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Home » बाप-बेटा: गुन्नार गुन्नारसन: मधु बी. जोशी

बाप-बेटा: गुन्नार गुन्नारसन: मधु बी. जोशी

गुन्नार गुन्नारसन की कहानी बाप-बेटा उनकी ही नहीं विश्व साहित्य की कुछ चर्चित कहानियों में से एक है. गुन्नार गुन्नारसन को साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए कई बार नामित किया गया पर अंततः वह इससे वंचित ही रहे. कहानी मार्मिक है, पुत्र के साथ-साथ फ़ैक्टर का भी चरित्र उभर कर सामने आया है. इसका अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद वरिष्ठ लेखिका मधु बी. जोशी ने किया है.

by arun dev
September 4, 2021
in अनुवाद
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बाप-बेटा: गुन्नार गुन्नारसन: मधु बी. जोशी
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बाप-बेटा
गुन्नार गुन्नारसन

Father and Son:  Gunnar Gunnarson
अनुवाद: मधु बी. जोशी

 

गुन्नार गुन्नारसन (18 मई, 1889-21 नवंबर, 1975)

गुन्नारसन किसानों के परिवार से थे. अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचने के लिए उन्होंने भी 20 वीं सदी के कई आइसलैंडिक लेखकों की तरह डेनिश में लिखा. 17 साल के होने तक आइसलैंड में उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके थे, पेशेवर लेखक बनने के लिए वे डेनमार्क गए. 1912 में उनके उपन्यास ‘बोर्ग्स्लेट्गटेन्स हिस्टोरी’ का पहला खंड प्रकाशित हुआ और एक स्कैंडिनेवियाई बेस्ट-सेलर बन गया. इसके अन्य खंड 1912 से 1914 के बीच छपे. गुन्नारसन 1939 तक डेनमार्क में रहते और लिखते रहे, फिर आइसलैंड लौट आए और कई बरस खेती-किसानी करते हुए लिखते रहे. ‘बोर्ग्स्लेट्गटेन्स हिस्टोरी’ के बाद गुन्नारसन ने 40 से अधिक उपन्यास, कहानियाँ और लेख लिखे, और अनुवाद भी किए

 

 

 

 

 

 

वे गाँव के ऐन बाहर रहते थे. दोनों का ही नाम स्न्योल्फर था. उन्हें अलग-अलग पहचानने के लिए आमतौर पर बड़ा स्न्योल्फर और छोटा स्न्योल्फर कह दिया जाता  लेकिन वे खुद एक-दूसरे को स्न्योल्फर ही कहते. यह बहुत दिन से चली आ रही आदत थी: यह भी हो सकता है कि एक ही नाम होने से वे खुद को एक-दूसरे से ज़्यादा मजबूती से बंधा महसूस करते थे. बड़ा स्न्योल्फर पचास से कुछ ऊपर था, छोटा स्न्योल्फर बस बारह का.

दोनों गहरे जुड़े थे, एक के बिना दूसरा खोया सा महसूस करता. छोटे स्न्योल्फर को याद पड़ता था कि उनके बीच सबकुछ सदा से ऐसा ही रहा था. उसके पिता को उससे भी पहले की याद थी. उसे याद था कि तेरह बरस पहले वह गाँव से कुछ ही दूर, अपने खेत पर रहता था; उसकी एक अच्छी बीवी थी और तीन मजबूत, आशा से भरे बच्चे.

फिर किस्मत पलटी और एक के बाद एक आफतें आ पड़ीं. उसकी भेड़ें कीडों की भेंट चढ़ गईं, मवेशी खुरपका वगैरह से मर गए. फिर बच्चों को काली-खांसी हुई और तीनों की मौतें इतनी जल्दी-जल्दी हुईं कि उन्हें एक ही कब्र में लिटाया गया. कर्ज़ चुकाने के लिए स्न्योल्फर ने अपना घर और जमीन बेच दिए. फिर उसने गाँव के ठीक बाहर जमीन खरीदी, एक केबिन बनाया जिसमें पारटिशन लगाकर दो हिस्सों में बांटा गया, और एक मछली सुखाने का  छप्पर भी. इस के बाद जो पैसे बचे उनसे बस एक डोंगी जैसी छोटी सी नाव ही खरीदी जा सकी. यही उसका कुल सरमाया था.

