• मुखपृष्ठ
  • समालोचन
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
No Result
View All Result
समालोचन

Home » विन्सेंट वॉन गॉग : पत्र: अपर्णा मनोज

विन्सेंट वॉन गॉग : पत्र: अपर्णा मनोज

(गॉग की कृति) नीदरलैंड के विन्सेंट वॉन गॉग (30-3-1853/29-7-1890) 19 वीं शताब्दी के महानतम चित्रकार माने जाते हैं. उन्होंने 1881 से 1890 के बीच, लगभग 900 चित्र बनाए, 1100 ड्राइंग और स्केच का रेखांकन किया. तरह-तरह की मानसिक समस्याओं  से ग्रस्त गॉग ने 37 वर्ष के वय में खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. उनके […]

by arun dev
June 11, 2011
in अनुवाद
A A
फेसबुक पर शेयर करेंट्वीटर पर शेयर करेंव्हाट्सएप्प पर भेजें
(गॉग की कृति)


नीदरलैंड के विन्सेंट वॉन गॉग (30-3-1853/29-7-1890) 19 वीं शताब्दी के महानतम चित्रकार माने जाते हैं. उन्होंने 1881 से 1890 के बीच, लगभग 900 चित्र बनाए, 1100 ड्राइंग और स्केच का रेखांकन किया. तरह-तरह की मानसिक समस्याओं  से ग्रस्त गॉग ने 37 वर्ष के वय में खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. उनके 800 से अधिक पत्र हैं जो अब प्रकाशित हैं. इन पत्रों से वॉन गॉग के जीवन, सरोकार और समय का पता चलता है.
युवा कवयित्री अपर्णा ने उनके कुछ  पत्रों का अंगेजी से अनुवाद किया है. ये पत्र वॉन गॉग ने अपने भाई थियो को लिखे हैं. ये पत्र रचनाकार की मानसिक कार्यशाला हैं. इन पत्रों से गुजरते हुए ऐसा लगता है जैसे आप वॉन गॉग की पेंटिंग की  एक-एक रेखाओं, रंगों से गुजर रहे हों.





