कभी कंप्यूटर प्रोग्रामर रहे जे. एम. कोएट्जी (जन्म: 9 February 1940) आज अंग्रेजी भाषा और विश्व के बड़े उपन्यासकारों में एक हैं. उनका उपन्यास Disgrace १९९९ में प्रकाशित हुआ था, उसे बुकर मिला फिर नोबेल पुरस्कार भी. इस पर फ़िल्म भी बनी है. उपन्यास उच्च शिक्षण संस्थाओं में यौन शोषण और उसपर आरोप की कार्यवाही पर केंद्रित हैं. ख़ुद उपन्यासकार को इस मुद्दे पर उसकी प्रतिकूल सोच के लिए के लिए भारी आलोचना का सामना करना पड़ा. इसके कुछ हिस्सों का अनुवाद लेखक और वरिष्ठ अनुवादक यादवेन्द्र ने किया है.
जे. एम. कोएट्जी
डिस्ग्रेस
अनुवाद- यादवेन्द्र
2003 का साहित्य के लिए नोबेल प्राइज जीतने वाले दक्षिण अफ्रीकी मूल के लेखक जे एम कोएट्जी ने दक्षिण अफ्रीका में गैरकानूनी और क्रूर रंगभेदी शासन की समाप्ति के दौर में \”डिस्ग्रेस\” नाम का अपना बेहद चर्चित और विवादास्पद उपन्यास लिखा था. इस उपन्यास का नायक अंग्रेजी साहित्य का एक गोरा प्रोफेसर है जिसे अपनी एक अश्वेत अफ्रीकी छात्रा की सेक्सुअल हरासमेंट की शिकायत पर युनिवर्सिटी से बर्खास्त कर दिया जाता है. वह कभी खुलकर यह नहीं कहता कि बाहर से आकर दशकों तक दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत बहुसंख्यकों पर राज करने वाले गोरों के रंगभेदी शासन की समाप्ति के बाद बदला लेने की नीयत से उसे नौकरी से निकाला जा रहा है पर शिकायत की जांच के दौरान उसका उद्धत और आक्रामक बर्ताव परोक्ष रूप से बार-बार यह संदेश देने की कोशिश करता है. वह किसी भी रुप में अपने किए का पछतावा नहीं करता बल्कि यह कहता है कि बेटी से भी कम उम्र की अश्वेत छात्रा के साथ सेक्स में लिप्त होना उसे समृद्ध करता है.
आगे भी उपन्यास में अनेक प्रसंग और प्रतीक ऐसे हैं जो दक्षिण अफ्रीका के मूल अश्वेत निवासियों को मूढ़, कमतर और कुत्ते जैसा बताते हैं.
जाहिर है बदली हुई परिस्थितियों में इस उपन्यास ने मूल अश्वेत अफ्रीकी बुद्धिजीवियों के बीच खासा विवाद पैदा किया, उस पर कई लंबे आलोचनात्मक लेख लिखे गए. यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका में रहने वाली नोबेल पुरस्कार विजेता लेखिका नादिन गोर्डिनर ने भी इस उपन्यास को रंगभेदी पूर्वाग्रह से ग्रस्त और अवांछित वक्तव्यों से भरा हुआ बताया. शासक पार्टी अफ्रीकन नेशनल कांफ्रेंस ने मुखर होकर आधिकारिक तौर पर इसकी आलोचना की. सार्वजनिक कार्यक्रमों और इंटरव्यू देने से आमतौर पर दूर रहने वाले कोएट्जी ने इन आलोचनाओं पर सिर्फ इतना कहा कि उपन्यास में जो वक्तव्य हैं वह मेरे (लेखक) नहीं बल्कि किरदार डेविड लूरी के कहे हुए हैं.
उपन्यास की सबसे खास बात क्या है कि चाहे कितने भी महत्वपूर्ण अश्वेत किरदार हों उन्हें अपना पक्ष रखते हुए कभी सामने नहीं किया गया है बल्कि उनकी तरफ से जितने भी संभावित तर्क हो सकते हैं वह लेखक ने स्वयं दिए हैं. यहां तक कि सबसे निर्णायक भूमिका निभाने वाली अश्वेत छात्रा मेलानी इसाक्स जिसकी शिकायत पर डेविड लूरी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाता है, वह भी अपनी शिकायत अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए पूरे उपन्यास में कभी सामने नहीं लाई जाती- यहां तक कि उसकी लिखी शिकायत पर लंबी चौड़ी बहस होती है लेकिन उसने लिख कर क्या शिकायत की है, इसका खुलासा कहीं नहीं किया जाता. पाठक मेलानी इसाक्स को सिर्फ और सिर्फ लेखक के चश्मे से देखता है.
अपनी बारीक बुनावट और शिल्प के कारण मुझे यह उपन्यास बहुत पसंद है लेकिन वैचारिक तौर पर बेहद प्रतिगामी मूल्यों को पोषित करने वाला लगता है. मैं इसे सत्ता असंतुलन की तमाम विसंगतियों और विद्रूप के साथ भारतीय समाज के एक रूपक के तौर पर भी देखता हूं- चाहे वह भारतीय विश्वविद्यालयों में काम करने वाला स्त्री, अल्पसंख्यक और दलित विरोधी तंत्र हो या संख्या बल पर सत्ता पर काबिज हो गए सरकारी गैर सरकारी भीड़ तंत्र का संविधान की धज्जियां उड़ाता हुआ जंगलराज.
चेहरा रहित युवा अफ्रीकी स्त्री मेलानी इसाक्स पूरी तरह से गैरहाजिर रहते हुए भी पूरे उपन्यास में किस सघन ढंग से हाजिर रहती है इसकी मिसाल देने वाला \”डिस्ग्रेस\” उपन्यास के कुछ अंश यहाँ दिये जा रहें हैं.
यादवेन्द्र
१.
यह सारा मामला ऐसे शुरू हुआ. अगली सुबह वाइस रेक्टर (स्टूडेंट्स अफेयर्स) के ऑफिस से एक औपचारिक पत्र उसके पास आया जिसमें लिखा था कि युनिवर्सिटी के कोड ऑफ कंडक्ट के आर्टिकल 3.1 के अंतर्गत उसके खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई गई है- उसके लिए यह बिलकुल सकते में डालने वाली बात थी. उस चिट्ठी में यह लिखा था कि जितनी जल्दी हो वह वाइस रेक्टर के दफ़्तर में संपर्क करें.
जिस लिफाफे में यह चिट्ठी आई थी उस पर गोपनीय (कॉन्फिडेंशियल) लिखा हुआ था और उसके साथ कोड ऑफ कंडक्ट की एक प्रति भी नत्थी थी. आर्टिकल 3 में नस्ल(रेस), जातीय समूह(एथनिक ग्रुप), मजहब,लिंग, लैंगिक झुकाव(सेक्सुअल प्रेफरेंस) या शारीरिक विकलांगता के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करना या प्रताड़ित करना शामिल है. आर्टिकल 3.1 में अध्यापकों द्वारा विद्यार्थियों को प्रताड़ित करना और निशाना बनाना शामिल है.
