(माइकल जैक्सन के 55 वें जन्मदिन पर विशेष )
आज माइकल जैक्सन का 55 वां जन्मदिन है. विदेशों में उनके प्रशंसक, प्रेमी सहित भारत में भी उनके प्रशंसक आज उन्हें याद करेंगे. जैक्सन विदेशी थे, उन्हें समझा विदेशियों ने ही है, लेकिन भारत उन्हें पहचानने में चूक गया. भारत अपने देश के कलाकारों को ही नहीं पहचान पाता तो विदेशी कलाकारों की क्या बिसात! भारत में दर्शन और कला को लेकर दृष्टिहीनता और अज्ञानता ही दिखती है. यह बात अलग है कि जार्ज हैरिसन जैसे फिरंगी ने भारत को पहचाना लेकिन भारत जार्ज व उनके बंधुओं को पहचानना तो दूर, उनकी थाह तक नहीं पा सका. खैर, माइकल जैक्सन उन बदनसीबों में से हैं जो लोकप्रियता की लहर में होने के बावजूद अनसमझे रह गए. उन्हें गॉड आफ डांस का छदम दर्जा देने वाले उन्हें किंग आफ पॉप में रूप में स्वीकार नहीं कर पाते, यही सारा संताप है. यह बहुत विराट विडंबना है कि जैक्सन की प्रचारित छबि एक डांसर की है. जबकि वे डांसर कतई नहीं थे. लोग इसी भ्रम में जीये जा रहे हैं और यह भ्रम उन्हें पल—पल सालता है जो यथार्थ के सहयात्री हैं.
माइकल जैक्सन मूलत: गायक थे. शुद्ध गायक. वे किसी देवदूत की तरह पवित्रता की पराकष्ठा तक जाकर गा सकते थे. \’विल यू बी देअर\’, \’मैन इन द मिरर\’, \’क्रॉय\’ जैसे गीतों में यह भाव फूट—फूटकर निकलता है. इसे सुनते ही महसूस किया जा सकता है. एक गायक होने के बाद दूसरे पायदान पर वे एक संवेदनशील और उदभट प्रतिभा के संगीतकार थे. इसी के साथ बेहतरीन रिकार्डिंग आर्टिस्ट भी. तीसरे, वे कल्पनाशील और प्रयोगवादी गीतकार थे. उनके लिखे गीतों में कभी विचारों का दोहराव नहीं आया. तकनीक से प्रेम रखने वाला यह तरक्की पसंद कलाकार कागज पर लिखने की बजाय टेप पर बोलकर गीतों के बोल रिकार्ड किया करता था. म्यूजिक को वीडियो तक यही प्रगतिशील अदाकार लाया. इसके बाद वे एक अभूतपूर्व परफार्मर थे. अपने शिखर के दिनों में स्टेज परफार्मेंस का स्तर उन्होंने जहां पहुंचाया, वह अभी तक वहीं अटका पड़ा है. वहां तक कोई पहुंच ही नहीं पा रहा. उन्होंने परफार्मेंस की परिभाषाएं ही बदल डालीं और परफार्मेंस शब्द को यदि हम किसी विज्ञान की संज्ञा दें तो यह कहना मुफीद होगा कि परफार्मेंस की श्रृंखला दो धाराओं में विभक्त होती है. बिफोर जैक्सन और आफटर जैक्सन! उनसे पहले आए तथाकथित परफार्मर इस क्षेत्र में उनके आगे ठहर ही नहीं पाते, और बाद की पीढ़ी के पास सिवाय इमिटेशन के और क्लोन बन जाने के कोई दूसरा विकल्प ही नहीं रह गया है!
बहरहाल, एक खालिस गवैया, संगीतकार, गीतकार और परफार्मर होने के बाद जो लटके—झटके वाली बात आती है, उसे दुर्भाग्यवश डांस के रूप में प्रचारित कर दिया गया है. ही वाज नॉट डांसर, नॉट एट आल!
डांस तो बहुत सतही और कॉमन चीज होती है. डांस इंडिया डांस, इंडियाज गॉट टैलेंट और बूगीवूगी जैसे उथले शोज में आने वाले कमजर्फ डांसर होते हैं. डांसर तो गली—गली में होते हैं. डांस क्लास चलाने वाले और डांस सिखाने वाले डांस के हिमायती होते हैं, उन्हें संगीत का अता—पता नहीं होता.