स्न्योल्फर और उसकी बीवी गरीबी की ज़िंदगी जी रहे थे. वे दोनों कड़ी मेहनत के आदी थे, लेकिन लगातार अभाव और कल की चिंता में जीने का उन्हें कोई अनुभव नहीं था. पेट भर खाने के लिए समुद्र में जाकर मछ्लियां पकड़ना होता, किसी-किसी रात वे पेटभर खाए बिना ही सोते. कपडों और आराम के लिए कुछ बचता ही नहीं था.

गर्मियों में स्न्योल्फर की बीवी फै़क्टर (महाजन) के लिए मछली सुखाने का काम करती, लेकिन धूपवाले अच्छे दिनों का ठिकाना नहीं होता था और वह कभी ज़्यादा पैसे नहीं कमा पाती थी. वह बस छोटे स्न्योल्फर को दुनिया में लाने तक ही बची रही, और आखिरी काम उसने बच्चे का नाम तय करना किया. उसके बाद से बाप-बेटा केबिन में अकेले रहते रहे थे.

छोटे स्न्योल्फर को धुंधली सी याद थी दुख के समय की. उसे घर पर रहना पड़ता था, कष्ट और पीड़ा कम ही नहीं होते थे. जब वह अपने पिता के साथ नाव में जाने लायक नहीं हुआ था तो उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था, मजबूरन बड़ा स्न्योल्फर उसे खतरे से बाहर रखने के लिए खाट के पाए से उसे बाँध कर जाता. बड़ा स्न्योल्फर हर समय घर पर नहीं रह सकता था, हँडिया में कुछ चढाने के लिए उसे कमाने के लिए जाना पड़ता था.

लड़के के पास खुशियों भरे समय की और धूप में चमकते हुए समुद्र पर मुसकुराते हुए गर्मियों के दिनों की यादें थीं. उसे नाव के पिछले हिस्से में बैठ कर अपने पिता को चमचमाती मछली को पानी से खींचते हुए देखने की याद थी.  लेकिन उन दिनों में भी कड़वाहट घुली मिली थी, क्योंकि जिन दिनों आकाश रोता, बड़ा स्न्योल्फर नाव लेकर अकेला  निकल जाता.

लेकिन समय बीतने के साथ-साथ स्न्योल्फर किसी भी तरह के मौसम में बाप के साथ जाने लायक बड़ा हो गया. तब से वे चैन से ज़्यादातर दिन-रात एक दूसरे के साथ रहते: एक दूसरे के बिना वे एक मिनट न बिता पाते. एक नींद में हिलता तो दूसरा तुरंत जाग जाता; और अगर एक को नींद न आती, तो दूसरा भी आँख न मूँद पाता.

कोई सोच सकता है कि ऐसा इसलिए था क्योंकि उनके पास एक दूसरे से बात करने के लिए बहुत कुछ था, कि दोनों एक दूसरे से गुथे थे. लेकिन ऐसी बात नहीं थी. वे एक-दूसरे को इतनी अच्छी तरह जानते थे और एक-दूसरे पर विश्वास ऐसा पूरा था कि शब्द गैरज़रूरी थे. कई-कई दिन वे कुछ वाक्य ही बोलते; वे साथ बैठे चुप रहते भी उतने ही संतुष्ट रहते जितने एक-दूसरे से बतियाते. बस एक निगाह में बात समझ ली जाती.

एक बात थी जो बड़ा स्न्योल्फर अपने बेटे से बार-बार कहता-

‘असली बात यह है कि हर किसी का  कर्ज़ चुका दिया जाए, किसी की देनदारी न रखी जाए, होनी पर भरोसा रखा जाए.‘

सच बात यह है कि बाप-बेटा ऐसा कुछ खरीदने का बजाय जिसके लिए वे तुरंत भुगतान न कर पाएँ, भुखमरी की हद तक जाना पसंद करते थे. कर्ज़ से आज़ाद, वे पुराने कपड़ों के टुकड़ों की टल्लियां लगाते अपने तनों को ढके रखते.

उनके ज़्यादातर पड़ोसी कुछ हद तक कर्ज़ में डूबे थे; उनमें से कुछ फ़ैक्टर  को कभी-कभी ही कुछ चुकाते, उन्होंने पूरा कर्ज़ कभी नहीं चुकाया. लेकिन जहाँ तक छोटा स्न्योल्फर जानता था, उस पर और उसके पिता पर किसी की एक पैसे की देनदारी नहीं थी. उसके पैदा होने से पहले, हर किसी की तरह उसके पिता का नाम भी फ़ैक्टर की बही में दर्ज़ रहा था लेकिन उस के बारे में वह कुछ बोलते नहीं थे इसलिए छोटे स्न्योल्फर को उस लेनदेन के बारे में खास कुछ नहीं पता था.