साथ में नत्थी दूसरा दस्तावेज जाँच कमेटी के गठन, उसके कामकाज और अधिकार क्षेत्र के बारे में था. वह एक साँस में दस्तावेज़ पढ़ गया हालाँकि पढ़ते हुए बड़े अप्रिय और खतरनाक ढंग से उसका दिल धड़क रहा था- ऐसा लगता था जैसे कोई उस पर हथौड़े चला रहा है. पढ़ते-पढ़ते बीच में उसका ध्यान भंग हो गया, एकाग्रता टूट गई. वह अपनी कुर्सी से उठा, अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद किया और फिर बैठकर कयास लगाने लगा कि यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ और क्या हुआ.
यह मामला इतना सरल नहीं है बल्कि दूसरे लोगों ने मेलानी को भड़काया होगा और दबाव डालकर प्रशासनिक दफ़्तर (एडमिनिस्ट्रेशन ऑफिस) में शिकायत दर्ज कराने के लिए लेकर गए होंगे.
\”हमें शिकायत दर्ज करानी है\”, पहुँच कर मेलानी ने नहीं उन्होंने ही यह कहा होगा.
\”शिकायत? कैसी शिकायत?\”
\”उत्पीड़न की शिकायत, एक प्रोफ़ेसर के खिलाफ\”, पॉलिन ही आगे बढ़ कर बोली होगी, मेलानी घबरायी हुई चुपचाप उसके पास खड़ी होगी.
\”इसके लिए उधर साथ के कमरे में जाओ\”
बताए गए कमरे में जाकर वह, इसाक्स (मेलानी का पिता) ज्यादा बोल्ड हो गया होगा, आवाज़ ऊँची कर बोला होगा :
\”हमें तुम्हारे एक प्रोफेसर के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी है.\”
\”क्या इस बारे में अच्छी तरह से तुम लोगों ने सोच समझ लिया है? क्या तुम सचमुच यह शिकायत दर्ज कराना चाहते हो?\”, दफ्तर में बैठे बाबुओं ने नियमों का हवाला देते हुए जवाब दिया होगा.
\”हाँ, हमें अच्छी तरह मालूम है हम क्या करना चाहते हैं\”, उसी बेढंगे सूट वाले आदमी ने पलट कर अपनी बेटी की ओर देखते हुए जवाब दिया होगा, उसे पक्के तौर पर भरोसा होगा वह उसकी कही बातों को इनकार करने का दुस्साहस नहीं करेगी.
उन्हें एक फॉर्म भरने के लिए दिया गया होगा और एक कलम भी साथ में. एक हाथ ने शिकायत लिखने के लिए कलम थामी होगी, यह वही हाथ होगा जिसको उसने एक नहीं कई बार चूमा था, इस हाथ को वह कितनी अंतरंगता से जानता पहचानता था.
सबसे पहले शिकायतकर्ता का नाम : बहुत सावधानी से कैपिटल लेटर में लिखा गया मेलानी इसाक्स, उसके नीचे की लाइनों में बने हुए किस बॉक्स में टिक करना है काँपती हुई उँगलियाँ उसे ढूँढती हैं. पिता निकोटिन लगी हुई उँगलियों से सही बॉक्स की ओर इशारा करते हैं. मेलानी की उँगलियों में पकड़ी हुई कलम धीरे-धीरे वहाँ पहुँच कर सही बॉक्स पर निशान लगाती है.
मैं सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाती हूँ. इसके बाद आरोपी का नाम लिखने के लिए जगह छोड़ी हुई थी. डेविड लूरी- वह हाथ उस खाली जगह को इन अक्षरों से भर देता है- प्रोफ़ेसर. अंत में फॉर्म के निचले हिस्से में तारीख और उसके खुद के दस्तखत.
कलात्मक ढंग का बेलबूटेदार M, ऊपरी घुमाव पर दबाव डाल कर लिखा हुआ जिसका पिछवाड़ा दूर तक चला गया था, और चमकता हुआ अंतिम अक्षर s
काम पूरा कर दिया गया. एक पन्ने पर दो नाम- उसका खुद का और उसका भी, आस-पास. वह खुद और वह एक ही बिस्तर में साथ-साथ- प्रेमी जो थे पर अब नहीं हैं, दुश्मन अब.
उसने वाइस रेक्टर के ऑफिस में फोन किया तो मिलने के लिए शाम 5:00 बजे का समय मिला, ऑफिस का दैनिक कामकाज निपटाने के बाद. वह शाम 5:00 बजे कॉरिडोर में अपनी बारी का इंतजार कर रहा है. छरहरी और युवा दिखने वाले आराम हकीम दफ्तर से बाहर आते हैं और डेविड को साथ लेकर अंदर जाते हैं. अंदर पहले से दो लोग मौजूद थे- इलेन विंटर ,उसके डिपार्टमेंट की अध्यक्ष और सोशल साइंसेज डिपार्टमेंट की फरोदिया रसूल जो यूनिवर्सिटी की भेदभाव के मामलों की देखने वाली कमेटी की प्रमुख हैं.
\”थोड़ी देर हो गई है डेविड. हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि यहां ऑफिस में इस समय क्यों इकट्ठे हुए हैं\”, हाकिम ने कहा: \”इसलिए सीधे मुद्दे पर आते हैं. हमें यह तय करना है कि इस मसले को बेहतर ढंग से, सबसे अच्छे ढंग से कैसे निबटाएं.\”
\”मुझे मेरे खिलाफ शिकायत के बारे में कुछ बता सकते हों तो पहले बता दें.\”
\”बिल्कुल सही. हम यहां अभी मिस मेलानी इसाक्स द्वारा दर्ज कराई गई एक शिकायत के बारे में बात करने बैठे हैं.\”, आराम हाकिम यह कहते हुए इलेन की तरफ देखते हैं: \”इलेन, इसाक्स के बारे में पहले से भी किसी तरह की किसी गड़बड़ी की शिकायत है क्या?\”
इलेन अपने डिपार्टमेंट के डेविड को शुरू से नापसंद करती हैं, वह उसे अतीत में डूबता उतराता हुआ इंसान लगता था जिससे जितनी जल्दी छुटकारा पाया जा सके उतना बेहतर.
\”डेविड, इसाक्स की हाजिरी को लेकर एक सवाल है. मैंने कल फोन पर उससे बात की थी, उसने मुझे बताया कि पिछले महीने उसने सिर्फ दो क्लास की. यदि उसकी बताई बात सही है तो डिपार्टमेंट को इसकी सूचना दी जानी चाहिए थी. उसने मुझे यह भी बताया कि मिड टर्म टेस्ट भी उसने नहीं दिए. फिर भी\”, मेज़ पर सामने रखी हुई फाइल पलटते हुए इलेन बोलीं.
