मनुष्य और अन्य प्राणी
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31 मई 2017
मनुष्य लम्बे समय से यह दावा करता आया है कि वह अन्य सभी प्राणियों से ज़्यादा बुद्धिमान व समझदार है. धार्मिक विचारक, दार्शनिक व वैज्ञानिक इस बात पर सहमत रहे हैं और अब भी हैं. लेकिन मनुष्य ने इस बात का कोई प्रमाण नहीं दिया. मनुष्य का इतिहास तरह-तरह के कारणों से की जाने वाली हिंसा व मारकाट से अटा पड़ा है. जाति-पाति व कई तरह की ऊँच-नीच के भेदभाव भी मनुष्य ने ही पैदा किये हैं. अब वैज्ञानिक खुद कह रहे हैं कि पृथ्वी पर जीवन नष्ट होने की कगार पर है और कि ऐसा मनुष्य के क्रिया-कलापों की वजह से ही हो रहा है, दूसरे प्राणियों की वजह से नहीं. तो फिर मनुष्य अन्य प्राणियों से ज़्यादा बुद्धिमान व समझदार कैसे हुआ ? लगता तो यह है कि वह उनसे ज़्यादा मूरख है.
10 मार्च 2018
ज़्यादातर मनुष्यों को भ्रम है कि मनुष्य नाम का जानवर अन्य जानवरों से ज़्यादा बुद्धिमान है. (यह दावा अफलातून के ज़माने से चला आ रहा है. ) पर जो प्राणी पृथ्वी को और पृथ्वी पर जीवन को विनाश के कगार पर ले आये उसे ज़्यादा बुद्धिमान कैसे कहा जा सकता है?
11 मार्च 2018
अधिकतर धर्मों और दार्शनिकों ने मनुष्य को सभी प्राणियों में सब से ऊपर रखा है. मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं है कि वे ग़लत थे. ऐसा कोई मापदण्ड नहीं है जिसके आधार पर प्रकृति में किसी प्रजाति के प्राणियों को दूसरों से ऊपर रखा जा सके या कोई सोपानक्रम बनाया जा सके. यह मनुष्य का अहंकार ही है कि वह मानता है कि वह शेष प्राणियों से ऊपर है.
12 मार्च 2018
प्रकृति में मनुष्य समेत सब जीव किन्हीं दूसरे जीवों को खाकर जिन्दा रहते हैं. दुर्भाग्य से पेड़-पौधे भी जिन्दा जीव हैं. और डार्विन ने बहुत पहले लिख दिया था कि पेड़-पौधे भी आपस में बैर रखते हैं, एक-दूसरे को मारने की कोशिश करते हैं, और मारते भी हैं. यानी इस दुनिया में बिना हत्या किये कोई जीव जिन्दा नहीं रह सकता; जीवन मृत्यु पर आधारित है, निर्भर है. यह है वह प्रकृति और यह है वह जीवन जिनका इतना गुणगान किया जाता है.
27 मार्च 2018
आप इस दुनिया में मनुष्य समेत सब जीवों को प्रेम तो नहीं कर सकते. (कुछ ऋषियों-मुनियों ने ऐसा करने पर बल दिया है. ) पर हाँ, आप उनके प्रति संवेदनशील तो हो ही हो सकते हैं, उन पर दया कर सकते हैं, जब वे असहाय हों तो यथासंभव उनकी मदद भी कर सकते हैं. (कुछ लोग ऐसा करते भी हैं. ) आप कोशिश कर सकते हैं कि वे आपके हाथों या आपके कारण अनावश्यक न मरें या कष्ट न सहें.
6 अप्रैल 2018
मनुष्यों में सयाने वो नहीं हैं जो खूब कमाते हैं, खूब खाते-पीते हैं, खूब बड़ी-बड़ी चीजें खरीदते हैं, क्योंकि यही लोग हैं जो पृथ्वी, पर्यावरण व दूसरे प्राणियों को तबाह कर रहें हैं. मनुष्यों में सयाने वो हैं जो कम कमाते हैं, कम खरीदते हैं और कुल मिलाकर कम में गुजारा करते हैं, क्योंकि पृथ्वी, पर्यावरण और अन्य प्राणियों पर वे ही सब से कम बोझ डालते हैं.
