शंख घोष की कविताएँ
इसीलिए इतनी सूख गई हो
बहुत दिनों से तुमने बादलों से बातचीत नहीं की
इसीलिए तुम इतनी सूख गई हो
आओ मैंतुम्हारा मुँह पोंछ दूँ
सब लोग कलाढूँढ़ते हैं, रूपढूँढ़ते हैं
हमें कलाऔर रूप सेकोई लेना–देना नहीं
आओ हमयहाँ बैठकर पल–दो–पल
फ़सल उगाने की बातें करते हैं
अब कैसी हो
बहुत दिनहुए मैंने तुम्हें छुआ नहीं
फिर भीजान गया हूँ
दरारों मेंजमा हो गएहैं नील भग्नावशेष
देखो येबीज भिखारियों सेभी अधम भिखारी हैं
इन्हें पानी चाहिए बारिश चाहिए
ओतप्रोत अँधेरा चाहिए
तुमने भीचाहा कि ट्राम से लौट जाने से पहले
इस बारदेर तक होहमारी अंतिम बात
ज़रूर, लेकिन किसे कहते हैंअंतिम बात!
सिर्फ़ दृष्टि के मिल जाने पर
समूची देहगल कर झरजाती है मिट्टी पर
और भिखारी की कातरता भी
अनाज केदानों से फटपड़ना चाहती है
आज बहुत दिनों के बाद
हल्दी मेंडूबी इस शाम
आओ हमबादलों को छूते हुए
बैठें थोड़ी देर ….
टलमल पहाड़
जब चारों ओर दरारों सेभर गया हैपर्वत
तुम्हारी मृतआँखों की पलकों से
उभर रहाहै वाष्प–गह्वर
और उसेढँक देना चाहता है कोई अदृश्य हाथ,
दृष्टिहीन खोखल के प्रगाढ़ अंचल में
अविराम उतरते आ रहे हैंकितने ही कंकड़
और हमलोग पीली पड़चुकी
सफ़ेद खोपड़ी के सामने खड़ेहैं, थिर —
मानो कुहासे के भीतर सेउठ रहा होचाँद
हालाँकि आजभी संभव नहीं शिनाख़्त करना कि
इतने अभिशापों के भीतर–भीतर
विषैले लताबीज की परम्परा
किसने तुम्हारे मुँह में रखदी थी उसदिन
तन्द्रालस जाड़े की रात!
जब इसनील अधोनील श्वास के प्रतिबिम्ब में
बिखरी हुईपंक्तियाँ
काँपती रहती है वासुकि केफन पर
और मर्म के मर्मर मेंहाहाकार कर उठते हैं
तराई केजंगल
मैं तबभी जीवन कीही बात करता हूँ
जब जानवरों के पंजों के निशान देखते–देखते
दाखि़ल होजाता हूँ
दिगंत केअँधेरे के भीतर–भीतर
किसी आरक्त आत्मघात के झुके कगार पर
मैं तबभी जीवन कीही बात करता हूँ
जब तुम्हारी मृत आँखों कीपलकों पर से
अदृश्य हाथहटाकर
मैं हरखोखल में रखजाता हूँ
मेरा अधिकारहीन आप्लावित चुम्बन —
मैं तबभी जीवन कीही बात करता हूँ
तुम्हारी मृतआँखों की पलकों से
उभर रहाहै वाष्प–गह्वर
और उसेढँक देना चाहता है
कोई अदृश्य अनसुना हाथ … यहटलमल पहाड़!
सैकत
अब आजकोई समय नहीं बचा
ये सारी बातें लिखनी हीपड़ेंगी, ये सारी बातें
कि निस्तब्ध रेत पर
रात तीनबजे का रेतीला तूफ़ान
चाँद कीओर उड़ते–उड़ते
हाहाकार कीरुपहली परतों में
खुल जाने देता है सारी अवैधता
और सारे अस्थि–पंजर कीसफ़ेद धूल
अबाध उड़ती रहती है नक्षत्रों पर
एक बार, सिर्फ़ एक बारछूने की चाहत लिए.
और नीचे दोनों ओर
केतकी केपेड़ों की कतारों के बीच सेहोती हुई
भीतर कीसँकरी–सी सड़कजिस तरह चलीगई है
अजाने अटूट किसी मसृण गाँव की ओर
वह अबभी ठीक वैसी ही है यहकहना भी मुश्किल है
फिर भीयह सजल गह्वर पूरे उत्साह से
रात मेंयह विराट समुद्र जितनी दूर तक
सुनाता हैअपना गर्जन
वहाँ तकमत जागना सोते हुए लोगो!
तुम सोएरहो, सोए रहो
उस गाँव पर बिखर जाएनिःशब्द सारी रेत
और तुम्हें भी अलक्षित उठाले निःसमय
अंक मेंरख ले अँधेरे या फिर
अँधेरे–उजाले की जलसीमा पर
रख लेपद्म के कोमलभेद में
जन्म केहोंठ छूकर आधमके मृत्यु
आज अबऔर समय नहीं है
सारी बातें आज लिखनी हीपड़ेंगी
ये सारी बातें, ये सारी …!
मत
इतने दिनों में क्या सीखा
एक–एककर बता रहाहूँ, सुन लो.
मत किसे कहते हैं, सुनो
मत वहीजो मेरा मत
जो साथहै मेरे मतके
वही महत, ज्ञानी भी वही
वही अपना मानुस, प्रियतम
उसे चाहिए टोपी जिसमें लगेहों
दो–चारपंख
उसे चाहिए छड़ी
क्योंकि वहमेरे पास रहता है
मेरे मतके साथ रहता है.
अगर वहइतना न रहे?
अगर कभीकोई दुष्ट हवालगकर
उसमें कोईभिन्न मति जागजाए?