November 1883/Drenthe


प्यारे भाई,

मैं ज़्वीलू (Zweeloo) यात्रा की बातें तुमसे साझा करना चाहूँगा, ये वही गाँव है  जहां लाइबरमेन (Liebermann) लम्बे अरसे तक अपनी अंतिम कलादीर्घा के लिए तस्वीर पर चिंतन के लिए रुका – वही तस्वीर जिसमें धोबिनें हैं. वही स्थान, जहां टरम्युलें (Ter Meulen) और जूयुल्स बाख्युज़ेन  (Jules Bakhuyzen) ने अपना कुछ समय व्यतीत किया.
कल्पना करो कि सुबह तीन बजे मैं एक खुली गाड़ी में सवार परती की सैर पर था  (मैं अपने मकान मालिक के साथ गया जिसे अस्सेन के बाज़ार जाना  था), हम सड़क के किनारे पर, जिसे वे \”डाइक\” कहते हैं चल रहे थे, ये रेत की जगह कीचड़ का ढेर था. लेकिन फिर भी बजरे से बेहतर.
प्रातः जब रोशनी फैलने लगी, इधर-उधर परती पर बिखरी झोपड़ियों से मुर्गों ने बांग देना शुरू किया, वे तमाम झोपड़ियाँ जिनके पास से हम गुज़रे, मटमैले पौपलर के पेड़ों से घिरी थीं. जिनके पीले पत्तों के झड़ने की आवाज़ सुनाई देती थी. छोटे-से कब्रगाह में एक पुरानी ठूंठ मीनार थी जिसमें मुंडेर और बीच की झाड़ियाँ थीं. परती का सादा दृश्य, मकई के खेत, ये सब बिलकुल वैसा था जैसा खूबसूरत कोरो (Corots) ने बनाया था. बिलकुल वैसी निशब्दता, रहस्य और शांति जिसे उसने रँगा. जब हम ज़्वीलू पहुंचे, सुबह के ६ बजे थे, वहाँ अब भी खासा अँधेरा था. मैंने इतनी सुबह वास्तव में कोरो को साकार होते देखा.
गाँव की सैर दिव्य थी.  घरों की काई से ढकी छतें, अस्तबल,  भेड़ों और गायों के छतदार   बाड़े, सब प्रचुर था. आगे से चौड़े मकान कांस्य वर्णी बलूत के पेड़ों के मध्य शानदार लग रहे थे. काई का स्वर्णिम-हरा रंग, ज़मीन का लाल या नीला-पीला गहरा बकाहन-स्लेटी  रंग, मकई के खेतों का पवित्र अनिर्वचनीय हरा रंग, पेड़ों के गीले तनों का काला रंग-पतझड़ की  चक्करदार सुनहरी पत्तों की बरसात, जो गुच्छों में झूल रही थी, के विरोध में खड़ा था. ऐसा लगा जैसे उन्हें झोंकों में उड़ने के लिए ढीला छोड़ दिया गया था. उनसे रोशनी छन-छनकर आ रही थी, खदंग के पेड़ों से, सनौबर, नीबू और सेब के पेड़ों से.
आकाश साफ़ और शुभ, लेकिन सफ़ेद नहीं था बल्कि लाइलेक, सफ़ेद लाल के साथ चमकीला, नीला – पीला और सब कुछ परावर्तित कर रहा था, हर जगह महसूस हो रहा था, धुंधला और
नीचे हलके कोहरे के साथ घुलता-मिल, उस नाज़ुक धूसर में सब पिघल गया.
मुझे ज़्वीलू में एक भी चित्रकार नहीं मिला. जो भी हो, लोगों ने मुझे बताया कि सर्दियों में वे वहाँ नहीं आते,  जबकि इसके विपरीत मेरी आकांक्षा थी कि मैं वहाँ सर्दियों में रहूँ. क्योंकि ज़्वीलू में  कोई चित्रकार तो था नहीं, सो मैंने तय  किया कि मुझे अपने मकान मालिक के लौटने की प्रतीक्षा नहीं करनी है और खुद लौट जाना है तथा  रास्ते में कुछ रेखाचित्र बनाने हैं. तो, मैंने  सेब के उस छोटे  बागान में स्केच बनाना शुरू किया, जहां लिबरमैन ने अपनी वह बड़ी तस्वीर बनाई थी; और तय किया कि उसी रास्ते से लौट जाऊँगा