8 अप्रैल 2018
प्रकृति को बचाने और बचाए रखने का एक ही तरीका है, और वह यह है कि उसे अकेला छोड़ दिया जाए. यहाँ तक कि तथाकथित “ईको-टूरिज्म” को भी बन्द कर दिया जाए. क्योंकि जहाँ-जहाँ मनुष्य के पैर पड़े हैं, उसने प्रकृति को नष्ट ही किया है. प्रकृति को अकेला छोड़ दिया जाए तो वह तेजी से वापिस फलने-फूलने लगती है, क्योंकि उसका स्वभाव ही ऐसा है.
10 अप्रैल 2018
कवि-दार्शनिक को सभी प्राणियों की चिन्ता होनी चाहिए, बल्कि उससे भी आगे बढ़कर नदियों, जंगलों, पहाड़ों, यहाँ तक कि पत्थरों व मिट्टी की भी. अन्यथा उसमें और दूसरे लोगों में फ़र्क ही क्या है? महात्मा बुद्ध, गुरु नानक इत्यादि ऐसे ही व्यक्ति थे.
23 अप्रैल 2018
श्रेष्ठ मनुष्य केवल मनुष्यों की ही नहीं, अन्य प्राणियों की चिन्ता भी करता है, उनके बारे में भी सोचता है. यहाँ तक कि उसे प्रकृति में तथाकथित अजीवित चीजों, जैसे पत्थरों, चट्टानों इत्यादि के प्रति भी करुणा भाव महसूस होता है.
2मई 2018
मनुष्य को अन्य जानवरों के बीच खड़ा कर और उसे भी जानवर कह कर (जो कि विज्ञान के अनुसार वह है) जैसे ही आप उसकी आलोचना करते हैं, लोग (यानी मनुष्य) परेशान हो जाते हैं. कुछ तो तिलमिलाने लगते हैं.
3 मई 2018
मनुष्य ने मनुष्यों और अन्य जानवरों को मारने के कितने सारे तरीके ईजाद कर रक्खे हैं. जबकि अन्य जानवरों के पास सिर्फ वही तरीके हैं जो उन्हें प्रकृति ने दिये थे. इसमें कोई शक नहीं कि मनुष्य सबसे खतरनाक जानवर है. पर उसे सिर्फ जानवर कहना अब सही नहीं है. अब उसे दैत्य (monster) या पिशाच कहना चाहिए. मनुष्य ने दैत्यों की कल्पना की थी. पर असल में एकमात्र दैत्य जो पृथ्वी पर है वह मनुष्य ही है.
5 मई 2018
न कोई ईश्वर है, न स्वर्ग, नर्क हैं, न इस जीवन के बाद कोई जीवन है, न मोक्ष या निर्वाण है. जो है, वह यही जीवन है, जैसा कि वह है. इसलिए जो सम्भव है वह यह है : लोग चाहें तो वे दूसरे मनुष्यों व प्राणियों के प्रति संवेदनशील/ज़्यादा संवेदनशील बन सकते हैं, उनको कम कष्ट पहुँचा सकते हैं, उनकी मदद कर सकते हैं. श्रेष्ठ मनुष्य वही है जो ज़रूरतमन्द अन्य मनुष्यों व प्राणियों की मदद करता है.
इस दुनिया में दुख, कष्ट, पीड़ा, यहाँ तक कि त्रासद, इन सबसे पूरी तरह कोई नहीं बच सकता, कोई संत-महात्मा भी नहीं. यह बात मनुष्येतर प्राणियों के बारे में भी उतनी ही सही है जितनी मनुष्य के बारे में. सब जीव इस दुख, कष्ट, पीड़ा में समान भागीदार हैं, इसलिए सब बराबर हैं.
जब बड़े प्राकृतिक वलवले आते हैं तो वे हर वस्तु का नाश करते चलते हैं — क्या मनुष्य, क्या पशु-पक्षी, पेड़-जंगल और क्या कीड़े-मकौड़े. इसीलिए मनुष्य को यह दम्भ छोड देना चाहिए कि वह अन्य प्राणियों से ऊँचा या बड़ा है. प्रकृति के विकराल रूप के सामने मनुष्य कुछ भी नहीं.
