मलय का काव्य-संसार: राहुल राजेश
“बुरे वक्त की रात में भी/जीता हूँ/सूरज की तरह/सामना करने से/भागकर/डूब नहीं जाता” इस तरह जीने और रचने वाले वरिष्ठ ...
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“बुरे वक्त की रात में भी/जीता हूँ/सूरज की तरह/सामना करने से/भागकर/डूब नहीं जाता” इस तरह जीने और रचने वाले वरिष्ठ ...
मलय की ये नई कविताएँ हैं. आज़ादी से पहले पैदा हुई पीढ़ी आज हमारे समय को किस तरह से देख ...
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