 

उन दोनों के लिए पूरे जाड़े लायक रसद का इंतजाम रखना ज़रूरी था क्योंकि तब कई दिनों तक तूफानी हवाएँ समुद्र से मछली पकड़ना असंभव बना देती थीं. वे पूरे जाड़े लायक मछलियां सुखा लेते या नमक लगा कर रख लेते, बाकी बची मछलियां बेच दी जातीं ताकि आड़े वक़्त के लिए घर में थोड़े नकद पैसे रहें. जाड़े के जाने तक कुछ न बचता, कभी-कभी उससे पहले ही रसद की अलमारी खाली हो जाती; वसंत के आने तक खाने लायक हर चीज़ खाई जा चुकी होती और अक्सर बाप-बेटा भूखे ही रहते. जब भी मौसम ठीक होता, वे अपनी नाव लेकर निकल जाते लेकिन अक्सर खाली हाथ या एक मरगिल्ली सी मछली लिए लौटते. इससे जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण पर कोई असर न पड़ता. उन्हें कभी शिकायत न होती; वे संकट के अपने भारी बोझ को भी वैसे ही निर्विकार झेल जाते जैसेकि सौभाग्य के दुर्लभ अवसरों को बिता देते थे. और सब मामलों की तरह इस मामले में भी बाप-बेटे का सुर पूरी तरह मिलता था. वे हमेशा इस उम्मीद में राहत पाते कि अगर आज हमने कुछ नहीं खाया है तो कल, या अगले दिन, भगवान भोजन भेजेंगे.

बढ़ा चला आता वसंत उन्हें पीला पाता, गाल पिचके; बुरे सपनों से परेशान वे कई रातें एक साथ जागते बिताते- और ऐसे ही एक वसंत में जो औसत से ज़्यादा ठंडा और तूफानी रहा था, जिसमें एक भी दिन मौसम ठीक न रहा था, दुर्भाग्य बड़े स्न्योल्फर के घर फिर आया.

सुबह-सुबह बर्फ का एक बड़ा तोंदा उनके केबिन पर आ गिरा. किसी असंभव तरीके से छोटा स्न्योल्फर खरोंच-खरांच कर बर्फानी कब्र से बाहर निकला. जैसे ही उसे समझ आया कि अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद वह अकेला अपने पिता को बाहर नहीं निकाल पाएगा, वह दौड़ता हुआ गांव पहुँचा और नींद में डूबे लोगों को बुला लाया. मदद आने में बहुत देर हो गई थी-  जब तक वे उसे निकाल पाए, बड़े स्न्योल्फर का दम घुट चुका था.

फिलहाल उसकी देह पास की पहाड़ी में एक उथली गुफा की एक सपाट चट्टान पर रख दी गई- बाद में गांव से  एक स्लेज ला कर उसे ले जाएंगे. बहुत देर तक छोटा स्न्योल्फर बड़े स्न्योल्फर के पास खड़ा उसके सफेद बालों में हाथ फिराता रहा; वह कुछ बुदबुदा भी रहा था लेकिन किसी ने न सुना कि वह क्या कह रहा था. न वह रोया और न उसने कोई दुख दिखाया. बर्फ काटनेवाले फावड़े थामे मर्द सहमत थे कि लडका अजीब था, पिता के लिए एक आंसू तक न निकला, और इस बात के लिए वे उसे नापसंद करने को बस तैयार ही थे- ‘कड़ा छोकरा है!’ वे बोले, लेकिन उनकी बात में प्रशंसा का भाव नहीं था.– कोई हद भी होती है!

शायद इसी वजह से फिर किसी ने छोटे स्न्योल्फर की तरफ ध्यान न दिया. जब बचाव-दल और वे लोग जो बस यूं ही चले आए थे, नाश्ता करने और स्लेज लाने को गाँव लौटे तो लड़का समुद्र के छोर पर अकेला छूट गया.