\”आपके रिकॉर्ड के मुताबिक पूरे महीने उसकी हाजिरी लगी हुई है और मिड टर्म में उसे 70 नंबर मिले हैं.\”,थोड़ा तंज कसते हुए इलेन ने कहा: \”ऐसा तो तभी हो सकता है जब एक नहीं बल्कि दो-दो मेलानी इसाक्स हों.\”
\”मेलानी इसाक्स सिर्फ एक है\”, डेविड ने शांत भाव से जवाब दिया: \”मेरे पास अपने बचाव में कहने के लिए कुछ नहीं है.\”
हाँ किम बीच में बोले :
\”दोस्तों, इस तरह के मामलों की तह में जाने के लिए न तो यह समय और न यह जगह उपयुक्त है, मुझे लगता है अभी हमें करना यह चाहिए कि जांच की कार्यप्रणाली के बारे में अच्छी तरह से समझ लें, सभी तरह की अस्पष्टता को दूर कर लें, मैं यहां यह बात आप सबके सामने बिल्कुल साफ कर देना चाहता हूं कि यहां इस कमरे में जो कुछ भी होगा उसमें पूरी-पूरी गोपनीयता बरती जाएगी. मैं इस बारे में आपको भरोसा दिलाता हूं, आपका नाम कहीं भी जाहिर नहीं किया जाएगा. उसी तरह मिस इसाक्स का नाम भी गोपनीय रहेगा. पूरे मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी जिसका काम यह होगा कि सारे तथ्यों को देखकर यह राय दे कि किसी तरह कि अनुशासनात्मक कार्यवाही का आधार बनता है या नहीं. डेविड, आप चाहें तो आप स्वयं या आपका वकील कमेटी के गठन से असहमत होने पर उसे चुनौती दे सकते हैं. इस कमेटी की सारी कार्यवाही बंद कमरे में होगी और कैमरे से रिकार्ड की जाएगी. जब तक कमेटी अपना काम करके रेक्टर को रिपोर्ट नहीं सौंप देती और रेक्टर उस पर कोई फैसला नहीं करते, सब कुछ पहले की तरह यथावत चलता रहेगा. मिस इसाक्स औपचारिक तौर पर उस कोर्स से बाहर आ गई हैं जो आप पढ़ाते हैं, और आपसे यह उम्मीद की जाती है कि आप अब उनसे किसी तरह का संपर्क नहीं रखेंगे. फरोदिया, इलेन, इसके अतिरिक्त और कुछ और तो ऐसा नहीं है जो मुझ से छूट रहा है?\”
अब तक पूरी तरह चुप्पी साधे डॉ. रसूल अपना सिर हिलाती रही हैं.
\”इस तरह के सेक्सुअल उत्पीड़न के मामले बड़े पेचीदा होते हैं डेविड,पेचीदा ही नहीं दुर्भाग्यपूर्ण भी होते हैं लेकिन हमें भरोसा है कि हमारी कार्यप्रणाली पारदर्शी और निष्पक्ष है. इसलिए इस मामले में हम पूरी तरह देखभाल कर सोच समझ कर एक-एक कदम बढ़ाएंगे और इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे कि नियमों की किताब से बाहर दाएं-बाएं बिल्कुल न जाएं. मेरा एक सुझाव है कि आप नियम कानून अच्छी तरह से पढ़ लें, समझ लें और बेहतर हो कि किसी जानकार से कानूनी सलाह भी ले लें.\”
वह कुछ बोलने को हुआ लेकिन हाकिम ने अपनी आवाज ऊंची करते हुए उसे आश्वस्त किया: \”फ़िक्र नहीं करें, डेविड.\”
सारी बात चीत उस पर बहुत भारी पड़ी थी. डेविड ने जवाब दिया: \”मुझे यह मत बताइए कि क्या करना है और क्या नहीं करना है, मैं ऐसा कोई नादान बच्चा नहीं हूं.\”
वह एक झटके में उठा और कमरे से बाहर चला गया लेकिन बाहर निकलने का दरवाजा बंद था और चौकीदार अपने घर जा चुका था. बाहर निकलने के लिए पीछे का दरवाजा भी बंद था. हाकिम ने उसे बाहर निकलने में मदद की. वह बगैर कुछ बोले ऑफिस से बाहर आ गया.
बाहर बरसात हो रही थी. हाकिम भी साथ ही बाहर निकले और डेविड से अपनी छतरी के अंदर आ जाने को कहा. गेट खोलकर उन्होंने डेविड को अपनी गाड़ी में बिठा लिया.
\”डेविड, निजी तौर पर कहूं तो मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि मेरी आपके साथ पूरी हमदर्दी है. मेरी बात का यकीन करें. मैं जानता हूं कि ऐसे मामले नरक में धकेले जाने जैसे यातनादायी होते हैं.\”
वह हाकिम को सालों से जानता था.
जवानी के दिनों में वे साथ-साथ टेनिस खेला करते थे. पर इस समय वह उनका किसी तरह का एहसान नहीं चाहता था. उसने जवाब कुछ नहीं दिया, इनकार में अपना कंधा झटक दिया और हाकिम की कार में बैठ गया.
घर पहुंच कर उसने अपने पुराने वकील से संपर्क किया जिसने उसे तलाक दिलाया था.
\”एक बात पहले ही साफ हो जानी चाहिए\”, वकील ने पूछा: \”तुम्हारे ऊपर जो आरोप लगे हैं उनमें कितना सच है और कितना झूठ? मुझे साफ-साफ बता दो.\”
\”बात सही है, उस लड़की के साथ मेरा अफेयर था.\”
\”यह अफेयर (गंभीर) सीरियस था?\”
\”क्या किसी बात की गंभीरता (सीरियसनेस) उसे बेहतर या और खराब बना देती है? एक उम्र के बाद कोई अफेयर ऐसा नहीं होता जो सीरियस न हो, वैसे ही जैसे हार्ट अटैक होता है.\”
\”मेरी इस मामले में सलाह यह है कि मामला जीतने को ध्यान में रख कर तुम्हें किसी महिला वकील को ढूंढना चाहिए.\”, यह कहते हुए उसने दो महिला वकीलों के नाम सुझा भी दिए.
\”कोशिश करो कि आपसी सुलह समझौते या लेनदेन से यह मामला सुलझ जाये. जरूरत पड़े तो किसी तरह की अंडरटेकिंग दे दो- जैसे कोई लंबी छुट्टी ले लो और इस बीच में युनिवर्सिटी प्रशासन उस लड़की और उसके परिवार को समझा-बुझाकर शिकायत वापस लेने के लिए राजी कर ले. उम्मीद मत छोड़ो, ऐसे मामलों में हौसला रखना तो जरूरी होता है. ऐसे उपाय के बारे में सोचो जिसमें तुम्हारा नुकसान कम से कम हो. कुछ दिनों में यह मामला शांत हो जाएगा, लोग सब भूल भाल जाएंगे.\”
\”अंडरटेकिंग? किस तरह की अंडरटेकिंग की बात कर रहे हैं आप?\”
\”सेंसिटिविटी ट्रेनिंग, कम्युनिटी सर्विस, काउंसिलिंग- इनमें से जो भी आप जुगाड़ कर पाएं.\”
\”काउंसिलिंग? क्या मुझे काउंसिलिंग की दरकार है?\”
\”मुझे गलत मत समझना डेविड. मैं सिर्फ यह कह रहा हूं कि सारी जांच के बाद जो विकल्प तुम्हारे सामने रखे जा सकते हैं उनमें काउंसिलिंग भी एक विकल्प हो सकता है.\”
\”मुझे सजा देने के लिए? मुझे सही राह पर ले आने के लिए? मेरी अनुचित इच्छाओं को सुधारने के लिए, या दबाने के लिए?\”
\”जो समझना चाहो समझ लो.\”, वकील ने शांत भाव से जवाब दिया.
२.
