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Betty–Gerhard Richter |
शिवेंद्र हिंदी कहानी की युवतर पीढ़ी से हैं. यह वह पीढ़ी है जो लेखन में आजीविका की संभावना तलाश रही है. दृश्य माध्यम से जुड़े होने के कारण कहानी के बदलते कहन से शिवेंद्र वाकिफ हैं और उसका बखूबी इस्तेमाल इस कहानी में उन्होंने किया है. एक संभावनाशील कथाकार का स्वागत है. उनसे उम्मीद के ठेर सारे कारण इस पहली कहानी में ही मैजूद हैं.
नटई तक मांड़-भात खाने वाली लड़की और बूढ़ा लेखक
शिवेंद्र
युवक लेखक ने सब कुछ अपने पास रख लिया- लिखने का पंख, करामाती कागज, कभी ना मिटने वाली स्याही और खंजर. अब वक़्त आ गया था- खिड़की से दिखने वाले फूलों और मेज से आगे बढ़ने का. बाहर निकलने, सितारों का पीछा करने और उस लड़की को खोजने का जो उसके जेहन से निकल भागी थी…
यह अदीबों, लेखकों और साहित्यकारों का गाँव था. पर यहाँ की सबसे बड़ी अफसानानिगार दादियाँ और नानियाँ थीं जिन्होंने गाँव को अब तक की सबसे बेहतरीन कहानियां सुनाई थी. पर आज तक कोई भी इस गाँव से बाहर नहीं गया था. कारण- यहाँ के जर्रे- जर्रे में कहानी थी. हर पेड़ पर, हर शाख पर, हर घोसले में एक कहानी रहती थी. अक्सर तो बेखुदी में चलते हुए लोगों का पाँव पत्थर की कहानी से टकरा जाता. इतनी कहानियां कि मोमबत्ती खोजते हुए रौशनी की कहानी ताखे पर बैठी मिलती. पर सबसे ज्यादा कहानियां माँओं के पास थीं- बटुई में कैद, चूल्हे पर चढ़ी हुई, कोरों पे अटकी हुई, आंसू सी मौन, अनकही कहानियां. मन ही मन पकती हुई…
गाँव की सबसे बूढी नानी ने लेखक को चेतावनी दी- ” मै फिर कहती हूँ वह जिंदा रहने के लिए लोगों का दिल खाती है ! तू एक बार और सोच ले ”
लेखक मुस्कुराया- ” तुम तो यह बताओ कि उसे काबू में कैसे करूँगा?”
”सच में स्त्री को समझते-समझते मै बूढी हो गई और आज तक खुद को ही नहीं समझ पाई ” वह मुस्कुराई- ” पर
एक बात है अगर तुने उसके पास जाने की ठान ही ली है तो यह कोड़ा लेते जा ”
नानी ने अपना कोड़ा लेखक को दे दिया. लेखक दिल में आश्वस्त था कि अब इसकी कोई जरूरत दुनिया को नहीं है फिर भी विरासत को सहेजने के नाम पर उसने नानी का कोड़ा अपने पास रख लिया.
“और सुन ” नानी ने सबसे बचाकर लेखक के कान में कहा- ” विश्वास मत खोना !”
लेखक ने अदीबों और कहानीकारों के विदा मांगी. सभी उससे जलते थे इसलिए खुश थे कि यह खुद ही मौत के मुंह में जा रहा है और तरह-तरह के षड़यंत्र करके इसे मारने की जरूरत नहीं पड़ी. (यह वही लोग थे जिन्होंने मुक्तिबोध की जान ली थी, परसाई की पीठ में कील ठोंकी थी और तुलसी को जूता मारा था) पर मन ही मन वे चिंतित भी थे कि क्या हो अगर सच में इसने वह कहानी खोज ली ? क्या हो अगर वह लड़की इसकी जान ना ले और अपनी कहानी दे दे ?