जहां से सुबह हम आये थे. इस समय ज़्वीलू के चारों तरफ और कुछ नहीं एक नयी मकई है. जहां तक मैं समझता हूँ, जितनी दूर तक नज़रें जाती हैं हरे में भी सबसे अधिक हरा दिखाई देता है. और इसके ऊपर सुहावना बकाहन-सफ़ेद आसमान, कुछ ऐसा असर छोड़ता हुआ कि आप उसे चित्रांकित नहीं कर सकते. लेकिन जहां तक मैंने देखा, मुझे ये कीनोट की तरह लगा जिसे समझने के बाद ही हम दूसरी टेक के असर को जान सकते हैं.
शस्य-श्यामल, समतल, कभी न ख़त्म होने वाली धरा और साफ़ आकाश का कोमल   नीला -सफ़ेद रंग. ये ज़मीन इस मकई को अंकुरित कर रही है ऐसे जैसे वह उन्हें ढाल रही हो. ये ही है द्रेंथे (Drenthe) की अच्छी, उर्वर ज़मीन और धुँध से भरी फ़िज़ा. याद करो ब्रायन का वह सृजन – Le dernier jour de la. कल मुझे लगा कि इस पेंटिंग का ठीक -ठीक अर्थ ग्रहण अब जाकर  कर पाया. बेचारा द्रेंथे – है तो वही, लेकिन अब काली ज़मीन और काली हो गई है. काजल की तरह-जुते खेतों के लाइलेक-काले रंग की नहीं, बल्कि दुःख में बढ़ती उम्र की तरह जो निरंतर झाड़ियों और पास में सड़ रही है.
मैंने हर जगह गौर से देखा और पाया कि परिस्थितियों (दैवयोग) ने उस अपरिमित पृष्ठभूमि को प्रभावित किया था; पीट के दलदल को, फूस की झुग्गियों को; उन उपजाऊ क्षेत्रों को, उन सबसे पुराने फार्म हॉउस के धान के कोठों को, भेड़ों के छोटे मढैया बने बाड़ों को और ढेर सारी काई वाली छतों को. चारों ओर बलूत थे. घंटों-घंटों की यात्रा के दौरान कोई भी ये महसूस करेगा कि यहाँ कुछ नहीं है सिवाय असीमित ज़मीन के, मकई के खांचे या झाड़ियाँ के; और है निस्सीम आकाश. घोड़े और आदमी इतने अदने हैं जैसे पिस्सू. कोई किसी भी बात से अनभिज्ञ हो सकता है, लेकिन ये अपने आप में इतना विशाल है कि कोई भी जानेगा कि यहाँ धरती है और आकाश है.
अगर हम इस अपार को अलहदा कर दें और अपने सामर्थ्य से छोटे चकत्तों को देखें, तो पायेंगे कि हर छोटी छींट यहाँ मिले (Millet, महान चित्रकार) है. मैं एक पुराने गिरजा घर के पास से निकला, ये एकदम मिले की लक्समबर्ग (Luxembourg) में बनाई पेंटिंग द चर्च एट ग्रेविले (The Church at Gréville in) जैसा था.
यहाँ फावड़ा लिए छोटे किसान की जगह, एक गड़रिया था, जिसके साथ उसका भेड़ों का रेवड़ झाड़ियों के किनारे दीख रहा था. पृष्ठभूमि में समुद्र का परिदृश्य नहीं था वरन उसकी जगह नयी मकई का सागर दिखाई दे रहा था, लहरों की जगह जुती लकीरों का सागर था.  पर कुल मिलकर असर वही था. तब मैंने एक हलधर को देखा, जो कड़ी मेहनत कर रहा था, एक थी  रेत की गाड़ी, गड़रिए, सड़क दुरुस्त करने वाले मजदूर और गोबर ढोने वाली लॉरी. सड़क के किनारे की छोटी सराय में मैंने एक छोटी बूढ़ी औरत का स्केच बनाया जो चरखे के पास बैठी थी, ये एक अँधेरा छायाचित्र था जो परिकथा से बाहर आया था. एक छोटा अँधेरा छायाचित्र जिसके सामने एक चमकदार खिड़की थी जिससे कोई भी उज्ज्वल आसमान और वह छोटा रास्ता जो नरम हरी घास से जाता था और जहां कुछ बत्तखें घास पर चोंच मार रही थीं; को देख सकता था.