डांस करने वालों के पास कोई चिंतन नहीं होता. यदि माइकल जैक्सन को हम केवल डांसर के रूप में मानकर बैठे हैं तो हम एक म्यूजिकल जीनियस को न पहचानने की अक्षम्य त्रुटि कर रहे हैं. इससे भी बड़ी भूल कर रहे हैं उसे गलत समझने की. यह ऐसा ही है जैसे बदलाव के लिए सचिन तेंदुलकर फुटबॉल की किक लगा ले तो उसे मेराडोना की परंपरा का समझ लिया जाए. गांधी यदि अपनी जीवन यात्रा वकालत से शुरू करें तो उन्हें केवल वकील ही समझ लिया जाए, शेष गौण रह जाए. माइकल जैक्सन को डांसर निरुपित करना, एक बड़ी सांस्कृतिक भूल है.
स्टेज पर एक जगह खड़े होकर गाने का यंत्रवत रिवाज जैक्सन ने बडी कुशलता से तोडा. इसे आगे बढाया, इतना बढाया कि इसे चलन के बाहर कर दिया. वह मंच के चप्पे—चप्पे पर जाता था, हरकतें करता था. कोना—कोना दिमाग में स्कैन किया हुआ था. उसे मंच के रिंग मास्टर की संज्ञा दी जा सकती है. गीतों के परफार्म के दौरान दर्शकों का हिस्टीरिया में आ जाना, बेहोश होकर गिरना, गश खाकर गिरना आम बातें थीं. सिक्योरिटी के दल को इन बेकाबू दर्शकों को संभालने के लिए ही तैनात किया जाता था. यह उनकी नौकरी का हिस्सा था. आइकॉनिक सांग \’मैन इन र मिरर\’ पर जब उसने बुखारेस्ट में 1992 में परफार्म किया तो एक के बाद एक दर्शक अचेत होते चले गए. नार्मल लोग तो ठीक, विकलांगों को संभालना मुश्किल पड रहा था. वह गाता जात, लोग रोते जाते. कला के चरम पर पहुंचकर वह आंखें मूंद लेता और दर्शक आंखें नम कर लेते. यह सब क्या था? सम्मोहन या जादू? सच या सपना?
सवाल ये उठता है कि जब जैक्सन डांसर नहीं थे तो उनकी मूनवॉक और स्टेज परफार्मेंस के दौरान किए गए तमाम लटके—झटके आखिर क्या थे? जवाब के लिए हमें टीन—एजर माइकल के एक बयान को समझना होग. एक साक्षात्कार में बालक माइकल ने कहा था कि \’आई डोंट सिंग, इफ आई डोंट मीन इट!\’ वह गायन के प्रति बेहद सचेत लड़का था. अपने पहले स्टूडिओ एलबम \’गॉट टू बी देअर\’ के शीर्षक गीत के लिए उसने कहा था कि \’मुझे कोई ऐसा गीत दीजिये जिसे मैं अपनी आत्मा में महसूस कर सकूं और गाउं तो मेरा वजूद ही झंकृत हो उठे\’ वह गायन के लिए गंभीर था. इसी के लिए जन्मा था. वह विजुअल ही नहीं बल्कि ओडियो आर्टिस्ट भी थी, जिसे केवल सुना भी जा सकता है, जरूरी नहीं कि देखा भी जाए. उसे सुनते समय संगीत के आनंद में कोई कटौती अनुभूत नहीं की जा सकती. माइकल जैक्सन पर पांडुलिपि लिखने वाले सुशोभित सक्तावत ने एक जगह लिखा था कि — \’ही वॉज केस आफ स्पिलिट पर्सनालिटी\’. इस बात से इत्तेफाक किया जा सकता है. वह वाकई खंडित व्यक्तित्व था. जिन्होंने माइकल जैक्सन को केवल शोर—शराबा या धूम—धड़ाका समझ रखा है उन्होंने शायद उसके इंटरव्यूज नहीं देखे. उसके इंटरव्यू ध्यान से देंखे, आप पाएंगे कि उसे ठीक से बोलना तक नहीं आता था. वह इतनी धीमे बोलता कि लगभग फुसफुसा रहा होता था. कान लगाकर सुनना पड़ता है कि क्या बोला है. बहुत संकोची, बेहद शर्मीला, निपट अनाड़ी. व्यक्तित्व विकास और बाहरी कौशल जैसे शब्दों से उसका वास्ता रहा ही नहीं. वह सदा अनगढ हीरा रहा. 