लेखक ने उनके मन का यह डाह सुन लिया पर कहा कुछ नहीं. वह अभी युवक था पर इतनी राजनीति वह भी समझता था. यहाँ सबसे बनाये रखना बहुत जरूरी था. उसने हंसते हुए उनसे हाथ मिलाया और गले मिला. पडोसी गाँव के कुछ पत्रकार भी अपना कैमरा लेकर वहां पहुच गए थे. उन्होंने भविष्य के लिए तश्वीरें लीं. (खुदा ना खास्ता कल को कहीं यह सच में कोई बड़ा लेखक बन गया तो ?)
लेखक ने सबसे नजरें चुराकर उस लड़की को देखा जिसे वह प्यार करता था और अगर वह वापस नहीं आया तो यह बात वह कभी नहीं जान पायेगी. गाँव छोड़ते हुए बस एक बार वह उससे मिलना चाहता था पर…
पीपल पर बैठे हुए जिन्न ने गाँव से कहा- ” यह तारीख इतिहास में लिख ली जाय कि आज एक २१ साल के लेखक ने एक कहानी के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया- ज़िन्दगी, जज्बात, जवानी ”
वह गाँव के सरहद पर पहुँच गया. यहाँ कहानी ख़त्म हो रही थी और ज़िन्दगी शुरू. उबड़-खाबड़, पथरीली, जलती हुई ज़िन्दगी. उसे एक पल को गाँव का मोह हुआ और उसके पाँव सरहद पर ठिठक गए. उसने मन ही मन कहा- ” मुझे याद रखना मेरे गाँव कि मै गाँव से जा रहा हूँ ” और आगे बढ़ने ही वाला था कि एक हांफती हुई आवाज ने उसके कदम रोक दिए- ” मै गाँव का सबसे बुजुर्ग लेखक तुम्हे आगाह करता हूँ कि अगर तुमने गाँव से बाहर कदम रक्खा तो गाँव से बाहर कर दिए जाओगे” फिर आवाज सांस लेने के लिए रुकी- ” तुम्हे कहानी लिखने के लिए गाँव की परिधि और किसी ना किसी खेमे में रहना जरूरी है”
युवक लेखक ने आवाज को पलटकर देखा और व्यंग में हंसा- ”तुम बुजुर्ग नहीं हो बूढ़े हो गए हो और जल्दी ही मरने वाले हो”
फिर बिना वक़्त जाया किये वह गाँव से बाहर चला गया.
चलते चलते पगडंडियों का जमाना पीछे छूट गया और अलकतरा वाली सड़क आ गई. लेखक की पनही अंगूठे के पास छिल गई थी और उसका दिल तप रहा था. उसने आसमान की ओर देखा, नहीं कोई राहत नहीं ! बादल गर्मी की लम्बी छुट्टियों पर अपने-अपने ननिहाल गए हुए थे. लह-लह जलती हुई दोपहरी. छांव आम के बगीचे में चरवाहों के साथ तिरेल (ताश का एक खेल) खेल रही थी. लेखक ने छांव से पूछा- ”तुमने देखा कभी उस लड़की को ?”
छांव ने अपने पत्ते देखते हुए चरवाहे से कहा- ”तुम्हारी दान है”
चरवाहा सोचता रहा . लेखक तिरेल देखने में अपना वक़्त बरबाद नहीं कर सकता था. वह आगे बढ़ गया. पास ही एक मड़ई थी. बाहर गाय बंधी हुई थी. लेख़क के मन में शीतलता उतर आई. (कुछ नहीं तो एक लोटा मंठा जरूर मिलेगा. तबियत तर हो जाएगी) लेखक ने वर्षों से गाय नहीं देखी थी. शहर में घूमते हुए उसे कुत्ते ही मिले थे जिन्होंने लड़की के बारे में बात की थी- ”हम उसकी गंध पहचानते हैं. वह ऑफिस जाती है और रात को अकेले लौटती है!. उसकी हिम्मत तो देखो !. वह हमसे डरती तक नहीं… भौ…भौ…”
लेखक की उम्मीद ने मड़ई में कदम रक्खा. भीतर एक औरत दही मथ रही थी. उसने झट लेखक का हाथ पकड़ लिया- ”… तो तू मेरा माखन चुराता है…?”