और सांझ ढलने पर, कल्पना करो उस नीरवता और चुप्पी की! कल्पना करो उस छायादार पथ की जहां ऊंचे पॉपलर के वृक्ष पतझड़ के पत्तों के साथ लगे हैं,  उस कीचड़ भरी सड़क की कल्पना करो, कल्पना करो काली कीचड़ की  जो आपके दायीं ओर या बायीं  तरफ असीमित परती का विस्तार है. थोड़ी काली तिकोन नुमा पुआल की झोपड़ियां जो छाया चित्र सी लगती हैं, और वह लाली जो थोड़ी आग से नन्ही खिड़कियों से झांकती दीखती है, कुछ पीले गंदले पानी के पोखर जिनमें सारा आकाश प्रतिबिंबित होता है, और जिनमें गिरे पेड़ सड़कर पीट बन जाते हैं. सोचो गोधूलि में  कीचड़ के समुद्र के बारे में जिसके सिर पर झक आकाश है, इस प्रकार जैसे; सारा काला और सारा सफ़ेद आमने-सामने खड़े हैं.  और इस कीचड़ के सागर में एक रोयेंदार आकृति है; वह गड़रिया और वह अंडाकार लोथ, आधा  ऊन और आधा  कीचड़ आपस में उलझता, एक दूसरे को धकेलता; भेड़ों का झुण्ड. 
तुम उन्हें आता देखोगे, तुम उनके बीच में होगे, तुम मुड़ोगे और उनके पीछे चल दोगे. मेहनत और अनिच्छा से वे अपनी तरह से उस कीचड़ सनी सड़क पर काम कर रहे हैं. दूरी पर खड़े खेत आपको संकेत करते हैं, कुछ काई लगी छतों की ओर, पुआल के गट्ठर और खदंग के बीच पांस की ओर. भेड़ों का बाड़ा पुनः तिकोने छायांकन जैसा है, जिसका प्रवेश द्वार अँधेरे में डूबा है. दरवाज़ा पूरा खुला है जैसे अँधेरी गुफा हो. इसके पीछे लगे फट्टों की दरारों से झिलमिलाते आसमान की रोशनी आती है. पूरा कारवां, ऊन और कीचड़  के लोथ गुफा में ओझल हो जाते हैं; गड़रिया और वह छोटी स्त्री लालटेन लिए पीछे  से दरवाज़ा बंद कर देते हैं.
इस तरह रेवड़ का सांझ ढले लौटना संगीत का समापन है, जिसे कल मैंने सुना था. दिन सपने की तरह गुज़र गया. मैं दिल को छूने वाले इस संगीत में सारा दिन इस तरह डूबा रहा कि  खाना-पीना भी भूल गया, मैंने उस छोटी सराय में, जहां मैंने चरखे  का चित्र उकेरा था, वहाँ बस एक स्लाइस काली ब्रेड और एक कप कॉफी पी थी. दिन बीत चुक था और मैं सुबह से शाम तक या कहिये एक रात से अगली रात तक इसी संगीत में सरोबार था.  मैं घर आ गया और जब आग के पास बैठा तो मुझे अहसास हुआ कि मैं भूखा हूँ, क्षुधातुर हूँ.
अब तुम देख सकते हो कि यहाँ क्या है. कोई भी सोच  सकता है कि वह किसी कला प्रदर्शनी में सैंकड़ों उत्कृष्ट कृतियाँ देख आया है. कोई ऐसे दिन से क्या पाता है? बहुत सारे कच्चे रेखाचित्र. और हाँ, इससे परे काम करने का सुख भी.
जल्दी लिखना. आज शुक्रवार है, पर तुम्हारा पत्र नहीं मिला; मैं उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हूँ. मुद्रा परिवर्तन हुगवी (Hoogeveen) से होता है, इसलिए पैसा आने में विलम्ब हो जाता है. हमें नहीं पता कि ये सब कार्यवाही कैसे होती है, अतः तुम्हें एक आसान तरीका बताता हूँ. तुम महीने में एक बार रूपये भेज दिया करो. तुरंत उत्तर देना. अभिवादन के साथ!