युनिवर्सिटी के कैंपस में बलात्कार जागरूकता सप्ताह मनाया जा रहा है. वार (विमेन अगेंस्ट रेप) नामक छात्र संगठन हालिया दिनों में बलात्कार का शिकार हुई पीड़िताओं के समर्थन में 24 घंटे का एक चौकसी अभियान चला रहा है. उसके कमरे में दरवाजे के नीचे से एक पंफलेट डाला गया है जिसका शीर्षक है: औरतें बोल रही हैं (विमेन स्पीक आउट), इसके नीचे पेंसिल से किसी ने लिख दिया है:
\”अब तुम्हारे दिन लद गए कैसेनोवा\”
हाकिम के ऑफिस से जुड़े हुए कमेटी रूम में कमेटी की कार्यवाही चल रही थी. उसे अंदर बुलाया क्या और डिपार्टमेंट ऑफ रिलिजियस स्टडीज के प्रोफेसर मानस माथाबाने के सामने की कुर्सी पर बैठने को कहा गया, जो इस जांच कमेटी के प्रमुख हैं. उसकी बाईं ओर हाकिम, उनका सेक्रेटरी और एक युवा स्त्री बैठी है जो देखने से कोई छात्र प्रतिनिधि लगती थी. और दाहिनी ओर कमेटी के तीन अन्य सदस्य बैठे हैं.
जब वह बुलाने पर अंदर आकर बैठा तो उसके मन में घबराहट कतई नहीं थी बल्कि इससे पलट उसे अपने आप पर खासा भरोसा था. रात को वह अच्छी नींद सोया था और उसका दिल सामान्य ढंग से धड़क रहा था. वह अकड़ कर वहां बैठा था जैसे रंगे हाथ पकड़े जाने पर पेशेवर जुआरी एक खतरनाक किस्म का गुरूर और अपने सही होने का भाव ओढ़े बैठते हैं. वहां उस तरह से अकड़ कर बैठने का कोई मतलब नहीं था बल्कि परिस्थितियां ऐसी थीं कि यह सरासर गलत था पर उसे किसी चीज की परवाह नहीं थी, भाड़ में जाएं सब.
वह एक-एक कर कमेटी के सदस्यों को निहारता है, उनमें से वह दो लोगों को पहले से जानता था- फरोदिया रसूल और डेसमंड स्वॉर्ट्स जो इंजीनियरिंग फैकल्टी के डीन हैं. उसके सामने जो कागज रखे थे उन्हें पढ़कर उसे मालूम हुआ कि दाईं तरफ बैठा तीसरा व्यक्ति बिजनेस स्कूल में पढ़ाने वाली कोई प्रोफेसर हैं.
कार्यवाही की शुरुआत करते हुए माथाबाने ने उसकी तरफ देखते हुए कहा:
\”प्रो डेविड लूरी, यह कमेटी जो यहां बैठी हुई है इस कमेटी के पास कार्रवाई करने की कोई अधिकार नहीं है,यह जांच पूरी कर अपनी सिफारिश दे सकती है बस. मैं यह स्पष्ट कर दूं कि आप चाहें तो कमेटी के गठन को लेकर सवाल उठा सकते हैं, उसे चुनौती दे सकते हैं. इसलिए आगे बढ़ने से पहले मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि कमेटी के किसी सदस्य को लेकर आपके मन में किसी तरह का एतराज तो नहीं है या आपको कहीं ऐसा तो लगता कि किसी की राय निष्पक्ष न होकर पक्षपातपूर्ण हो सकती है?\”
\”मेरी कानूनी तौर पर कोई आपत्ति नहीं है पर हां, तार्किक आधार पर मेरी असहमति जरूर है, लेकिन मुझे लगता है कि यह इस कमेटी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.\”
उसकी बात सुनकर कमेटी के सभी सदस्यों में थोड़ी असहजता आई, वे एक दूसरे को अर्थपूर्ण ढंग से देखने लगे . माथाबाने बोले:
\”बेहतर होगा कि हम कानूनी पक्षों पर ही चर्चा करें, उससे बाहर न जाएं,तो हम यह मानकर चलते हैं कि कमेटी के गठन को आप स्वीकार करते हैं. यहां कमेटी में हमने एक छात्र पर्यवेक्षक को रखा है जो कोएलिशन अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन संगठन की प्रतिनिधि है. उसकी मौजूदगी से आपको कोई एतराज तो नहीं?\”
\”मैं न तो कमेटी से डरता हूं और न ही मुझे छात्र पर्यवेक्षक से कोई डर लगता है.\”
\”यह तो अच्छी बात हुई. अब हम काम आगे बढ़ाते हैं. पहली शिकायतकर्ता मिस मेलानी इसाक्स ड्रामा प्रोग्राम की एक छात्र हैं जिन्होंने लिखित शिकायत की है आप के खिलाफ, जिस की प्रतियां सभी सदस्यों को और आपको उपलब्ध कराई गयीं हैं. मुझे उम्मीद है कि आप ने उसे पढ़ लिया होगा, फिर भी यदि जरूरत हो तो मैं संक्षेप में उन शिकायतों के बारे में आपको बताऊं? आप क्या कहते हैं प्रो. लूरी?\”
\”मिस्टर चेयरमैन, तो क्या मैं यह मान कर चलूं कि शिकायत करने वाली मिस इसाक्स व्यक्तिगत रूप में कमिटी में उपस्थित नहीं रहेंगी?\”
\”मिस इसाक्स कमेटी के सामने कल उपस्थित हुई थीं. मैं एक बार और स्पष्ट कर दूं कि यह किसी तरह का कानूनी मुकद्दमा नहीं है बल्कि ऑफिस को दी गई शिकायत की जांच करने वाली कमेटी है. जैसे कोर्ट कचहरी में काम होता है हमें बिल्कुल उनका अनुसरण करते हुए काम नहीं करना है. आपको किसी तरह का कोई एतराज तो नहीं?\”
\”जी बिल्कुल नहीं\”
\”रजिस्ट्रार ने ऑफिस और स्टूडेंट रिकॉर्ड्स के हवाले से दूसरा अभियोग यह लगाया है कि मिस इसाक्स के मामले में गड़बड़ी की गई है. आरोप यह है कि जब मिस इसाक्स सभी क्लास में उपस्थित नहीं हुईं और इम्तिहान में शामिल नहीं हुईं तो उन्हें आपने पूरी हाजिरी और इम्तिहान के नंबर कैसे दे दिए?\”
\”तो मेरे ऊपर यही दो अभियोग लगाए गए हैं… या कुछ और भी?\”
\”बस यही दो\”
वह गहरी सांस लेता है.
\”मुझे लगता है कि कमेटी के सदस्यों के पास अपने उपलब्ध समय में ऐसे मुद्दों पर सिर खपाने से बेहतर बहुत कुछ करने को है, जिस पर किसी तरह का विवाद नहीं होगा. मैं अपने ऊपर लगाए दोनों आरोपों को स्वीकार करता हूं. मेरी कही बात को रिकार्ड करिए और बेहतर हो कि हम सब यहां से बाहर निकल कर अपने-अपने कामों में वापस जुट जाएं.\”
डेविड की ऐसी टके की बात सुनकर हाकिम माथाबाने की तरफ थोड़ा झुके और उनके कान के पास जाकर फुसफुसा कर कुछ बात की.