लेखक सिटपिटा गया. वह हंसने लगी – ”आओ मेरे माखनचोर…”
घर के आँगन में एक तीन-चार साल की लड़की खेल रही थी. खटिया पर लेटे-लेटे लेखक उसे वात्सल्य से देखता रहा. कितना समय बीत गया ?. अचानक जैसे वह नींद से जागा हो. ओह ! औरत की हंसी और उसकी आँखों का सम्मोहन. वह उठ खड़ा हुआ- ”अब मुझे जाना होगा”
औरत जानती थी कभी न कभी यह घड़ी जरूर आएगी. बिछुड़ने की घड़ी. उसकी आँखे सावन भादो बन गईं- ”सुना है जो भी उसके पास जाता है वह उसे जूं बनाकर अपनी जुल्फों में कैद कर लेती है !”
”और क्या सुना है तुमने उसके बारे में ?” लेखक ने पूछा.
वह लेखक से लिपट गई और रोने लगी- ”बस आज की रात रुक जाओ…”
बच्ची अब तक खेलने में मगन थी उसे बिछुड़ने का दर्द नहीं पता था. अभी उसने किसी से प्यार नहीं किया था.
”तुम चिंता मत करो मै वापस आऊंगा और तुम्हे उसकी पूरी कहानी सुनाऊंगा…”
जाते हुए उसने बच्ची के सर पर हाथ फेरा- ”माँ का ख़याल रखना..”
” तुम कहाँ जा रहे हो ?” बच्ची ने पूछा.
” नहीं तुम्हे अपनी कहानी खुद खोजनी होगी…अकेले ”
और लेखक एक कहानी अधूरी छोड़कर आगे बढ़ गया… अकेली रात में एक कविता ही उसकी सहचर हो सकती
थी. वह गुनगुनाने लगा- ” एक सर कंधे पे मेरे मौन होता, ह्रदय में तैरता एक चाँद, आदमी बनता मै भी काश !” उसे गाँव की वह लड़की याद आ रही थी जिससे बिना कुछ कहे वह चला आया था. प्यार के संसार में भी शब्द कितना जरूरी होता है ? कितना जरूरी होता है इजहार ? कि बिना कहे मुक्ति नहीं ! लेखक रोने लगा. उसकी एक आँख से मोती टपक रहे थे और दूसरी आँख से फूल झड़ रहे थे. यह एक लेखक का रोना था – जब लेखक रोता है तब भी वह दुनिया को कुछ न कुछ देता ही है.
६० साल गुजर गए भटकते हुए. सातों महाद्विपों की दूरी उसने धूल फांकते, झुलसते और बर्फ में गलते हुए तय की. सागर की एक-एक लहर से उसने बात की. हर युग में गया- सतयुग, द्वापर, कलयुग, पाषाण, वैदिक, ऋग्वैदिक. पर जहाँ भी वह गया उसे सिर्फ लड़की के किस्से मिले.(अब वह मछली बन गई है और नदी में रहती है… आधी रात को जो बेला का फूल गगन में खिलता है वही है वह लड़की उसे सिर्फ कउवा हकनी तोड़ सकती है… तुमने गूलर का फूल देखा है ? नहीं न ! वह लड़की नहीं है गूलर का फूल है ! समझे !) लड़की हर उन जगहों से जा चुकी थी जहाँ वह कभी रहती थी. (इस गाँव में उसने २२ ठाकुरों की जान ली थी. अगर तुम्हे मिले तो हमें जरूर बताना. मारी बंदूके प्यासी हैं वारी खून को) लेखक ने एक गुफा का दरवाजा खटखटाया. यह ऋग्वैदिक काल का अंतिम चरण था. लड़की यहाँ खेली थी और बड़ी हुई थी. यहीं उसने ऋचाओं का निर्माण किया था. पर अब यहाँ जाले लगे हुए थे. लड़की यहाँ से भी जा चुकी थी…
बूढा लेखक निराश हो गया. मृत्यु उसके पास खड़ी थी और जिस तरह से मुस्कुरा रही थी उससे लग रहा था कि अबकी वह खाली हाथ नहीं जाने वाली. लेखक को प्यास लगी थी. वह आगे बढ़ा तो मृत्यु ने रास्ता रोक लिया. अपनी लाठी से उसे परे ठेलते हुए लेखक बोला- ”मै नदी तक जा रहा हूँ… मन है तो तू भी आ…”
एक बार फिर से कहना जरूरी है- वह एक भागी हुई लड़की थी और उसे खोजते हुए लेखक बूढ़ा हुआ था. यह ताउम्र की तलाश उस टनल के पास जाकर ठहर गई. टनल नदी के नीचे से गुजरती थी. यह तब से लड़की का घर था जब से वह लेखक के मन से भागी थी. लेखक ने झांककर टनल में देखा-
“ खदर- बदर… खदर- खदर ” मिट्टी की हांड़ी में कुछ पक रहा था. चार इंटों को जोड़कर बनाया गया चूल्हा. लकड़ी का इधन. महीन आग के उस पार, हांड़ी से आधा ढका हुआ पसीने से तर चेहरा, माथे को चूमते भीगे बाल और गले के गिर्द चीपटे मासूम रोवें, निमिष, निःवस्त्र नज़र.