सदा तुम्हारा 
विन्सेंट 




3 October 1883/Drenthe


प्यारे थियो 

इस बार मैं तुम्हें द्रेंथे Drenthe, के दूरवर्ती इलाके से पत्र लिख रहा हूँ, इस कभी न ख़त्म होने वाले गलियारे में मैं डोंगी के सहारे परती से होकर पहुंचा. मुझे नहीं लगता कि इस ग्राम्या के साथ मैं न्याय कर सकूँगा क्योंकि यहाँ शब्द हार जाते हैं. कल्पना करो उस नहर के मीलों फैले किनारे की जिसका वर्णन मिशेल, रूसो वान गोयेंस या दी कोनिक्स (Michels, Rousseaus,  Van Goyen de Koninck ) ने किया है. यहाँ नाना रंगों के समतल मैदान या भूखंड हैं , जो क्षितिज तक जाते-जाते संकरे होते जान पड़ते हैं. जहाँ-तहाँ बनी  फूस की झोपड़ियाँ, छोटे-छोटे खेत, थोड़े बहुत बौने बीच के पेड़, खदंग (पोपलर), शाहबलूत आदि इसे सुस्पष्ट करते दीखते हैं. यहाँ-वहां लगे पाँस के ढेर और नरकट से लगातार आते – जाते बजरे दीख पड़ते हैं. यहाँ इधर- उधर  घूमती हलके रंगों वाली दुबली -पतली गाएँ और अकसर कुछ भेड़ें व सूअर दिखाई देते हैं.
सामान्य तौर पर इस समतल पर जो चित्र या आकार दिखाई देते हैं वे अनोखे किरदारों से समृद्ध हैं और कभी-कभी वे आप पर खूब-सा जादू करते हैं. इन सबके बीच मैंने चित्र खींचे (बनाये), एक छोटी स्त्री का, जो बजरे पर बैठी है, उसने अपने जडाऊ पिन के चारों ओर गोट लगा बारीक कपड़ा ओढ़ा हुआ है. फिर एक माँ जो अपने शिशु के साथ बैठी है – उसने अपने सिर पर बैंगनी कपड़ा धारण किया हुआ है. यहाँ ऑस्टेद (Ostade) की रीत वाली बहुतेरी आकृतियाँ दिखेंगी जो आपके दिमाग पर सूअर, कौओं की छाप छोड़ेंगी, लेकिन इन्हीं के साथ ऐसी छोटी आकृतियाँ भी मिलेंगी जो आपको काँटों के बीच कुमुदनी का अहसास देंगी.
संक्षेप में, मैं इस भ्रमण से बहुत खुश हूँ. मैंने जो कुछ देखा उससे लबालब भरा हुआ हूँ. सांझ पड़े तो ये परती असाधारण रूप से खूबसूरत लगती है. बोत्ज़ेल (Boetzel) के एक अलबम में दौबिनी ( Daubigny) ने इन प्रभावों को हुबहू उतार दिया है. आकाश अकथनीय रूप से नाज़ुक बकाहन -सलेटी -सफ़ेद था. बादल ऊनी नहीं थे. वे करीब आकर घने हो गए थे. गुच्छों में वे आसमान में कम या ज्यादा बकाहन,सलेटी-सफ़ेद का टोन दे रहे थे. और उनके बीच की अकेली छोटी दरारों से नीला झांकता था. क्षितिज में चमकीला -लाल लकीर छोड़ रहा था. उसके नीचे आश्चर्यजनक रूप से  परती का गहरा भूरापन और झुकी छतों वाली झोपड़ियों की भीड़ थी.ये सब उस चटकीली  लाल लकीर के विपरीत खड़ा था.
शाम के समय बंजर का प्रभाव ऐसा नज़ारा देता है, जिसे अंग्रेज़ जादू और अनूठा  कहते हैं.  डोन क्विक्जोट की पवन चक्कियों जैसी चक्कियां शानदार तिमिरचित्र खींचती हैं. उत्सुक दीखते भीमकाय कलदार पुल  पार्श्व चित्र की तरह दीपित सांध्य-अम्बर और जगमगाती छोटी खिडकियों की पानी या तलैया में गिरती प्रतिच्छाया के विरुद्ध खड़े लगते हैं.
हूगवीन छोड़ने से पूर्व मैंने कुछ और स्टडीज़ को पेंट किया, उनमें से एक फार्म हाउज़ वाली थी जिसकी छत काई से अटी पड़ी थी. मेरे पास फुरनी के भेजे हुए रंग थे. क्योंकि मैंने भी  इसके बारे में वही सोचा जिस रूप में तुमने अपने पत्र में कहा था. अपना मन बदलने से पहले ही मैं सुनिश्चित करके काम में लीन हो जाना चाहता हूँ जिसमें अपना स्व खो सकूँ.वास्तव में ये  एक अच्छा सौदा है.
