादू) : हरियश राय

सांस्कृतिक हिंसा के रुपराजाराम भादू  प्रकाशक प्राकृत भारती अकादमी, जयपुरप्रथम संस्करण : 2020 / मूल्‍य रु 320/संस्कृति के सवालों को लेकर लिखने वाले आलोचक, मीमांसक राजाराम भादू की नई पुस्तक  ‘सांस्कृतिक हिंसा के रूप\'...

उपस्थिति का अर्थ (ज्ञानरंजन) : सूरज पालीवाल

कथाकार और पहल पत्रिका के यशस्वी संपादक ज्ञानरंजन की क़िताब ‘उपस्थिति का अर्थ’ इसी वर्ष सेतु प्रकाशन से छप कर आयी है जिसमें उनके व्याख्यान और संस्मरण आदि संकलित हैं....

रेत-समाधि (गीतांजलि श्री): प्रयाग शुक्ल

रेत-समाधि (गीतांजलि श्री): प्रयाग शुक्ल

गीतांजलि श्री के चार उपन्यास- 'माई', 'हमारा शहर उस बरस', 'तिरोहित', 'खाली जगह' और चार कहानी-संग्रह- 'अनुगूँज', 'वैराग्य', 'प्रतिनिधि कहानियाँ', 'यहाँ हाथी रहते थे' तथा अंग्रेज़ी में एक शोध ग्रन्थ...

संजीव: मुझे पहचानो: अमरदीप कुमार

संजीव: मुझे पहचानो: अमरदीप कुमार

वरिष्ठ कथाकार संजीव का उपन्यास ‘मुझे पहचानो’ तद्भव (नवम्वर-२०१९) में प्रकाशित हुआ था और तभी से इसकी चर्चा शुरू हो गयी थी. कथा की नयी जमीन और भाषा की तुर्शी...

स्याही की गमक (यादवेन्द्र) : गीता दूबे

विश्व के लगभग सभी हिस्सों से स्त्रियों द्वारा लिखी कहानियों  के हिंदी अनुवाद का यह संचयन सिद्ध करता है कि इस धरती पर स्त्री की स्थिति हरजगह कमोबेश एक जैसी...

एक विदुषी पतिता की आत्मकथा (मानदा देवी) : विमल कुमार

मानदा देवी द्वारा लिखित और १९२९ में बांग्ला भाषा में प्रकाशित ‘एक विदुषी पतिता की आत्मकथा’ संभवतः भारत में प्रकाशित किसी वेश्या की पहली आत्मकथा है. जिसका अनुवाद नब्बे साल...

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