लेखक घुटनों के बल झुक गया. अन्तः में दुनिया को फतह कर लेने की लहर उठी और होठों पर संतोष की चासनी में लिपटी हुई मुस्कान ने दस्तक दी – “ आख़िरकार… ”
“ विश्वास मत खोना “ बूढ़ी नानी ने सबसे बचाकर लेखक को मंत्र दिया था- ” विश्वास मत खोना ” लेखक ने मन ही कहा- ” हर सपना सच हो सकता है ”
लेखक ने पलकें मूँद लीं. माथे पर ठहरा हुआ खारा पानी धुलक गया और दिल का दर्द रुलाई बनकर आँखों से बहने लगा. लेखक ने नानी के कोड़े को दूर फेंक दिया और अपने खंजर को मंत्र पढ़कर गुलाब बना दिया- नीला गुलाब.
यह दिल से दिल को जोड़ने वाला फूल था.
लेखक इजहार की मुद्रा में टनल के बाहर बैठा रहा.
दिन ढल गया और रात गुजर गई.
कहानी लिखना प्रेम करने की तरह है आपको इंतज़ार सहना होता है. लेखक इंतज़ार करता रहा यहाँ तक की मृत्यु बोर होने लगी.
एक रात जब चनरमा इन्द्र के साथ अहिल्या के यहाँ गया हुआ था और मृत्यु थक कर सो गई थी, आख़िरकार लड़की टनल से बाहर निकली- ”आँखे खोलो”
मिश्री की डली से शब्द. पर लेखक ने आँखे नहीं खोली. (उसकी आँखों में मत देखना वह तुम्हे सोने की मूर्ति में बदल देगी)
” आँखे खोलो ” लड़की ने फिर कहा.
अपनी कहानी को देखने का मोह. लेखक ने हर तरह के डर को ताखे पर रख दिया. उसने आँखे खोलीं- रात का नीला उजाला, पृष्टभूमि में टनल से उठता धुंआ, और देवी सी लड़की.
” यह क्या है ?” लड़की ने पूछा.
“अच्छा होता तुम कुछ खाने को लेकर आते !”
लेखक ने आश्चर्य से लड़की को देखा. उसने अपनी पोटली खोली- ” मेरे पास थोड़ा सा चावल है, मोटा चावल, कोदो”
” तुम्हे इसके बदले में क्या चाहिए ?”
लेखक लड़की को देखता रहा- ”अब कुछ नहीं ”
सच में उसे अब कुछ नहीं चाहिए था और अगर यह लड़की उसे नहीं मिलती तो ज़िन्दगी में उसने कुछ नहीं पाया होता.
” तुम नदी से थोड़ा सा पानी ले आओगे?” लड़की ने कहा.
लेखक पानी ले आया. लड़की हांड़ी से पत्थरों को बाहर निकाल रही थी- ” खाओगे ?” उसने लेखक से पूछा.
”ये तो पत्थर हैं !” बूढ़ा लेखक बोला.