31 मई 2018
लगभग पूरे साहित्य, पूरी कला, पूरे दर्शन, पूरी धार्मिक और वैज्ञानिक सोच में यह धारणा व्याप्त है कि मनुष्य प्रमुख है और अन्य जीवित प्राणी और प्रकृति में स्थित अजीवित चीजें गौण हैं. मनुष्य पृथ्वी पर जीवन को मृत्यु की कगार पर ले आया है, इसके मूल में यही धारणा है. यदि शुरू से ही मनुष्य अन्य जीवों और अजीवों को अपने समान मानता तो आज वह इस स्थिति तक नहीं पहुँचता.
26 जून 2018
मनुष्य के ज़्यादातर लेखन की सीमा यह है कि वह मनुष्य-केंद्रित है. यानी अपनेआप को बहुत बुद्धिमान, विकसित और परिष्कृत मानने वाले प्राणी मनुष्य की दृष्टि भी स्वयं से बहुत दूर तक नहीं देख पाती. बड़े से बड़े कवि, लेखक, दार्शनिक, वैज्ञानिक इत्यादि इस सीमा के शिकार हैं.
मैंने देखा है कि अलग-अलग विचारधाराओं में विश्वास करने वाले और बहुत पढ़े-लिखे, विद्वान लोग भी मनुष्य की आत्मकेन्द्रीयता यानी मनुष्य-केन्द्रीयता को नहीं छोड़ पाते, जबकि वास्तव में यह एक बहुत बड़ी बौद्धिक (और भावनात्मक भी) सीमा है.
10 अप्रैल 2019
मनुष्यों की दुनिया में सबसे बड़ा अन्याय असमानता है. वह दुनिया जिसमें मनुष्य व अन्य प्राणी दोनों शामिल हैं, वहाँ भी सबसे बड़ा अन्याय मनुष्यों और अन्य प्राणियों के बीच असमानता ही है.
11 अप्रैल 2019
अधिकतर काव्य, कलाएँ व दर्शन इत्यादि मनुष्य के इर्दगिर्द ही घूमते हैं, जैसे कि मनुष्य ही सृष्टि का केन्द्र हो, जो कि वह नहीं है. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी साधारण व्यक्ति की तरह ही अधिकतर कवि, कलाकार व दार्शनिक भी अपने मनुष्यत्व से बाहर नहीं निकल पाते. यानी उनका चेतन व उनकी सह-अनुभूति अन्य जीवित प्राणियों व अजीवित प्राकृतिक चीजों का आलिंगन नहीं कर पाते. काव्य, कलाओं व दर्शन के लिए यह एक बहुत बड़ी सीमा है. उच्च कोटि के काव्य, कला व दर्शन को छूने या प्राप्त करने के लिए इस सीमा को लांघना ज़रूरी है.
12 अप्रैल 2019
जँगलों, जँगली जानवरों, पहाड़ों, झीलों व नदी-झरनों इत्यादि के लिए ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन बहुत पहले आ गये थे- मनुष्यों के रूप में, जिन्होंने उन्हें नष्ट करना व प्रदूषित करना शुरू कर दिया था.
13 अप्रैल 2019
जो लोग ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेवार हैं, यानी अमीर लोग, उनके ऊपर इनका असर सबसे बाद में होगा. पहले जंगली जानवर और पक्षी मरेंगे (वे मरना शुरू हो चुके हैं). उसके बाद घरेलू पशु जिनको खुला छोड़ दिया जायेगा — वे चारे और पानी के लिए भटकेंगे. उनके साथ ही बिल्लियाँ और कुत्ते इत्यादि. फिर गांवों और शहरों के ग़रीब लोग विस्थापित होंगे, मरेंगे. सबसे बाद में अमीर लोग जो कुछ समय तक अपने पैसे से ख़ुद को बचाये रखेंगे. विज्ञान की सारी कोशिशों के बावजूद वे भागकर मंगल ग्रह पर नहीं जा पायेंगे. वैसे भी हाल की एक रपट के अनुसार मंगल की जलवायु मनुष्यों के लिये उचित नहीं है. मरने से पहले स्टीफेन हाकिंग ने सुझाया था कि मनुष्यों को पृथ्वी से बचने के लिए भागकर दूसरे ग्रहों पर जाने की तैयारी करनी चाहिए. पर यह इतना आसान नहीं है.