बर्फ के तोंदे ने केबिन को उसकी जगह से सरका दिया था और वह बुरी तरह ध्वस्त हो गया था;  बल्लियाँ-खपच्चियाँ बर्फ से झांक रहीं थीं और घर का सामान कहीं-कहीं दिख रहा था- जब उसने सामानों को पकड़ा तो वे मानो बर्फ में जड़े हुए थे. स्न्योल्फर नाव का हाल देखने के लिए समुद्रतट की ओर चला. जब उसने देखा कि लहरें क्या मज़े से उसके टुकड़ों को बर्फ के ढेलों के बीच उछाल रही थीं तो उसके माथे पर पड़े बल गहरा गए लेकिन वह कुछ बोला नहीं.

 

वह इस बार ज़्यादा देर किनारे पर नहीं रुका. वापस गुफा में लौट कर वह थका सा अपने मृत पिता के पास चट्टान पर बैठ गया. उसे लगा मामला खराब है; अगर नाव टूटफूट न चुकी होती तो वह उसी को बेच लेता- रस्मों के लिए भुगतान करने लायक पैसे कहीं न कहीं से लाने पड़ेंगे. स्न्योल्फर हमेशा कहा करता था कि अपने कफन-दफन लायक पैसे होना बहुत ज़रूरी है, चर्च के खर्चे पर दफनाए जाने से ज़्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता. उसने कहा था,

‘खुशकिस्मती से मेरा मामला ऐसा बुरा नहीं. हम दोनों वक़्त आने पर चैन से मर सकते हैं – केबिन, नाव, औजार और बाकी सामान, और फिर जमीन भी तो है —ताबूत और कफन-दफन लायक पैसे आराम से हो जाएंगे, और इस मौके पर हमारी आवभगत मंजूर करनेवाले लोगों के लिए एक प्याला कॉफी भी.‘

पर अब, सदा से विपरीत, पिता की बात सच साबित नहीं हुई – वह मर गए और सब कुछ उनके साथ चला गया– बस समुद्र के छोर पर की ज़मीन के अलावा. और अब जब उस पर केबिन नहीं रहा, तो उसे बेचा कैसे जाएगा? शायद मैं खुद भूखों मर जाऊँगा. सबसे आसान तो यह रहेगा कि मैं समुद्र में डूब मरूँ. लेकिन फिर मुझे और पिता, दोनों को, चर्च के खर्चे पर दफनाया जाएगा. यह बोझ केवल मेरे सिर पर रहेगा, अगर हम दोनों का कफन-दफन इस शर्मनाक ढंग से हुआ तो यह मेरी गलती होगी…. और यह करने को उसका दिल न माना.

यह सब सोचविचार करके छोटे स्न्योल्फर का सिर दुख गया. उसे लगा कि वह सब कुछ को उसके हाल पर छोड़ देना चाहता है. लेकिन जब इंसान के पास रहने के लिए जगह न हो तो वह हिम्मत कैसे हार सकता है? यहाँ खुले में रात बिताना……… लड़के ने सोचा, फिर वह बल्लियाँ-खपच्चियाँ और दूसरा मलबा घसीट कर गुफा तक ले आया. उसने छप्पर के सबसे लंबे टुकड़ों से गुफा का मुंह ढक दिया- वह बस चाहता था कि पिता चार दीवारों के भीतर हों – उसने छप्पर के टुकड़ों को नाव के मस्तूलों के टुकड़ों और जो भी मिला उनसे ढक दिया, फिर पूरे ढांचे पर बर्फ दबा दी. कुछ ही देर में गुफा बाहर के मुक़ाबले बेहतर हो गई, सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि जमीन के ऊपर अपने आखिरी दिनों स्न्योल्फर उसके साथ रहेगा.  कफन-दफन में एक हफ़्ता या उससे ज़्यादा लग सकता है. ताबूत बनाना और बर्फ से जमी जमीन को खोदना कोई आसान बात नहीं. अगर मुझे खुद ही बनाना पड़ा तो ताबूत बस यूं ही सा होगा.

जब छोटा स्न्योल्फर अपने लिए जगह बना चुका तो वह अंदर सरका और पैर फैलाकर अपने पिता के पास बैठ गया. अब तक लड़का थक गया था और उसे नींद आ रही थी. वह लुढ़कने ही वाला था कि उसे याद आया कि मैं अभी भी तय नहीं कर पाया हूँ कि कफन-दफन का खर्चा कैसे होगा. वह तुरंत पूरी तरह जाग गया. इस समस्या को फौरन हल किया जाना था- और अचानक उसे आशा की एक किरण दिखाई दी– बात इतनी भी नामुमकिन  नहीं है- मैं कफन-दफन का खर्चा पूरा कर सकता हूँ और बल्कि, अपने लिए भी कुछ खर्चे का इंतजाम कर सकता हूँ. उसकी नींद काफूर हो गई, वह गुफा से बाहर निकला और गांव की ओर बढ़ गया.