इसलिए ध्यान रखना पड़ेगा कि
वह दुर्बुद्धि तुम्हें कहीं जकड़ नले.
लोग उसेजानेंगे भी कैसे?
मैं बंदकर दूँगा सारे रास्ते — हंगामे से नहीं —
चौंसठ कलाओं से
तुम्हें पताभी है मैंने कितनी कलाएँ सीखली हैं?
काठ
एक दिनउस चेहरे परअपरिचय की आभाथी.
हरी महिमा थी, गुल्म थे, नामहीन उजास
आसन्न बीजके व्यूह मेंपड़ी हुई थीआदिमता
और जन्म की दायीं ओरथी हड्डियाँ, विषाक्त खोपड़ी!
शिराओं मेंआदिगन्त प्रवहमान डबरे थे
अकेले वशिष्ठ की ओर स्तुति बनी हुई थीआधीरात
शिखर परगिर रहे थेनक्षत्र और
जड़ों मेंएक दिन मिट्टी के अपने तलपर थी
हज़ारों हाथों की तालियाँ.
पल्लवित टहनियाँ सीने की छालसे दूर
स्वाधीन अपरिचय में झुककर एकदिन
खोल देते थे फूल.
और आजतुम सामाजिक, भ्रष्ट, बीजहीन
काठ बनकर बैठे हो
अभिनंदन केअँधेरे में!_________
उत्पल बैनर्जी,
जन्म 25 सितंबर, 1967,(भोपाल, मध्यप्रदेश)
मूलतः कवि. अनुवाद में गहरी रुचि.
‘लोहा बहुत उदास है’ शीर्षक से पहला कविता-संग्रह वर्ष 2000 में सार्थक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित.
वर्ष 2004 में संवाद प्रकाशन मुंबई-मेरठ से अनूदित पुस्तक ‘समकालीन बंगला प्रेम कहानियाँ’, वर्ष 2005 में यहीं से ‘दंतकथा के राजा रानी’(सुनील गंगोपाध्याय की प्रतिनिधि कहानियाँ), ‘मैंने अभी-अभी सपनों के बीज बोए थे’ (स्व. सुकान्त भट्टाचार्य की श्रेष्ठ कविताएँ) तथा ‘सुकान्त कथा’ (महान कवि सुकान्त भट्टाचार्य की जीवनी) के अनुवाद पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित. वर्ष 2007 में भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली से ‘झूमरा बीबी का मेला’ (रमापद चौधुरी की प्रतिनिधि कहानियों का हिन्दी अनुवाद), वर्ष 2008 रे-माधव पब्लिकेशंस, ग़ाज़ियाबाद से बँगला के ख्यात लेखक श्री नृसिंहप्रसाद भादुड़ी की द्रोणाचार्य के जीवनचरित पर आधारित प्रसिद्ध पुस्तक ‘द्रोणाचार्य’ का प्रकाशन. यहीं से वर्ष 2009 में बँगला के प्रख्यात साहित्यकार स्व. सतीनाथ भादुड़ी के उपन्यास ‘चित्रगुप्त की फ़ाइल’ के अनुवाद का पुस्तकाकार रूप में प्रकाशन. वर्ष 2010 में संवाद प्रकाशन से प्रख्यात बँगला कवयित्री नवनीता देवसेन की श्रेष्ठ कविताओं का अनुवाद ‘और एक आकाश’शीर्षक से पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित. 2012 में नवनीता देवसेन की पुस्तक ‘नवनीता’ का हिन्दी में अनुवाद ‘नव-नीता’ शीर्षक से साहित्य अकादमी, दिल्ली से प्रकाशित. इस पुस्तक को 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
संगीत तथा रूपंकर कलाओं में गहरी दिलचस्पी. मन्नू भण्डारी की कहानी पर आधारित टेलीफ़िल्म ‘दो कलाकार’ में अभिनय. कई डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मों के निर्माण में भिन्न-भिन्न रूपों में सहयोगी. आकाशवाणी तथा दूरदर्शन केंद्रों द्वारा निर्मित वृत्तचित्रों के लिए आलेख लेखन. इंदौर दूरदर्शन केन्द्र के लिए हिन्दी के प्रख्यात रचनाकार श्री विद्यानिवास मिश्र, डॉ. नामवर सिंह, डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय, मंगलेश डबराल, अरुण कमल, विष्णु नागर तथा अन्य साहित्यकारों से साक्षात्कार. प्रगतिशील लेखक संघ तथा ‘इप्टा’, इन्दौर के सदस्य.
नॉर्थ कैरोलाइना स्थित अमेरिकन बायोग्राफ़िकल इंस्टीट्यूट के सलाहकार मण्डल के मानद सदस्य तथा रिसर्च फ़ैलो. बाल-साहित्य के प्रोत्साहन के उद्देश्य से सक्रिय ‘वात्सल्य फ़ाउण्डेशन’ नई दिल्ली की पुरस्कार समिति के निर्णायक मण्डल के भूतपूर्व सदस्य. राउण्ड स्क्वॉयर कांफ्रेंस के अंतर्गत टीचर्स-स्टूडेंट्स इंटरनेशनल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत मई 2009 में इंडियन हाई स्कूल, दुबई में एक माह हिन्दी अध्यापन.
सम्प्रति –
डेली कॉलेज, इन्दौर, मध्यप्रदेश में हिन्दी अध्यापन.
पता – भारती हाउस (सीनियर), डेली कॉलेज कैंपस, इन्दौर – 452 001, मध्यप्रदेश.
दूरभाष – 0731-2700902 (निवास) / मोबाइल फ़ोन – 94259 62072
ईमेल : banerjeeutpal1@gmail.com