21 अप्रैल 2019
असली भिक्षु गली के कुत्ते, गली की गायें, पक्षी और जँगली जानवर होते हैं. उन्हें पता नहीं होता कि उनका अगला खाना कब और कैसे आयेगा. हमारे यहाँ के गली के कुछ कुत्ते शाम को हमें देखते ही आसपास आ जाते हैं. उन्हें पता होता है कि अब कुछ खाने को मिलेगा.
23 अप्रैल 2019
जीव पैदा हो जाते हैं, फिर खाने-पानी के लिए सारी उम्र इधर-उधर भटकते रहते हैं, दुख-तकलीफ़ सहते रहते हैं. कितनी बेतुकी है यह दुनिया!!
25 अप्रैल 2019
जब पानी की कमी होती है तो सिर्फ़ मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी, कीड़े-मकौड़े सब कष्ट सहते हैं, मरते हैं. मैंने अभी-अभी पढ़ा : “पानी मानवाधिकार है. ” तो मेरा मन यह पूछने को किया : “क्या पानी मनुष्येतर प्राणियों का अधिकार नहीं?”
1 मई 2019
मनुष्य मज़दूर तो है ही और उनकी स्थिति में सुधार होना चाहिए, जो कि समतावादी या कल्याणकारी समाज में ही सम्भव है.
पर इनके अलावा पशु मज़दूर भी हैं, वे पशु जो मनुष्यों के लिए काम करते हैं, यानी घोड़े, हाथी, ऊँट, गधे, खच्चर, बैल इत्यादि. ये मज़दूर भी हैं और मनुष्यों के गुलाम भी हैं. वे अपनी इच्छा से मज़दूरी नहीं करते. इनकी स्थिति में भी सुधार होना चाहिए.
और इस बात को समझने की ज़रूरत है. इसे समझने के लिए ज़रा खुला दिमाग चाहिए.
3 मई 2019
मनुष्य ने कितने जानवरों के आवास स्थलों को नष्ट करके धीरे-धीरे उन्हें अपने ऊपर निर्भर बना लिया है. फिर भी वह उन्हें खाने को कुछ खास नहीं देता.
चारों तरफ़ ईंटों के मकान हैं, कुछ खाने को नहीं, इसलिए चींटियाँ मनुष्य की रसोई की तरफ़ आती हैं. तिस पर, उन्हें रोकने के लिए मनुष्य मकानों की नींव में ज़हरीले रसायन डाल देता है. गली के कुत्ते इन्तज़ार करते रहते हैं कि कोई मनुष्य आकर उन्हें खाने को कुछ दे. गलियों और सड़कों की गायों का भी यही हाल है. कितनी चिड़ियाँ और पक्षी खाने की तलाश में रेस्तराँ की मेज़-कुर्सियों के ऊपर-नीचे आ पहुँचते हैं; कभी-कभी वे रेस्तराँ के अन्दर भी घुस जाते हैं. वानर जँगल में से निकल कर सड़कों के किनारे आ बैठते हैं, ताकि कारों-बसों से आते-जाते लोग उनके लिए कुछ फेंक दें, या ट्रकों से कुछ गिर जाये. अन्य जँगली जानवर भी अब गाँवों की तरफ़ आने लगे हैं क्योंकि मनुष्य ने जँगलों को लगभग ख़ाली कर दिया है; उनमें से कई तो मार दिये जाते हैं.
मनुष्य के इतिहास को देखकर लगता है कि मनुष्य यदि कम बुद्धिमान होता तो वह कहीं बेहतर प्राणी होता. बुद्धि का उपयोग कर उसने पृथ्वी को लगभग नष्ट कर दिया है. और इसी बुद्धि ने ही उसे भ्रष्ट भी किया है. हर तरह के भ्रष्ट आचरण के पीछे बुद्धि ही है.
4 मई 2019
पहले प्रकृति थी. फिर हम आये. हमने वस्तुएँ बनायीं. वस्तुएँ हमारी आत्मा में घुसती गयीं, उसमें घुलती गयीं. अब हम वस्तुओं के बिना क्या हैं? अब हम वस्तु ज़्यादा हैं और जीव कम. हमने अपने-आप को लगभग एक वस्तु में बदल दिया है.