वह लोगों की तीखी निगाहों की अनदेखी करता, बिना दाएं-बाएं देखे, दुकान की ओर चलता चला गया. ‘मनहूस लड़का – बाप के मरने पर भी नहीं रोया!’ इज्ज़तदार, उदार-हृदय और ऊंचे ख्यालों वाले लोग कहते रहे.

 

फ़ैक्टर के घर पहुंच कर छोटा स्न्योल्फर सीधे दुकान में गया और पूछा कि क्या मैं मालिक से बात कर सकता हूँ. दुकान का कारिंदा कुछ देर उसे घूरता रहा फिर कदम घसीटते हुए बैठक का दरवाज़ा खटखटा दिया. पलभर में खुद फ़ैक्टर ने दरवाजा आधा खोल दिया, छोटे स्न्योल्फर को देखने और यह सुनने पर कि वह उससे बात करना चाहता है, वह उसके पास आया और उसे ऊपर से नीचे तक देखने के बाद, उसे अंदर बुलाया. छोटे स्न्योल्फर ने काउंटर पर अपनी टोपी धरी और अंदर चल दिया.

‘और सुनाओ जवान?’ फ़ैक्टर बोला.

जवान पूरी तरह फ़ैक्टर का मुरीद हो गया, लेकिन फिर उसने जी कड़ा किया और कुछ शंका भरे सुर में बोला,

‘क्या आपको पता है कि हमारी ज़मीन पर नाव किनारे लगाने की बहुत ही सुविधा है. आपका घाट हमारे घाट के मुक़ाबले कहीं ज्यादा खराब है.’

लड़के की गंभीरता और साहस देख फ़ैक्टर मुस्कुरा दिया- उसने माना कि यह बात उसने भी सुनी है.

तब छोटे स्न्योल्फर ने असली बात छेड़ी-

‘अगर मैं गर्मियों के लिए आप को अपने घाट का इस्तेमाल करने दूँ तो अपने फ़ारोई (फ़ारो द्वीप के रहनेवाले) मछुआरों को अपनी पकड़ी मछलियाँ वहाँ उतारने देने के लिए आप कितना भुगतान करेंगे?- याद रखिएगा यह करार सिर्फ इन गर्मियों तक के लिए होगा!’

‘अगर मैं तुमसे घाट और वहाँ की पूरी ज़मीन ही खरीद लूँ तो वह ज्यादा सीधा सौदा न होगा?’

मुस्कुराहट दबाने की पूरी कोशिश करते हुए फ़ैक्टर ने पूछा.

छोटे स्न्योल्फर ने यह पेशकश ठुकरा दी–

‘मैं यह नहीं चाहता- फिर मेरे पास कोई घर नहीं है- अगर मैं घाट की ज़मीन बेचता हूं, तो…’

फ़ैक्टर ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह किसी भी सूरत में वहां नहीं रह सकता, अकेला, निराश्रित, खुले में. ‘बच्चे, पंचायत इसकी इजाज़त नहीं देगी.’

लड्के ने मजबूती से इस विचार को अस्वीकार कर दिया कि वहाँ वह खुले में रहेगा –

‘मैंने अपने लिए एक जगह बना ली है जहाँ मैं आराम से सो लूँगा’.

‘और वसंत आते ही मैं एक और केबिन बनाऊँगा- यह बड़ा नहीं होगा, वहाँ काफी लकड़ी है. लेकिन मुझे उम्मीद है कि आप जानते होंगे कि मैं स्न्योल्फर – और नाव को भी, खो चुका हूँ. मुझे नहीं लगता कि नाव के टुकड़ों को फिर से जोड़ा जा सकेगा. अब जब मेरे पास नाव नहीं रही तो मैंने सोचा कि मैं घाट की जगह किराए पर दे दूं. मैं नाव समुद्र में उतारने और माल उतारने में मदद करूंगा तो फ़ारोई लोग मुझे पकाने के लिए कुछ ज़रूर देंगे. वहां से वे ज़्यादातर जगहों को जा सकते हैं – मैं बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कह रहा – पिछली गर्मियों में जब स्न्योल्फर और मेरे लिए समुद्र में जाना आसान था, उन्हें बार-बार घर पर रहना पड़ा था. स्न्योल्फर अक्सर कहता था कि गहरे पानी के घाट और उथले पानी के घाट में बहुत ही अंतर होता है’.