1996 में थाईलैंड में फैंस क्वेशचन सत्र में माइकल जैक्सन से एक अनमोल सवाल पूछा गया कि आप स्टेज पर लाखों लोगों के सामने नर्वस नहीं होते? जवाब मिला— \’नहीं, मैं स्टेज पर बहुत सहज और कंफर्टेबल अनुभव करता हूं लेकिन यह इंटरव्यू देते समय नर्वस हूं. यही कारण है मैं इंटरव्यू से दूर रहता हूं. जितने भी इंटरव्यू मैंने दिए हैं, वे किसी संगीत कंपनियों या निवेशकों के दबाव के चलते दिए हैं\’
जैक्सन के इस जवाब को क्रास चेक किया जा सकता है, उसके इंटरव्यूज को खंगालकर. वह आमने—सामने बात करने में हद दर्जे का संकोची हो जाता था. लेकिन यही संकोची इंसान जब स्टेज पर जाता, तेज रोशनियों में नहाता, भड़कीली पोशाक पहनता और पार्श्व में संगीत सुनता तो अचानक कहीं से उसके गले में मानो शैतान आ जाता! उसका संकोच सम्मोहन में तब्दील हो जाता. हजारों—लाखों प्रशंसकों की उन्मादी भीड़ को देखकर वह बौरा जाता और फिर घटती थी अस्तित्व की बहुमूल्य घटना! फिर एक व्यक्तित्व का लोप हो जाता और फिनॉमिना कहीं से नज्र हो उठता! 1993 में ओप्रा विंफ्रे ने माइकल से साक्षात्कार में पूछा कि तुम ये लटके—झटके कहां से लाते हो? शरीर के निचले हिस्से पर तुम्हारा हाथ क्यों चला जाता है? यह सवाल मैं नहीं कर रही, सैकडों मम्मियों का है. माइकल ने कहा कि वे संगीत के प्रवाह के साथ बहते हैं. इस क्षण में क्या हो जाता है वह बाद में वीडियो देखने पर पता चलता है. क्या वाकई माइकल सच बोल रहे थे? मोटाउन 25 का विश्व प्रसिद्ध बिली जीन परफार्मेंस हो या उनके सभी विश्व टूर, सभी में जैक्सन स्टेज पर बेकाबू हो जाया करते थे. उन्माद ही लहर में केवल दीर्घा से सीत्कारें सुनाई पडती थीं. उनकी मौजूदगी उर्जामयी, गायन दैदीप्यमान और परफार्मेंस पॉवर किसी दैत्य की भांति प्रतिरोधक हो जाया करती थी. लेकिन शो खत्म होने के बाद यह दोहरा व्यक्तित्व पुन: अपने संकुचित आवरण में लौट आता था. उसके इंटरव्यू में लगता ही नहीं है कि यह आदमी कहीं हजारों लोगों को आंदोलित और आनंदित करके आया है. निश्चय ही, माइकल जैक्सन का डांस पारंपरिक डांस नहीं है. वह गीत के साथ किया गया मूव है. बार—बार हाथ को झटका देना, कोई नृत्य भंगिमा नहीं है. यह कला का फूट—फूटकर निकलना है. 1987 में एलबम \’बैड\’ के दौरान एक रेअर साक्षात्कार में रिपोर्टर ने पूछा कि आपकी कार्यशैली क्या है? जवाब मिला कि मैं काम करते समय कार्य के घंटे नहीं गिनता. एक एलबम में अधिक से अधिक 10 या 12 गीत आते हैं लेकिन सौ से अधिक गीत तैयार किए जाते हैं. कई बार तो एक ही गीत के लिए दो सौ से अधिक धुनें तैयार की जाती हैं. काम को गिनता नहीं हूं क्योंकि यह एक्ट नहीं है, यह घटना है, यह होती है, मैं इसमें बहता हूं. संगीत का सृजन नहीं करता, इसे घटने देता हूं. फिर, जो सामने आता है वह कृति बन जाती है.
