महेश वर्मा की कविताएँ |
नींद की कमीज़
नींद की कमीज की बाहें लंबी हैं, कांख पर सिलाई उधड़ी हुई, वहाँ से झांकते हैं रात के चांद सितारे. जेब में अफ़साने भरे हैं लोरियां आंसू और थपकियां खत्म हो चुके. कमीज का रंग आसमानी है, थोड़ा उड़ा हुआ सा और पुरातन. इसके लिए धागे तैयार करने में कोई नहीं सिसका था. इसकी तासीर इतनी ठंडी है कि विश्वासघात के शिकार प्रेमी भी इसे पहन कर चैन की नींद सो सकते हैं. ऊंचाई से गिरने और किसी गफ़लत में कत्ल कर दिए जाने के डरावने सपने पहली ही धुलाई में, बह गए थे मोरी से बाहर.
नींद की शमीज़
नींद की शमीज़ अन्य पुरुष की वासना को जगा सकती है. इन वक्षों को चूमा ही जाना चाहिए था, इस देह गंध में डूबा ही जाना चाहिए था, यह सूती का कोमल स्पर्श नथुनों में भरा ही जाना चाहिए था, इस अपनी स्त्री को सोने नहीं ही दिया जाना चाहिए था.
यह फिर भी एक भिन्न वस्त्र है, स्त्री के सबसे निजी सपने और सबसे निजी पसीने की गंध भरी है इसमें.
इसे तार पर उदास सूखता देख कर आप इसमें खौलती कामना का अनुमान कभी नहीं लगा पाएंगे.
नींद की चादर
नींद की चादर पर सबसे कोमल नींद के तकिए रखे हैं. तकियों में तेल की खुशबू नहीं है न नीचे कोई हेयर पिन रखा है, सिर्फ एक पैर का का पायल जरूर यहां मौजूद है अपना ठंडा चांदी का बदन समेटे.
चादर पर सिलवटें कम हैं, आसमान अधिक.
चादर पर करवटें कम है, आसमान अधिक.
चादर पर उदासियाँ कम हैं, आसमान अधिक.
इसका सफ़ेद रंग रात की देह पर अधिक सोहता है. इसके नज़दीक जाने से पहले पानी पास रख लो वरना नींद की रेत पर प्यास से तड़पते, तुम्हारी देह रात के सभी तिलस्म तोड़-फोड़ देगी.
इस चादर के पास अपना जादू है, अपना रहस्य है और अनेक यौनिक संस्मरण.
इसे अब बुन ही लिया जाना चाहिये.
नींद के बाहर
ऐसे ही नींद के बाहर बैठे रहो चुपचाप. नींद की रख वाली करो. बस बुरे ख़्वाबों को नींद से बाहर रोक लेना और सांस की लय पर कोई राग तैयार कर लेना. ख़ूबसूरत ख़्वाबों के भीतर चुपके से झांक लेना तब नींद के दरवाज़े के भीतर जाने देना. थोड़ी देर को ये चाँदनी बुझा दो, जब मुझे गाढ़ी नींद आ जाये तब फ़िर इसकी रौशनी तेज़ कर देना. अभी बुझा दो. ऐसे ही बैठे रहो चुपचाप. देवता की राह में मारे गए हर जानवर का ख़ून मेरी नींद पर टपकता है, तुम उसे पहले ही अपनी जीभ पर ले लेना. सुबह तुम्हें सबसे पवित्र नदी में नहलाकर, माथे पर भस्म मल कर विदा किया जायेगा.
रात की चाबी
ये मेरी नींद में कौन सी चाबी ढूंढ रहे हो तुम लोग? इतनी रात कौन सा ताला खोलना है? अभी सो जाओ. रात जब अपने आप को बंद कर लेती है तभी उसके भीतर नींद पकती है, अभी सो जाओ.
रात की चाबी प्रिया के पास है.
रात की चाबी प्रिया के पास है, उसकी सुंदर कमर और सुंदर करधनी के बीच संगीत सुनती, अपना चुप बनाए रखती, वहीं है.
रात घर है तो उसके तीन दरवाजे तीन ओर खुलते हैं, चांद की ओर तारों की ओर और चुप की ओर. मुझे उस रात वहां सपनों का दरवाजा मिला ही नहीं.
रात के रहस्य
रात के जलसे में जो भी आए थे, रात के रहस्य उन सबके पास हैं टुकड़ा-टुकड़ा। पड़ोस की नदी, रात की हवाएं, चांद, प्रिया के नयन किसी से पूछ लो. सब के पास हैं टुकड़ा-टुकड़ा. इन टुकड़ों को सही सही जगह जोड़ना. क्रम भंग से कथा बदल जाएगी.
रात से पहले
रात से बहुत पहले रात के उत्सव शुरू हो चुके थे जैसे बहुत ठंडे पानी से नहाना और बेवजह मुस्कुराना. टेलीफोन घंटे से अपनी धड़कनों को बांध देना फिर उसी धड़कन की आवाज से खुद ही चौंक जाना.
रात तुम क्या-क्या लेकर आओगी, बताओगी या रहस्य ही रहने दोगी?
रात से पहले सुरमा लगाया जाता है, रात से पहले चंद्रमा को खुला छोड़ दिया जाता है.
रात से पहले गिन लो साँसें.
नमक और आंसुओं का हिसाब लिख लो, अचानक धड़क पड़ेगा दिल ये बेहिसाब,
लिख लो.
महेश वर्मा उतने निराशाजनक और दुर्भाग्यपूर्ण कवि हैं नहीं जितने इन कविताओं में मुझे लग रहे हैं.मेरे पास उनका सद्यःप्रकाशित,पहला,पूरा संग्रह ”धूल की जगह ” है जो इस वर्ष के ,और शायद आगामी वर्षों के भी ,चंद महत्वपूर्ण संकलनों में गिना जाएगा.उसे मैं दो बार पढ़ गया हूँ और वह लगभग flawless दिखाई देता है.इन कमतर,फ़ॉर्मूला,प्रचलित रचनाओं का इस वक़्त आना मुझे बतौर महेश वर्मा के प्रशंसक की हैसियत से नागवार गुज़रा.अफ़सोस है कि यह उम्दा संग्रह का कोई भला नहीं कर सकतीं.