फ़ैक्टर ने पूछा कि उसने गर्मियों के लिए घाट का कितना किराया लेने की बात सोची थी.

‘मुझे अभी पता नहीं कि आखिरी रस्मों का क्या खर्च आएगा’,

चिंतित स्वर में अनाथ ने बताया.

‘लेकिन हर हल में मुझे स्न्योल्फर के कफन-दफन के खर्च के लायक पैसे चाहिए. उतने मिल जाएँ तो मैं खुद को खुशनसीब मानूँगा.‘

कह सकते हैं कि उसकी बात ने फ़ैक्टर को कहीं अंदर तक छू लिया, वह बोला, ‘ताबूत और हर चीज का इंतजाम मैं कर दूँगा, तुम्हें अब इस बारे में परेशान होने की जरूरत नहीं’. मेहमान छोटा सा ही था लेकिन अनजाने में ही  उसने खुद को उसके लिए दरवाज़ा खोलते हुए पाया, लेकिन लड़का खड़ा रहा जैसे उसने उसे यह करते देखा ही नहीं था, और उसके चेहरे पर साफ लिखा था कि वह जिस काम के लिए आया था वह अभी पूरा नहीं हुआ था; अपनी उम्र से कहीं मजबूत उसके सुर्ख चेहरे पर अभी भी चिंता की गहरी छाप थी.

‘आप अपने माल के जहाज के कब तक आने की उम्मीद कर रहे हैं’?

फ़ैक्टर ने जवाब दिया कि वह कल तो नहीं आएगा, शायद परसों आए. उसके लिए लड़के का सवाल एक पहेली थी, बाप-बेटा आमतौर पर माल के बारे में तब तक नहीं पूछते थे जब तक खरीददारी के लिए नकदी लेकर न आए हों.

छोटे स्न्योल्फर ने फ़ैक्टर के चेहरे से निगाह नहीं हटाई. शब्द उसके गले में अटक रहे थे लेकिन आखिरकार उसने पूछ ही लिया- ‘तो उस सूरत में आपको दुकान में मदद के लिए किसी लड़के की ज़रूरत नहीं होगी?

फ़ैक्टर ने माना कि ज़रूरत तो होगी, लेकिन उसने मुसकुराते हुए जोड़ा, ‘लड़के को चर्च में कनफरमेशन (लगभग 14 वर्ष की उम्र में होनेवाला धार्मिक संस्कार) की उम्र से बड़ा होना होगा’.

लगा कि जैसे छोटा स्न्योल्फर इस जवाब के लिए तैयार था और दरअसल उसका कम अब खत्म हो गया था, उसने फ़ैक्टर से दुकान के कोने के पास बाहर चलने को कहा. वे नजदीक की पत्थरों की मुंडेर को ओर चले, लड़का आगे था. वह वहाँ पड़े एक पत्थर पर रुका, उसे दोनों हाथों से पकड़ा और सहज ही उसे उठा कर दूर रख दिया. फिर वह फ़ैक्टर की ओर मुड़ा, ‘इस पत्थर को हम मरगिल्लू कहते हैं. आपने पिछली गर्मियों में जो लड़का रखा था वह इसे इतना भी नहीं उठा सकता था कि इसके नीचे की नमी दिख जाए’.

‘ओ, ठीक है, तुम उससे ज्यादा मजबूत हो, तो तुम्हारा किसी तरह से उपयोग कर लिया जाएगा हालांकि तुम अभी चर्च में स्वीकार किए जाने की उम्र से छोटे ही हो’, फ़ैक्टर ने नर्मी से जवाब दिया.

‘जब मैं आपके साथ काम करूंगा तो क्या मुझे खाना मिलेगा? और उतनी ही मजदूरी जो उसे मिलती थी?’ लड़का बोला क्योंकि वह उस किस्म के लोगों में से था जो अपनी स्थिति ठीक-ठीक जान लेना पसंद करते हैं.

‘बिलकुल, ‘फ़ैक्टर ज़्यादा सौदेबाजी करने के मूड में नहीं था.

‘तो ठीक है – फिर मैं चर्च में नहीं जाऊंगा,’ छोटा स्न्योल्फर बोला, उसे राहत सी मिली थी. ‘स्न्योल्फर अक्सर कहा करते थे कि जिस आदमी के पास हँडिया में कुछ हो, और पास में भी कुछ हो, वह कंगाल नहीं है,’ स्न्योल्फर गर्व से सीधा खड़ा हुआ और उसने अपना हाथ फ़ैक्टर की ओर बढ़ाया, जैसे उसने अपने पिता को करते देखा था. ‘अलविदा, मैं आऊंगा – कल नहीं, परसों.’