लेकिन उन क्षणों में जब तुम अमेरिका जाने की मंशा रखते हो, मैं पूरब जाने की बात सोचता हूँ. ये वे फीके उदास पल हैं जिनमें कोई भी विह्वल हो सकता है, इसलिए  मैं  चाहूँगा कि तुम इस शांत परती को देखो, जिसे मैं यहाँ अपनी खिड़की से निहारता हूँ, क्योंकि ये चीज़ें आपके मन को हल्का करती हैं, आपको कहीं अधिक भरोसे,समर्पण और शांतिपूर्वक कार्य करते रहने के लिए प्रेरित करती हैं.
बजरे में मैंने स्टडीज़ हेतु कई चित्र बनाये और मैं यहाँ चित्रकारी के लिए ही रुका हुआ हूँ. मैं ज्वीलू के पास हूँ, जहाँ लाइबर्मन आया था. इसके अतिरिक्त यहाँ ऐसा क्षेत्र है जहाँ बहुत सारी दूबचौरा वाली झुग्गियां हैं, जिनमें बाड़े और बैठक के बीच कोई दीवार नहीं है. मेरा सबसे पहला विचार इसी स्थान की सैर करना है. कितनी शांति , कितना फैलाव और ठहराव है प्रकृति में. और इसे तब तक  कोई महसूस नहीं कर सकता है जब वह अपने बीच मीलों-मीलों पैठे  ईश्वर रूप मिशेल को न देखे.
मैं तुम्हें अपना सुनिश्चित पता नहीं दे पाऊंगा क्योंकि मुझे नहीं पता कि आगामी दिनों में मैं कब कहाँ होऊंगा. लेकिन बहरहाल  बारह अक्तूबर तक हूगवीन में ही हूँ और यदि बारह से पूर्व तुम्हारा ख़त यहाँ पहुंचा तो मैं उसे पढ़ सकूँगा. मैं आजकल न्यू एम्स्टरडम में हूँ.
तुम्हारे माध्यम से पा (Pa) द्वारा भेजा गया दस गिल्डर का पोस्टल आर्डर मुझे मिल गया है, जिसका अर्थ है कि अब मैं पेंटिंग कर सकता हूँ. मैं उसी सराय में वापिस  आने की सोच रहा हूँ जहाँ मैं लम्बे समय तक रुका था. यहाँ से मैं आसानी से दूब चौरा की उन पुरानी झोपड़ियों तक पहुँच सकता हूँ.  फिर यहाँ अधिक खुली जगह और रोशनी है.उदाहरण के तौर पर वह पेंटिंग देखिये, जिसमें एक इंग्लिश मैन ने दुर्बल बिल्ली और ताबूत के चित्र उकेरे थे. इसका विचार डार्करूम में कौंधा था. लेकिन उसे उसी अँधेरे कक्ष में पेंट करना मुश्किल होता. कमरे में यदि बहुत अँधेरा है तो चित्र भी बहुत हलके बन जायेंगे. और उजाले में देखने पर आपको पता चलेगा कि छायाएं कितनी धुंधली बनी हैं. इसका अनुभव मुझे तभी हुआ जब मैंने बाड़े में बैठकर एक खुले दरवाज़े को पेंट किया जिससे बगीचे का दृश्य दिखाई देता था.
अपनी इस कमज़ोरी को मैं जीत लूँगा क्योंकि अब मुझे उजाले से भरपूर एक कमरा उपलब्ध होगा, जहाँ सर्दियों में मैं स्टोव जला सकूँगा. मेरे अनुभवी भाई, अगर तुम अमेरिका और मैं हर्देर्विज्क (Harderwijk) का विचार त्याग दूँ तो चीज़ें अपने आप  काम करेंगी. सी.एम्. की चुप्पी को लेकर तुमने जो सफाई दी है वह उदाहरण हो सकती है लेकिन कभी-कभी जानते-बूझते भी उदासीनता रखनी पड़ती है.संभव है कि पृष्ठभूमि में तुम्हें कुछ रफ स्केच ही मिलें. मैं ये सब तुम्हें जल्बाजी में में लिख रहा हूँ, शायद लिखने में देरी हो गई है.फिर भी मैं कामना करता हूँ कि हम दोनों साथ चलें और साथ-साथ यहाँ पेंटिंग्स बनाएं. मेरा विश्वास है कि ये कंट्रीसाइड तुम्हारा दिल जीत लेगी और भरोसा दिलाएगी.विदा. आशा करता हूँ तुम सकुशल होंगे और किस्मत तुम्हारा साथ देगी. इस यात्रा में मैं बार-बार तुम्हें याद करता रहा.