” पत्थर पत्थर ही होतें है चाहे उन्हें कितना भी पकाओ नहीं !” लड़की मुस्कराई – “लाओ चावल दो”
लड़की ने चावल हांड़ी में डाल दिया और उसमे इतना पानी भर दिया कि दो लोगों भर मांड़ हो जाये.
”मैं तुम्हारी कहानी जानने आया था” लेखक ने हिम्मत जुटाकर कहा.
”तुम वो पाओगे, जो तुम्हे चाहिए ” लड़की ने तथास्तु की तरह कहा.
हांड़ी में भात पकने लगा था.”तो क्या है तुम्हारी कहानी…?”” जो है तुम्हारे सामने है- मिटटी के दो चार बर्तन, दो कपडे और रहने को यह टनल ”
” नहीं मेरा मतलब है तुम्हारी पूरी कहानी क्या है ? तुमने कभी शादी नहीं की ?”
”तब भी यही मेरी कहानी थी- मिट्टी के दो चार बर्तन, दो लुग्गा और कच्चा घर. हाँ, तब पत्थर नहीं उबालना होता था, खाने को भर पेट मिलता था… माड़ भात… मै तो नटई तक खा लेती थी… कभी- कभी ” लड़की पुराने दिनों में खोई, खुश लग रही थी.
” फिर मै भाग आई… हर जगह से जैसा की तुम जानते ही हो ”
” कोई लड़की क्यों भागती है यह वहां जाकर पूछना जहाँ से वह भागती है ! ”
बाहर कुछ लोग गश्त कर रहे थे. लड़की ने अचानक से एक जलती हुई लकड़ी हाथ में ले ली.
” ये बहुत खतरनाक लोग हैं… लड़कियों को मार देते है !”
” ऐसा माहौल बना दो कि कोई लड़की आज़ाद न घूम सके और उनकी आज़ादी की घोषणा कर दो” बाहर से एक भारी आवाज आई.
” झूठे मक्कार लोग ” लड़की दांत पीसती हुई बोली.
लेखक ने कहानी लिखने का कागज़ निकाल लिया- ”तो तुम उन्हें अपनी आँखों से जला नहीं सकती या फिर एक सिरे से उनका वध करके हुए और उनका खून पीते हुए उनका नामोनिशान नहीं मिटा सकती ?’”
” मै एक लड़की हूँ कोई जादूगरनी नहीं !”
” पर पोथियों में तो तुम्हारे बारे में यही लिखा है ! ”
लड़की हंसी- ”यह किस्सा गढ़ने वाला देश है यहाँ इतिहास एक कविता है और लड़की मिथक ”
”तो तुम्हारी सच्चाई क्या है ?”
लड़की ने एक बड़ी सी थाली में भात परोस लिया और उसे बारी बराबर मांड से भर दिया. फिर वह सुरूर-सुरूर खाने लगी जैसे जन्मों की भूखी हो- ”एक माँ थी बस वही मुझे प्यार करती थी…”
लेखक ने कहना चाहा वह भी उसे प्यार करता है पर शब्द उसके मुंह पर नहीं आये. (वह लिख सकता है पर बोल नहीं सकता. बुरा हुआ जो प्रेमपत्रों का जमाना चला गया )
”और क्या ” वह गुस्सा हो गई. जैसे एक आम इंसान गुस्सा होता है (मतलब मुंह खोलते ही उसके मुंह से आग की लपट वगैरह कुछ नहीं निकली जैसा की लेखक ने सुना था)- ”मेरा ब्याह हुआ…मै बहुत खुश थी… रोज रात को वह मेरे लिए पान लेकर आता था… एक रात वह पान लेने गया और लौट कर नहीं आया…”
टनल में अब तीन लोग थे- लड़की, लेखक और चुप्पी.
”बस इतनी सी मेरी कहानी है ” लड़की के आंसू बोले.
लेखक ने उन आंसुओं में लड़की का जलना देखा और रो पड़ा.
“ लोग विश्वास नहीं करेंगे कि यह तुम्हारी कहानी है “ लेखक ने कहा- ” मेरा मतलब है ऐसी कहानी तो हर लड़की की होती है !”