फ़ैक्टर ने उसे एक मिनट के लिए फिर से अंदर आने को कहा और आगे चलता रसोई का दरवाजा खोलकर छोटे स्न्योल्फर को उसकी गर्माहट में ले गया. उसने रसोईदारिन से पूछा कि क्या वह इस बच्चे को खाने के लिए कुछ गर्म दे सकती है – उसे इसकी ज़रूरत है.

छोटे स्न्योल्फर ने कुछ खाने से इनकार कर दिया. ‘तुम्हें भूख नहीं लगी?’ चकित फ़ैक्टर ने पूछा.

लड़का इस बात से इनकार न कर सका कि उसे भूख लगी थी. खाना पकने की मुबारक गंध ने उसकी भूख ऐसी भड़का दी कि उसके लिए आगे बोलना मुश्किल हो गया. लेकिन उस पर किसी तरह काबू पाते उसने कहा-‘मैं भिखारी नहीं हूं.‘

फ़ैक्टर परेशान हो गया, वह समझ गया कि मैंने अनाड़ीपन दिखाया है.

वह हठीले लड़के के पास गया, उसके सिर को थपथपाया और रसोईदारिन की ओर गर्दन झटकते छोटे स्न्योल्फर को भोजन कक्ष में ले गया.

‘क्या तुमने कभी अपने पिता को अपने मेहमानों को एक प्याला शराब या एक कप कॉफी पीने को देते नहीं देखा?’ अपनी आवाज़ में कुछ नाराजगी घोल उसने पूछा.

छोटे स्न्योल्फर को मानना पड़ा कि उसके पिता कभी-कभी मेहमानों की खातिरदारी करते थे.

फ़ैक्टर ने कहा,

‘वही तो मैं कर रहा हूँ. मेहमानों की खातिरदारी और उसे स्वीकार करना बस साधारण शिष्टाचार है. बिना किसी कारण के अच्छी भावना से की जा रही खातिरदारी को ठुकराने का मतलब दोस्ती का अंत हो सकता है. तुम यहाँ आए हो तो सहज है कि मैं तुम्हें खाने के लिए कुछ दूँ: हमने एक महत्वपूर्ण सौदा किया, और इससे भी ज़रूरी बात यह है कि हमने एक नौकरी की बात पक्की की है. तुम साधारण आतिथ्य स्वीकार नहीं करोगे, तो आगे का काम कैसे चलेगा?’

लड़के ने गहरी सांस ली: बेशक, फ़ैक्टर सही कह रहे होंगे. लेकिन वह जल्दी में था. स्न्योल्फर गुफा में अकेला था. उसकी निगाह कमरे में घूमती रही, फिर वह बहुत गंभीरता से बोला: ‘असली बात यह है कि अपने कर्ज़ चुकाए जाएँ, किसी का कुछ भी बकाया न रखा जाए, और होनी पर भरोसा रखा जाए.’

फ़ैक्टर ने माना कि यह बात सौ टके खरी है, यह कहते हुए उसने अपनी जेब से अपना रूमाल निकाला. वह बुदबुदाया, ‘बाप का असली बेटा है यह’,और अपना हाथ छोटे स्न्योल्फर के कंधे पर रख जैसे उसे आशीषा.

लड़के को एक बड़े आदमी की आँखों में आँसू देखकर बड़ी हैरत हुई. ‘स्न्योल्फर कभी नहीं रोया’, फ़ैक्टर बोले. ‘ मैं छोटा था तब से कभी रोया नहीं, जब मुझे पता चला कि स्न्योल्फर मर गया तो मैं रोने लगा था. लेकिन फिर मुझे लगा कि वह इसे पसंद नहीं करेगा, और मैंने खुद को रोक लिया.‘

पल भर बाद आंसू छोटे स्न्योल्फर पर भारी पड़ गए- किसी साथी की छाती पर ज़रा देर सिर टिकाना, कम ही सही, लेकिन सांत्वना तो है ही.