हमेशा तुम्हारा 
विन्सेंट 


 


May 30 1877,Amsterdam,


प्यारे थियो,

तुम्हारा ख़त आज ही मिला, आजकल बहुत व्यस्त हूँ अतः जल्दबाजी में उत्तर दे रहा हूँ. तुम्हारा पत्र अंकल जेन को दे दिया था. उन्होंने अपनी शुभकामनाएँ और धन्यवाद प्रेषित किया है.
तुम्हारे पत्र की इन पंक्तियों ने मेरे मर्म को ख़ास छुआ है, काश मैं इन सबसे बहुत दूर चला जाऊं, मैं ही इन सबका कारण हूँ और मेरी वज़ह से सभी को ये दुःख मिला है.  अकेले मेरे कारण ये विपदा सब पर और मुझ पर टूटी है.
इन शब्दों ने मुझे आहत किया क्योंकि कुछ ऐसी ही  भावना, बिलकुल ऐसी, न कम, न अधिक मेरे अंतःकरण में बनी हुई है.
जब मैं अपने विगत को याद करता हूँ, और जब अपने भविष्य पर विचार करता हूँ जो अदम्य झंझावातों से घिरा है, जिसमें ऐसे कठिन काम आन पड़े हैं, जिन्हें पूरा करना मैं पसंद नहीं करता, जिसे मैं, याकि मेरा दुष्ट अहम् झटक देना चाहता है; और जब सोचता हूँ कि कइयों की निगाहें मुझ पर टिकी हैं, जो अच्छी तरह जानते हैं कि कमी कहाँ है, ऐसे में अगर मैं सफल नहीं होता हूँ, तो क्यों न वे क्षुद्र उलहाने देंगे, जबकि वे जीवन के हर क्षेत्र को आजमाए हुए हैं, और प्रशिक्षित हैं, सही हैं, पवित्र हैं और खरा सोना हैं. ऐसे में उनके चेहरे के उतार -चढ़ाव कहेंगे; हमने तुम्हारी भरसक  सहायता की थी और प्रकाश दिया था, हमने जो संभव था वह सब किया तुम्हारे लिए, पर क्या तुमने ईमानदार प्रयास किया? हमारे परिश्रम का क्या यही फल है?
देखो! जब मैं इन सब पर विचार करता हूँ या इनसे मिलती-जुलती चीज़ों पर सोचता हूँ, जो अपने आप में अनगिनत हैं, वे सारी मुसीबतें और हिफाज़तें जो बढ़ते जीवन के साथ कम नहीं हुईं, वे दुःख, निराशाएं, असफलता के वे डर, अपमान, तब मेरी भी इच्छा होती है काश इन सबसे कहीं दूर भाग जाऊं! फिर भी मैं चलता रहता हूँ, आशावान होकर इस विवेक को जीवित रखते हुए कि मुझमें वह ताकत बनी रहेगी जो इन सबको प्रतिरोध दे सके, ताकि मैं जान सकूँ कि इन भर्त्सनाओं के, जो मुझे धमकाते रहे, क्या जवाब होंगे. तिस पर भी ये जानते हुए कि सब कुछ मेरे प्रतिकूल है, मैं अपने उद्देश्य तक पहुंचूंगा जिसके लिए मैं संघर्षरत रहा. और यदि प्रभु इच्छा हुई तो उन कुछ की आँखों में जिन्हें मैंने प्रेम किया तथा वे जो मेरा अनुगमन करेंगे मेरे लिए  कृपा दृष्टि होगी.
ये लिखा गया है : गिरे हुए हाथ और कमज़ोर घुटने ऊपर उठाओ, और जब तुम्हारे शिष्य रात भर के श्रम के बाद भी मछली न पकड़ सकें, तो उनसे कहो कि वे अधिक  गहरे तक जाएँ और पुनः अपने जाल सागर में डालें.
मेरा दिमाग कभी-कभी भारी हो जाता है, वह अकसर तपता रहता है, मैं दिग्भ्रमित होता हूँ,  मैं नहीं देख पाता कि कैसे अपने इन मुश्किल  विचारों का व्यापक तौर से अध्ययन कर सकूँ ताकि मैं इनका अभ्यस्त हो सकता और अपनी लगन से इसे सहज अध्ययन बना पाता, मेरे ये भावात्मक वर्ष आखिर इतने आसान नहीं थे. इन सबके बावजूद भी मैं आगे बढ़ता हूँ; अगर हम क्लांत हैं तो क्या ये इसलिए है कि हम अपने पथ पर बहुत दूर तक चले आये हैं, और अगर ये सत्य है तो ये जाने कि पृथ्वी पर  व्यक्ति के अपने-अपने संघर्ष होते हैं तो फिर थकान के संवेग और दिमाग की जलन क्या इस बात के लक्षण नहीं कि हम सब संघर्षरत हैं?