” तुम निराश हुए नहीं ! कि मै भी एक साधारण लड़की निकली ?”
” नहीं ! पर लोग विश्वास नहीं करेंगे कि यह तुम्हारी कहानी है बस !”
लड़की हंसी- ” लाओ मै हस्ताक्षर कर दूं ” और फिर लेखक से वह कागज ले लिया जिसपर कहानी लिखी गई थी और उसके अंत में एक चुम्बन अंकित कर दिया. उसके गाढ़े सवलाये होंठ कागज़ पर छप गए. यह भविष्य का हस्ताक्षर था.
लेखक यह सोचकर काँप उठा जब कलम की जरूरत नहीं होगी और होठों से हस्ताक्षर किये जायेंगे.
बाहर शोरगुल बढ़ने लगा था-
”आस- पास ही कहीं बहुत सारी लड़कियाँ छुपी हुई है ! ”
” पागल हो गए हो ! . इतनी लड़कियाँ कैसे हो सकती हैं ? हमने एक- एक को खोज-खोज कर मारा है तुम भूल गए ?”
लड़की चौकन्नी हो गई – ” इन्हें तुम अपने साथ लाये हो ?”
लेखक जवाब देने की बजाय एक पोटली खोलने लगा. लड़की की घबराहट बढ़ने लगी – ” बोलो इन्हें तुम अपने साथ लाये हो ?”
लेखक ने लड़की की घबराहट देखी- ” धीरे बोलो नहीं तो वे सुन लेंगे ”
” पोटली में क्या है…? … खंजर ?” लड़की को लेखक में एक विश्वासघाती नज़र आया. .लेखक मुस्कुराया- ” इसमे तुम्हारे लिए कुछ है ”
” हाथ दूर रक्खो…पोटली से हाथ दूर करो अपना ” लड़की चीखी. . अचानक से उसकी आँखों में ज़हर उतर आया और उसके सामने के दो दांत नुकीले हो गए- ” तुम कला के लिए मेरा इस्तेमाल करना चाहते थे ?” वह गुस्से में फुफकारी.
लेखक चौंक गया और डरकर पीछे हट गया- ” ओह! तो यह है तुम्हारा सच ?”
” यह तुम्हारे विश्वास करने पर है ” लड़की ने लेखक से अपनी कहानी छीन ली- ” लिखने वालों में बहुत कम हैं जो सच में लेखक होते हैं !”
” नहीं ! ” लेखक ने कहा- ” लिखने वालों में बहुत कम हैं जो लेखक बन पाते हैं ! ”
और लड़की ने अपना ज़हर लेखक की नसों में उतार दिया. इससे पहले कि लेखक कुछ कहता उसका खून नीला होने लगा, उसके लाये हुए गुलाब की तरह. उसने पोटली की तरफ इशारा किया. लड़की ने पोटली हाथ में लिया और सन्न रह गई.
” तुम कहाँ चले गए थे ?” शब्द कांपते हुए लड़की के होठों पर आये.
” मै पूरी ज़िन्दगी सिर्फ तुम्हे खोजता रहा ! ” लेखक की जीभ ऐठने लगी थी. लड़की रोने लगी. लेखक ने अपना हाथ फैलाया- ” एक सिर कंधे पे मेरे मौन होता, ह्रदय में तैरता एक चाँद, आदमी बनता मैं भी काश !” लड़की उसकी बाँहों में सिमट आई.
“ तुम बूढ़े हो गए हो ” वह रोते हुए बोली.
” मैंने तुम्हे मार डाला !” लड़की ने टनल से बाहर देखा.
” नहीं !” लेखक बोला- ” मै तुम्हारे ह्रदय में जीवित रहूँगा पर तुम बाहर मत निकलना वे तुम्हे मार देंगे ”
” मै अब इस तरह नहीं जीना चाहती… मै बाहर निकलूंगी, उनसे लडूंगी और जीवित रहूंगी ”
यह वक़्त मृत्यु का था. वह लेखक के पास उदास बैठी थी. बिछुड़ना लोगों को उदास कर देता है, मृत्यु तक को. लेखक टनल की छत को एकटक तक रहा था. वहां लड़की एक चिड़िया के साथ खेल रही थी. लेखक को गांव की लड़की याद आई- आप किसी और की बाँहों में किसी और को याद करते हुए दम तोड़ सकते हो…!
