कथा – गाथा : अपर्णा मनोज
अपर्णा मनोज अपनी कहानिओं के लिए पूरी तैयारी करती हैं. चाहे उसका मनोवैज्ञानिक पक्ष हो यह उसका वातावरण. यह कहानी नैनीताल की पृष्भूमि पर है. यह स्त्रीत्व की यात्रा की...
अपर्णा मनोज अपनी कहानिओं के लिए पूरी तैयारी करती हैं. चाहे उसका मनोवैज्ञानिक पक्ष हो यह उसका वातावरण. यह कहानी नैनीताल की पृष्भूमि पर है. यह स्त्रीत्व की यात्रा की...
संजीव चंदन की कहानी एक ऐसी खुद मुख़्तार स्त्री के आस पास बुनी गई है जिसमें हमारे समय की कई कद्दावर स्त्रिओं की छवियाँ हैं. एक नाम तो खुद कथावाचक...
प्रभात रंजन प्रतिनिधि हिंदी युवा कथाकार हैं. हिंदी कहानी को एकरेखीय स्थूलता से मुक्त करके उसे अपने समय और संकट से जोड़ने का जो उपक्रम इधर युवा रचनाशीलता में दिखता...
बच्चों के यौन दुराचार की खबरों से शायद ही अखबार का कोई दिन खाली जाता होगा. बाल मन पर इसका बहुत गहरा और घातक दुष्प्रभाव है. तरह-तरह की मानसिक समस्याओं...
मुंबई ख़ुद अपने में एक महागाथा है. अंग्रेजों के आने के बाद वह भारत का केन्द्रीय शहर बन गया और आज तक बना हुआ है. कथाकार-पत्रकार राकेश श्रीमाल के मुंबई...
भारत सरकार ने ३० जून के बाद चवन्नी और उससे कम मूल्य के पैसों को बंद करने का निर्णय लिया है. उर्दू के चर्चित युवा कहानीकार रिज़वानुल हक़ की यह...
रमेश उपाध्याय : १ मार्च, १९४२, एटा (उत्तर –प्रदेश)शिक्षा: एम.ए., पी-एच.डी.चौदह कहानी संग्रह, पाँच उपन्यास, तीन नाटक, कई नुक्कड़ नाटक, चार आलोचनात्मक पुस्तकें.अंग्रेजी तथा गुजराती से अनूदित कई पुस्तकें प्रकाशित.नाटकों...
शिवशंकर मिश्र : ९ अक्टूबर १९५९, (उत्तर -प्रदेश )उच्च शिक्षा – इलाहाबाद और बनारस से बाल्जाक (पीजेंट्स) और प्रेमचंद (गोदान) पर शोध कार्यकिसान संगठनों में सक्रियगायन और अभिनय भी.पत्र –...
उपन्यासों को मध्यवर्गीय जीवन का आधुनिक महाकाव्य कहा जाता है. इस मध्यवर्गीय जीवन की कहानियों का बहुत कुछ लेना-देना उस नयी स्त्री से भी है जो औद्योगिक क्रांति के बाद...
उपन्यास अंश उपन्यासकार D.H.Lawrence पर लिखते हुए आलोचक F.R. Leavis ने उनके उपन्यासों के लयात्मक वर्णन, काव्यत्मक दृश्यों, पर्यावरण और वातावरण की चर्चा की है. फणीश्वरनाथ रेणु का मैला आँचल अपनी...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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