जब हम किसी मुश्किल चीज़ पर काम कर रहे होते हैं और किसी नेक चीज़ के लिए प्रयास करते हैं, तो ये संघर्ष न्यायसंगत होता है, जिसका सीधा फल  बुराई से हमें दूर रखता है. ऐसे में ईश्वर हमारी तकलीफें और  दुःख देखता है और सबके बावजूद हमारी मदद करता है. ईश्वर में मेरी आस्था अटल है, ये कोई कल्पना नहीं और न ही निष्क्रिय विश्वास है, पर ये ऐसा ही है, ये सच है कि ईश्वर है, जो जीवित है और हमारे माता-पिता के साथ है, जो बराबर हमारे ऊपर निगाहें रखता है. और मुझे पूरा यकीन है कि वही हमारे जीवन की तदबीर तय करता है. 
हमारा होना हमारी खुद की मलकियत नहीं जैसा हम सोचते रहे, और ये ईश्वर ईशु से अलग नहीं जिसे हम बाइबिल में पढ़ते हैं, जिसके आप्त शब्द और इतिहास हमारे सीने में गहरे तक पैठे है. अगर मैं पहले ही अपना सारा सामर्थ्य लगा देता, तो हाँ, मैं निश्चित रूप से और आगे होता, लेकिन फिर भी वह एक मज़बूत सहारा है, और उसकी शक्ति में ही हम अपने जीवन को सह्य बना पाते हैं,  इसे बुराई से बचा पाते हैं, एक नेक उद्देश्य को पाने के लिए अपना योगदान दे पाते हैं, और अंत शांतिपूर्ण होता है.
संसार में और हमारे भीतर बहुत बुराइयां हैं, बहुत-सी भयावह चीजें हैं, इसलिए बहुत अधिक पाने के डर में अधिक उन्नति की आवश्यकता नहीं है, यदि ज़रुरत है तो दृढ़ आस्था की और ये जानने की कि ईश्वर में विश्वास किये बिना हम जीवित नहीं रह सकते, न ही इसे सहन कर सकते हैं. लेकिन इस आस्था के सहारे कोई लम्बे समय तक अग्रसर रह सकता है.जब मैं खुद को एरस्सें के मृत शरीर के सामने खड़ा पाता हूँ तो मृत्यु की नीरवता, गरिमा और पवित्र शांति हमारे समक्ष व्यतिरेक के साथ खड़ी हो जाती है, जो एक हद तक मर कर भी जीवित है, उस सत्य को  हम सब महसूस करते हैं, जो उसकी बेटी ने बड़ी सरलता से कहा था, वह जीवन के उस भार  से मुक्त हो गया है, जिसे हमें सहन करना है. और इसके बाद भी  हम इस बूढ़ी ज़िन्दगी से चिपके रहते हैं यही सोच कर कि इस विषादपूर्ण मनोदशा के बाद सुख के क्षण आयेंगे, जब ह्रदय और आत्मा उल्लासित होंगे, उस भरत पक्षी की तरह जो प्रभात होते ही खुद को गाने से रोक नहीं पाता, तब भी जबकि कई बार हमारी आत्मा डूब रही होती है, आक्रांत होती है. और अपने प्रिय जनों की स्मृतियाँ जीवन की सांझ में लौट-लौट कर आती हैं. वे मृत नहीं हैं, बस सोये हैं और ये कहीं अच्छा है कि इस निधि को हम संजोये रखें.

अभिवादन
तुम्हारा स्नेही भाई, विन्सेंट
___




अपर्णा मनोज
कविताएँ, कहानियां और लेख प्रकाशित
aparnashrey@gmail.com
Tags: विन्सेंट वॉन गॉग
ShareTweetSend
Previous Post

शमशेर प्रेम की असंभावना के कवि अधिक हैं : अशोक वाजपेयी

Next Post

पूर्वोत्तर भारत : गोपाल प्रधान

Related Posts

No Content Available

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

  • Privacy Policy
  • Disclaimer

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum

No Result
View All Result
  • समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • आलोचना
    • आलेख
    • अनुवाद
    • समीक्षा
    • आत्म
  • कला
    • पेंटिंग
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • शिल्प
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • संपर्क और सहयोग
  • वैधानिक