_______________________________

Madhu B. Joshi

 

 

मधु बी. जोशी
वरिष्ठ लेखिका और अनुवादक
 E-mail: madhubalajoshi@yahoo.co.in

Tags: Father and SonGunnar Gunnarsonगुन्नार गुन्नारसनमधु बी जोशी
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Comments 15

  1. Anupama says:
    4 years ago

    किसी साथी की छाती पर ज़रा देर सिर टिकाना, कम ही सही, लेकिन सांत्वना तो है.

    Touché

    Thanks for sharing this, Samalochan!

    Reply
  2. Amita mishra says:
    4 years ago

    बहुत मार्मिक और दिल को छूने वाली कहानी। गरीब,मासूम बच्चा अपने पिता के मूल्यों पर अटल है जो आज उपभोक्ता वाद की आंधी में गुम हो रहा है।

    Reply
  3. Vasant Sakargaye says:
    4 years ago

    कहानी एक साँस में पढ़ गया। वाकई अदभुत और आत्मस्वाभिमान के पक्ष में खड़ी बड़ी कहानी है।
    और यह भी कि लेखक का सबसे बड़ा पुरस्कार यही है कि उसे पीढ़ियाँ याद करें। बहुत शुक्रिया अरुण जी। अनुवादक के श्रम को साधुवाद।

    Reply
  4. Anonymous says:
    4 years ago

    Anupama jee, Amitajee, kahanee ke marm tak panhunchne ke liye saadhuvaad 🙏

    Reply
    • Madhu Bala joshi says:
      4 years ago

      Bahanon ye main hee hoon.

      Reply
  5. अष्टभुजा शुक्ल says:
    4 years ago

    बहुत ही मार्मिक और खुद्दारी से भरी कहानी।अनुवाद भी बहुत खूबसूरत है, यानी चरित्रों के भीतर से पका हुआ।बधाई समालोचन, ऑस्कर वाइल्ड और मधु बी जोशी को

    Reply
  6. मनीष वैद्य says:
    4 years ago

    दिल को छू लेने वाली मर्मांतक कथा पर उतनी ही विस्मित भी करती है। छोटे बच्चे की समझ और ज़िंदादिली बहुत प्रभावित करती है। यह कहानी जीवन के संघर्षों को बख़ूबी दिखाती है लेकिन उससे भी आगे उन्हें जीतने का भरोसा देती है। अच्छी कहानी पढ़वाने के लिए समालोचन का आभार।

    Reply
  7. Madhu Bala joshi says:
    4 years ago

    Shukljee, Vaidyajee, kritagy hoon.

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  8. शिव किशोर तिवारी says:
    4 years ago

    पहले अनुवाद पर। डेनिश से हिन्दी में सीधे अनुवाद न हुआ हो तो अंग्रेजी अनुवादक का नाम देना था। अंग्रेजी से हुआ हो तो अनुवाद में दक्षता प्रकट होती है। हिन्दी अनुवादों में अंग्रेजी मुहावरा आयात करना सामान्य बात है। मैं इसे दोष मानता हूं। सौभाग्य से यह अनुवाद इस दोष से मुक्त है। अंग्रेजी अनुवाद में जो स्वाद है वही हिन्दी में अपने ढंग से प्रकट हुआ है।

    कहानी द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले की होगी। आज के आइसलैंड में इस तरह की गरीबी अकल्पनीय है।कहानी में आइसलैंडी जनों का एक चारित्रिक गुण – आत्मनिर्भरता – प्रभावी ढंग से चित्रित हुआ है और कहानी को वर्तमान से जोड़ने में इसका अधिक महत्त्व है, न कि गरीबी का (आज आइसलैंड एक धनी देश है)।
    कुल मिलाकर एक सुखद अनुभव।

    Reply
  9. Madhu Bala joshi says:
    4 years ago

    Shukriya Tiwari ji.

    Reply
  10. Hrishikesh Sulabh says:
    4 years ago

    अद्भुत कहानी है। कहन में सहजता और सधाव तो ग़ज़ब का है।

    Reply
  11. प्रवीण झा says:
    4 years ago

    स्कैंडिनैविया के संघर्ष वर्षों की मार्मिक कथा। समालोचन पर यह अनुवाद बहुत सुंदर।

    Reply
  12. Anonymous says:
    4 years ago

    बहुत बढ़िया कहानी | सुंदर अनुवाद |

    Reply
  13. Prof Garima Srivastava says:
    4 years ago

    बेहद सुन्दर और खुद्दार कहानी .प्रस्तुत करने के लिए आभार

    Reply
  14. Anonymous says:
    4 years ago

    प्रकाश चन्द्र
    इंसानियतपसंद कहानी

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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