बूढ़ा शजर : कुछ बिंब
प्रीता व्यास की कविताएँ
(1)
खोखला करता है
पर कम से कम
रोज़ आता तो है
बूढ़े शजर को
भाने लगा है
कठफोड़वा.
(2)
बच्चे उसे छू रहे हैं
खेल रहे हैं इर्द -गिर्द
आंखमिचौली,
बूढ़ा शजर
भूलना चाहता है
अपनी उम्र.
(3)
बताता नहीं है
किसी को भी
बूढ़ा शजर
कि अक्सर
टीसने लगते हैं
टहनियों पर
सावनी झूलों के निशान.
(4)
चहचहाते हुए लौटते हैं
फुदकते हैं इस डाली से उस डाली
सुनाते हैं दिन भर के किस्से
बूढ़े शजर को
अच्छी लगती है शाम.
(5)
मुद्दतों बाद
दो नर्म हाथों ने बांधा
मनौती का कलावा
बूढ़ा शजर
पत्ता-पत्ता दुआ बन गया है.
(6)
यूं ही नहीं हो गई है
छाल सख़्त,
झेले हैं
बूढ़े शजर ने
मौसमों के
बिगड़े मिज़ाज.
(7)
लुटा सा
रह गया है खड़ा
बूढा शजर
बहा ले गई है दरिया
सारा गांव.
(8)
कभी- कभी
घुटने लगता है दम -सा
बूढ़े शजर का
बदलती जा रही है
शहर की हवा.
(9)
थक के सोया है
गोद में मजदूर कोई
झेल रहा है
बूढ़ा शजर
दोपहर के सूरज की
सारी नाराज़गी
अपने सर.
(10)
नए – नए पर हैं
ऊंची उड़ानों का जोश
बूढ़ा शजर
घोंसले सम्हाले
चिंतित रहता है आजकल.
(11)
कहीं किसी फुनगी पर
फिर फूटी है
हरी पत्ती,
बूढ़ा शजर
करने लगा है प्रतीक्षा
वसंत की.
(12)
आदतन ऊधम मचाती
जगा गई
कुछ ताज़गी
कुछ हलचलें
बूढ़े शजर के लिए
क्या से क्या हो गई
गिलहरी.
(13)
बच्चे चाहते थे तोड़ना
कच्चे-पक्के फल
हवा के बहाने
बूढ़े शजर ने
झुका दीं टहनियां.
(14)
हल्का सा शोर हुआ
उड़ गए घोंसला छोड़कर
सदा को कुछ परिंदे
बूढ़े शजर की भी
बिखर गईं मुट्ठी भर पत्तियां.
(15)
निश्चिन्त सो रहा है
टोकनी में
मजदूरिन का बच्चा
बूढ़ा शजर
डुला रहा है
पत्तियों का चंवर.
(16)
डरता नहीं है
समझदार है
जब भी आती है आंधी
बूढ़ा शजर
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प्रीता व्यास