5 मई 2019
मनुष्य इसलिए भी ख़त्म होने जा रहा है क्योंकि विशेषकर आधुनिक काल में उसने पशु-जानवरों को दुर्दान्त कष्ट पहुँचाया है.
13 मई 2019
आज हमारे सामने वाले पड़ोसियों के आँगन में बुलबुलों का बच्चा शायद घोंसले से गिर कर मर गया. उनका पाँच वर्ष का बेटा अभी हमें बुलाने आया कि देखो “पक्षी का बच्चा मर गया है. ” दोनों बुलबुलें काफ़ी देर से शोर मचा रही हैं. बीच-बीच में मरे हुए बच्चे के पास आकर बैठती हैं. और बहुत से वैज्ञानिक और दार्शनिक अभी भी कहते हैं कि पशु-पक्षियों में भावनाएं नहीं होतीं.
14 मई 2019
ऐसा नहीं है कि हम प्रकृति की आलोचना नहीं कर सकते. प्रकृति में दुख है, पीड़ा है, अवसाद है, रुदन है. एक प्राणी दूसरे को मारता है, घायल करता है, खाता है. दूसरा किसी और को. वह आगे किसी और को. वहाँ भी ताकतवर हैं और कमज़ोर हैं. वहाँ भी ज़ोर है, डर है. जो ताकतवर हैं सत्ता उनके हाथ में रहती है. सत्ता के लिए लड़ाई भी होती है. यदि प्रकृति को किसी ने बनाया होता तो हम ज़रूर उससे पूछते कि तुमने यह क्या किया है? इसे ठीक करो. इसीलिए मैं कहता हूँ कि प्रकृति में भी अन्याय है. यह अवधारणा वहाँ भी लागू होती है. वहाँ मात्र जीवन सँघर्ष नहीं है.
हमारे बचपन के समय सारी खेती आर्गेनिक (organic) थी. हमारे अपने खेत भी. फिर हरित क्रान्ति (green revolution) आयी और धीरे-धीरे सारा खाना प्रदूषित हो गया. अब वह बीमारियाँ फैला रहा है.
ये मत समझें कि अन्याय सिर्फ़ मनुष्यों की दुनिया में है. प्रकृति भी अन्याय से अटी पड़ी है. जैसे चींटियों को लें. वे सबके पैरों के नीचे दब कर मरती रहती हैं. पर यही चींटियाँ ज़िन्दा कीड़े को ही खाने लगती हैं. मकड़ी ज़िन्दा मक्खी का खून चूसने लगती है. शेर ज़िन्दा भैंसे को ही खाने लगता है. घरेलू चिड़िया कितनी मासूम लगती है. लेकिन वह जिस कीड़े को पकड़ कर लाती है, उसे सिर की ओर से तब तक दीवार पर बार-बार पटकती है जब तक वह मर नहीं जाता. इत्यादि.
प्रकृति केवल सुन्दर नहीं क्रूर भी है. जिस जंगल में जाकर आपको आनन्द आ रहा होता है, उसमें उसी वक्त सैकड़ों वध हो रहे होते हैं.
13 जून 2019
जो व्यक्ति पशुओं-जानवरों, पक्षियों तथा कीड़ों-मकौड़ों के बारे में चिन्ता नहीं करता उसकी सोच, कल्पना-शक्ति व संवेदन अतिसीमित हैं.
कि मनुष्य- जिनमें कवि-लेखक भी शामिल हैं- केवल मनुष्यों के बारे में ही चिन्ता करें, यह बात अब काफी पुरानी पड़ चुकी है.
16 जून 2019
यदि तुम जीवों पर अत्याचार करते हो तो तुम्हारी कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, दर्शन, कलाएँ इत्यादि किस काम की?
26 जुलाई 2019
जो क्रूरता मनुष्य जानवरों के साथ कर रहा है, जो इधर बहुत बढ़ गयी है, उसके लिए मनुष्य को कुछ न कुछ, काफी कड़ी सज़ा मिलेगी ही.
