Betrayed By Hope :पत्रों में माइकल मधुसूदन दत्त: रेखा सेठी
माइकल मधुसूदन दत्त (१८२४-१८७३) बांग्ला कविता में मुक्त छंद के प्रणेता रहे हैं, और इसका असर हिंदी में भी पड़ा. प्रारम्भिक हिंदी साहित्य बांग्ला साहित्य से बहुत प्रभावित था यहाँ...
माइकल मधुसूदन दत्त (१८२४-१८७३) बांग्ला कविता में मुक्त छंद के प्रणेता रहे हैं, और इसका असर हिंदी में भी पड़ा. प्रारम्भिक हिंदी साहित्य बांग्ला साहित्य से बहुत प्रभावित था यहाँ...
‘‘हम हिन्दुस्तानियों को सुदूर और प्राचीन की तलाश में देश के बाहर नहीं जाना है, उसकी हमारे पास बहुतायत है. अगर हमें विदेशों में जाना है तो वह सिर्फ वर्तमान की...
अजय गोयल पेशे से चिकित्सक हैं, ‘एक और मनोहर’ शीर्षक से उनका उपन्यास प्रकाशित हो चुका है. ‘गिनीपिग’ उनका तीसरा कहानी-संग्रह है जिसे हापुड़ से संभावना प्रकाशन ने छापा है,...
धूमिल समग्र तीन खंडों में हाल ही में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है जिसका संकलन एवं संपादन धूमिल के पुत्र डॉ. रत्नशंकर पांडेय ने किया है. ज़ाहिर है यह...
आलोचक रविभूषण का मानना है कि रणेन्द्र का उपन्यास ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ गहन अध्ययन, श्रम-अध्यवसाय से लिखा गया एक शोधपरक उपन्यास है. इसमें यह और जोड़ा जाना चाहिए कि...
फणीश्वरनाथ रेणु (४ मार्च, १९२१ - ११ अप्रैल, १९७७) का यह जन्मशती वर्ष है. उनपर एकाग्र पत्रिकाओं के अंक प्रकाशित हो रहें हैं और कुछ प्रकाशित होने वाले हैं. ‘बनास जन’...
सांस्कृतिक हिंसा के रुपराजाराम भादू प्रकाशक प्राकृत भारती अकादमी, जयपुरप्रथम संस्करण : 2020 / मूल्य रु 320/संस्कृति के सवालों को लेकर लिखने वाले आलोचक, मीमांसक राजाराम भादू की नई पुस्तक ‘सांस्कृतिक हिंसा के रूप\'...
कथाकार और पहल पत्रिका के यशस्वी संपादक ज्ञानरंजन की क़िताब ‘उपस्थिति का अर्थ’ इसी वर्ष सेतु प्रकाशन से छप कर आयी है जिसमें उनके व्याख्यान और संस्मरण आदि संकलित हैं....
गीतांजलि श्री के चार उपन्यास- 'माई', 'हमारा शहर उस बरस', 'तिरोहित', 'खाली जगह' और चार कहानी-संग्रह- 'अनुगूँज', 'वैराग्य', 'प्रतिनिधि कहानियाँ', 'यहाँ हाथी रहते थे' तथा अंग्रेज़ी में एक शोध ग्रन्थ...
वरिष्ठ कथाकार संजीव का उपन्यास ‘मुझे पहचानो’ तद्भव (नवम्वर-२०१९) में प्रकाशित हुआ था और तभी से इसकी चर्चा शुरू हो गयी थी. कथा की नयी जमीन और भाषा की तुर्शी...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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