हाकिम ने स्पष्ट किया:
\”प्रोफेसर लूरी, मैं एक बार फिर से दोहरा देना चाहता हूं कि यह कमेटी जांच के लिए बनी है, सजा देने के लिए नहीं. इसे शिकायत कर्ता और आरोपी दोनों पक्षों की बात सुननी है और उसके आधार पर आगे के लिए सुझाव देना है. इस कमेटी के पास किसी तरह का कोई फैसला लेने का अधिकार नहीं है. मैं एक बार फिर से कहना चाहूंगा, क्या यह अच्छा नहीं होगा कि आप हमारी कार्यप्रणाली और नियम कानून को जानने वाले किसी कानूनी प्रतिनिधि को अपना पक्ष रखने के लिए कमेटी में अपने साथ ले आएं ?\”
\”मुझे अपनी बात कहने के लिए किसी प्रतिनिधि की दरकार नहीं, मैं अपना पक्ष बिल्कुल ठीक तरीके से प्रस्तुत कर सकता हूं. तो क्या मैं यह मानूं कि मामला यहीं समाप्त करने की मेरी गुजारिश के बाद भी यह कमेटी आगे सुनवाई जारी रखने पर आमादा है?\”
\”हम आपको अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए एक और अवसर देना चाहते हैं.\”
\”मैंने तो अपना पक्ष प्रस्तुत कर दिया… मैंने अपने ऊपर लगाए अभियोग स्वीकार कर लिए. हां, मैं गुनहगार हूं.\”
\”गुनहगार? पर किस गुनाह के?\”
\”उन्हीं बातों के जो मेरे खिलाफ शिकायत में कही गई हैं.\”
\”प्रो. लूरी, आप हमें गोलमोल जवाब दे रहे हैं, हमें यहां वहां घुमा रहे हैं.\”
\”यानी मिस इसाक्स जो कुछ भी सड़क पर चिल्ला-चिल्ला कर कह रही हैं, उनका, और हाजिरी और परीक्षा के रिकॉर्ड्स में हेराफेरी करने का.\”
अब फरोदिया रसूल ने हस्तक्षेप किया : \”आप कह रहे हैं कि मिस इसाक्स ने जो शिकायत की है आप उसे स्वीकार करते हैं. पर आप ने क्या उनकी लिखित शिकायत को एक बार पढ़ा भी है प्रो. लूरी?\”
\”मैं मिस इसाक्स की शिकायत को पढ़ना भी नहीं चाहता. मुझे उनके लगाये आरोप स्वीकार हैं, और मुझे कोई ऐसी वजह भी नहीं लगती कि मिस इसाक्स जिसके लिए झूठी शिकायत करें.\”
\”क्या यह समझदारी नहीं होगी कि उस शिकायत को एक बार पूरा पढ़ लिया जाए जिसे आप एकबारगी स्वीकार कर रहे हैं?\”
\”बिल्कुल नहीं. जीवन में समझदार होने से ज्यादा महत्वपूर्ण कई और बातें हैं.\”
डेविड का ऐसा लट्ठमार जवाब सुनकर फरोदिया रसूल चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठ गईं.
“यह भले ही खयाली और अव्यावहारिक लगता हो प्रो. लूरी पर जो आप बोल रहे हैं वह निभा पाएंगे? मुझे लगता है यह कमेटी के हम सभी सदस्यों का कर्तव्य है कि हम आपको आपकी जिद और अड़ियलपने से बचाएं.\”, डेविड से मुखातिब होकर रसूल मुस्कुराते हुए बोलीं :
\”आपने अभी कहा कि आपको किसी कानूनी सलाह की जरूरत नहीं है. तो फिर क्या आपने किसी और से इस बारे में कोई सलाह मशविरा किया है- जैसे किसी पादरी से या किसी काउंसिलर से? यदि कहा जाए तो आप किसी काउंसिलिंग के लिए तैयार हैं?\”, बिजनेस स्कूल से आई युवा स्त्री ने डेविड से सवाल किया.
यह सवाल सुनकर उसे मन ही मन गुस्सा आया:
\”नहीं, न मैंने किसी की काउंसिलिंग ली है और न ही मैं भविष्य में इसके लिए तैयार हूं. मैं कोई कम उम्र का नादान नहीं हूं, बड़ा और समझदार हूं, कोई मुझे बैठा कर समझाए और काउंसिलिंग करे यह मुझे कतई पसंद नहीं. मैं उस उम्र को पार कर चुका हूं जिसमें इसकी जरूरत हो सकती है.\”, जवाब देते-देते डेविड माथाबाने की तरफ देखने लगा,बोला:
\”मुझे जो कहना था मैंने साफ़-साफ़ कह दिया. अब आप बताएं कि इस बातचीत को और खींचते रहने का कोई औचित्य है क्या?\”
\’माफ कीजिएगा, मैं ऐसा नहीं कर सकता.\”
\”डेविड, मैं भी थक गया हूं, आपको आप से ही बचाना अब मेरे बस की बात नहीं. कोशिश मैंने बहुत की, मैंने ही नहीं बल्कि पूरी कमेटी ने की. अब एक बात आप बता दीजिए, आपको अपनी बातों पर इस पूरे मामले पर पुनर्विचार करने के लिए कुछ और समय चाहिए?\”
\”नहीं\”
\”ठीक है, तब तो मैं केवल यही कह सकता हूं कि जल्दी ही रेक्टर आपको अपना फैसला बता देंगे.\”
घर पर उसके पास माथाबाने का फोन आया, बोले: \”जांच कमेटी ने अपनी सिफारिशें तैयार कर ली हैं डेविड, और रेक्टर ने मुझसे यह कहा है कि आगे कोई कदम उठाने से पहले एक बार और आपसे बात कर लूं. वे कोई कठोर और नुकसान पहुंचाने वाला फैसला न करने की बात मान गए हैं, और उन्होंने मुझसे कहा है कि यदि आप अपनी तरफ से एक वक्तव्य जारी कर दें जो जांच कमेटी को भी संतोषजनक लगे तो बात बन सकती है.\”
\”इस विषय में हम इतनी सारी बातें पहले भी कर चुके हैं… फिर…\”
\”थोड़ा सब्र करो, मुझे अपनी बात पूरी कर लेने दो. मैंने एक वक्तव्य का मसौदा बना लिया है और वह अभी मेरे सामने ही रखा है- इसमें जो बातें लिखी हैं वह कमेटी को संतुष्ट करने वाली हैं. वह छोटा सा वक्तव्य है, आप कहे तो मैं पढ़ के सुना दूं.\”
\”पढ़ दीजिए\”
माथाबाने पढ़ने लगे :
\”मैं शिकायतकर्ता के मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की शिकायत को बगैर शर्त स्वीकार करता हूं, इसके साथ यह भी स्वीकार करता हूं कि युनिवर्सिटी ने मुझे जो अधिकार प्रदान किए उनका मैंने दुरुपयोग किया. इस गलती के लिए मैं शिकायतकर्ता और युनिवर्सिटी दोनों पक्षों से माफी मांगता हूं और इसके लिए युनिवर्सिटी प्रशासन जो भी उचित समझे वैसा दंड मुझे दे, मैं उसे भी स्वीकार करता हूं.\”
\”जो भी उचित समझे वैसा दंड? इसका मतलब क्या हुआ?\”
\”इन शब्दों के बारे में मेरी समझ यह है कि आपको बरखास्त नहीं किया जाएगा. ज्यादा संभावना इस बात की है कि आपसे लंबी छुट्टी लेने के लिए कहा जाएगा. उसके बाद आप फिर से पढ़ाने के लिए युनिवर्सिटी में वापस लौटते हैं या नहीं यह आप पर, आपके डीन पर और डिपार्टमेंट के प्रमुख के ऊपर निर्भर करता है.\”