लड़की ने लेखक की खुली आँखे बंद की, अपने आंसू पोंछे और टनल से बाहर निकली- ‘धुब्ब’ एक गोली उसके दिल पर लगी.
नदी के ऊपर ढूह पर एक झोपड़ी थी जिसे दीमक खा गए थे. वहां एक ब्रम्हचारी बैठा हुआ था- ” मुझे बचा लो !” लड़की ने कहा.
“लक्षमण ” युवक बोला- ” यह लड़की खुले में कैसे घूम रही है…इसके नाक कान काट लो ”
” धुब्ब…धुब्ब…धुब्ब” लड़की का ह्रदय छलनी हो गया.
बादलों के चक्रव्यूह में फंसा हुआ चाँद…झाड़ियों की ओट से शोक गाते झींगुर… नदी मौन है… हवा तक पहाड़ों के पार चली गई है…अकेले अँधेरा घुटनों के बल लड़की के पास बैठा हुआ है… हमेशा की तरह…
टनल के बाहर तारों का बंदनवार टंगा है. भीतर लड़कियाँ आइस-पाइस, फूटबाल, होलिका-पताल और गुल्ली डंडा खेल रही हैं. मनमौजी लड़कियाँ- बेसहुरों सी हंसतीं, पैर पसारे कवितायेँ पढ़ती, नाचती और चित्र बनाती…. घर, बाज़ार, प्रेम, ज़िन्दगी और दूसरों के जेहन से भागी लड़कियाँ…हजारों की तादाद में…( उस व्यक्ति ने सच कहा था) अपने सपनों के साथ मगन, नाचती, कूदती, हुल्लड़ करती लड़कियाँ…
“खट…खट…” दरवाजे पर दस्तक हुई. अचानक से सारा ज़श्न रुक गया. लड़कियों ने एक दुसरे को देखा. वे सब तैयार थीं- “कौन ?” एक जवान लड़की ने कड़क कर पूछा.
“क्या यह वही जगह है जहाँ लड़कियाँ सपने देखती हैं ?” बाहर से आवाज आई.
” हाँ ” एक १३ साल की लड़की दरवाजे पर आ गई- ” पर तुम्हे कैसे पता ?”
बाहर खड़ी लड़की ने एक कहानी आगे बढ़ाई- “माड़-भात खाने वाली लड़की”
वह लड़की मारी गई जिसकी कहानी थी और कहानी का लेखक मिट गया पर कहानी पढने वालों तक पहुँच कर ही रही.
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि ( उसे न तो संपादक की कलम काट सकती है ), नैनं दहति पावकः ( और ना ही कोई धर्म जला सकता है),न चैनं क्लेदयन्त्यापो ( जवाने की नफरत पीकर भी वह जीवित रहती है), न शोषयति मारुतः (और षडयंत्रों की हवा के विपरीत उसका झंडा सदैव बुलंद रहता है) .
वह (कहानी) अपने चाहने वालों के बीच आत्मा की तरह अमर होती है…!
यह गावं की वही लड़की थी जिससे लेखक प्रेम करता था और वह लेखक को खोजते हुए यहाँ आई थी…
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शिवेन्द्र
6 April, 1987, वाराणसी
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से हिंदी (ऑनर्स) में स्नातक व माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से जनसंचार में स्नाकोत्तर.
मुंबई में निवास व फिल्म लेखन के लिए प्रयासरत. कई ख्यात टीवी सीरियल्स (जैसे- शपथ (life ok), सुपर कॉप सूर्या (Sony), चाँद छुपा बादल में(Star plus) में सहायक- निर्देशक के तौर पर कार्य किया.
फिलहाल दूरदर्शन पर प्रसारित शो डिटेक्टिव वागले का लेखन.
9930960657