27 जुलाई 2019
हम विदेश में अपने मित्र की कार में जा रहे थे. उनकी पत्नी तेजी के साथ पीछे बैठी थीं. अचानक मित्र ने देखा एक मधुमक्खी कार में है. वे एक हाथ से कार चलाते हुए उसे मारने की कोशिश करने लगे. तेजी और मैंने उन्हें कार रोकने को कहा. मैंने दरवाज़ा खोला. मधुमक्खी उड़कर बाहर चली गयी. बस इतना-सा ही तो करना होता है उससे चिढ़कर या डरकर उसे मारने की बजाय. घर में आ गये कीड़े को भी मारने की बजाय कागज़ पर उठाकर बाहर रख सकते हैं. मैं तो गली में, सड़क पर चलते हुए भी नीचे की ओर नज़र दौड़ाता रहता हूँ ताकि कोई कीड़ा-मकौड़ा पैर के नीचे न आ जाये. (यह आत्मश्लाघा नहीं. ) लेकिन गाड़ियों के नीचे बहुत से जीव-जन्तु मरते रहते हैं. लोग जब मशीन से अपने लॉन की घास काटते हैं, तब भी बहुत से जीव उससे कटकर मर जाते हैं.
28 जुलाई 2019
मनुष्य को सोचना चाहिए कि वह पृथ्वी से इतना कुछ लेता है, उसके भीतर से, बाहर से, सदियों से लेता आया है, लेकिन बदले में वह उसे क्या देता है? कृत्रिम रसायन, रसायन, रसायन, जो उसे बस प्रदूषित करते हैं, उसके साँस लेने में बाधा डालते हैं, उसे मारते हैं, उसे जीवन नहीं देते. अब तो पृथ्वी में पीनेवाला पानी भी बहुत कम बचा है. मनुष्य ने पृथ्वी को निचोड़ लिया है, पर बदले में जीवनदायी कुछ भी नहीं दिया.
सदियों पुराने पेड़ काटकर नये पेड़ लगा देने भर से पर्यावरण की समस्या हल नहीं होती. पहले तो इन पेड़ों को बड़ा होने में समय लगता है. दूसरा, यह भी महत्वपूर्ण है कि बदले में कौन से पेड़ लगाये गये हैं, यानी क्या वे उस जगह के लिए उपयुक्त हैं जहाँ वे लगाये जा रहे हैं. तीसरा, पेड़ों पर जानवरों, पक्षियों, कीड़ों इत्यादि का जीवन निर्भर होता है और खुद ये सब पर्यावरण के लिए ज़रूरी हैं. पुराने पेड़ काटते ही ये सब उजड़ जाते हैं. इससे उनको भी और पर्यावरण को भी भारी नुकसान होता है.
बेचारे जानवर मनुष्य की बुद्धि का क्या मुकाबला करेंगे! क्या वे स्वास्थ्य के लिए घातक नकली दूध बनाकर रोज़ उसके करोड़ों लीटर बेच सकते हैं? क्या वे नकली दवाइयाँ बनाकर सरेआम लोगों को लगा सकते हैं? क्या वे चावल में, दालों में, चीनी में, तेल में, मिर्च-मसालों में, हज़ारों अन्य चीजों में, यहाँ तक कि दारू में भी मिलावट कर सकते हैं? ये तो उन्हें सूझेगा भी नहीं. बेचारे कितने बुद्धू हैं!!
29 जुलाई 2019
गाय को केवल राजनीतिक या धार्मिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता, जैसे वाम या दक्षिण के लोग करते हैं. मनुष्य तथा अन्य प्राणियों की तरह गाय भी एक प्राणी है, और वो सुन्दर है.
6 अगस्त 2019
यह मनुष्य का अहंकार ही है कि वह मानता है कि भाषा केवल उसी के पास है. “बड़े-बड़े” दार्शनिक और वैज्ञानिक भी यही कहते आये हैं. बीसवीं सदी में तो कई दार्शनिकों द्वारा यहाँ तक कह दिया गया कि मनुष्य भाषा का ही बना हुआ है. कहने की ज़रूरत नहीं कि यह एक मूर्खतापूर्ण विचार है. इधर कुछ कवि-लेखक भी आँख मूँदकर, अपने दिमाग बन्द कर इस विचार को मानने लगे हैं. लोग बने-बनाये विचारों के इन्तज़ार में रहते हैं और उनके आते ही उन्हें अपनाने लगते हैं. असली बात यह है कि भाषा जानवरों के पास भी है. वे भी आपस में बोलते हैं, बातचीत करते हैं, एक-दूसरे की बात समझते हैं. अब कुछ वैज्ञानिक यह भी कह रहे हैं कि पेड़-पौधों के पास भी भाषा है. मनुष्य को अपना मूर्खतापूर्ण अहंकार छोड़ देना चाहिए. भाषा के अलग-अलग रूप हैं.
