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Home » नेपाली : चन्द्र गुरुङ की कविताएँ

नेपाली : चन्द्र गुरुङ की कविताएँ

चन्द्र गुरुङ नेपाली भाषा के चर्चित कवि हैं और वे नेपाली कविताओं का हिंदी मे अनुवाद भी करते हैं. ये कविताएं खुद कवि द्वारा अनूदित हैं. पढिए आपका खास पड़ोस क्या सोचता है और उसे कैसे रच रहा है.   चन्द्र गुरुङ की कविताएँ                        […]

by arun dev
November 21, 2019
in कविता
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चन्द्र गुरुङ नेपाली भाषा के चर्चित कवि हैं और वे नेपाली कविताओं का हिंदी मे अनुवाद भी करते हैं. ये कविताएं खुद कवि द्वारा अनूदित हैं. पढिए आपका खास पड़ोस क्या सोचता है और उसे कैसे रच रहा है.  





चन्द्र गुरुङ की कविताएँ                                    



बूढ़ा लैंपपोस्ट

एक बूढ़ा लैंपपोस्ट
खामोश खड़ा है कोने में
वह देखता रहता है
सड़क पर खेल रहे बच्चों की खुशी
चौक पर बातें करते मजदूरों की थकान
घर के बरामदे में गृहणियों का गूँथन
चाय की दुकान पर दोस्तों की मुलाकात का उल्लास
उस बूढ़े लैंपपोस्ट पर
अटकी है एक कटी हुई पतंग
जो फड़फड़ाती है अपने दुर्भाग्य पर
वहाँ, एक चिड़िया का घोंसला भी है

पतझड़ में बिना पत्तियों के पेड़ जैसा
बदरंग यह खम्बा
गली के कोने में वीरान खड़ा है
एक पागल उस बूढ़े लैंपपोस्ट के नीचे
दुखों की जूंएं गिनने बैठा है
एक भिखारी अन्धेरा ओढ़कर सो रहा है
एक कुत्ता घाव सहलाता हुआ रोता है
एक शराबी आधी रात तक बड़बड़ाता रहता है
सरकार को देता है गाली
इसी रास्ते से गुजरते हुल्लड़बाज 
बूढ़े लैंपपोस्ट पर पत्थर मारते हैं
बल्ब तोड़कर भाग जाते हैं
लड़ाई में चोटिल आँख के सिपाही जैसा
फ्यूज्ड बल्ब वाला यह लैंपपोस्ट
खड़ा खड़ा सोता रहता है
असहाय है अनावृष्टि में छोड़े गए घर की तरह
भूकंप में तबाह हुए गांव की तरह
बल्ब बदला नहीं गया है
रंग-रोगान भी नहीं हुआ है
खड़ा है लैंपपोस्ट की तरह ही
समय के अन्धेरे में मेरा देश.


ईश्वर की हत्या

वह
साधारण और नेक इंसान था
सबसे पहले
उसकी प्रेमपूर्ण स्पर्शचेता उंगलियों को छीन लिया गया
उसके परोपकारी हाथों को तोड़ दिया गया
उसके बाद
निर्दोष चेहरे को क्षत-विक्षत किया गया
सत्य पर चलने वाले पैर तोड़ दिए गए
मृदुभाषी जीभ निकाल दी गई
दबा दी गई उसकी मधुर बोली
आखिर में
चीथड़े कर दिया गया उसका दिल
आज सुबह
अखबार वाला लड़का इस घटना को
चिल्लाते हुए फिर रहा है–

ईश्वर की हत्या !
ईश्वर की हत्या ! !
ईश्वर की हत्या ! ! !


सब ठीक ठाक है

सब ठीकठाक है
अभी-अभी
साफ स्कूल ड्रेस में
उनके ही उम्र का लड़का मेरे बेटे-बेटी को
ले गया है स्कूल
मेरे मां-बाप वृद्धाश्रम में खुश हैं
मैं भाइयों से अलग हो चुका हूँ
मेरी पत्नी टीवी में धारावाहिक देखती है
घर में शान्ति है चारों तरफ
आप सोच सकते हैं-
सब ठीकठाक है
घर में पूजा का कमरा है
अनेक आराध्य देवी-देवता हैं
बहुत दिनों से पूजा-पाठ नहीं हुआ है
कह सकते हैं-
सब ठीकठाक है
मेरे दिल को कुछ भी खराब नहीं करता है
मैं दूसरों के मामलों में हाथ नहीं डालता हूँ
ऐसे झमेलों से खुद को दूर ही रखता हूँ
अनावश्यक मैं अपना सिर नहीं दुखाता हूँ
हां तो
सब ठीकठाक है
मैं अपनी ही राह पर चलता हूँ
सबसे मिलने का अभिनय करता हूँ
खुद को तकलीफों से बचाता हूँ
इसलिए कहो कि सब ठीकठाक है
मैं
अच्छा दिखता हूँ
अच्छा पहनता हूँ
अच्छा खाता हूँ
वाकई क्या सब ठीकठाक ही है ?

देशप्रेम

मेरे आसमान से
चांद और सूरज तोड़कर
कपड़े के एक टुकड़े में जड़ दिया

मेरे ही खून से पुताई किया
मेरे ही पसीने से उसको धोया
और कहा –
तुम्हारा राष्ट्रीय ध्वज
पहाड़ों और घाटियों में चढ़ते-उतरते
मेरी आत्मीय सिसकारियों ने
उस गीत में धुन रची
उस गीत में प्राण डाले
मिलाया लय और मुझे समझाया-
तुम्हारा राष्ट्रीय गान
मेरे दिल का एक टुकड़ा डाला
मेरी धड़कन से प्राण भरे
मेरी सांसों की सुगन्ध मिलाई
और कहा–
तुम्हारा राष्ट्रीय फूल
मेरी आस्था
मेरे विश्वास की पोटली बनाकर
एक मूर्ति के आगे रखते हुए कहा-
तुम्हारा राष्ट्रीय देवता
तुम्हारा राष्ट्रीय धर्म
मेरे घर आँगन में
अजीब सपने बांटते फिर रहे
संदिग्ध आदमियों का झुण्ड दिखाते हुए कहा-
तुम्हारी सरकार
मेरी सारी उम्मीदों और
अपेक्षाओं को लिपिबद्ध करके
कहा-
तुम्हारा संविधान
और कहा
दिल की दीवार पर एक मानचित्र में
भूगोल के एक भाग को दिखाते हुए-
यह है तुम्हारा देश
पर हकीकत
ठीक इसके उलट है
वह देखो-
मैं सीमा पर खड़ा
भूखे पेट
नंगे शरीर
खाली हाथ–पैर
चूम रहा हूँ एक मुट्ठी मिट्टी.

अछूत 

पानी के घाटों में
घर–आँगन में
महलों में
गांव–शहर में
लोग कहते हैं
तुम छू नहीं सकते पानी
दिल को खट्टा करते हुए
गाली देते हैं
डराते हैं
तिरस्कृत करते हैं
चेतावनी देते हैं
उंगली उठाते हैं
तुम छू नहीं सकते पानी
मैं चकित होता हूँ
मैं सोचता हूँ
क्या पानी को मालूम है कि
मैं उसे छू नहीं सकता?
____________
chandu_901@hotmail.com

Tags: चन्द्र गुरुङ
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