\”अच्छा, तो यह बात है, यह पैकेज है?\”
\”मेरी समझ यही कहती है. यदि आप इस वक्तव्य पर अपनी हामी भरते हैं तो इससे अपनी गलती को सुधारने का प्रायश्चित का संदेश जाएगा और इसी भावना से रेक्टर इसे स्वीकार करने को तैयार होंगे.\”
\”किस भावना से?\”
\”प्रायश्चित की भावना से\”
\”कल भी हमने भूल सुधार और प्रायश्चित वाली बात पर बहुत देर तक चर्चा की थी. इस बारे में मेरे क्या विचार हैं, मैंने खुल कर आपको बता दिया था. मुझे यह स्वीकार नहीं है. आधिकारिक रूप से बनाई गई कमेटी के सामने- जो न्यायालय के एक अंग के रूप में काम कर रही है- कल मैं उपस्थित हुआ था. इस निष्पक्ष कमेटी के सामने मैंने अपने दोनों अभियोग स्वीकार कर लिए थे- बगैर किसी लाग लपेट के सीधे-सीधे. मेरे स्वीकार को कमेटी को पर्याप्त मान कर आगे का कदम उठाना चाहिए. भूल सुधार या प्रायश्चित जैसी बात न कल थी न आज है. प्रायश्चित जैसा शब्द किसी दूसरी दुनिया का होगा, मेरी दुनिया का नहीं, मेरे लिए यह निहायत अपरिचित विमर्श है.\”
\”डेविड, आप कई बातों को एक साथ मिलाकर गड़बड़ कर रहे हैं, भ्रम पैदा कर रहे हैं. आपसे यह कौन कह रहा है कि आप अपने किए का पछतावा करें? आपके अंतर्मन में क्या चल रहा है हमें यह कैसे दिखाई पड़ेगा- हमारे लिए तो वह अतल गहराई में डूबा हुआ है. यहां मैं सिर्फ अपनी बात नहीं कर रहा, जिस कमेटी को आप निष्पक्ष कह रहे हैं उस कमेटी के सभी सदस्यों पर यह बात लागू होती है. आपसे बस यही तो कहा जा रहा है कि इस प्रकरण में एक लिखित वक्तव्य दे दीजिए.\”
\”नहीं, बात इतनी सीधी सरल नहीं है. मुझसे यह कहा जा रहा है कि मैं एक ऐसा माफीनामा जारी करूं जिसके प्रति मैं निष्ठावान रहूंगा या नहीं मुझे खुद नहीं मालूम.\”
\”आपकी निष्ठा के बारे में तो कोई सवाल ही नहीं कर रहा है और न ही उस पर इस मामले का फैसला निर्भर करता है. इस बारे में आपकी अंतरात्मा को तय करना है कमेटी को नहीं. सीधे सीधे मुद्दे पर आएं तो सारी बात यह है कि क्या आप अपनी गलती को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करते हैं,और करते हैं तो उसके सुधार के लिए राजी हैं?\”
\”अब आप बाल की खाल निकालने पर आमादा हो गए हैं. आपने हमारे ऊपर एक अभियोग लगाया और मैंने बगैर किसी ना नुकुर के अपना दोष स्वीकार कर लिया. इसके सिवाय आप मुझसे और चाहते क्या हैं?\”
\”नहीं, आप जो बातें कह रहे हैं हम उससे कुछ ज्यादा चाहते हैं. और यह ज्यादा कोई बहुत ज्यादा नहीं है पर उससे जरूर ज्यादा है जो आप कह रहे हैं. मुझे लगता है कि आप को यह जरूर समझ आ रहा होगा कि आगे की राह का रोड़ा हट जाए इसके लिए हम दरअसल आप से चाहते क्या हैं.\”
(Disgrace, a film based on the J. M. Coetzee novel and directed by Steve Jacobs) |
३.
माथाबाने और हाकिम ने धीमी आवाज में फुसफुसा कर एक दूसरे से कुछ बात की, फिर माथाबाने बोले:
\”मेरा प्रस्ताव है कि कमेटी थोड़ी देर का विराम ले जिससे हम प्रो. लूरी की बातों पर आपस में बातचीत कर सकें, डेविड, क्या आप थोड़ी देर के लिए बाहर चले जाएंगे जिससे हम आपस में कुछ बातचीत कर लें? मिस वानवाइक,आप भी.\”
कमरे से निकलकर वह और छात्र प्रतिनिधि हाकिम के ऑफिस में आकर बैठ गए. उनके बीच आपस में कोई बातचीत नहीं हुई पर उसे महसूस हो रहा था कि वह लड़की उसके बगल में बैठते हुए असहज महसूस कर रही है.
\”तुम्हारे दिन लद गए कैसेनोवा, जाने यह लड़की क्या महसूस कर रही होगी जब आमने-सामने से कैसेनोवा से मुलाकात हो रही है?\”
कुछ मिनटों बाद उन दोनों को अंदर बुला लिया गया. कमरे में घुसते ही उसे महसूस हुआ कि वहां का वातावरण सहज नहीं है, उनकी अनुपस्थिति में कमेटी के सदस्यों के बीच तीखी नोकझोंक होने की गवाही उन के चेहरे के हाव भाव दे रहे हैं.
\”तो प्रो लूरी, आप कह रहे हैं कि आप के खिलाफ जो भी अभियोग लगाए गए हैं उन्हें आप स्वीकार करते हैं.\”, माथाबाने ने फिर से बातचीत शुरू करते हुए कहा.
\”जी हां, मिस इसाक्स ने जो कुछ भी आरोप लगाए हैं, उन्हें मैं मंजूर करता हूं.\”
\” डॉ. रसूल, आप इस विषय में कुछ कहना चाहेंगी?\”
\”जी, प्रो. लूरी के जवाब पर मुझे आपत्ति है और मुझे लगता है कि बुनियादी तौर पर यह जवाब सीधा-सीधा नहीं बल्कि लीपा पोती करने वाला चालाक जवाब है. प्रो. लूरी कहते हैं कि उन्हें अभियोग स्वीकार है पर जब हम उनसे साफ तौर पर यह जानना चाहते हैं कि वह किन बातों को स्वीकार करते हैं तो चालाकी और उपहास भरा टाल मटोल वाला जवाब मिलता है. मेरा मानना है कि ऐसा करके वे हमें साफ-साफ संदेश दे रहे हैं कि अभियोग को मौखिक तौर पर स्वीकार करने का वह सिर्फ नाटक कर रहे हैं, उस स्वीकारोक्ति में उनके निष्ठा कतई नहीं है. वे न सिर्फ इस कमेटी के दो चार सदस्यों को यह संदेश दे रहे हैं बल्कि व्यापक समुदाय को उसमें लपेटने की चालाकी भी कर रहे हैं.\”
वह रसूल की इस टिप्पणी से तिलमिला गया, बोला: \” इस मामले में कोई संदेश देने जैसी कोई बात ही नहीं है.\”
\”हम तो चाहते ही हैं लेकिन व्यापक समुदाय को भी यह जानने का हक है कि प्रो. लूरी आखिर किस खास बात को स्वीकार कर रहे हैं? उन्होंने क्या गलत किया है? और उनकी किस बात से समाज को नुकसान पहुंच रहा है और उसे रोकने की क्या कोशिश की जा रही है ?\”
\” रोकने की कोशिश, इस मामले का यह दूसरा चरण होगा.\”,माथाबाने ने हस्तक्षेप किया.