लेकिन क्या हमने माइकल को सही समझा? हमारे शहरों में डांस क्लासेस चलती हैं. उनमें माइकल की तस्वीरें लगी होती हैं. उसके नाम पर डांस का नाम ही रख दिया गया कि आओ, हम आपको माइकल जैक्सन डांस सिखाएंगे. कितनी बडी भूल है? यदि डांस कांपिटिशन ही रखा जाए तो माइकल जैक्सन हर मुकाबले में हारने वाला प्रतियोगी है. देश—दुनिया में एक से बढकर एक शानदार डांसर हुए हैं, जिनके आगे जैक्सन की कोई बिसात नहीं है. अभिनेता रितिक रोशन एक किंग डांसर हैं, उन्हें गॉड आफ डांस कहना न्यायोचित है लेकिन माइकल को डांसर कहना माइकल के वजूद से इंकार करना है. निश्चित ही \’मैन इन द मिरर\’ \’फार आल टाइम\’ \’हयूमन नेचर\’ \’क्राय\’ जैसे कालजयी गीतों का रचियता महज डांसर नहीं हो सकता. डांस उसकी प्यास नहीं थी. \’थ्रिलर\’ के गीत \’लेडी इन माई लाइफ\’ के बारे में प्रसिद्ध है कि इसकी रिकार्डिंग के पहले जैक्सन ने स्टूडियो के सारे पर्दे चढा देने की इल्तिजा की थी, ताकि गीत की रूह में डूबकर गाया जा सके. सवाल ये है कि कितने डांसर हैं हैं जो गायन के प्रति समर्पित हैं? क्या वे जैक्सन की तरह संवेदनशील, मानवतावादी और मासूम हैं? नहीं! जैक्सन को समझने के लिए जिस अंर्तदृष्टि की दरकार है, उसे डांस से उपर उठना होगा. डांस मूव्ज के मशहूर होने के पहले भी बचपन में भी वह उतना ही विलक्षण था जितना बाद के बरसों में.
अध्यात्म और रहस्यदर्शिता के जो सवाल उसने अपने गीतों में उठाये, यह काम किसी डांसर का कतई नहीं हो सकता. यह एक विलक्षण अदाकार का चिंतन है जो परिभाषित ही नहीं किया जा सकता. पता नहीं, क्यों लोग उसका क्लोन होने की हास्यास्पद कोशिश करते हैं, बजाय उसे सुनने के!
शो—बिजनेस में आकंठ डूबने के कारण जैक्सन को सृजन का समय कम और प्रदर्शन का अधिक मिला. वह जीवन भर इसी भूलभुलैया में रमा रहा. उसके हर अगले एलबम में बीच चार से पांच बरस का फासला होता था. उसके प्रशंसकों को इस लंबी भूख से गुजरना होता था.
माइकल जैक्सन एक सोलो आर्टिस्ट के तौर पर 30 साल सक्रिय रहे और एक कलाकार के तौर पर तकरीबन चार दशक गुजारे. यानी शो—बिजनेस में पूरे चालीस साल. अब उनके गाए गीतों की संख्या पर बात करते हैं. इन चालीस बरसों में उनके गाए सोलो गीतों की संख्या लगभग 150 और तमाम गीतों की संख्या अधिक से अधिक मुश्किल से 200 या इसके आसपास ठहरती है. जरा गौर करें, चालीस वर्ष और केवल दो सौ गीत. एलबम भी कुल जमा दर्जन भर. केवल. अब औसत को देखें या गुणवत्ता को या कुछ भी कहें, लेकिन माइकल अपने प्रशंसकों के प्रति आजीवन निहायत कंजूस रहे. उन्होंने बहुत कम दिया. जैक्सन को कलाकार नहीं, एक घटना करार दिया जाना न्यायसंगत लगता है.
आज उसके 55 वें जन्मदिन पर ब्लैक अमेरिकन, अमेरिकी दलित वर्ग उसे याद करके जार—जार रोयेगा, अमेरिकी गोरा कुलीन वर्ग उसके धूमधडाके वाले संगीत को कान फोड देने की हद तक तेज करके सुनेगा और सुदुर पूर्व में उसे डांसर बोलकर उसका मखौल उड़ाते हुए उसे याद किया जाएगा. विलक्षणता यदि विदू्पता की जद में आती है तो ऐसे दृश्य निर्मित होते हैं. मैं इस विसंगति में सौंदर्य की तलाश करुंगा और उसी का गीत gone too soon गुनगुनाउंगा, जिसमें उसने कहा था—
जैसे पलक झपकते इंद्रधनुष ओझल हो जाए,
जैसे दुपहरी में बदलियां धूप को निगल जाएं,
जैसे एक भरा—पूरा फूल जो पकड़ में न आए,
जैसे एक महल, रेत के तट पर तामीर किया जाए,
जैसे सूरज ढलते ही चांद उग आए,
बहुत जल्दी….गॉन टू सून….!
मैं कहूंगा येस माइकल, तुम बहुत जल्दी चले गये. गॉन टू सून!
____________________
(मूल रूप से यह आलेख इंग्लिश में लिखा गया है. हिंदी में रूपान्तर खुद लेखक का ही है)
नवोदित सक्तावत,(4 अप्रैल १९८३,उज्जैन)
दैनिक भास्कर भोपाल के संपादकीय प्रभाग में सीनियर सब—एडीटर के पद पर कार्यरत,
सिनेमा, संगीत और समाज पर स्वतंत्र लेखन
navodit_db@yahoo.com