7 अगस्त 2019
जो सभी प्राणियों के प्रति संवेदनशील है, सहानुभूति रखता है, दयालु है, उनके बारे में चिन्ता करता है, इत्यादि, वही श्रेष्ठ मनुष्य है.
12 अगस्त 2019
किसी भी दयालु मानव समाज में कसाईखाने नहीं होंगे और न ही किसी जानवर को इस या उस कारण बलिवेदी पर चढ़ाया जायेगा.
वह व्यक्ति किसी भी धर्म-जाति इत्यादि का हो, जिसे अन्य जीव-जन्तुओं पर दया नहीं आती, उसे मनुष्यों पर दया कैसे आयेगी? अन्ततः वह उनको भी मारने को तैयार हो जायेगा.
13 अगस्त 2019
मैं उन सभी जानवरों का पक्षधर हूँ जिन्हें रोज़ खाने के लिए मारा जाता है या जिनकी बलि दी जाती है.
15 अगस्त 2019
आज़ादी केवल मनुष्यों के लिए? करोड़ों जानवर मनुष्य ने कैद किए हुए हैं जिनका वह शोषण करता है, उन्हें रोज़ मारता भी है. उनकी आज़ादी?
“वसुधैव कुटुम्बकम…” पृथ्वी में सभी जीव शामिल हैं. इसलिए मनुष्य का सभी जीवों के साथ सहअस्तित्व….सिर्फ़ मनुष्यों के साथ नहीं.
31 अगस्त 2019
मनुष्य का अत्यधिक ज्ञान पृथ्वी और जीव-जन्तुओं के लिए घातक सिद्ध हुआ है. परन्तु जो ज्ञान इतना ध्वंसकारी हो, क्या उसे अज्ञान नहीं कहना चाहिए?
18 सितम्बर 2019
सब जीव एक-समान हैं, यह जानने, कहने के लिए हमें धर्म, आत्मा, परमात्मा इत्यादि अवधारणाओं की ज़रूरत नहीं है. न ही इसके लिए किन्हीं क्लिष्ट दार्शनिक अवधारणाओं की ज़रूरत है कि सब जीव एक-समान हैं, यह जानने, कहने के लिए हमें सिर्फ़ संवेदनशील होने की ज़रूरत है.
कवि और दार्शनिक (30 अक्तूबर 1955) रुस्तम के हिन्दी में पाँच कविता संग्रह प्रकाशित हैं, जिनमें से एक संग्रह किशोरों के लिए है. उनके पिछले दो कविता संग्रह “मेरी आत्मा काँपती है” तथा “न तो मैं कुछ कह रहा था”, सूर्य प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर, से क्रमश: 2015 व 2020 में प्रकाशित हुए थे. उनकी कविताएँ अंग्रेज़ी, तेलुगु, मराठी, मल्याली, पंजाबी, स्वीडी, नौर्वीजी तथा एस्टोनी भाषाओं में अनूदित हुई हैं.
रुस्तम सिंह नाम से अंग्रेज़ी में भी उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हैं. इसी नाम से अंग्रेज़ी में उनके पर्चे राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं. उन्होंने नार्वे के कवियों उलाव हाउगे व लार्श अमुन्द वोगे की चुनी हुई कविताओं के पुस्तकाकार अनुवाद हिन्दी में किये हैं जो वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, से 2008 तथा 2014 में प्रकाशित हुए.
वे भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला, तथा विकासशील समाज अध्ययन केंद्र, दिल्ली, में फ़ेलो रहे हैं. वे “इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली”, मुंबई, के सहायक-संपादक तथा श्री अशोक वाजपेयी के साथ महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, की अंग्रेजी पत्रिका “हिन्दी : लैंग्वेज, डिस्कोर्स, राइटिंग” के संस्थापक संपादक रहे हैं. वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली, में विजिटिंग फ़ेलो भी रहे हैं.
ustamsingh1@gmail.com
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