\”यदि हमने इसे रोकने की कोशिश नहीं की तो हम अपने सामाजिक दायित्व से विमुख हो रहे हैं, इसके लिए हमारे दिलो-दिमाग में भी सब कुछ बिल्कुल स्पष्ट और पारदर्शी होना चाहिए. मैं मानती हूं कि यदि अपनी सिफारिशों में हम मामले से जुड़े अपराधों को साफ-साफ नहीं लिखेंगे तो प्रो. लूरी पर अभियोग चलाने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता, आखिर किस लिए हम यह सब कर रहे हैं?\”
\”जहां तक इस कमेटी का सवाल है हमारे दिलो दिमाग में सब कुछ बिल्कुल साफ है डॉक्टर रसूल. यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि हमारी तरह क्या प्रो. लूरी के दिमाग में भी सब कुछ स्पष्ट है?\”
\”जी बिल्कुल सही, मैं जो कहना चाह रही थी आपने उसे अपने शब्दों में पूरी तरह स्पष्ट कर दिया.\”
बातचीत के ऐसे क्रम में चुप रहना बेहतर होता लेकिन वह कहां चुप रहने वाला था,बोला :
\”मेरे दिमाग में क्या चल रहा है यह मेरा निजी मामला है आप सबका नहीं, फरोदिया.\”, तैश में आ कर वह बोल पड़ा :
\”मुझे यह साफ साफ दिख रहा है कि आप लोग मुझसे किसी तरह का जवाब नहीं मांग रहे बल्कि कबूलनामा मांग रहे हैं. लेकिन कान खोल कर सुन लें, मैं किसी तरह का कबूलनामा नहीं देने जा रहा हूं, मैंने अपनी बात आपके सामने रख दी वही मेरा वक्तव्य है. एक दलील मैंने दी, ऐसा करना मेरा अधिकार है जिसमें मैंने कहा कि मेरे ऊपर जो अभियोग लगाए गए हैं मैं उनका दोष स्वीकार करता हूं. यही मेरा पक्ष है और मैं इससे आगे एक कदम भी बढने को तैयार नहीं हूं.\”
\”मिस्टर चेयर, मैं जांच कमेटी की सारी कार्रवाई पर अपना विरोध दर्ज कराती हूं. मेरे हिसाब से इस जांच के नियमों की जो तकनीकी परिभाषा और सीमाएं हैं, सारा मामला उससे बाहर जा रहा है. प्रो. लूरी अपना जुर्म स्वीकार तो कर रहे हैं लेकिन यह सवाल मैं अपने आप से पूछती हूं कि क्या उनकी स्वीकारोक्ति में अपने किए गए अपराधों के प्रति किसी तरह का अपराध बोध है?. या वह अपने शब्दजाल में हम सबको फंसा कर इस मामले के कुछ दिन बाद भुला दिए जाने की उम्मीद कर रहे हैं? मेरा अंदेशा है, उन्हें लगता है तमाम कागजों के नीचे शिकायत की यह अर्जी भी जल्दी ही दब कर गुम हो जाएगी. यदि वे सचमुच ऐसा ही सोच रहे हैं तो हमें उन्हें कड़े से कड़ा दंड देना चाहिए.\”
\”ध्यान रखिए डॉक्टर रसूल, यह कमेटी सिर्फ जांच के लिए है दंड देने के लिए नहीं.\”
\”दंड दे नहीं सकते तो हमें कठोरतम दंड की सिफारिश जरूर करनी चाहिए- प्रो. लूरी को तत्काल प्रभाव से नौकरी से बर्खास्त किया जाना चाहिए और उन्हें देय सभी प्रकार के विशेषाधिकार और राशि युनिवर्सिटी को जब्त कर लेनी चाहिए.\”
पूरे विमर्श में अबतक खामोश बने रहे डेस्मंड स्वार्ट्स बोले:
\” डेविड, आप क्या समझते हैं कि पूरे मामले को आप जैसे हैंडल कर रहे हैं वह इसका सबसे सही और उपयुक्त ढंग है?\”, इसके बाद वे माथाबाने की तरफ मुखातिब हुए:
\”मिस्टर चेयर, जब प्रोफेसर लूरी कमरे से बाहर गए थे तब भी मैंने कहा था, यही बात युनिवर्सिटी समुदाय का एक सदस्य होने के नाते मैं अब फिर से दुहराना चाहता हूं कि हमें अपने एक साथी के खिलाफ एकदम ठंडे और किताबों में लिखे नियमों की आड़ लेते हुए औपचारिक ढंग से कोई कदम नहीं उठाना चाहिए. डेविड, आप अपने दिल पर हाथ रख कर बोलो कि क्या सचमुच आप हमारी सिफारिशों को अंतिम रुप देने की कार्रवाई को कुछ समय के लिए टालने के पक्ष में नहीं हैं जिससे आपको आत्म निरीक्षण और किसी कानूनी जानकार से राय लेने के लिए कुछ और समय मिल जाए?\”
\”मैं भला ऐसा क्यों चाहूंगा? और मुझे किस चीज का आत्म निरीक्षण करना है?\”
\”आप जिस तरह की स्थिति में घिर गए हैं, उसकी गंभीरता का, हालांकि मुझे मालूम है कि आप मेरी बात को पसंद नहीं करेंगे. मुंहफट होकर कहूं तो आपको मालूम होना चाहिए कि यह मामला इतना संगीन है कि आपकी नौकरी ली जा सकती है. पहले हो सकता है ऐसा न होता रहा हो पर आजकल के समय में यह कोई मजाक नहीं है.\”
\”तो आप मुझे क्या करने की सलाह देते हैं? जैसा डॉ. रसूल कहती हैं ,मैं अपने वक्तव्य से चालाकी और उपहास भरा टालमटोल वाला टोन हटा दूं? पूरी कमेटी के सामने अपने किए पर पछतावे में बड़े-बड़े आंसू टपकाऊँ? आपके हिसाब से मैं ऐसा क्या करूं जिससे मेरी जान बच जाए?\”
\”मुझे यह मालूम है कि आप को शायद यकीन नहीं होगा कि यहां टेबल के इर्द गिर्द जो लोग बैठे हैं आपके दुश्मन नहीं हैं. हम सब के जीवन में दुर्बल क्षण आते हैं, कभी न कभी, हम सब इंसान ही तो हैं. ऐसा नहीं है कि आपके साथ कुछ ऐसा हुआ है जो किसी और के साथ कभी न हुआ हो, एकदम अजूबा. हम सब दरअसल ऐसा रास्ता ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं जिससे आपके करियर पर आंच न आए.\”
बातचीत में माथाबाने शामिल हो गए: \” डेविड, हम सब आपकी मदद करना चाहते हैं जिससे आप इस दु:स्वप्न(नाइट मेयर) से निकल पाएं.\”
ये बातें कहने वाले सभी उसके दोस्त हैं, जाहिरा तौर पर उसकी मदद करना चाहते हैं उसके दुर्बल पलों और दु:स्वप्न से उसे निकालना चाहते हैं. उनमें से किसी की मंशा यह नहीं है कि नौकरी से निकाल दिए जाने के बाद वह सड़क पर कटोरा लेकर भीख मांगे.
ये सभी चाहते हैं कि डेविड क्लास रूम में जाकर विद्यार्थियों को पढ़ाएं.
\”सदाशयता के इस सामूहिक बयान में मुझे एक भी स्त्री स्वर नहीं सुनाई पड़ रहा है.\”, डेविड ने तल्ख टिप्पणी की लेकिन जवाब में कोई आवाज सामने नहीं आई.
\”ठीक है, मुझे पूरे घटनाक्रम मैं अपनी भूमिका के बारे में कबूल करने दीजिए. इस कहानी की शुरुआत एक शाम हुई, मुझे तारीख तो याद नहीं लेकिन बहुत पुरानी बात नहीं है. कॉलेज का जो पुराना गार्डन है मैं वहां से गुजर रहा था और सामने से मिस इसाक्स, वह युवा स्त्री जिसको लेकर सारा बवाल मचा है वह आती हुई दिखाई दी. बिल्कुल पास से हमारा आमना सामना हुआ, हमारे बीच अभिवादन के कुछ शब्दों का आदान-प्रदान भी हुआ और उसी क्षण कुछ ऐसा हुआ जिसको बयान करने की मैं कोशिश नहीं करूंगा, मैं कोई कवि नहीं हूं. मेरा यही कहना पर्याप्त होगा कि एरोस (आकर्षण और काम के ग्रीक देवता) ने एकदम से मुझे अपने वश में कर लिया, मैं स्वीकार करता हूं कि उसके बाद से मैं वह नहीं रहा जो पहले था.\”
\”आप जैसे पहले थे उसके बाद वैसे नहीं रहे, इसका मतलब?\”, बिजनेस फैकल्टी से आई प्रोफेसर ने अचरज से पूछा.
\”मेरा अपने ऊपर कोई वश नहीं रहा. मैं पचास साल का तलाक शुदा और लुटा पिता बेबस इंसान भी नहीं रहा. मैंने एरोस के आगे घुटने टेक दिए और उस क्षण के बाद से मैं उसका दास बन गया.\”
\”क्या यह सारी बातें आप अपने बचाव में कमेटी के सामने रख रहे हैं? जिस पर हर तरह का नियंत्रण छिन्न-भिन्न हो जाए, वैसा बेलगाम आवेग?\”
\”किसने कहा कि मैं अपने बचाव में यह बातें कह रहा हूं? आपने मुझसे अपना गुनाह कबूल करने के लिए कहा, मैं अपना कबूलनामा आपको सौंप रहा हूं. और जहां तक आवेग की बात है, यह बेलगाम हो जाने से भी आगे की स्थिति थी. आप सबके सामने बताने में मुझे संकोच हो रहा है लेकिन मैं यह कहने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं पहले भी एक से ज्यादा मौके आए हैं जब ऐसे ही आवेगों ने मुझपर काबू करने के तीर चलाए हैं पर मैं उनके चंगुल में नहीं फंसा, निकल आया.\”
\”क्या आपको नहीं लगता डेविड कि हम जिस तरह के एकेडमिक माहौल में रहते हैं काम करते हैं उस में हमारे लिए कुछ त्याग करने की दरकार है? अपने आसपास रहने वाले तमाम लोगों का हित देखते हुए हमें निजी तौर पर बहुत सारे प्रलोभनों और सुखों से खुद को दूर रखना जरूरी है?\”
\”क्या आप अलग-अलग पीढ़ियों के लोगों के बीच अंतरंगता पर पाबंदी लगाने की बात कर रहे हैं?\”
\”नहीं मैं इस बारे में कोई फैसला नहीं सुना रहा हूं. लेकिन जहां तक हम शिक्षकों का सवाल है हमारे काम के साथ अधिकार और प्रभाव भी जुड़े हुए हैं. मुझे शिक्षक और छात्र के बीच अधिकार और प्रभाव के संबंध और इन व्यक्तियों के बीच के अंतरंग शारीरिक संबंधों के घालमेल पर एतराज है, और मैं उन पर पाबंदी के पक्ष में हूं. सारे मामले को समझने के बाद मुझे लगता है कि आप के मामले में यही हो गया था. यदि हम पाबंदी तक न भी जाएं तो बहुत ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है.\”
बात को लंबा खिंचते देख फरोदिया रसूल ने हस्तक्षेप किया :
\”फिर हम चकरघिन्नी में गोल गोल घूमने लगे, मिस्टर चेयर. डेविड का कहना है कि वे दोषी हैं लेकिन जब हम मामले की तह में जाते हैं और खास घटनाओं पर चर्चा करना चाहते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके कबूलनामे में एक युवा स्त्री का दैहिक उत्पीड़न कहीं दिखाई नहीं देता, वह बस एक स्त्री के आकर्षण के आगे अवश हो जाने का बहाना बनाते हैं जिस पर उनका कोई काबू नहीं रहा. अपने बयान में वह कहीं भी एक स्त्री को परेशानी में डालने या आहत करने की बात कबूल नहीं करते, यह उत्पीड़न सिर्फ एक घटना तक सीमित नहीं है बल्कि इसका एक लंबा इतिहास है और मिस इसाक्स के साथ किया गया उनका यह बर्ताव उसी मानसिकता से किया गया जुर्म है. इसीलिए सारे मामले पर गौर करने के बाद मेरा मानना है कि प्रो. लूरी के साथ बहस करके हम सिर्फ अपना समय खराब कर रहे हैं,इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला है. हमें उनके बयान को बहुत गंभीरता से नहीं लेना चाहिए और जो उन्होंने कहा उसे अपनी कार्यवाही में शामिल करके अपनी सिफारिशें युनिवर्सिटी को सौंप देनी चाहिए.\”
उत्पीड़न- उसे इसी शब्द का इंतजार था. रसूल जब बोल रही थीं तो उनकी आवाज में न्याय की कितनी झंकार थी. वे जब उसकी ओर देख भी रही थीं तो उसके बारे में क्या-क्या सोचती रहीं कि बोलते-बोलते उनकी आवाज में इतना तीखापन और गुस्सा भर गया? क्या वे नन्ही मछलियों के बीच मुझे कोई शिकारी शार्क समझ रही थीं? या किसी बच्ची को अपने पंजे में समेट लेने वाला विशालकाय दैत्य जो उसकी चीखों को मुंह पर हाथ रख कर बंद कर देना चाहता है?
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यादवेन्द्र का जन्म 1957 आरा, बिहार में हुआ, बनारस, आरा और भागलपुर में बचपन और युवावस्था बीती और बाद में नौकरी के लगभग चालीस साल रुड़की में बीते. जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले 1974 के छात्र आंदोलन में सक्रिय भागीदारी. नुक्कड़ नाटकों और पत्रकारिता से सामाजिक सक्रियता की शुरुआत. 1980 से लेकर जून 2017 तक रुड़की के केन्द्रीय भवन अनुसन्धान संस्थान में वैज्ञानिक से निदेशक तक का सफर पूरा किया.
कई महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञान सहित विभिन्न विषयों पर प्रचुर लेखन. विदेशी समाजों की कविता, कहानियों और फिल्मों में विशेष रुचि-अंग्रेजी से कई महत्वपूर्ण अनुवाद. २०१९ में संभावना से ‘स्याही की गमक’(अनुवाद) प्रकाशित.
साहित्य के अलावा यायावरी, सिनेमा और फोटोग्राफी का शौक.
yapandey@gmail.com